Monday, June 16, 2008

बारिशों में भीग जाना सीखिए


मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिए
फूल बंजर में उगाना सीखिए

खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए

जो चले परचम उठा कर दोस्तो
साथ उसका ही निभाना सीखिए

आंधियां जब दे रही हों दस्तकें
तब दिये की लौ बचाना सीखिए

ताक पर धर के उसूलों को कभी
नाम अपना मत कमाना सीखिए

खामशी से आज सुनता कौन है
शोर महफिल में मचाना सीखिए

डालिए दरिया में यूँ मत नेकियाँ
अब भला करके जताना सीखिए

तान के रखिये इसे हरदम मगर
सर किसी दर पर झुकाना सीखिए

भीगती "नीरज" किसी की याद में
आँख को सबसे छुपाना सीखिए


{ भाई "द्विज" जी ने इस ग़ज़ल की नोक पलक को संवारा है, मैं उनका तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ.}

29 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

वर्जनायें बहुत बना ली हैं जिन्दगी मे; वर्जनाओं से पार पाना सीखना है!
यह सीखा आपकी कविता से!

रंजू भाटिया said...

खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए


आंधियां जब दे रही हों दस्तकें
लौ दिये की तब बचाना सीखिए


बहुत सुंदर लिखा है आपने नीरज जी ..

सुशील छौक्कर said...

मुश्किलों में खिलखिलाना सीखिए
फूल बंजर में उगाना सीखिए
वाह क्या बात है। बहुर सुन्दर रचना लिखी है आपने।

पारुल "पुखराज" said...

कर लिया न हद से बाहर एतबार
अब ज़रा सा आज़माना सीखिये।

नीरज जी, आपकी खूबसूरत पंक्तियां पढ़ते पढ़ते जो ज़बान पे आया वो लिखने की गुस्ताखी कर दी……

Alpana Verma said...

खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए
bahut hi sundar likha hai--

ab ye suneeye--aap ke is sher par abhi likha hai--

'yun akele lutf lena bekaar hai,
baarishon ko baat lena seekheey'

ISliye kyun ki hamen muddat ho gayee barishen dekhe!!!!

Ashok Pande said...

अच्छी रचना नीरज जी.

अमिताभ मीत said...

भीगती "नीरज" किसी की याद में
आँख को सबसे छुपाना सीखिए

वाह वाह वाह ! क्या बात है. हर शेर कमाल. ये तो लाजवाब. बहुत सुंदर.

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,

उम्दा शेरों के पुनः प्रस्तुतीकरण पर आपको साधुवाद.
बदलते युग के हिसाब से मूल्यों के मूल्यहीनता का दर्शा कराने के लिए धन्यवाद.

आपके निम्न शेर
तान के रखना जरूरी है मगर
सर किसी दर पर झुकाना सीखिए

पर मुझे अपनी भी एक कविता याद आ गई , जो आपके नज़ारे इनायत है .....

श्रद्धा
(१५)
कठपुतली की तरह नाचना
किसे भला हुआ है स्वीकार
फिर भी है नाच रहा वही
हो कहीं विरोधित, कर इंकार
झूंठी अपनी सब हस्ती है
कहीं न कहीं झुकी है यार
होते नत मानवता में श्रद्धा से
पाते सर्वत्र सदा जय- जयकार

विचारों से अवगत करायें
आपका
चन्द्र मोहन गुप्ता

Dr. Chandra Kumar Jain said...

कमाल है नीरज जी.
ग़ज़ल क्या है,कला है जीने की यह.
सीखने की बात के बहाने
इंसान की परख का
पैमाना ही रख दिया है आपने.
एह्तिहात...उसूल...कुछ कर दिखाना
और फिर उसे ताक पर न रख
नमूंदार होने देना...!
बावजूद इसके
भीतर नमन के भाव को जीवित रखना...!
=================================
बहुत...बहुत...बहुत अच्छा.
शुभकामनाएँ
डा.चंद्रकुमार जैन

Ashok Pandey said...

कमाल की शायरी है। आपके चिट्ठे पर पहली बार आया, अच्‍छा लगा।

kmuskan said...

मुश्किलों में खिलखिलाना सीखिए
फूल बंजर में उगाना सीखिए

खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए

bahut hi khoob. har sher laajawab hai

डॉ .अनुराग said...

इस बार मुम्बई आगमन पर आपसे मिलना तय है.....आप वाकई दिल की बात लिखते है लफ्जों का हेर फेर करे बगैर.......ये दोनों शेर बहुत पसंद आये ...



खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए





खामशी से आज सुनता कौन है
शोर महफिल में मचाना सीखिए

Udan Tashtari said...

तान के रखना जरूरी है मगर
सर किसी दर पर झुकाना सीखिए


--वाह वाह!! सब एक से बढ़ कर एक, बहुत गजब.

चिट्ठाकारों की नजर भी एक शेर संदेश दे डालते आम मानवों के साथ साथ:

पढ़ रहे हो रोज पोस्ट पे पोस्टें
कहीं टिप्पणी भी लगाना सीखिये.

mehek said...

kisi ek sher ki tariff nahi kar sakti,puri gazal hi nayab hai atisundar,badhai

कुश said...

वाह ! क्या बात है..बहुत सुंदर!!

अनूप भार्गव said...

बहुत खूब नीरज जी ! जीवन का दर्शन सिमटा है इस गज़ल में ।

अनूप

गीत गाता है खुशी में हर कोई
मुश्किलों में गुनगुनाना सीखिये

Ahmad Ali Barqi Azmi said...

मेरा नीरज गोस्वामी को प्रणाम
जिनकी यह कविता है बेहद जानदार
उसका जीवन सार्थक हो जाएगा
जो पढेगा इस ग़ज़ल को बार बार
ज़िन्दगी ज़िन्दादिली का नाम है
आपका है यह बहुत उत्तम विचार

मेरे उर्दू ब्लाग पर विचार व्यक्त करने के लिए
मैँ आपका आभारी हूँ । मैं अधिकतर सामयिक
विषयोँ पर कभी उर्दू और कभी हिंदी लिपि मेँ
लिखता हूँ। मैँ आपके विचार को ध्यान मेँ रखते
हुए अपने ब्लाग को दोनोँ लिपियोँ मे लिखने की
कोशिश करूंगा ।
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
598।9, ज़ाकिर नगर, नई दिल्ली

pallavi trivedi said...

तान के रखना जरूरी है मगर
सर किसी दर पर झुकाना सीखिए

bahut umda....

Shiv said...

शानदार
कैसे लिख जाते हैं इतनी सरलता से...जब भी आता हूँ तो लगता है जैसे और क्या चाहिए. आते रहे और सीखते रहें.

महावीर said...

ग़ज़ब का शेर हैः
'भीगती "नीरज" किसी की याद में
आँख को सबसे छुपाना सीखिए'
हर शेर पर 'वाह!' ज़बान पर आ जाता है।

समय चक्र said...

डाल मत दरिया में यूँ ही नेकियाँ
अब भला करके जताना सीखिए
बहुत अच्छा

श्रद्धा जैन said...

खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए

'भीगती "नीरज" किसी की याद में
आँख को सबसे छुपाना सीखिए'

तान के रखना जरूरी है मगर
सर किसी दर पर झुकाना सीखिए

Neeraj ji aapko hamesha se padha hai aur hamesha aapki kalam ki kadar ki hai
aapki is gazal ko padhna bahut achha laga
ye teeno sher bahut pasand aaye

Ahmad Ali Barqi Azmi said...

Priya Neeraj goswami aapko sadar praram.
"Barishon main bhig jana Chahiye" hai ek payam.
Aapki Ghazlon mein asri aagahi ki hai jhalak.
Hai nehayat khoobsurat aapka dilkash Kalam.
Hai yeh meri kaamna ho aapka ujjawal bhavishya.
Aapka Hindi jagat mein ho bahut uncha Muqam.
Aapki ghazlon pe jo bhi vayakt karta hai vichar.
Mere e mail ID par aata hai uska payam.
Aapki maqbuliyat ki hai yeh ek wazah dalil.
Aapka ahl e nazar karte hain behad ehteram.
Aapka E Mail pakar ho gaya dil bagh bagh.
Bhejta hai aapko Ahmad Ali Barqi salam.
Dr. Ahmad Ali Barqi Azmi
Tr/Announcer,Persian Unit(R.No.515)
External Services Division
All India Radio
New Delhi-110001

राकेश खंडेलवाल said...

ये गज़ल पढ़ कर कहा दिल ने मुझे
दाद जी भर के लिटाना सीखिये

मीनाक्षी said...

भीगती "नीरज" किसी की याद में
आँख को सबसे छुपाना सीखिए-----


बहुत खूबसूरत भाव...बहुत सरलता से दिखा जाते हैं...

Unknown said...

प्रिय नीरज गोस्वामी आपको सादर प्रणाम
बारिशोँ मेँ भीग जाना सीखिए है एक पयाम
आपकी ग़ज़लोँ मेँ असरी आगही की है झलक
है नेहायत ख़ूबसूरत आपका दिलकश कलाम
है यह मेरी कामना हो आपका उज्जवल भविष्य
आपका हिंदी जगत मेँ हो बहुत ऊँचा मुक़ाम
आपकी ग़ज़लोँ पे जो भी व्यक्त करता है विचार
मेरे ई मेल आई डी पर आता है उसका पयाम
आपकी मक़बूलियत की है यह एक वाज़ह दलील
आपका अहले नज़र करते हैँ बेहद एहतेराम
आपका ई मेल पाकर हो गया दिल बाग़ बाग़
भेजता है आपको अहमद अली बर्की सलाम
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
नई दिल्ली- 110025
असरी आगही- सामयिक चेतना

योगेन्द्र मौदगिल said...

मजेदार नित कथा सुनाएं नीरज भैय्या खोपोली
हाथ हिला कर पास बुलाएं नीरज भैय्या खोपोली

सारे ब्लागर सेच रहे हैं अब तो जाना ही होगा
पोस्ट-पोस्ट में ख्वाब दिखाएं नीरज भैय्या खोपोली

रोटी पानी सोना रहना कविताबाज़ी भी प्यारे
हाय हमारे दिन बहुराएं नीरज भैय्या खोपोली

सारी टाउनशिप देखेगी नीरज जी के बंगले को
हाय नमूने छांट मंगाएं नीरज भैय्या खोपोली

दाढ़ी सहलाते सहलाते मुदगिल जी ने गजल कही
नये नये किस्से पढ़वाएं नीरज भैय्या खोपोली

रंजन गोरखपुरी said...

खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिए

Behad laajawaab sher hai Neeraj sahab!!
Aaj ki subah haseen kar di is ghazal ne...

Ratan said...

"
भीगती "नीरज" किसी की याद में
आँख को सबसे छुपाना सीखिए...
"

क्या बात कही है..

तान के रखिये इसे हरदम मगर
सर किसी दर पर झुकाना सीखिए

बेहतरीन.....