हमको अपने नोचने खाने लगे
देख इसको गिद्ध शरमाने लगे
मानते गहना जो थे इमान को
आज उसको बेच कर खाने लगे
रो रहे थे देख हालत देश की
हुक्मरां बनते ही वो गाने लगे
रोज उनसे इस कदर पाले पड़े
मेरे दुश्मन अब मुझे भाने लगे
ये उमस तन्हाई की हट जायेगी
याद के बादल से हैं छाने लगे
वो मेहरबान है ये होगा तब यकीं
जब बिना मांगे ही तू पाने लगे
जब थके चलते ग़मों की धूप में
प्यार की छाया में सुस्ताने लगे
सच्ची बातें जब भी नीरज ने कही
फेर कर मुंह लोग मुस्काने लगे
10 comments:
नीरज भैया,
कैसे लिखते हैं ऐसी गजलें? कितना बड़ा भण्डार है अच्छे खयालातों का? ....कभी मापने की मत सोचियेगा....बहुत खूब गजल है, भैया....
बा खिदमते अक्सद बाज़्बुल इज्ज़त
जनाबे मोहतरम, नीरज साहिब .
शिद्दते एहसास की गर्मी से मोम को भी पिघला
देता है आपका नायाब फन.
ग़ज़ल की दुनिया मैं जो गुल आप खिला रहे हो
चार सु बुए मोहबत को फैला रहे हो शुक्रिया
तेरी ग़ज़लों का हुया ऐसा असर
चलते फिरते नींद में गाने लगे !
चाँद हदियाबादी डेनमार्क
बहुत .. बहुत.. बहुत.. बहुत .. बहुत खूब
गुजरता हूं जब भी ब्लॉग जगत में,
ठिठक सा जाता हूं आपके ब्लॉग पे,
शब्द आपकें खींच लेते हैं,
भाव आपके बांध लेते हैं।
ठिठका सा रहता हूं,
पढ़ता हूं और चला जाता हूं।
समझ नही पाता
कि
क्या कहूं जवाब में।
और
बहुत कुछ
अनकहा लेकर लौट जाता हूं।
सच्ची बातें जब भी नीरज ने कही
फेर कर मुंह लोग मुस्काने लगे
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अरे नीरज जी, मुस्कुराने का सवाल ही नहीं। असल में कहें तो मुंह खुला का खुला है। क्या सशक्त रचना है?! यह पढ़ कर गर्व होता है - इस अहसास से कि इसके कवि को मैं जानता हूं।
सच को उजागर करती,बहुत बेहतरीन बढिया रचना है।बधाई।
वाह!!!
हमको अपने नोचने खाने लगे
देख इसको गिद्ध शरमाने लगे
मानते गहना जो थे इमान को
आज उसको बेच कर खाने लगे
बढ़िया है ...बहुत खूब ...बधाई
नीरज जी
बहुत बढ़िया लिखा है। कटु यथार्थ का चित्र खींचा है । बधाई स्वीकारें ।
है लिखी सुन्दर गज़ल ये आपने
बा अदब जो हैं, वे शरमाने लगे
बहुत खूबसूरत अदायगी है
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