Monday, October 30, 2017

किताबों की दुनिया -149

घिरती हुई है बाढ़ भी आँखों के गाँव में 
फैला हुआ चारों तरफ़ सूखा भी देखिये 

ये धूल के बादल भी छुएँ आसमान को 
मिटटी में ये रुला हुआ सोना भी देखिये 

बेमौसमी खिले हुए 'सुमन' भी हैं कई 
बेमौसमी ये रूप पिघलता भी देखिये 

16 नवम्बर 1942 को जन्में बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री लक्ष्मी खन्ना 'सुमन' हमारे आज के शायर हैं जिनकी किताब 'ग़ज़लों की नाव में ' की बात हम करेंगे। लक्ष्मी जी ये का ये पाँचवा ग़ज़ल संग्रह है जिसे 'हिन्द युग्म' प्रकाशन ,नयी दिल्ली ने सन 2014 में प्रकाशित किया था। इस से पहले उनके "दायरों के पार" , "इस भरे बाज़ार में" , "ग़ज़लों की छाँव में" और "याद भी ख्वाब भी हकीकत भी" ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो कर धूम मचा चुके हैं। लक्ष्मी जी की प्रतिभा का आंकलन महज़ एक पोस्ट में नहीं हो सकता।



बेवजह सूखे जो लम्हे थे दिलों के दरमियाँ 
आँख की बारिश उन्हें झर-झर बहाकर ले चली 

मस्तियों की गंध ले ऋतुओँ की रानी आ रही 
फ़ागुनी झंकार पतझर को बहाकर ले चली 

फिर समय की वादियों में खिल उठे हैं मन-'सुमन'
धूप, कोहरे के बुझे मंज़र बहाकर ले चली 

हल्द्वानी के एम्. बी इंटर कॉलेज से स्कूली शिक्षा ग्रहण करने के बाद लक्ष्मी जी ने डी बी एस कॉलेज नैनीताल से बी एस सी तक की पढाई पूरी की और फिर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी रुड़की से न्यूक्लियर फिजिक्स में स्नातक की डिग्री हासिल करने के पश्चात् पंतनगर यूनिवर्सिटी में कार्यरत रहे। लेखन उनका प्रिय शौक रहा इसीलिए उन्होंने अबाध लेखन किया। ग़ज़लों के अलावा उनकी कलम गीत ,नवगीत ,दोहे, मुक्तक और बाल साहित्य रचने में लगातार चल रही है।

 मैं लहज़ों की बारीकियाँ चुन रहा हूँ 
तभी तो मैं हैरान रहने लगा हूँ 

मुहब्बत, इनायत, मुरव्वत,सखावत 
मैं सब सीढ़ियों से फिसलता रहा हूँ 
मुरव्वत = दिल में किसी के लिए जगह होना। सखावत=दानशीलता 

मुझे साथ ही तुम जो ले लो तो बेहतर
मैं अपने ख्यालों में पक-सा गया हूँ 

वो आये हैं भरकम खिताबों को लेकर 
मैं हाथों को बांधे खड़ा हो गया हूँ

इस किताब पर प्रतिक्रिया देती हुई डा. निर्मला जैन लिखती हैं कि "लक्ष्मी सुमन ग़ज़लों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि धरती से उनका गहरा रिश्ता है। इन्हें पढ़कर आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इनके कवि को ज़िन्दगी से प्यार है और शायरी उनकी लगन है। सहजता इन ग़ज़लों का प्राण है। कहीं कोई बनावट नहीं, शैली का ऐसा कोई करिश्मा नहीं जो पाठक के लिए दिक्कत पैदा करे। ये ग़ज़लें अनुभव से पैदा हुई हैं और सीधे पाठक के दिल में उतरती चली जाती हैं। "

दिन भर खटता रहता है वह कड़ी धूप के मैदाँ में
सुखी रहे घर इस कोशिश में रहता है घरवाला 'पेड़'

सरल हवा को दिया गरल जब मनुज के ओछे लोभों ने
नीलकंठ बन अमृत देता पी कर उसे निराला 'पेड़'

कहीं सुमन संग कलियाँ नटखट कहीं फलों संग कांटे भी
जीवन धन से हरा-भरा है सब का देखा-भाला 'पेड़' 

 लक्ष्मी सुमन जी इस किताब की भूमिका में लिखते हैं कि "यदि ग़ज़ल की भाषा में रवानी हो उसमें आम बोलचाल के शब्द ही प्रयोग किये जाएँ तभी पाठक या श्रोता उससे तारतम्य बैठा पाता है। इस संग्रह की ग़ज़लों में सामाजिक, आर्थिक,राजनैतिक तथा आम आदमी के सरोकार तो हैं ही पर श्रृंगार रस से ओतप्रोत कोमल अहसासों से भरे भी कई अशआर पिरोये गए हैं ,इसमें प्रकृति के कई अद्भुत करिश्में भी अपने विशेष रंग में हैं. 

बैठ सब्र की छाँव तले 
अंगूरों को खट्टा मान 

लगा फ़कीरी का तकिया 
सो जा सुख की चादर तान

'सुमन' सरीखा हँसता जा 
दर्द न काटों का पहचान 

 प्रकृति के धरती, खेत, जंगल, पहाड़, बादल, कोहरा, वर्षा,ओस, धूप,छाया, सूर्य,वृक्ष , पक्षी आदि विभिन्न अवयवों का मानवीकरण करते हुए लक्ष्मी जी ने इनके सुन्दर बिम्ब प्रस्तुत किये हैं तो कभी इन्हें प्रतीकों के रूप में प्रस्तुत करते हुए मनुष्य जीवन के किसी सत्य का उद्घाटन किया है। किताब की भूमिका में दिवा भट्ट जो कुमाऊँ यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष हैं लिखती हैं कि "भाषा के साथ नए नए प्रयोग करना सुमन की आदत है , नए प्रयोगों के साथ भी स्वाभाविकता तथा सम्प्रेषण की सार्थकता वे कभी नहीं चूकते, खास तौर पर शब्द चयन में आंचलिक प्रयोग ताज़गी का अहसास कराते हैं :

रस भरे फलों का बनें पेड़ एकदिन 
करती हैं प्राणपण यही प्रयास 'गुठलियां' 

तोड़कर उन्हें मिलीं 'गिरी ' की लज़्ज़तें 
पत्थर को तभी आ गयीं हैं रास 'गुठलियां' 

 "ग़ज़लों की नाव में" सुमन जी की 72 ग़ज़लें संग्रहित हैं जिनमें से अधिकांश छोटी बहर में हैं , छोटी बहर के बादशाह जनाब विज्ञान व्रत जी ने सुमन जी के लिए लिखा है कि "सादगी लक्ष्मी खन्ना सुमन का स्थाई भाव है। सादा ज़बान में बात कहने के फन में शायर को महारत हासिल है। बात को इस तरह से कहना कि श्रोता , पाठक चौंक जाएँ उनका विशेष गुण है। उनकी ग़ज़लें अपनी ख़ामोशी और सादगी के साथ पाठकों के दिल में जगह बनाने में और उन्हें विशेष पहचान दिलाने में सक्षम हैं। "

वही मैं आम जन का पोस्टर हूँ 
सियासत जिसपे लिखी जा रही है 

जो ठोकर से उठी वो धूल क्या है 
ये गिर कर आँख में समझा रही है 

हवा ने कान में जाने कहा क्या 
ये क्यारी इस क़दर लहरा रही है 

इस किताब को आप अगर चाहें तो अमेजन से ऑन लाइन मंगवा सकते हैं या फिर हिन्दयुग्म से उनके मोबाईल न 9873734046 या 9968755908 पर संपर्क कर सकते हैं। मेरा निवेदन तो ये ही रहेगा कि आप लक्ष्मी खन्ना सुमन जी से जो गुरुगांव (गुड़गांव ) में रहते हैं को उनके मोबाईल न 9719097992 अथवा 9312031565 पर संपर्क कर बधाई दें और किताब प्राप्ति का रास्ता पूछें और बिलकुल अलग तरह की इन ग़ज़लों की किताब को अपनी निजी लाइब्रेरी में जगह दें।
चलते चलते पढ़िए उनकी एक छोटी बहर की प्यारी सी ग़ज़ल :

मन सागर में ज्वार उठा 
आते देखा अपना 'चाँद' 

फिर अम्मी की ईद हुई 
छुट्टी पर घर आया 'चाँद' 

दाग़ छुपाने की खातिर 
शक्लें रोज बदलता 'चाँद' 

चुरा रौशनी सूरज की 
ढीठ बना मुस्काता 'चाँद' 

8 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 31 अक्टूबर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Parul Singh said...

बहुत सुंदर समीक्षा सर।

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुन्दर।

'एकलव्य' said...

बहुत ही सुन्दर

शुभा said...


वाह !!बहुत खूब ।

शारदा अरोरा said...

bahut sundar

Dheerendra Singh said...

Bahut umdah lahje me aapne tabsira likha hai achchhi shaairi hai sath sath aapke likhne ka tareeqa bhi bahut badhaaiyaaN

raginidave said...

दाग़ छुपाने की खातिर
शक्लें रोज बदलता 'चाँद' ....👌👌👌👌