हमें सर झुकाने की आदत नहीं है
छुपाये हुए हैं वही लोग खंज़र
जो कहते किसी से अदावत नहीं है
करूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
फ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है
उठा कर गिराना गिरा कर मिटाना
हमारे यहाँ की रिवायत नहीं है
मिला कर निगाहें ,झुकाते जो गर्दन
वही कह रहे हैं मुहब्बत नहीं है
बहुत करली पहले ज़माने से हमने
हमें अब किसी से शिकायत नहीं है
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है
29 comments:
गहरी बातें, सरल शब्दों में
करूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
फ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है
मिला कर निगाहें ,झुकाते जो गर्दन
वही कह रहे हैं मुहब्बत नहीं है
वाह वाह वाह कमाल शेर। बहुत अरसे बाद हुई पर खूब ग़ज़ल हुई से। और ग़ज़लों का इन्तजार रहेगा । बधाईयां।
Bahut sundar gazal
"बहुत करली पहले ज़माने से हमने
हमें अब किसी से शिकायत नहीं है"
हर शेर पर दाद कुबूल कीजिये नीरज भाईजी.. मतले से ही आपने जो माहौल बनाया है वो मक्ते तक बना रहा है. किसी एक शेर को सिंगल आउट करना इस ग़ज़ल की तौहीन होगी.
दिल की गहराइयों से उभरकर आयी इस ग़ज़ल पर बार-बार दाद कुबूल करें..
सौरभ जी से पूर्णरूपेण सहमत। लिखते रहिये। खिलते रहिये।
वाह!!!
मिला कर निगाहें ,झुकाते जो गर्दन
वही कह रहे हैं मुहब्बत नहीं है
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है
बहुत खूब! बहुत बढ़िया !
बहुत ख़ूब नीरज जी.
हर इक मिसरा नीरज के दिल से है निकला
नही है, नही कुछ बनावत नही है.
नीरज जी, सादगी में कही गई कमाल की शायरी के लिए दाद कबूल करें
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, देश का सच्चा नागरिक ... शराबी - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है.....बहुत ख़ूब नीरज जी.
is sher ne dil ko chuaa hai sri
छुपाये हुए हैं वही लोग खंज़र
जो कहते किसी से अदावत नहीं है
shukriya aapka , aap itne acche shaayar hai aur mere guru hai
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है ........वाह ...वाह....क्या बात है ।
बहुत करली पहले ज़माने से हमने
हमें अब किसी से शिकायत नहीं है
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है
खूबसूरत मिसरों के साथ अच्छी ग़ज़ल ,नीरज जी बधाई
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है
बहुत खूब!
हर शेर मुकम्मल। पूरी ग़ज़ल बाक़माल। बधाइयाँ।
NEERAJ JI MERI TARAF SE BHI DILI DAAD QUBOOL KIJIYE! IS SADHARA GHAZAL MEIN ASADHARAN SHER KAH DIYE HAIN AAPNE!''FALAQ NAAPNE KI IJAJAT NAHIN HAI''BADHAIAN!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ! सहज में कही गयीं गहरी बातें।
करूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
फ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है ..
अगर ये साधारण सी ग़ज़ल है तो धमाका किसे कहते हैं नीरज जी ...
बहुत ही कमाल के शेर ... सीधे दिल तक घर कर जाने वाले ...
bahut sundar ...vah
"करूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
फ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है."
फिर से एक छटपटाहट आज महसूस हो रही हैं इन पंखों में. हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजर-बद्ध ना गा पायेंगे.
करूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
फ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है
पूरी ग़ज़ल ही बहुत उम्दा ... यह शेर मुझे बेहतरीन लगा ..
बहुत अच्छी है जी। साधारण क्यों कहते हैं?
जाने कितनी पीठ पर खंजर पडे हैं!
इन परों का क्या करें जो उड़ने न दें.
अच्छी लगी गज़ल.
कमाल की ग़ज़ल आदरणीय
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
Behad sunder.
Gajal khoobsurat ko Kahate hain sada
unhe Naz karne ki adat nahi hai.
Received on mail :-
Ramesh Kanwal
06:48 (1 hour ago)
to me
साधारण नहीं अच्छी ग़ज़ल है .शुक्रिया और मुबारकबाद
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