Monday, May 2, 2011

किताबों की दुनिया - 51

किताबों की दुनिया श्रृंखला की हाफ सेचुरी पूरी करने के बाद चलिए अब इसके अगले पड़ाव की और कदम बढाते हैं. रास्ता मुश्किल है लेकिन आपके स्नेह और संबल से इसे पार करने में शायद मैं समर्थ हो जाऊं. आपने साथ छोड़ दिया तो इस श्रृंखला का दम तोडना निश्चित है. किताबें मेरी कमजोरी हैं लेकिन मैं अपने आपको इतना सक्षम नहीं समझता के किसी किताब की समीक्षा कर सकूँ इसलिए आपने देखा होगा के मैंने किताब पर कभी आलोचक की नज़र से कुछ नहीं कहा क्यूँ कि आलोचना का अधिकार सिर्फ उसे होता है जिसका ज्ञान पुस्तक के लेखक से अधिक हो. शायरी का प्रेमी जरूर हूँ लेकिन इस विधा पर लिखने में अभी बच्चा हूँ. मेरी कोशिश रहती है के किताब की खूबियों की और आपका ध्यान दिलाऊं ताकि आप उसे खरीद कर पढ़ें क्यूँ की आज के युग में किताब खरीद कर पढने वाले पाठकों की संख्या में अप्रत्याशित कमी आई है. हम पान बीडी सिगरेट सिनेमा में आराम से पैसे उड़ा देते हैं लेकिन पचास सौ रुपये की किताब खरीदने में हिचकते हैं. किताब पढने के लिए वक्त की कमी का बहाना बनाते हैं जबकि यार दोस्तों के साथ फ़िज़ूल की बातों में या टी.वी के ऊलजुलूल कार्यकर्मों के सामने बैठ कर घंटों बिता देते हैं. चलिए छोडिये ये बहस का विषय है आईये शायरी की और लौटते हैं.

मोहब्बत का ज़ज्बा जगा कर के देखो
कभी दिल को तुम दिल बना कर के देखो

हो तुम भी तभी तक, कि जब तक कि हम हैं
न मानो तो हमको मिटाकर के देखो

भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
है आसाँ तो हमको भुला कर के देखो

सच है ऐसे बाकमाल शेर कहने वाले शायर को कौन भुला सकता है? शीरीं ज़बान में ऐसे रोमांटिक शेर कहने वाले शायर अब गिनती के ही बचे हैं जिन्हें उँगलियों पर गिना जा सकता है. आज हम ऐसे ही अनूठे शायर डाक्टर ऐ.के.श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब शाहाबादी साहब की किताब " थोडा सा रूमानी हो लें हम " का जिक्र करेंगे जिसे पढ़ कर थोडा सा नहीं बहुत ज्यादा रूमानी होने की प्रबल संभावनाएं हैं. इस किताब में नवाब साहब की लगभग एक सौ अस्सी लाजवाब ग़ज़लें संकलित हैं.


तल्खी है बहुत ही जीवन में, थोडा सा रूमानी होलें हम
कुछ रंग तुम अपने छलकाओ, कुछ प्यार की मस्ती घोलें हम

हम कैस नहीं, फ़रहाद नहीं, जो होश गँवा बैठें अपना
क्या राज़ है अपनी उल्फ़त का, क्यूँ तुझपे जमाना खोलें हम

है मुंह में जबाँ तो अपने भी, होंठों को सिये बैठे हैं मगर
'नव्वाब' किसी की महफ़िल में, ये सोचते हैं क्या बोले हम

अब आप ही बताइए ऐसी शायरी आजकल कहाँ पढने सुनने को मिलती है. ज़िन्दगी की तल्खियों ने शायरी की जबान को भी तल्ख़ कर दिया है, ये किताब कुछ हद तक उस तल्खी को दूर कर आपकी रूह को सुकून पहुंचाने का काम करती है. कभी कभी मैंने देखा है अचानक पढ़ा एक शेर आपके मूड को बदल देता है आप अवसाद से मुक्ति पा लेते हैं और वाह कह उठते हैं. तभी तो आज भी लोग उस एक शेर की तलाश में सारी सारी रात जाग कर मुशायरा सुनते हैं.

देने चला है जान का नजराना देखिये
लिपटा है जा के शमअ से परवाना देखिये

मज़हब की इन किताबों ने आखिर दिया है क्या
एक बार पढ़ के प्यार का अफ़साना देखिये

मरने लगे हैं वो भी उसी पर के जिस पे हम
यारों का ये सलूके - हरीफ़ाना देखिये

नवाब शाहाबादी साहब पेशे से डाक्टर हैं , आपको शायद मालूम हो लेकिन मुझे इस किताब से ही मालूम पड़ा के उस्ताद शायर जनाब मोमिन खां 'मोमिन' भी अपने ज़माने के मशहूर हकीम थे. जनाब इब्राहिम'अश्क' साहब फरमाते हैं " नवाब साहब ऐसे शायर हैं जो वक्त पड़ने पर सबके काम आते हैं. जो शख्स सबके काम आता है उसका मज़हब इंसानियत होता है" ये इंसानियत उनकी पूरी शायरी में नज़र आती है.

आये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
फूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये

लोगों ने गुज़ारी है, जैसी भी वहां गुज़री
कुछ हँस के गुज़ार आये कुछ रो के गुज़ार आये

'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये

काटों के करार और जानबूझ के बाज़ी हारने की बातें करने वाले शायर किस कदर इंसानियत से भरे होंगे इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है. बकौल नवाब साहब " कल-कल करते झरनों का संगीत, नीले आकाश में उड़ते हुए बादल, सुरमई साँझ, लहरों का गीत, कलरव करते पक्षी, मुस्कुराती हुई कलियाँ, अमराई की गंध, ओस में नहाई चांदनी आदि कितने बिम्ब मूड को बदल देते हैं. तल्खियाँ कम हो जाती हैं और मन ऐसे वातावरण में चला जाता है जहाँ आनंद की अनूभूति होती है."

किसे देखने को हैं बेताब आँखें
जो खुलने लगी खिड़कियाँ धीरे धीरे

जो मौजों के तेवर से वाकिफ़ नहीं हैं
डुबों देंगे वो कश्तियाँ धीरे धीरे

बड़ा प्यार आया जो बालों पे मेरे
फिराने लगे उँगलियाँ धीरे धीरे

"डायमंड पाकेट बुक्स" ने इस किताब को, जिसे राजेश राज जी ने संकलित किया है, बहुत आकर्षक कलेवर के साथ छापा है. इस किताब को आसानी से किसी भी हिंदी पुस्तकों के विक्रेता से प्राप्त किया जा सकता है फिर भी न मिलने की स्तिथि में आप ओखला इंडस्ट्रियल एरिया दिल्ली स्तिथ डायमंड बुक्स वालों को 011- 41611861 नंबर पर फोन करके इसे मंगवा सकते हैं.

उस सितम को सितम नहीं कहते
जो सितम बार बार होता है

कोई हँसता है सुन के हाले ग़म
और कोई अश्क बार होता है

हाथ डालें जरा संभल के आप
फूल के पास खार होता है



फूल के पास भले ही खार होता हो लेकिन नवाब साहब की शायरी तो उस फूल की तरह है जिसमें रंग है खुशबू है और खार अगर कहीं है भी तो बहुत दूर है. आपको यदि उनकी शायरी की बानगी पसंद आई है तो आप बराए मेहरबानी नवाब साहब को, जो रायबरेली रोड ,लखनऊ के निवासी हैं,उनके मोबाईल न. 09839221614 या उनके लैन लाइन न. 0522-2442121 पर बात करके मुबारकबाद तो दे ही सकते हैं.

कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
कुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया

तुम कोशिशों के बाद भी शायर न बन सके
हमको तुम्हारी याद ने शायर बना दिया

करता अदा हूँ शुक्र तुम्हारा मैं दोस्तों
मुझको तुम्हारी दाद ने शायर बना दिया

तो आप दोस्ती का फ़र्ज़ निभाइए नवाब साहब को उनके कलाम के लिए दाद दीजिये तब तक हम निकलते हैं एक और किताब की तलाश में.

40 comments:

सदा said...

आये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
फूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये

बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ... बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

जो मौजों के तेवर से वाकिफ़ नहीं हैं
डुबों देंगे वो कश्तियाँ धीरे धीरे

बहुत अच्छे कलाम से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया नीरज जी.

Pawan Kumar said...

नवाब साहब के विषय में और उनके कृतित्व के बारे में बड़ा ही शानदार लिखा आपने......
वाकई बड़े शायर हैं.... यह उनके कलाम से ज़ाहिर भी होता है......
तल्खी है बहुत ही जीवन में, थोडा सा रूमानी होलें हम
कुछ रंग तुम अपने छलकाओ, कुछ प्यार की मस्ती घोलें हम
और
हम कैस नहीं, फ़रहाद नहीं, जो होश गँवा बैठें अपना
क्या राज़ है अपनी उल्फ़त का, क्यूँ तुझपे जमाना खोलें हम
जैसे शेरों को बार बार पढ़ने का दिल किया..... यह दीवान तो हमें लेना ही पड़ेगा.
परिचय की श्रंखला की इक्यावन कड़ियों की सफलता की हार्दिक बधाई...

varnika said...

कभी-कभी मैंने देखा है अचानक पढ़ा एक शेर आपके मूड को बदल देता है आप अवसाद से मुक्ति पा लेते हैं और वाह कह उठते हैं. तभी तो आज भी लोग उस एक शेर की तलाश में सारी सारी रात जाग कर मुशायरा सुनते हैं.
इत्तेफ़ाक रखते हैं आपकी बात से। आपकी समीक्षा का भी एक-एक शब्द स्वर्णाक्षरों सा चमकता है।

है मुंह में जबाँ तो अपने भी, होंठों को सिये बैठे हैं मगर
'नव्वाब' किसी की महफ़िल में, ये सोचते हैं क्या बोले हम

'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये

रश्मि प्रभा... said...

भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
है आसाँ तो हमको भुला कर के देखो
moti mil hi jata hai aapki khoj me

दिगम्बर नासवा said...

मज़हब की इन किताबों ने आखिर दिया है क्या
एक बार पढ़ के प्यार का अफ़साना देखिये


जिस शायर का कलाम इतना लाजवाब हो .. सोच इतनी कमाल की हो वो खुद कैसा इंसान होगा .... बहुत ही लाजवाब किताब से परिचय करवाया है आज तो आपने नीरज जी ... नवाब साहब की शायरी को सलाम है ... हाँ आपकी बात से इतेफ़ाक रखता हूँ की किताबों खरीद कर ही पढ़ना चाहिए ...

आकर्षण गिरि said...

उस सितम को सितम नहीं कहते
जो सितम बार बार होता है

कोई हँसता है सुन के हाले ग़म
और कोई अश्क बार होता है

हाथ डालें जरा संभल के आप
फूल के पास खार होता है

bahut barhiya ghazal hai.... neeraj sir jee ko ek behtareen post ke liye badhaai....

Aakarshan

अरुण चन्द्र रॉय said...

नीरज जी
किताबों के इस सफ़र की हाफ सेंचुरी के बाद आपकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है.. आपके इस सफ़र में आधे से तो मैं साथ हूँ ही पाठक के तौर पर और ग़ज़ल के प्रति जो थोड़ी रूचि जगी है उसमे आपके इस श्रंखला का योगदान है.. . इस अंक में जिस पुस्तक को आपने शामिल किया है वह बेहतरीन है.. हर शेर सार्थक है ...

संध्या शर्मा said...

लाजवाब किताब से परिचय करवाया है आपने नीरज जी ... नवाब साहब की शायरी बेमिसाल है...

pran sharma said...

KHOOB ! BAHUT KHOOB !! AAPKEE
PASAND PAR NAAZ HAI .

पूनम श्रीवास्तव said...

aadarniy sir
sarv pratham to jo kuchh apne lekh ke jariye aapne likha hai uski har panktiyan sachchai ka aaina hi dikhati hainbahut hi achhe v mahatav vichar bahut bahut achhe lage
shayarnawab shahabaadi ki kitaab to bahut bahut hi achhi lagin jabki abhi aapko ise sampurn karna hai.par har gazl har sher ----shbhan allah
kis kis ki tarrif karun

आये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
फूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये

लोगों ने गुज़ारी है, जैसी भी वहां गुज़री
कुछ हँस के गुज़ार आये कुछ रो के गुज़ार आये

'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये
bahut bahut pasand aai
hardik badhai
poonam

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

आये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
फूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये
लोगों ने गुज़ारी है, जैसी भी वहां गुज़री
कुछ हँस के गुज़ार आये कुछ रो के गुज़ार आये
'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये

भारत भर के अज़ीम शायरों के बारे में जानना हो तो आपके ब्लॉग पर आना चाहिए ...एक से एक बढ़कर शायरों से रूबरू करवाते हैं आप ... इस बार भी जनाब नवाब शाहाबादी साहब की शायरी से परिचय करवाकर हम पाठकों पर एहसान किये हैं आप ... हर शेर पढते गए और बस वाह वाह कहते गए ...

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई नीरज जी वाकई आप कमाल का काम कर रहे है जो तथाकथित साहित्य की पत्रिकाएँ भी इतनी ईमानदारी से नहीं कर पति हैं |आपकी हर पोस्ट बेहतरीन शायरों से रूबरू कराती है बधाई और शुभकामनाएं |

Akanksha Yadav said...

किताबों की दुनिया श्रृंखला की हाफ सेचुरी पूरी करने के लिए बधाई. आपकी हर समीक्षा लाजवाब होती है.

इस्मत ज़ैदी said...

भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
है आसाँ तो हमको भुला कर के देखो

******

'नव्वाब' कहीं सदमा पहुंचे न कोई उनको
हम जीती हुई बाज़ी ये सोच के हार आये
*******


कोई हँसता है सुन के हाले ग़म
और कोई अश्क बार होता है
********

नीरज जी बहुत बहुत शुक्रिया ,,,आप सही मायनों में साहित्यकार और साहित्य प्रेमी हैं

Udan Tashtari said...

डाक्टर ऐ.के.श्रीवास्तव उर्फ़ नवाब शाहाबादी साहब की किताब " थोडा सा रूमानी हो लें हम " से परिचय कराने का आभार. आनन्द आया.

दीपक बाबा said...

तुम कोशिशों के बाद भी शायर न बन सके
हमको तुम्हारी याद ने शायर बना दिया


आनंदम ....

Rajeysha said...

जो मौजों के तेवर से वाकिफ़ नहीं हैं
डुबों देंगे वो कश्तियाँ धीरे धीरे

वक्‍त की जुबां को ना समझने वाला कश्‍ि‍तयां डुबो ही लेता है...

सौरभ शेखर said...

Neeraj jee ghazalon ke prati aapki yah lagan viral hai aur ham jaise sahityasevi aapke karzdar.

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

शुक्रिया नीरज भाई|
हमारी यही कामना है कि आप शतकों के बेताज बादशाह सचिन तेंदुलकर की तरह यहाँ पुस्तकों को प्रस्तुत करते हुए रिकार्ड पर रिकार्ड बनाते रहें| हम जैसे घर बैठे वर्चुअल लोगों को बाहर की दुनिया दिखाते रहें|
श्रीवास्तव जी उर्फ नवाब साहब को बहुत बहुत शुभ कामनाएँ..............

Urmi said...

आपकी टिपण्णी और हौसला अफजाही के लिए शुक्रिया!
काफी दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आकर सुन्दर पोस्ट पढ़ने को मिला उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद! आपका हर एक पोस्ट एक से बढ़कर एक होता है जिसके बारे में जितना भी कहा जाए कम है! आपकी लेखनी को सलाम!

मेरे भाव said...

हाथ डालें जरा संभल के आप
फूल के पास खार होता है
.......

ऐसी नायाब पुस्तक की जानकारी देने के लिए आपका आभार.

डॉ० डंडा लखनवी said...

भाई नीरज जी!
नवाब शाहाबादी साहब की गजलों को सुनने का अवसर मुझे कई बार मिला है। उनकी रचनाओं में श्रंगार का माधुर्य है और स्वर लुभावना है। आपके ब्लाग पर उनकी कृति-चर्चा पढ़कर प्रसन्नता हुई। आप दवारा नियोजित साहित्यिक-चर्चा की यह श्रृंखला सराहनीय है। आपकी जानकारी के लिए डॉ० तश्ना आलमी का एक शेर प्रस्तुत है। शायद पसंद आए।
==============
जिंदगी जब समझ में आने लगी।
मौत दरवाजा खटखटाने लगी॥
==============
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

शोभना चौरे said...

एक से एक लाजवाब शेर |
आभार !एक और उम्दा शायर और उनकी बेहतरीन शायरी से इतनी खूबसूरती के साथ परिचय करवाने का |

Shiv said...

कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
कुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया

तुम कोशिशों के बाद भी शायर न बन सके
हमको तुम्हारी याद ने शायर बना दिया

करता अदा हूँ शुक्र तुम्हारा मैं दोस्तों
मुझको तुम्हारी दाद ने शायर बना दिया

बढ़िया सरल शब्दों में क्या तो खूब लगती है नवाब साहब की शायरी. बहुत बढ़िया लिखते हैं.

किताबों की दुनियाँ को बढ़ाते रहिये. किताबों की जानकारी का बहुत बड़ा खजाना हो जाएगा.

डॉ .अनुराग said...

कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
कुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया


गोया शायर के वास्ते कुछ प्री टेस्ट पास करने कितने जरूरी है !

pallavi trivedi said...

कहाँ से ढूंढ ढूंढ कर लाते हैं आप इतने अच्छे अच्छे शायरों को... किताब भले ही नाखारीद पायें लेकिन इतने लाजवाब शेर पढ़कर ही आनंद आ जाता है!

Ankit said...

वाह वा, क्या शेर कहें हैं,

"भुलाना हमें इतना आसाँ नहीं है
है आसाँ तो हमको भुला कर के देखो"

"बड़ा प्यार आया जो बालों पे मेरे
फिराने लगे उँगलियाँ धीरे धीरे"

Hari Shanker Rarhi said...

बहुत खूब नीरज जी, जनाब षाहाबादी के षेर पढ़वाकर आपने आनन्द की बारिष कर दी । उनके षेर और आपका संकलन दोनों ही नायाब हैं और दोनों ही मुबारकवाद के हकदार हैं, सो आप स्वीकार करें!

Asha Joglekar said...

Neeraj jee bahut shukriya nabab sahab se wakif karane ka . Bahut sunder sher chune hain aapne,

आये तो गुलिस्तां में कुछ ऐसी बहार आये
फूलों को सुकूं आये काँटों को करार आये

लोगों ने गुज़ारी है, जैसी भी वहां गुज़री
कुछ हँस के गुज़ार आये कुछ रो के गुज़ार आये

Behatareen.

मीनाक्षी said...

आपकी गज़लें तो लाजवाब होती ही हैं किताबों की समीक्षा भी गज़ब की हैं.. अर्धशतक होने पर बधाई स्वीकार करें...

Kunwar Kusumesh said...

नवाब शाहाबादी जी से परिचित हूँ .उन्हें सुना भी और पढ़ा भी है.यहाँ उनकी पुस्तक समीक्षा देख कर अच्छा लगा.

sandeep sharma said...

बहुत खूब...

Smart Indian said...

परिचय के लिये आभार, कृपया शृंखला जारी रखिये।

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें

SATISH said...

आदरणीय नीरज साहब,

नवाब साहब से परिचय कराने और उनकी
ग़ज़लें पढ़वाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...

यह शे'र दिल छू गया.....
कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
कुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया

रक़ीब लखनवी

जयकृष्ण राय तुषार said...

कुछ तो शरीके इश्क़ की नाकामियाँ भी थीं
कुछ हाले - नामुराद ने शायर बना दिया

तुम कोशिशों के बाद भी शायर न बन सके
हमको तुम्हारी याद ने शायर बना दिया
भाई नीरज कमाल की मेहनत कर रहे हैं आप बधाई तबीयत खुश हो गई |बधाई और शुभकामनाएं |

राजेश राज said...

जनाब नीरज जी
इस कंप्यूटर/मोबाईल के दौर में आप साहित्य प्रेमियों को न केवल उम्दा किताबों से रूबरू करा रहे हैं बल्कि उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं - आप कि इस बेमिसाल कोशिश और जज्बे को सलाम I आपकी " थोड़ा सा रूमानी हो लें हम" की समीक्षा के बाद मेरे बड़े भाई सरीखे दोस्त "नवाब शाहाबादी " जी के पास इतने फोन आये कि वे हैरान हो गए . चूँकि वे इन्टरनेट चैटिंग / मैसेजिग के सिलसिले से कम वाकिफ हैं लिहाज़ा उन्होंने मुझे ये फख्र हासिल करने का मौका दिया कि मैं उन तमाम साहबान का शुक्रिया अदा करूँ जिन्होंने अपनी टिप्पणी / बेशकीमती राय ज़ाहिर कर नवाब साहब का, और मेरा भी हौसला बढाया, एक बार फिर तहेदिल से आप सभी का "नवाब शाहाबादी " जी + मेरी ओर से शुक्रिया, राजेश राज / 09889029396

गौतम राजऋषि said...

आज बड़े दिनों बाद बड़ी देर से आपके ब्लौग पर अटका हुआ हूँ| फेसबुक पर आपकी धमकी भरी प्रेरणा के लिए लाख लाख शुक्रिया| ये किताबो की दुनिया वाली शृंखला अंतरजाल पर आने वाले भविष्य में मील का पत्थर साबित होने वाली है, यकीनन!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत सुन्दर परिचय...उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले