मन में उतर रहे हैं किसी संत के चरण
ग़ज़लें उतर रहीं हैं भजन के लिबास में
आप लोग अकसर मुझे कहते हैं की मैं शायरी की किताबों के बारे में लिख कर बहुत बड़ा काम कर रहा हूँ और मैं हर बार आपकी इस बात का खंडन करता हूँ. बहुत बड़ा काम तो उनका है जो इस दौर में भी शायरी करते हैं और उनका भी जो शायरी की इन किताबों को छापते हैं. सबसे बड़ा काम तो हकीकत में आप लोग करते हैं जो इन्हें पढ़ते हैं. भला बताईये भाग दौड़ भरी इस ज़िन्दगी में जहाँ सबको अपने अलावा किसी और के बारे में सोचने की फुर्सत नहीं है, शायरी की किताब या उसके बारे में पढना कितना बड़ा काम है, बड़ा ही नहीं बल्कि यूँ कहिये हैरान कर देने वाला काम है...अजूबा कहें तो अधिक उपयुक्त होगा.
जिस शायर ने ये कहा है कि "ग़ज़ल बहुत बड़ी चीज़ है, बहुत ऊंची और गहरी चीज़. उस तक पहुंचना, उसे छूना, उसे जानना, उसे समझना सरल काम नहीं है. ग़ज़ल की तलाश ही ग़ज़ल की और बढ़ना है और ग़ज़ल को पा लेना ग़ज़ल से वापसी का नाम है :-
ये सोच के मैं उम्र की ऊचाईयाँ चढ़ा
शायद यहाँ, शायद यहाँ, शायद यहाँ है तू
पिछले कई जन्मों से तुझे ढूंढ रहा हूँ
जाने कहाँ, जाने कहाँ, जाने कहाँ है तू
उस अजीम शायर का नाम है "डा. कुंअर बेचैन" जो किसी परिचय के मोहताज़ नहीं. आज उन्हीं की जिस किताब का जिक्र यहाँ हो रहा है उसका शीर्षक है "आँधियों धीरे चलो" जिसमें आप पढ़ पाएंगे कुंअर जी की चर्चित ग़ज़लें.
दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए
सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियाँ
दुःख, जैसे बिजलियों में ये बादल नहा लिए
इस किताब के हर सफ्हे पर उन्होंने इस बात को सिद्ध किया है.
वो आँख क्या जो अश्क में भीगी नहीं कभी
वो भौंह क्या जो जुल्म के आगे तनी नहीं
यूँ खेल जानकार न घुमाएँ इधर-उधर
ये ज़िन्दगी है दोस्त, कोई फिरकनी नहीं
'कुंअर' जी का बात कहने का अंदाज़ सबसे जुदा है. वो अपने शेरों में ऐसे ऐसे शब्द और भाव प्रयोग में लाते हैं की पाठक दाँतों तले उँगलियाँ दबाने को मजबूर हो जाता है. बहुत सीधी साधी भाषा में कहे शेर से कमाल का असर पैदा करने का हुनर देखना हो तो उन्हें पढें:
बच्चों की गुल्लकों की खनक भी समेट ली
हम मुफलिसों का हाथ बुहारी की तरह है
बुहारी: झाडू
हमको नचा रहा है इशारों पे हर घड़ी
शायद हमारा पेट मदारी की तरह है
ये रात और दिन तो सरोते की तरह हैं
अपना वजूद सिर्फ सुपारी की तरह है
इस किताब की एक खूबी और है, ग़ज़लों के अलावा इस में बीच बीच में 'कुंअर' जी के बनाये अद्भुत रेखा चित्र भी है जो इस किताब के रंग को और भी निखार देते हैं. उनके इन रेखांकन को देख उनकी प्रतिभा के बहु आयामों को समझा जा सकता है.
मैं क्यूँ न पढूं रोज़ नयी चाह से तुझे
तू घर में मेरे एक भजन की किताब है
लोगों से कहो खुद भी कभी पढ़ लिया करें
जो उनके निजी चाल-चलन की किताब है
पढने के लिए दिन में ज़माने की धूप है
रातों में 'कुंअर' हम पे गगन की किताब है
सावन में वो न आये तो हमने यही किया
झूले पे उनका नाम लिखा और झुला दिया
***
दुनिया ने मुझपे फेंके थे पत्थर जो बेहिसाब
मैंने उन्हीं को जोड़ के कुछ घर बना लिए
***
उसने फेंके मुझपे पत्थर और मैं पानी की तरह
और ऊंचा, और ऊंचा और ऊंचा उठ गया
***
मैं दिल की जिस किताब में ख़त-सा रखा रहा
तूने उसी किताब को खोला नहीं कभी
जब से मैं गिनने लगा इन पर तेरे आने के दिन
बस तभी से मुझको अपनी उँगलियाँ अच्छी लगीं
प्यास के मिटते ही ये क्या है कि मर जाता है प्यार
जब बढीं नजदीकियां तो दूरियां अच्छी लगीं
55 comments:
मन में उतर रहे हैं किसी संत के चरण
ग़ज़लें उतर रहीं हैं भजन के लिबास में
मज़ा आ गया यह रूप देखकर. ग़ज़ल ने हिंदी आपने और अब भज़नमई भी हो गई.............
भाई जी आप भी गज़ब ढा रहे हैं, इस भागा-भागी की दुनिया में आप किताबें छाटते-बिराते भी हैं, पढ़ते-समझतें और गुनगुनाते भी हैं, फिर हौले से अपनी अद्वितीय भाषा-शैली के मार्फ़त एक कुशल मैनेजर की तरह अपने टॉप मैनेजमेंट अर्थात हम पाठकों तक बेहतरीन सलीके से प्रस्तुत भी कर देते है, बिना किसी तनाव से, खुशमिजाजी से, हरदिल अजीजी से और लाहौल-विला कुवत, तुर्रा यह कहने का कि मै तो कोई बड़ा काम करता ही नहीं, बड़ा काम तो मैनेजमेंट में बैठे हम पाठकगण करते हैं जो इसके लिए समय निकालते है, पढ़ते है और चंद लाइने टिपिया देते है. कसम से आपकी इसी अदा पर मैनेजमेंट खुश हुआ...............चार- छ साल का और एक्सटेंशन ग्रांटेड. राज़ कि बात कह रहा हूँ हमारी (मैनेजमेंट) औकात आप जैसे कुशल लोगों से ही तो सलामत रह सकती है, पर इसे राज़ ही रहने देना किसी को खबर नहीं करने का............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
सुन्दर ! शेर भी बढिया संजोये लेख में !
आप सिर्फ किताबों की दुनिया की सैर नहीं कराते हैं.
इस व्यस्त जीवन शैली में संजोने का सलीका भी बताते हैं.
हमारी कोशिश होती है की चंद शब्दों में हालात पेश करें. वर्ना हम शायर कब थे और ये शौक कहाँ...
आभार जी इस किताब के बारे में बताने के लिए
सच में उम्दा शायर की उम्दा कलामो का इससे उम्दा जानकारी एक उम्दा उस्ताद से ही मिल सकती है
दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए
वाह -वाह,
और यह दाद आपके पहले पैरे पर भी...
हमेशा की तरह बहुत ही खूबसूरत पुस्तक के बारें में जानकारी मिली. बहुत आभार आपका.
रामराम.
Waakai aisa kaam kisi ne nahee kiya.
Think Scientific Act Scientific
itne khoobsoorat sher dhoondhna aur unhein hamein padhwana ........kamaal ka kaam karte hain aap neeraj ji...........bahut hi umda sher chunka rlikhe hain aapne.
shukriya.
बहुत बहुत शुक्रिया फिर से एक लेखनी के माहारथी से रुबरु करवाने के लिये ......डाँ.साहब को पढना और सुनना दोनो ही अपने आप मे एक अनुठा अनुभव है ..............
पिछले कई जन्मों से तुझे ढूंढ रहा हूँ
जाने कहाँ, जाने कहाँ, जाने कहाँ है तू
..............................
अध्यात्म से जोड्ती हुई यह रचना .......जिसकी तलाश मेरी भी है आत्मा को छू गयी .............
नमस्कार नीरज जी,
आप कितना भी नानुकुर कर ले मगर आप ही वो जरिए है जो हम सब तक ये अनमोल रत्न ला रहे हैं इसलिए शक्रिया के हक़दार तो आप बनते ही हैं. जहाँ तक कुंवर जी के इस ग़ज़ल संग्रह की बात है तो हर शेर खनक रहा है, कुछ शेर जो दिल को छु गए हैं वो हैं.............
प्यास के मिटते ही ये क्या है कि मर जाता है प्यार
जब बढीं नजदीकियां तो दूरियां अच्छी लगीं
उसने फेंके मुझपे पत्थर और मैं पानी की तरह
और ऊंचा, और ऊंचा और ऊंचा उठ गया
हमको नचा रहा है इशारों पे हर घड़ी
शायद हमारा पेट मदारी की तरह है
सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियाँ
दुःख, जैसे बिजलियों में ये बादल नहा लिए
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति. इतनी शानदार सामग्री का संकलन किया है आपने की पढ़कर दिल बाग़ बाग हो गया. कुंवर बेचैन की उत्तम गज़लों के लिए आभार.
हरेक शेर ऊपरसे कोमल लेकिन फौलाद की ताक़त और चट्टान की ऊंचाई लिए हुए है !
'सिमटे लम्हें '
'बिखरे सितारे '
नीरज जी
क्या कहने कुअंर साहब के
उन्हें सुनने और पढने का कई बार अवसर मिला
मगर नीरज जी के शब्दों में किसी की आलोचना सोने में सुगंध लाने जैसा है
आभार..
कुंवर बैचेन जी को न केवल पढ़ना बल्कि उनकी आवाज़ में सुनना भी सुखद होता है.
जैसे सूखे हुए फूल किताबों में मिले!!!वही किताबों का महत्त्व आप इस युग में करवा के बहुत अच्छा काम कर रहें है !आपका ब्लॉग और विचार बहुत ही अच्छे लगे...
दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए
वो आँख क्या जो अश्क में भीगी नहीं कभी
वो भौंह क्या जो जुल्म के आगे तनी नहीं
लोगों से कहो खुद भी कभी पढ़ लिया करें
जो उनके निजी चाल-चलन की किताब है
लाज़वाब शेर 'कुंअर बेचैन' साहब के !!
आप पुस्तक प्रस्तुति बहुत ही उम्दा कर लेते हैं नीरज जी
आभार !!
बच्चों की गुल्लकों की खनक भी समेट ली
हम मुफलिसों का हाथ बुहारी की तरह है
भइया, कुंवर बेचैन जी की रचनाओं के क्या कहने? कुंवर जी की रचनाशीलता के हम कायल हैं. हाँ, यह बात अलग है कि उनकी किताब के बारे में नहीं पता था. आपने किताबों के बारे आपनी सीरीज में उनकी यह किताब के बारे में रोचक तरीके से बताया. जो भी हो, बीच में आपने प्रस्ताव रखा था कि किताबों की जानकारी वाली इस सिरीज को क्या स्थगित कर दिया जाय? अब सोचिये, अगर ऐसा हो जाता तो हमें कुंवर जी की किताब के बारे में कहाँ से पता चलता?
आपकी यह सिरीज ब्लॉग जगत के लिए एक धरोहर साबित होगी. रेफेरेंस प्वाइंट.
मैं क्यूँ न पढूं रोज़ नयी चाह से तुझे
तू घर में मेरे एक भजन की किताब है
waah
आपकी रिकमेंड की हुई किताब तो निश्चित ही बढ़िया होगी.. शेर तो सारे ही मस्त है पर अपने को ये वाला मस्त लगा..
यूँ खेल जानकार न घुमाएँ इधर-उधर
ये ज़िन्दगी है दोस्त, कोई फिरकनी नहीं
नीरज जी नमस्कार,
कैसे हैं? ये कहना बिलकुल गलत ना होगा के आप यह एक पुण्य का काम कर रहे हैं जिसमे आप हमें नए ग़ज़ल की किताबों से परिचय कराते हैं.. कम से कम हमारे ऊपर तो यह एक पुण्य का काम ही है .. आज ही आपकी यह पोस्ट पढा और कुंवर साहिब की पुस्तक मेरे सामने है वाणी प्रकाशन के जरिये ... बहुत बहुत बधाई और आभार...
अर्श
मैं क्यूँ न पढूं रोज़ नयी चाह से तुझे
तू घर में मेरे एक भजन की किताब है
लोगों से कहो खुद भी कभी पढ़ लिया करें
जो उनके निजी चाल-चलन की किताब है
डा,कुंअर बेचैन जी की इस अनोखी क्रति से अवगत कराने का आभार....
regards
नीरज जी जितनी खूबसूरती से ये शेर लिखते है उतनी ही सुरीली आवाज में गाते भी है। कई बार सुना है इनको। पिछले दिनों मुलाकात भी हुई थी। वाकई इनकी लेखनी के क्या कहने।
दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए
यूँ खेल जानकार न घुमाएँ इधर-उधर
ये ज़िन्दगी है दोस्त, कोई फिरकनी नहीं
किस किस शेर की तारीफ़ करूँ .. बस अब तो जी चाहता है जाऊँ और किताब खरीद कर ले आऊं....
कुंवर बेचैन साहब उनका तो नाम ही काफ़ी है. बरसों से उनके इस शेर का दीवाना हूं-
बात अच्छी हो तो उसकी हर जगह चर्चा करो.
हो बुरी तो दिल में रक्खो फिर उसे अच्छा करो.
सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियाँ
दुःख, जैसे बिजलियों में ये बादल नहा लिए
बड़ी मेहनत लगती है इस तरह की पोस्ट्स लिखने के लिये……आभार आपका नीरज जी
बेचैन साहब की रचनाओं की बहुत सटीक समीक्षा की है आपनी पारखी नजर ने..बधाई
जब से मैं गिनने लगा इन पर तेरे आने के दिन
बस तभी से मुझको अपनी उँगलियाँ अच्छी लगीं
प्यास के मिटते ही ये क्या है कि मर जाता है प्यार
जब बढीं नजदीकियां तो दूरियां अच्छी लगीं
कुँवर बेचैन जी की पुस्तक की समीक्षा बहुत बढ़िया रही।
पाठक जगत आपके अहसान तले दबा है
बहुत ही सुंदर शेर, उमदा लेख.
आप का धन्यवाद
मालूम है नीरज जी, आपके ख़िलाफ़ मुकद्दमें के लिए हम वक़ील रखे गए हैं, के ये जो नीरज जी हैं ना, ये हर किताब का ख़ुलासा अपने ब्लॉग पर कर देते हैं तो ख़रीददार सब ब्लॉग पर ही पूरी किताब का लुत्फ़ ले ले रहे हैं और ख़रीदने की ज़हमत से बच रहे हैं, जिससे किताब छापने वालों को बड़ा नुक्सान हो रहा है। हा हा।
अब बतलाइए उनको भला कौन बताए कि उनका वक़ील तो ख़ुद ही मुद्दई की इस अदा का मुरीद है। हा हा।
क्या कहना है नीरज दा (बंगाली वाले नहीं पर हमारे बड़े भाई साहब तो हैं ही) बहुत ही सुन्दर विश्लेषण डॉ. साहब की किताब का। एक से बढ़कर एक शेरो-ग़ज़ल। आभार आपका बहुत बहुत इसके लिए।
vipin ji se sahmat hoon
पाठक जगत आपके अहसान तले दबा है
venus kesari
कुँवर बेचैन जी की बेहद खूबसूरत ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत बधाई..बड़े ही चुनिंदा ग़ज़ल जो मन को बहुत अच्छे लगे...बहुत बहुत धन्यवाद नीरज जी..
उसने फेंके मुझपे पत्थर और मैं पानी की तरह
और ऊंचा, और ऊंचा और ऊंचा उठ गया
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मैं दिल की जिस किताब में ख़त-सा रखा रहा
तूने उसी किताब को खोला नहीं कभी
सभी शेर मोहित कर देने वाले है.शुक्रिया हमें भी आपने उन्हें पढने का मौका दिया.
डॉ बैचेन के तो हम मुरीद है..क्या गजब गज़ल लिखते और कहते हैं. एक सौभाग्य प्राप्त है उनके साथ एक ही मंच से पढ़ने का और नियमित उनके संपर्क में रहना..
फिर मेरी पुस्तक की प्रस्तावना लिख उन्होंने अपने आशीषों से नवाज़ा है.
बहुत अच्छा लगा आपके द्वारा उनके लिए लिखना.
मीठी-मीठी मिष्टी को हैप्पी बर्थ-डे
बहुत सहज पर दिल में
उतर जाने वाले अशआर
कुंवर साहब की लेखनी
सचमुच है धारदार......
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आपका आभार...अपार...बार-बार.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
dhanyawad!!!
Tapashwani anand
neeraj ji namaskar
pahle to is baat ki aap badhai le lijiye ki itna mahaan kaam , ki achi kitaabo ko hum sab tak pahunchaana ,aap kar rahe hai jo ki ek maatr blogger hai ....kitaabe padhna aur pdhkar logo tak uski jaankari dena , bahut hi zaheen kaam hai ..
iske liye aapko salaam hai sir..
dusari baat aapne bataya nahi ki mishti ka janmdin hai .. main bhi happy birthday bol deta ..
tisari baat , kuvanr ji ki gazalo ko padhna aur sunna apne aap me ek bahut alag ahsaas hai ..
aapko badhai
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
बेचैन साब की शायरी और खास कर इस किताब के बहुत पुराने मुरीद रहे हैं हम भी...
मिष्टी को हमारी समस्त शुभकामनायें...
यह किताब भी संग्रहनीय नजर आती है !
एक से बढ़कर एक नायाब शेर :
यूँ खेल जानकार न घुमाएँ इधर-उधर
ये ज़िन्दगी है दोस्त, कोई फिरकनी नहीं
मैं क्यूँ न पढूं रोज़ नयी चाह से तुझे
तू घर में मेरे एक भजन की किताब है
कुंवर बेचैन जी का बहुत पहले से प्रशंसक रहा हूँ ! ढेरों मुशायरों और कवि सम्मेलनों में उनकी रचनाओं पर मन्त्र मुग्ध हुआ हूँ !
आप जिस तरह एक से एक उत्कृष्ट किताबों के बारे में तफसील से बता रहे हैं उसके लिए आपके प्रति अपार श्रद्धा भाव है दिल में !
आपका आभार एवं शुभ कामनाएं
आज की आवाज
इस संग्रह की जानकारी के लिये धन्यवाद
सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियाँ
दुःख, जैसे बिजलियों में ये बादल नहा लिए
ये रात और दिन तो सरोते की तरह हैं
अपना वजूद सिर्फ सुपारी की तरह है
kya baat hai bhai wah kamaal ke ashar lage ye..
पहले ये बताएं के
हमारी प्यारी मिष्टी बिटिया की सालगिरह
कैसी रही ? :)
मेरे शुभाशीष -
- और ये पुस्तक परिचय शृङ्खला
वास्तव में , संजोने लायक है
डाक्टर कुंवर बैचेन जी
आज के समय के ,
हस्ताक्षर हैं
- नमन --
स स्नेह,
- लावण्या
वाह नीरज जी आपने बढ़िया लिखा है! बहुत अच्छा लगा! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
2-3 दिन कुछ व्यस्त थी नेट से दूर रही। आते ही आपकी पोस्ट देखी। सभी तो बहुत कुछ कह चुके हैं वैसे भी कुंवर सहिब के लिये कुछ कहने की ताकत मेरी कलम मे तो है नहीं मगर उनकी किताब पढने की लालसा आपके इस अलेख ने बढा दी है। देखती हूँ किताब मंगवाती हूँ । कुंवर जी को बधaIा और आपका धन्यवाद इतने सुन्दर शेरों से रुबरू करवाने के लिये और इतनी सुन्दरता से किताब की समी़अ के लिये धन्यवाद्
Ye kitaab ye hi aisi
Kunwar baichain ji ki gazal.N waqayi bahut dilfareb hoti hai
har sher kamaal
भला हो श्री चन्द्र मोहन गुप्त जी का जिनके ब्लाग के माध्यम से मैं आपके ब्लाग तक पहुँचा। आप बहुत ही नेक काम कर रहे हैं। कुँवर बेचैन साहब की नई गज़लों से परिचित कराने के लिए धन्यवाद।
sagar se moti nikal lane walee aur sabko gift karne walee bat hee niralee hai .
neeraj जी .......... कमाल की gazlen ले कर आये है आप ........... kunvar जी की इतनी लाजवाब gazlon का sanklan आपकी sameeksha dwaara पढ़ कर मज़ा आ गया .......... बहुत बहुत शुक्रिया ..
माफी चाहूँगा, आज आपकी रचना पर कोई कमेन्ट नहीं, सिर्फ एक निवेदन करने आया हूँ. आशा है, हालात को समझेंगे. ब्लागिंग को बचाने के लिए कृपया इस मुहिम में सहयोग दें.
क्या ब्लागिंग को बचाने के लिए कानून का सहारा लेना होगा?
नीरज जी हर शे'र लाजवाब .....किसकी तारीफ करूँ और किसकी न करूँ जैसी हालत है .......कुंवर जी का नाम तो बहुत सुना था आज आपने पढ़वा भी दिया .....
ये सोच के मैं उम्र की ऊचाईयाँ चढ़ा
शायद यहाँ, शायद यहाँ, शायद यहाँ है तू
पिछले कई जन्मों से तुझे ढूंढ रहा हूँ
जाने कहाँ, जाने कहाँ, जाने कहाँ है तू
वाह ......!!
दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए
बेजोड़ ......!!
लोगों से कहो खुद भी कभी पढ़ लिया करें
जो उनके निजी चाल-चलन की किताब है
ओये होय क्या तीर मारा है .....!!
सावन में वो न आये तो हमने यही किया
झूले पे उनका नाम लिखा और झुला दिया
नीरज जी मैं तो हैरान हूँ इस महान हस्ती कि लेखनी देख .....कमाल है .....!!
और आपको सलाम ऐसे फनकारों से अवगत कराने के लिए ......!!
नीरज जी आपको बार बार सलाम । बहुत ही खूबसूरती से आप खिताबों की समीक्षा करते है ।चुना हुवा एक से एक शेर लाजवाब ।
यूँ खेल जानकार न घुमाएँ इधर-उधर
ये ज़िन्दगी है दोस्त, कोई फिरकनी नहीं ।
हममें से अधिकांश जिंदगी को फिरकनी ही जानते हैं ।
आपकी विनम्रता, आपको हर दिल में बिठा देती है नीरज जी ! आपकी पहचान अलग ही है !
शुभकामनायें !
E-mail received from Shri Om Praksh Ji Sapra:
shri neeraj ji
namastey,
thanks for sending this post regarding shir kunwar baichain.
although it has different colours of shairi, still they are touching and impressive.
yes , i yesterday completed book by shri munnavar rana (SAMAY BADAN).
- it is a good collection of poems and published by Vani Prakashan, New Delhi
congratulations,
regards,
-om sapra, delhi-9
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