पिछली १५ और २२ जुलाई को महावीर जी के ब्लॉग पर एक मुशायरे का आयोजन हुआ जिसे बहुत से सुधि पाठकों ने देखा सुना पढ़ा...उसमें दुनिया के नामचीन कवियों और शायरों जैसे श्री प्राण शर्मा, लावण्या शाह, तेजेन्द्र शर्मा, सुरेश चंद्र "शौक", देवमणि पांडेय, द्विजेन्द्र ’द्विज’, राकेश खण्डेलवाल, पारुल, सुरेश चन्द्र “शौक़”,कवि कुलवंत सिंह, समीर लाल “समीर”, चाँद शुक्ला “हदियाबादी”,देवी नागरानी, रंजना भाटिया, डॉ. मंजुलता, कंचन चौहान,डॉ. महक, रज़िया अकबरमिर्ज़ा, अहमद अली "बर्की" , हेमज्योत्सना “दीप”, सतपाल "ख्याल", नीरज त्रिपाठी आदि ने शिरकत की. श्री महावीर जी और प्राण शर्मा साहेब ने मुझे भी इन प्रतिष्ठित रचनाकारों के मध्य अपनी रचना सुनाने का मौका दिया.
जिन बहिन भाईयों ने इस मुशायरे का लुत्फ़ श्री महावीर जी के ब्लॉग पर नहीं उठाया उनके लिए अपनी वो रचना जो मैंने उस मुशायरे में पढ़ी थी पेश कर रहा हूँ.बाकि रचनाकारों की रचनाएँ पढने के लिए कृपया महावीर जी के ब्लॉग पर क्लिक करें
तू अगर बाँसुरी सुना जाए
मेरे दिल को करार आ जाए
कोई बारिश बुझा नहीं सकती
आग जो चाँदनी लगा जाए
इक दिये —सा वजूद है मेरा
तेरी राहों में जो जला जाए
लौटती है बहार गुलशन में
फिर ख़िज़ाँ से भी क्यूँ डरा जाए?
याद तेरी नदी पहाड़ों की
राह में जो पड़े बहा जाए
हमने माना कि दौड़ है जीवन
पर कहीं तो कभी रुका जाए!
दिल का क्या ऐतबार है ‘नीरज’!
क्या ख़बर कब ये किस पे आ जाए
( इस ग़ज़ल का जिस्म मेरा है जिसमें आत्मा प्राण शर्मा जी और द्विज भाई ने डाली है )
45 comments:
दिल का क्या ऐतबार है ‘नीरज’!
क्या ख़बर कब ये किस पे आ जाए
क्या बात है नीरज जी.. क्या खूब लिखा है आपने..
कोई बारिश बुझा नहीं सकती
आग जो चाँदनी लगा जाए
माशाअल्लाह.. लाजवाब शेर कहा है साहब!!
गज़ल की सादगी बेहद खूबसूरती है!!!
नीरज जी,बढिया रचना है।
याद तेरी नदी पहाड़ों की
राह में जो पड़े बहा जाए --- सच में याद आती है तो बांधॊ को तोड़ देती है। आपका ऑब्जर्वेशन और शब्द संयोजन, दोनो अद्भुत है नीरज जी!
दिल का क्या ऐतबार है ‘नीरज’!
क्या ख़बर कब ये किस पे आ जाए
अच्छा लिखा है.......
अच्छे शेर है........
har sher achchha laga tha vaha bhi aur yahan bhi
बहुत सुन्सदर नीरज जी। बधाई स्वीकारें।
आदर्णीय नीरज गोस्वामी जी
नमस्कार
आपका ई मेल है मेरे लिए एक यादगार
हैँ बहुत उत्साहवर्घक आपके उत्तम विचार
आपका हुस्ने नज़र है जो लिखा है आपने
आपके अशआर हैँ हिन्दी अदब के शाहकार
ब्लागवाणी मेँ तो लिखते हैँ बहुत से लोग लेख
आपके लिखने का स्टाइल है सब से ख़ुशगवार
सामयिक विषयोँ पे लिखना है ज़रूरत वक्त की
क्योँ कि सब हैँ गर्दिशे हालात के बर्क़ी शिकार
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
नई दिल्ली-110025
नीरज जी, आपकी रचना तो कजब ढा गई। हमारे दिल को भा गई।
इक दिये —सा वजूद है मेरा
तेरी राहों में जो जला जाए
हमने माना कि दौड़ है जीवन
पर कहीं तो कभी रुका जाए!
दिल का क्या ऐतबार है ‘नीरज’!
क्या ख़बर कब ये किस पे आ जाए
नीरज जी,
आपकी हर पोस्ट
दिल को
क़रार दे जाती है,
बांसुरी की ये धुन तो
आप ही छेड़ जाते हैं.
गर देर हुई आने में
हम बेक़रार हो जाते हैं.
=====================
क़रार और ऐतबार का
ये रिश्ता हमेशा कायम रहे
यही कामना है.
आपका
डा.चन्द्रकुमार जैन
पहला क़त्ल ....
कोई बारिश बुझा नहीं सकती
आग जो चाँदनी लगा जाए
दूसरा क़त्ल ........
इक दिये —सा वजूद है मेरा
तेरी राहों में जो जला जाए
तीसरा क़त्ल .......
याद तेरी नदी पहाड़ों की
राह में जो पड़े बहा जाए
फलसफा..गोया की .....
हमने माना कि दौड़ है जीवन
पर कहीं तो कभी रुका जाए!
ओर एक शब्द सुभान-अल्लाह ..
बरखा बाहार का रंग बहुत अच्छा लगा :)
वाह! वाह! वाह!
बहुते बढ़िया है वड्डे पाप्पाजी
आप गजब हो और गजब से गजब का गजब ढाते हो.
१४ अक्टोबर की ४ टिकटें बनवा दीजियेगा. वापसी २१ को करेंगे.
बाकी सब ठीक है आपकी बात और सलाह को दिमाग, दिल, जिगर गुर्दा सब जगह पर धारण कर लिया है.
बहुत खूब. एक एक शेर आपके व्यक्तित्व को दर्शाता है. इसीलिए तो हम कहते हैं;
घेर ले जब निराशा की बदली
आपकी गजलों को पढा जाए
जनाब नीरज साहेब,
आदाब
गजल कहने का आपका अंदाज़ सचमुच निराला है. एक-एक शेर एक कहानी कहते हुए प्रतीत होता है. हिन्दी ब्लागिंग से परिचय हाल ही में हुआ. बहुत से ब्लॉग देखे और ये बात कह सकता हूँ कि आपका ब्लॉग सचमुच अलग है.
पिछले चार घंटे से आपका ब्लॉग ही पढ़ रहा हूँ. कितनी खुशी मिली इसका बयान जल्द ही अपने ब्लॉग पर करूंगा. आज हमें लगा कि मालिक ने ज़िंदगी दी है तो इसीलिए कि इस दुनिया में अपना निशाँ छोड़ जाएँ.
आपने तो पूरा मंच लूट लिया मुशायरे का..बहुत उम्दा...वाह!
कोई बारिश बुझा नहीं सकती
आग जो चाँदनी लगा जाए
नीरज जी अब तो आप कॊ ढुढना पडता हे ,आप की कवितयाए पढने के लिये, बहुत सुन्दर भाव, ओर बहुत प्यारी सी कविता, धन्यवाद
हुज़ूर -
"बंद मौसम खुले, मसरूफ़ से बादल हैं हटे / चाँद को देखना ख़ुद हाल ही किया जाए"
सादर - मनीष
भाई नीरज जी,
मुशायरे में प्रथम शिरकत की हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें
आपके निम्न शेर
हमने माना कि दौड़ है जीवन
पर कहीं तो कभी रुका जाए!
पर मेरी प्रतिक्रिया सिर्फ़ यह है ज्यादा दौड़ना सेहत के लिए कभी भी अच्छा न रहा है और न रहेगा, इसकी कीमत शरीर को बीमारियाँ की सौगात दे कर अदा होती है, जो बुढापे को दुखद बना देती है. कहा गया है,
गोधन, बजधन, बाजिधन और रतनधन खान
जब आवे संतोष धन , सब धन धूर सामान.
संतोष वाला कभी निरर्थक दौड़ नही लगता, बल्कि प्लान कर कम समय में वही कार्य बिना थके, बिना दौडे, बिना किसी को तनाव दिए, बिना आवाज के शान्ति पूर्वक अंजाम देता है.
मई आपके उपरोक्त शेर को निम्न रूप में ज्यादा तवज्जो दे सकता हूँ
सब ने माना कि दौड़ है जीवन
पर जवानी में ही शरीर झुका जाए!
आशा है मेरी उपरोक्त ध्रष्टता को अन्यथा न लेंगें और अपने विचारों से अवगत करायेंगे.
चन्द्र मोहन गुप्त
तू अगर बाँसुरी सुना जाए
मेरे दिल को करार आ जाए
" sach mey pdh krdilko krar aa gya, bhut hee madhur rachna"
कोई बारिश बुझा नहीं सकती
आग जो चाँदनी लगा जाए
kya baat hai...bahut sundar rachna.
जनाबे नीरज साहिब
पुख्ता ख़याल है आपने यह क्या कहर बरपा दिया
सुभान अल्लाह
आपका कलाम काबिले तहसीन है
कोई बारिश बुझा नहीं सकती
आग जो चाँदनी लगा जाए
आपके गोश गुज़ार करता हूँ
हरेक घर का चाँद था झुलसा हुआ
मुह जली थी चाँदनी तपती रही
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क
Wah Wah Wah Wah Wah Wah
Wah Wah Wah
Wah
kya baat hai
mazaa aa gaya
bahut hi sundar...bansuri shabd se taan ka abhaas hone laga..
नीरज जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने. बधाई!
ये बन्दे नहीं हैं नीरज जी
बन्दे होते तो ऐसा ऒछा काम नहीं करते
मेरा नया गजल संग्रह आया है
अंधी आंखें गीले सपने
किताब मंगवानी है तो अपना पोस्टल एड्रैस भेज दो
sir
aap sahi kah rahe hai jaipur se man to nahin bharta hai magar kya karein
hamere seniours sir ne fatva bhi jari kar rakha hai kyonki 1-2 ko satrarambh hai aur uske pahle haame apne department ke liye VIKALP naam ka pper bhi nikalna hai
aur rahi baat vapasi ki to ham to isi mitti ke hai aur hamesha isi kee mati mein palte rahenge
jab ye shahaar chahega tabhi aa jayenge
scam24inhindi.blogspot.com
दिल का क्या ऐतबार है ‘नीरज’!
क्या ख़बर कब ये किस पे आ जाए
Bahut sundar Ghazal Neeraj ji... Pahli baar aana hua aapke blog par shayad.. lekin ab to aana jana laga hi rahega :-)
New Post :
Jaane Tu Ya Jaane Na ... Rocks
kya kehne aapke andaaz ke.......
इक दिये —सा वजूद है मेरा
तेरी राहों में जो जला जाए
wah sahab wah !!
kamaal k tasavvur hain ... nayaab kalaam ... bahut hi umda ...
लौटती है बहार गुलशन में
फिर ख़िज़ाँ से भी क्यूँ डरा जाए?
याद तेरी नदी पहाड़ों की
राह में जो पड़े बहा जाए
हमने माना कि दौड़ है जीवन
पर कहीं तो कभी रुका जाए!
दिल का क्या ऐतबार है ‘नीरज’!
क्या ख़बर कब ये किस पे आ जाए
बहुत ही दिलकश नीरज जी,क्या बात है,दिल में उअतर गए आपके अशआर, ख़ास कर के ' हमने माना कि दौड़ है जीवन
पर कहीं तो कभी रुका जाए!
और 'दिल का क्या ऐतबार है ‘नीरज’!
क्या ख़बर कब ये किस पे आ जाए
बहुत ही सादगी के साथ दिल में उतर गए...शुक्रिया..
बहुत सुन्दर भाव, और बहुत प्यारी सी कविता
behad dilkash,khas taur se
याद तेरी नदी पहाड़ों की
राह में जो पड़े बहा जाए
mere blog par aane ke liye shukriya,aap laharein par aate rahte hain,han ehsas par pahli baar aana hua.
एक अच्छे ब्लाग पर एक और अच्छा गीत.
itna jivant hai ye ki maine aapko sunate hue dekha,aapke swar me hi suna.......bahut sahi,dil ka kya aitbaar,
bahut achhi
कोई बारिश बुझा नहीं सकती
आग जो चाँदनी लगा जाए.
बहुत प्यारी कविता,सुन्दर भाव. धन्यवाद.
बहुत प्यारी कविता.
हमने माना कि दौड़ है जीवन
पर कहीं तो कभी रुका जाए!
बहुत प्यारा शेर है, बधाई।
याद तेरी नदी पहाड़ों की
राह में जो पड़े बहा जाए
दुबारा टिप्पणी कर रहा हूं, पर यह शेर भी जबरदस्त है। अरे किसी शेर की बात नहीं है, मेरी नजर में तो पूरी गजल ही जबरदस्त है।
इक दिये —सा वजूद है मेरा
तेरी राहों में जो जला जाए
नीरज जी,
लोहे और इस्पात की भट्टियों के बीच में रहते हुए भी आप साहित्य के दिए की ठंडी रौशनी को जगमग किए हुए हैं - इसके लिए बधाई. एक टिप्पणी पहले छोडी थी मगर उसमें शायद अपने उदगार ठीक से व्यक्त न कर सका था. बहुत सुंदर कविता है - एक और हो जाए तो कैसा रहे?
Neeraj jee kya baat hai ! Bahut khoob gajal kahi.
Hazooor.....................................................................banda aapka shukrguzar hai...............................................
अति सुंदर रचना है आपकी
याद तेरी नदी पहाड़ों की
राह में जो पड़े बहा जाए
हमने माना कि दौड़ है जीवन
पर कहीं तो कभी रुका जाए!
वाह-वाह........
sab to kah hi chuke ab main kya kahunshabd nahi mil rahe fir bhi umda prastuti!!
नीरज जी...क्या कहूँ मैं.पहले तो गुरूजी से आपकी तारीफ़ें सुन-सुन कर ऐसे ही आपक कायल हो चुका था और आज इस रविवार को फ़ुरसत निकाल कर जो आपकी लगभग सारी रचनायें पढ़ लीं,तो अब शब्द नहीं मिल रहे आपकी और प्रशंसा के लिये.अपनी फैन-लिस्ट में मेरा भी नाम दर्ज कर लें
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