दुश्मनी नींद से हुई तब से
आग पानी फलक ज़मीन हवा
और क्या चाहिए बता रब से
वो जो शामिल था भीड़ मैं पहले
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
जो न समझे नज़र की भाषा को
उससे कहना फिजूल है लब से
शाम होते ही पीने बैठ गए
होश में भी मिला करो शब से
शुभ मुहूर्त की बात बेमानी
मन में ठानी है तो करो अब से
वो ही बदलेंगे ये जहाँ "नीरज"
माना इन्साँ नहीं जिन्हे कब से
12 comments:
बहुत बढ़िया, नीरज भैया....बहुत बढ़िया है आपकी नई गजल.
बहुत बढिया रचना है नीरज जी,बधाई।
वो ही बदलेंगे ये जहाँ "नीरज"
माना इन्साँ नहीं जिन्हे कब से
शाम होते ही पीने बैठ गए
होश में भी मिला करो शब से
शुभ मुहूर्त की बात बेमानी
मन में ठानी है तो करो अब से
वो ही बदलेंगे ये जहाँ "नीरज"
माना इन्साँ नहीं जिन्हे कब से
बहुत खूब, लेकिन जरा अपनी गजल की बहर सम्भालिये, कहीं कहीं गजल बे-बहर सी हो रही है । वैसे सीधी भाषा में सरलता से व्यक्त किये भाव अतिसुन्दर जान पड रहे हैं । साधुवाद स्वीकार करें ।
शाम होते ही पीने बैठ गए
होश में भी मिला करो शब से
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जय हो वड्डे वापाजी की. गर्दा उडा दिए हैं.
मज़ा आ गया.
पढी है पहली गजल आपकी जब से
रोज़ ही इंतज़ार रहता है आपका तब से
आग पानी फलक ज़मीन हवा
और क्या चाहिए बता रब से,......बहुत खूब
वाह वाह!!!बहुत बढ़िया!!!
अगर ऐसे ही बसेंगे तो जल्द ही आँख की किरकिरी हो जाँगे....
बधाई
@ बोधिसत्व - आंख की किरकिरी होंगे लिखने वालों की। हमारी तो नूर बन रहे हैं!
Bahut khoob.
वो जो शामिल था भीड़ मैं पहले
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
मैं भी पड़ता हूँ रोज़ो शब उसको
चेहरा उसका किताब जैसा है
मुझे जब से मिला है तू तब से
हंस के मिलता हूँ मैं भी अब सब से.
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क ,
आ कर हदियाबाद से हम
हो गये हैं बरबाद से हम
मैं भी पड़ता हूँ रोज़ो शब उसको
चेहरा उसका किताब जैसा है
मुझे जब से मिला है तू तब से
हंस के मिलता हूँ मैं भी अब सब से.
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क ,
आ कर हदियाबाद से हम
हो गये हैं बरबाद से हम
वो जो शामिल था भीड़ मैं पहले
दिल मिला तो लगा जुदा सब से
bahut hi sundar laga yah sher!
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