( दोस्तों पेश है एक और ग़ज़ल जिसके हुस्न को सँवारने में पंकज जी का ही योगदान है. जैसा की आप जानते हैं मुझे ग़ज़ल लिखने की बारीकी आदरणीय प्राण साहेब, पंकज जी और भाई द्विज जी अभी तक सिखा रहे हैं. सीखना एक सतत क्रिया है...जितना सीखता हूँ लगता है अरे अभी तो कुछ भी नहीं सीखा. इस ग़ज़ल को ही लें...इसके मूल रूप को बरक़रार रखते हुए पंकज जी ने मेरे शेर तो संवारे ही साथ ही कुछ अपने भी लिख कर भेज दिए. मुझे खुशी होगी अगर सुधि पाठक इसे एक जमीन पर लिखी दो अलग अलग ग़ज़लें समझ कर पढ़ें )
दूर होंठों से तराने हो गये
हम भी आखिर को सयाने हो गये
जो निशाने साधते थे कल तलक
आज वो खुद ही निशाने हो गये
लूट कर जीने का आया दौर है
दान के किस्से, पुराने हो गये
भूलने का तो न इक कारण मिला
याद के लाखों बहाने हो गए
आइये मिलकर चरागां फिर करें
आंधियां गुजरे, ज़माने हो गये
साथ बच्चों के गुज़ारे पल थे जो
बेशकीमत वो ख़जाने हो गये
देखकर "नीरज" को वो मुस्का दिये
बात इतनी थी, फसाने हो गये
(और अब ये रहे पंकज सुबीर जी के इसी काफिये बहर पर लाजवाब शेर ,मेरी प्रार्थना है की आप कृपया इन दोनों ग़ज़लों की आपस में तुलना ना करें सिर्फ़ दोनों का अलग अलग आनंद लें, जैसे पगार के साथ दीवाली का बोनस )
यूं ही रस्ते में नज़र उनसे मिली
और हम यूं ही दिवाने हो गये
दिल हमारा हो गया उनका पता
हम भले ही बेठिकाने हो गये
खा गई हमको भी दीमक उम्र की
आप भी तो अब पुराने हो गये
फिर से भड़की आग मज़हब की कहीं
फिर हवाले आशियाने हो गये
खिलखिला के हंस पड़े वो बेसबब
बेसबब मौसम सुहाने हो गये
लौटकर वो आ गये हैं शहर में
आशिकों के दिन सुहाने हो गये
वक्त और तारीख क्या बतलायें हम
आपके हम कब न जाने हो गये
हम भी आखिर को सयाने हो गये
जो निशाने साधते थे कल तलक
आज वो खुद ही निशाने हो गये
लूट कर जीने का आया दौर है
दान के किस्से, पुराने हो गये
भूलने का तो न इक कारण मिला
याद के लाखों बहाने हो गए
आइये मिलकर चरागां फिर करें
आंधियां गुजरे, ज़माने हो गये
साथ बच्चों के गुज़ारे पल थे जो
बेशकीमत वो ख़जाने हो गये
देखकर "नीरज" को वो मुस्का दिये
बात इतनी थी, फसाने हो गये
(और अब ये रहे पंकज सुबीर जी के इसी काफिये बहर पर लाजवाब शेर ,मेरी प्रार्थना है की आप कृपया इन दोनों ग़ज़लों की आपस में तुलना ना करें सिर्फ़ दोनों का अलग अलग आनंद लें, जैसे पगार के साथ दीवाली का बोनस )
यूं ही रस्ते में नज़र उनसे मिली
और हम यूं ही दिवाने हो गये
दिल हमारा हो गया उनका पता
हम भले ही बेठिकाने हो गये
खा गई हमको भी दीमक उम्र की
आप भी तो अब पुराने हो गये
फिर से भड़की आग मज़हब की कहीं
फिर हवाले आशियाने हो गये
खिलखिला के हंस पड़े वो बेसबब
बेसबब मौसम सुहाने हो गये
लौटकर वो आ गये हैं शहर में
आशिकों के दिन सुहाने हो गये
वक्त और तारीख क्या बतलायें हम
आपके हम कब न जाने हो गये
45 comments:
गजलों में सामाजिक सरोकार भी कितने अच्छे लगते हैं-
-आइये मिलकर चरागां फिर करें
आंधियां गुजरे, ज़माने हो गये
-फिर से भड़की आग मज़हब की कहीं
फिर हवाले आशियाने हो गये
लाजवाब ! लाजवाब भाई. गज़ब के शेर. अब कितने शेर यहाँ quote करूं ? और गुरु तो ख़ैर गुरु ही हैं.
भूलने की इक वजह भी ना मिली
याद के लाखों, बहाने हो गये
आइये मिलकर चरागां फिर करें
आंधियां गुजरे, ज़माने हो गये
" bhut sunder alfaj se peeroya hai is gazal ko, ehssas ka gehra smander hai in lafjon mey..." aapne shee kha, sekhne ke umr kabhee ktm nahee hotee or jitna hum seekhtey jateyn hain, utna hee or seekhne ke prbl ichha jagrt hote hai..."
Regards
लाजवाब रचनाएं ! शुभकामनाएं !
साथ बच्चों के गुज़ारे पल थे जो
बेशकीमत वो ख़जाने हो गये
बहुत खूब
वक्त और तारीख क्या बतलायें हम
आपके हम कब न जाने हो गये
दोनों ही लाजवाब लगी ..बेहतरीन दोनों ही ...
"यूं ही रस्ते में नज़र उनसे मिली
और हम यूं ही दिवाने हो गये"
ऐसा लगा कि फिर से वो दिन आ गये। और वो हमको भा गये्…
"खिलखिला के हंस पड़े वो बेसबब
बेसबब मौसम सुहाने हो गये"
धूप भी असर नही करती थी ज़नाब !!
नीरज जी पहली बार इधर आया,पढकर लगा की बहुत देर कर दी आने में।सुन्दर अभिव्यक्ती पुरी सहजता और सामाजिक जिम्मेदारी के साथ। बधाई आपको।
भाई नीरज जी,
आदमी की सोंच आदमी को क्या से क्या बना देती है!
सोंच भी आदमी की समझ के स्तर, माहौल, तात्कालीन मूड, जूनून आदि-आदि पर निर्भर करता है.
वाद-विवाद, पक्ष-विपक्ष सब इसी कारण से हैं. विरोध- मुसाहिबी भी इसी की देन है.
आपने ख़ुद ही लिखा कि
जो निशाने साधते थे कल तलक
आज वो खुद ही निशाने हो गये
कुछ लोग इसे यूँ भी ले सकते हैं कि कहीं अपनी इसी ग़ज़ल में सुबीर जी की ग़ज़ल दीपावली के बोनुस के रूप में दे कर निशाना तो नही बना रहे है...................
खैर आप की सोंच और भाव कितने सुंदर और मोहक हैं कि एक समझदार आदमी ऐसा सोंच भी कैसे सकता है. फिर भी सोंच और बोल पर किसी का बस नही चलता.
इसी बात को आपने भी कुछ यूँ ही कहा है...........
देखकर "नीरज" को वो मुस्का दिये
बात इतनी थी, फसाने हो गये
एक भिन्न तरह से सोचने वाले ने भी तीर कुछ इस तरह से फेंका कि भाई सुबीर जी किस तरफ इशारा कर रहे है, यह कह कर कि
दिल हमारा हो गया उनका पता
हम भले ही बेठिकाने हो गये
खैर ये तो हो गई भाई मजाक की बातें, वैसे अपनी शानदार गजल के साथ भाई सुबीर जी के शेर से भी रु-ब-रु करवाने के लिए आप बधाई के पात्र है, कृपया इसे मुसाहिबी न समझ कर हार्दिक आभार समझे और इस बधाई को मजाक भे न समझें.
चन्द्र मोहन गुप्त
बिल्कुल तराशा हुआ काव्य नीरज जी! आप बहुत सशक्त विधा के माहिर हैं।
ye wakai jabardast gazhal thi...
भूलने की इक वजह भी ना मिली
याद के लाखों, बहाने हो गये
आइये मिलकर चरागां फिर करें
आंधियां गुजरे, ज़माने हो गये
बेहद उम्दा...
क्या कहूँ सारे शेरो को गुन गुना कर देखा.....लुत्फ़ आ गया .....
mul aur sud-dono laajawab hain,khubsurat ghazal
बहुत खूबसूरत. आपकी गजल के साथ पंकज जी के शेर ने चार चाँद लगा दिया.
सच में पगार के साथ बोनस वाह !
आइये मिलकर चरागां फिर करें
आंधियां गुजरे, ज़माने हो गये
श्रीमान जी बहुत सुंदर अभिव्यक्ति . बधाई .
waah!! sach hai tulna nahi ki jaa sakti dono ek se badhkar ek hain..
मध्यप्रदेश में रहता हूं जहां मेरे जिला मुख्यालय पर बिजली की कटौती कुछ इस प्रकार हो रही है । सुब्ह 6 से 10 फिर 11 से 2 फिर 3 से शाम 6 तक ये घोषित है और जो अघोषित हो रही है वो अलग । सो कम्प्यूटर और ब्लागिंग दोनों से दूर हूं । कड़ी मुश्किल से बिजली आई तो पोस्ट पढ़ी । अब देखें कब तक बिजली रहती है । टिप्पणी लगा कर काम चला रहे हैं अपनी पोस्ट तो लगाने से रहे । खैर तो बात ये कि आपने लगाकर पोस्ट न लगा पाने के दर्द को कुछ कम कर दिया ।
बहुत अच्छा लिखा है। बधाई स्वीकारें।
भूलने की इक वजह भी ना मिली
याद के लाखों, बहाने हो गये
देखकर "नीरज" को वो मुस्का दिये
बात इतनी थी, फसाने हो गये
दिल हमारा हो गया उनका पता
हम भले ही बेठिकाने हो गये
वक्त और तारीख क्या बतलायें हम
आपके हम कब न जाने हो गये
ham tulanaa kar bhi nahi paye.nge aap dono ki.
हम तो उदास हो गए थे गुरु जी कई दिन से पोस्ट नही कर रहे थे आपके पास आए तो आपने बोनस दे दिया
वाह वाह
अच्छी गजल के लिए धन्यवाद
बोनस के लिए अलग से धन्यवाद
वीनस केसरी
नीरज जी दोनो गजले ही लाजवाह है...अब किस किस लफ़्ज की तारीफ़ करे सभी एक से बढ कर एक...
लूट कर जीने का आया दौर है
दान के किस्से, पुराने हो गये
धन्यवाद
कौन जाने कब जिंदगी की शाम हो जाए,
हम दिलों में चिराग जलाने निकले.
है शमा सी कशिश आपकी कलम में,
हम उस पर मिटने वाले परवाने निकले.
हमें शायरी, ग़ज़ल आदि का अ ब स भी नहीं आता बस तुकबंदी कर लेते हैं.......बढ़िया ग़ज़ल....
इतनी अच्छी शायरी करते हुए भी जो कहे कि, " सीख रहा हूँ "
वह नीरज भाई साहब ही हो सकते हैँ -
इसी तरह लिखते रहीये...
बहुत बढिया लिखा है :)
-- लावण्या
जबरदस्त हैं दोनों गज़ले
बड़ी मस्त हैं दोनों गज़ले
बधाई
डबल बधाई
हम सब के मन की बात कह दी आपने अपनी कविता में ,वो भी कितने सरल ढंग से.इसीलिये मैं बार बार आपके चिट्ठे पर आती हूं,कुछ पाने के लिये,कुछ बांटने के लिये.मेरा प्रणाम स्वीकार करें.
वड्डे पाप्पजी पहिले तो माफ़-साफ़ कर दीजिये बच्चा को.
आप जानते ही है काहे?
कमेन्ट क्या करूँ?
लगता है की गुरु गुड और चेला चीनी वाली कहावत चरितार्थ हो रही है.
बहुत ही उम्दा और मनभावन ग़जलें है दोनों.
पढ़वाने के लिए शुक्रिया.
अदभूत ग़जलें। पढ़कर आनंद आ गया ।
साथ बच्चों के गुज़ारे पल थे जो
बेशकीमत वो ख़जाने हो गये
वाह।
दो सधे फ़नकार ... दो सूरजों की रौशनी में कौन किसको देखे.हम जैसे तो टिप्पणी करने तक की बिसात नहीं रखते.बस ये कि---
पढ़ के ये गज़लें तुम्हारी यूँ हुआ
हम भी अब कुछ-कुछ सयाने हो गये
जो निशाने साधते थे कल तलक
आज वो खुद ही निशाने हो गये
लूट कर जीने का आया दौर है
दान के किस्से, पुराने हो गये
wah neeraj ji kya khoob likha hai, bahut hi umda, shukriya bahut bahut.
आइये मिलकर चरागां फिर करें
आंधियां गुजरे, ज़माने हो गये
इस शे'र ने तो दिल में मुकाम कर लिया!
अहा अहा ! नीरज जी ये तो बक़माल गुलदस्ता बना है जी ! मानते तो आपको पहले से ही थे आज हज़ार दिल से कायल हो गए. ग़ज़ल के ऊपर बने हुए चित्र ने तो ग़ज़ब ही कर दिया . सोचता हूँ वो कहानी आपके इस चित्र के साथ अपनी पोस्ट पर ही बतला दूँगा अगर आप इजाज़त देंगे तो. बार बार बधाई इस ग़ज़ल पर आपको और पंकज जी को भी हमारी ओर से प्रेषित करें.
Neeraj ji
Dono hi achee gazal hain.
seedhe shabdon main kahi badi baat
Bahai
'दूर होठों से…।' बेहतरीन ग़ज़ल। हर शे'र जैसे एक-एक मोती जड़ा हुआ है। बहुत ख़ूब।
ग़ज़ल दूसरी भी बहुत अच्छी है। मगर पहली का तो जवाब ही नहीं। हार्दिक बधाई।
दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
दीपावली पर्व की आपको और आपके परिजनों को हार्दिक शुभकामना .
परिवार व इष्ट मित्रो सहित आपको दीपावली की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं !
पिछले समय जाने अनजाने आपको कोई कष्ट पहुंचाया हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ !
आपकी हर पेशकश बेशकीमती खजाने
की तरह होती है....आभार आपका.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
खा गई हमको भी दीमक उम्र की
आप भी तो अब पुराने हो गये
kya baat kahi hai neeraj ji dil khush ho gya. mere blog par aane or comment karane ka shukriya. umeed hai daura karte rahenge.
एक एक शेर वज़नदार है ..आपको हमेशा पढ़ना अच्छा लगता है..
Bahut achche.
guptasandhya.blogspot.com
ati sundar
खिलखिला के हंस पड़े वो बेसबब
बेसबब मौसम सुहाने हो गये
bhoolne ki ek bhi vazah....na hoti hi nahi....bahut khoob
दोस्तों पेश है एक और ग़ज़ल जिसके हुस्न को सँवारने में पंकज जी का ही योगदान है. जैसा की आप जानते हैं मुझे ग़ज़ल लिखने की बारीकी आदरणीय प्राण साहेब, पंकज जी और भाई द्विज जी अभी तक सिखा रहे हैं. सीखना एक सतत क्रिया है...जितना सीखता हूँ लगता है अरे अभी तो कुछ भी नहीं सीखा. इस ग़ज़ल को ही लें...इसके मूल रूप को बरक़रार रखते हुए पंकज जी ने मेरे शेर तो संवारे ही साथ ही कुछ अपने भी लिख कर भेज दिए. मुझे खुशी होगी अगर सुधि पाठक इसे एक जमीन पर लिखी दो अलग अलग ग़ज़लें समझ कर पढ़ें )............................भाई आपको तो सवांर दिया आपके चाहने वालों ने .....भूतनाथ जी भी संवरना चाहते हैं.....क्या आप सब.....सच अच्छा से अच्छा लिखना चाहता हूँ.....प्लीज़ मुझे बताईये ना....मैं ये नहीं कहूंगा कि आपका आभारी रहूंगा.....रहूंगा बस......सच....एक बार फ़िर प्लीज़......
"aaeeye mil kar chraaghaaN phir kareiN , aandhiyaaN guzre zmaane ho gaye..."
waaH !! bahot hi kaamyaab sher kahaa hai jnaab !
"iss ghazal ki chhaaoN ne bakhsha qyaam , ab theharne ke bahaane ho gaye..."
Mubaarakbaad !!
---MUFLIS---
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