Sunday, October 14, 2007

सुकून की शेहनाई






चोटी पे पहुँच खुश हो बड़ा काम कर दिया

जिसने चढाया उसको तो गुमनाम कर दिया


हैरत है के इस दौर में भी जी रहे हैं हम

जिस दौर ने जीना भी इक इलज़ाम कर दिया


मंज़िल को पहले छूने की चाहत में देखिये

बच्चों ने अपना बचपना तमाम कर दिया


तुमको था फक्र मुझको शर्म इतना फर्क है

तहज़ीब को सड़कों पे जब नीलाम कर दिया


मिटने का देश पर उन्हे बस ये सिला मिला

सड़कों को फकत हमने उनके नाम कर दिया


नाकामियों के शोर ने मिल कर के ज़ेहन में

सुकून की शेहनाई को नाकाम कर दिया


जिसने भी सच का साथ निभाने की बात की

"नीरज" उसी को दुनिया ने बदनाम कर दिया

7 comments:

ghughutibasuti said...

अच्छा लिखा है । भाषा भी सरल है । बधाई !
घुघूती बासूती

Gyan Dutt Pandey said...

मंज़िल को पहले छूने की चाहत में देखिये
बच्चों ने अपना बचपना तमाम कर दिया
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क्या बतायें जी, वहीं खड़े रहने को भी तेज-तेज चलना पड़ रहा है।

काकेश said...

खूबसूरत अहसासों से भरी गजल.

Udan Tashtari said...

बढ़िया रचना.

बालकिशन said...

"जिसने भी सच का साथ निभाने की बात की
"नीरज" उसी को दुनिया ने बदनाम कर दिया"

आप की रचनाएं जब भी पढता हूँ मन मे एक उदासी और चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है. मुस्कान इसलिए की इतनी अच्छी,सच्ची और सरल बात पढने-गुनने को मिल रही है. बहुत ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूँ पर जब भी आप का लिखा पढता हूँ, मुझे दुष्यंत जी की याद आ जाती हैं. और उदासी का कारण आपकी रचना में छिपी कड़वी सच्चाई है जिसे जानते बुझते भी हम कुछ नहीं कर पाते.

आप तो ब्लागरी की दुनिया के वदे वापा जी हो.

नीरज गोस्वामी said...

बालकिशन जी
ये आप का स्नेह और संवेदनशील ह्रदय है जिसके तहत आप को मेरी रचनायें पसंद आती हैं और उद्वेलित करती हैं.
आप ने प्रशंशा की पढ़ कर अच्छा लगा लेकिन आप से विनती है की किसी को प्रशंशा से इतना ऊपर न ले जाएँ की अगर वो गिरे तो उसकी कपाल क्रिया ही हो जाए. मेरा आशय आपको मेरी रचनायें पढ़ कर दुष्यंत जी की याद आने से है.
आप का ये कथन की आप पढे लिखे नहीं हैं ग़लत है क्यों की जिस दिन बे पढे लिखे लोग दुष्यंत जी जैसों के नाम जानने लग जायेंगे उस दिन दुष्यंत जी की महत्वता कम हो जाएगी.
मैं ब्लॉगर की दुनिया का पापाजी नहीं हूँ वो तो ज्ञान भईया हैं, मैं तो नन्न्हा सा मुन्ना सा बच्चा हूँ जो अभी घुटनों चलना सीख रहा है.

नीरज

Your's Truly said...

Uncle,

sahi likhte ho.


khayal mein jazba aur labzon mein jumbish hai,
Aap ki baton mein kuchh ajeeb si kashish hai.

i can never be a poet :)

You are pretty good.

Which font to use? Sab thoda sa gadbad aa raha hai.. matrayen misaligned hain.