झूट को सच बनाइये साहेब
ये हुनर सीख जाइये साहेब
छोड़ के साथ इस शराफत का
नाम अपना कमाइये साहेब
दे रहा फल तो खाद पानी दो
वरना आरी चलाइये साहेब
घर ये अपना नहीं चलो माना
जब तलक है सजाइये साहेब
हर तरीका जहाँ बदलने का
ख़ुद पे भी आजमाइये साहेब
दर्द सहने का हौसला है तो
चोट फूलों से खाइये साहेब
आजमाने को ज़ोर आंधी का
आप दीपक जलाइये साहेब
रब न दिलमें तोहै कहाँ "नीरज"
हम को इतना बताइये साहेब
11 comments:
क्या बात है - कुछ न करके भी सब कुछ करता बताइये साहब। उंगली पे चीरा लगा के शहीद कहलाइये साहब!
हिपोक्रेसी पर गजब व्यंग!
आजमाने को ज़ोर आंधी का
आप दीपक जलाइये साहेब"
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बड़े वापाजी आप की पोस्ट पर मैं क्या टिपण्णी करूं. दीपक को चिराग दिखलाने वाली बात होगी. हमेशा की तरह पढ़ कर एक आशान्तिमय शान्ति का अनुभव हो रहा है. शायद सही ढंग से व्यक्त नही कर पा रहा हूँ. एक ही कामना है.
आप इसी ढंग से लिखते जाइये साहब
ब्लाग्स पर छा जाइये साहब
क्या तारीफ़ करूँ आपकी शब्दों में
सिर्फ चेहरे से समझ जाइये साहेब
इतनी अच्छी ग़ज़ल आप लिखते हैं
हम को भी लिखना सिखाइये साहेब
हम तो आते हैं इस ब्लॉग पर अक्सर
कभी आप भी द्वारे पे आइये साहेब
वाह नीरज जी क्या कहने आपके...
बहुत सुन्दर शब्द-संयोजन और भावपूर्ण ग़ज़ल है...
सुनीता(शानू)
स्तुत्य प्रयास कर रहे है
हमारा ज्ञान बढ़ाने को
यूँ ही लिखते जाईये साहब.
आपका कोई सानी नहीं
शिरोमणि आप कहलाईये साहब.
वाह नीरज जी
इसी तरह हमारा ज्ञान बढ़ाइए साहब्…बहुत खूब लिखा है
हर तरीका जहाँ बदलने का
ख़ुद पे भी आजमाइये साहेब
बहुत खूब भैया....
शेर अच्छे हैं और सुखनवर भी
क्यों न चाहें, बताईये साहेब
सजाते रहिये यूँ ही ये महफ़िल
रोज महफ़िल में आईये साहेब
......आगे यही कहूँगा कि;
कलम जो आपकी चली साहेब
एक अच्छी गजल मिली साहेब
ऐसे ही लिखते रहिये जीवन भर
ये तमन्ना मेरी दिली साहेब
इसी तरह से गुल खिलाते रहिये साहब
दाद पर दाद पाते रहिये साहब
आपकी शायरी दिल में उतर जाती है
हर बार सरलता से गहरी बात कहने का आपको फन हासिल है
तेरी क्यों कर करूँ न मैं तारीफ
तेरा हर अक्स गुलबदन सा है
ग़ज़ल मैं योगदान है तेरा
बात यह मेंरी मानिये साहिब
चाँद शुक्ला हदियाबदी डेनमार्क
Waah Neeraj
Mubarak ho sunder Blod ke saath saath, sunder abhivyaktiyon ko sunder aur arthpoorn dhang se pesh karne ke liye.
छोड़ के साथ इस शराफत का
नाम अपना कमाइये साहेब
Waah
क्या कहें अब पढा जो है नीरज
बस ग़ज़ल मान में गुनगुनाइये साहेब
देवी
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