सभी पाठकों को नव वर्ष कि ढेरों शुभकामनाएं
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ख़ुशी के गीत
लिखेगी हयात फूलों पर
बया ने टांग
दिए घौंसले बबूलों पर
सुनहरी राहों
पे चलते तू भी थका होगा
जरा सा बैठ लें
इन घास के दुकूलों पर
'नज़र जहान में
होते हैं लोग कम ऐसे
कि सर कटा दिया
करते हैं जो उसूलों पर
जब कभी किताबों
कि दुनिया में ऐसे शायर की किताब का जिक्र आता है जो युवा है या जो बहुत छोटी अनजान
जगह का रहने वाला है तब मुझे जो ख़ुशी हासिल होती है उसे बयां नहीं कर सकता। इस से ये
बात ज़ाहिर होती है कि शायरी उम्र दराज़ और बड़ी जगह के शायर की मोहताज़ नहीं होती . मानवीय
रिश्तों के पौधे जितने युवाओं में या दूर दराज़ के इलाकों में फलते हैं उतने उम्र दराज़
या शहरी चकचौंध में रहने वाले शायरों में नहीं. नये साल की शुरुआत हम ऐसे ही एक युवा
और दूर दराज़ इलाके के शायर की किताब के साथ कर रहे हैं।
नहीं उनको अभी
तक मौसमों के छल का अंदाजा
छतों पर बैठ
कर जो धूप में जुल्फें सुखाते हैं
अज़ब फ़नकार हैं
ये लोग तेरे शहर वाले भी
बजा कर पत्थरों
से आईनों को आज़माते हैं
किसी को जब मिला
कीजे सदा हंस कर मिला कीजे
उदास आँखों को
अक्सर लोग जल्दी भूल जाते हैं
राजस्थान के
जिले 'सवाई माधोपुर' की 'बामनवास' तहसील के गाँव 'पिपलाई' का नाम आपने शायद ही सुना
हो, ईमानदारी से कहूं तो राजस्थान में पचास से ऊपर वर्षों रहने के बावजूद मैंने भी
नहीं सुना था . 'सवाई माधोपुर' तो मैं गया हूँ लेकिन उसकी किसी तहसील में नहीं ,इस
छोटी सी अनजान जगह के उम्र में छोटे लेकिन शायरी में कद्दावर शायर ए.एफ.'नज़र' का नाम
भी मेरे अन्जाना ही था.
चूल्हा चौका
फ़ाइल बच्चे, दिन भर उलझी रहती है
वो घर में और
दफ्तर में अब आधी आधी रहती है
मिलकर बैठें
दुःख सुख बांटे इतना हम को वक्त कहाँ
दिन उगने से
रात गए तक आपा-धापी रहती है
क्या अब भी घुलती
हैं रातें चाँद परी की बातों में
क्या तेरे आँगन
में अब भी बूढी दादी रहती है
दिलचस्प बात
ये है कि 30 जून 1979 को जन्में 'नज़र' साहब का मूल नाम 'अशोक कुमार फुलवरिया' है. आप
हिंदी साहित्य में एम.ए. हैं साथ ही बी.एड. और बी.एस.टी.सी. के कोर्स भी किये हैं।
'नज़र' साहब की किताब का मेरी नज़र में आना भी कम दिलचस्प नहीं। किताब की खोज में जयपुर
के ‘लोकायत प्रकाशन’ गया जहाँ हमेशा की तरह शेखर जी किसी हिसाब किताब में व्यस्त गर्दन
झुकाये बैठे थे. मुझे देखा मुस्कुराये और बोले अरे नीरज जी इस बार आपको निराशा ही हाथ
लगेगी , आपके मतलब की सारी किताबें उदयपुर में चल रहे पुस्तक मेले में भेजी हुई हैं
, आज तो आप चाय पियें और गप्पें मारें .लेकिन साहब हम उन में से नहीं जो यूँ हार मान
जाएँ। पूरी दुकान खंगाल डाली कुछ नहीं मिला ऊपर से चाय भी आ गयी। चाय पीने के लिए अचानक
मुड़ा तो लड़खड़ा गया और किताबों के ढेर पे ढेर हो गया। ढेर में लगीं किताबें गिरीं और
बीच में दबी ये किताब "पहल" नज़र आ गयी. पन्ने पलटे तो बांछे खिल गयीं.
फ़ुर्सतों में
जब कभी मिलता हूँ दिन इतवार के
मुस्कुरा देते
हैं गुमसुम आईने दीवार के
हादसों की दहशतें
हैं गाड़ियों का शोर है
शहर में मौसम
कहाँ है फ़ाग और मल्हार के
कीमतें रोटी
की क्या हैं मुफ़लिसों से पूछिए
भाव जो देखें
हैं तुमने झूठ हैं अखबार के
देश के नामी
गरामी प्रकाशकों जैसे वाणी, डायमंड, वाग्देवी, अयन जिन्होंने दूर दराज़ के शायरों की
शायरी को हिंदी के आम पाठकों तक पहुँचाया है में अब बोधि प्रकाशन, जयपुर का नाम भी
जुड़ गया है. बोधि प्रकाशन से शायरी की कुछ बहुत अच्छी किताबें प्रकाशित हुई हैं जिनमें
से कुछ का जिक्र इस श्रृंखला में कर चुका हूँ और कुछ का बाकी है."पहल" भी
बोधि प्रकाशन से ही प्रकाशित हुई है .
दीवारो दर तो
उसने सजा कर रखे मगर
खुद को संवारने
की ही फुर्सत नहीं मिली
मंगल से ले के
चाँद के दर तक पहुँच गया
इंसान को कहीं
पे भी राहत नहीं मिली
माँ बाप को तो
मिल गयी राहत तलाक से
बच्चों को उनके
हक़ कि मुहब्बत नहीं मिली
इस किताब को
खरीद कर पढ़ने के लिए आप बोधि प्रकाशन के माया मृग जी से 98290-18087 पर संपर्क कर सकते हैं या फिर इस किताब को ऑन लाइन भी मंगवा
सकते हैं . आप इस किताब की प्राप्ति के लिए चाहे जो विधि अपनाएँ लेकिन इस के शायर नज़र
साहब जो इनदिनों पोकरण थार डिस्ट्रिक्ट राजस्थान में कार्यरत हैं, को उनके फेसबुक पेज
पर या उनके मोबाइल न. 96497-18589 पर फोन करके
उनकी इस उम्दा शायरी के लिए मुबारकबाद जरूर दें .पाठकों की प्रशंसा शायर का खून किस
कदर बढ़ा देती है इसका शायद आपको अंदाज़ा नहीं है। इस प्रशंसा से वो और भी अच्छा लिखने
को प्रेरित होता है और जो शायर प्रशंसा से फूल कर कुप्पा हो जाते हैं उनके पतन में
समय नहीं लगता .
आज भी घर अपने
शायद देर से पहुंचूंगा मैं
रास्ता रोके
खड़ी हैं लाल-पीली बत्तियां
बिछ गयीं गलियों
में लाशें और घरौंदे जल चुके
आ गयीं पुरसिश
को कितनी लाल-नीली बत्तियां
बंद कर कमरे
कि बत्ती आ मेरे पहलू में आ
खोल दे बिस्तेर
पे मेरे दो नशीली बत्तियां
शहर का सच झील
के दामन पे लिख्खा है 'नज़र'
थरथराती बिल्डिगें
और गीली-गीली बत्तियां
हार्ड बाउंड
में उपलब्ध इस किताब में 'नज़र' साहब की साठ से अधिक ग़ज़लें और ढेरों फुटकर शेर संग्रहित
हैं जो पाठकों को इक्कीसवीं सदी की शायरी में प्रेम ,वियोग ,निराशा, आशा, अवसाद , ख़ुशी,समाज
का दर्द और भूख की पीड़ा के अनेक रंग वीरान बदलते तेवरों के साथ दिखाते हैं . उनकी ग़ज़लें
नव ग़ज़लकारों में अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं. इस युवा ग़ज़लकार से आप
उनके af.nazar@rediffmail.com मेल आई डी पे गुफ्तगू करें तब तक हम निकलते हैं आपके
लिए शायरी की एक और किताब ढूढ़ने .
अब आँधियों की
ज़द में हैं वीरान खिड़कियां
सर मारती हैं
यार परेशान खिड़किया
मिलती हैं हर
गली कि हवाओं से झूम कर
घर कि रिवायतों
से हैं अनजान खिड़कियां
ये चेहरे जैसे
झांकती बेताब ग़ज़लें हों
गोया कि शायरों
के हैं दीवान खिड़कियां
25 comments:
वाह!
अद्भुत एहसास... अद्भुत अभिव्यक्ति!
इस पुस्तक परिचय हेतु बहुत बहुत आभार!
नव वर्ष की अनंत शुभकामनाएं!
बहुत ही खूबसूरत गजले है..
नववर्ष कि शुभकामनाएँ ...
:-)
वही पुराना अंदाजे बयां अति सुन्दर लाजवाब !
कितने खूबसूरत शब्दों मे गूंथ कर लिखी
हुई रोचक समीक्षा सर आपका लेखन
गद्य व पद्य दोनों ही रूपों में भावप्रवण
होता हैं। पढ़ कर आनन्दानुभुति होती है।
नज़र साहब बेशक बेहतरीन शायर हैं एक
एक शेर गवाह है।पुस्तक की जानकारी के
लिए धन्यवाद।
बानगी की मिठास बता रही है कि मजमुआ कितना मधुर होगा!! और फिर आपका इंतिख़ाब..! कमाल!!
Waah..kamal ki gazalen hain..aapka bahut bahut shukriya Neeraj Ji.
कीमतें रोटी की क्या हैं मुफ़लिसों से पूछिए
भाव जो देखें हैं तुमने झूठ हैं अखबार के ..........
अज़ब फ़नकार हैं ये लोग तेरे शहर वाले भी
बजा कर पत्थरों से आईनों को आज़माते हैं............
किसी को जब मिला कीजे सदा हंस कर मिला कीजे
उदास आँखों को अक्सर लोग जल्दी भूल जाते हैं ...
खूबसूरत कलाम के लिए नज़र साहब का शुक्रिया.शीघ्र ही पुस्तक मंगा कर व पढ़ कर चर्चा करूँगा.
'नज़र' जहान में होते हैं लोग कम ऐसे
कि सर कटा दिया करते हैं जो उसूलों पर...
नज़र साहब का तआरुफ़ करने के लिए शुक्रिया...
Msg received on e-mail:-
bhai neeraj ji
nasmty
shri nazar ji urf ashok ji ki gazalen kafi achhai lagi, khastor aap ka unse parichaya karane ka andaj-
yeh lines to kafi appealing aur impressive hain- badhai ho
अब आँधियों की ज़द में हैं वीरान खिड़कियां
सर मारती हैं यार परेशान खिड़किया
मिलती हैं हर गली कि हवाओं से झूम कर
घर कि रिवायतों से हैं अनजान खिड़कियां
ये चेहरे जैसे झांकती बेताब ग़ज़लें हों
गोया कि शायरों के हैं दीवान खिड़कियां
dobaara se aapka dhanyavad aur shukriya
-om sapra, delhi-9
Msg Received on e-mail:-
किसी को जब मिला कीजे सदा हंस कर मिला कीजे
उदास आँखों को अक्सर लोग जल्दी भूल जाते हैं
अति सुन्दर और सच भी !
Sarv Jeet 'Sarv'- Delhi
नीरज सर आपकी बदौलत नए-पुराने शायरों के क़लाम से मिलना हो जाता है। नज़र साहब बेशक़ अच्छे शेर कहते हैं और ये शेर तो आजकल की ज़िन्दगी के जानिब क्या खूब कहा है उन्होंने,
मिलकर बैठें दुःख सुख बांटे इतना हम को वक्त कहाँ
दिन उगने से रात गए तक आपा-धापी रहती है
बहुत उम्दा ... नायाब शेरों का गुलदस्ता सजाया है नज़र साहब की गज़लों से ... बहुत ही खूबसूरत समीक्षा ...
नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
हर माह एक शायर की शायरी से परिचय; खुदा करे कि आप कम से कम 1001 शायरों की शायरी का परिचय और करवायें।
नये वर्ष कि अनेको शुभ कामनाये
वाह, बहुत सुन्दर.
wah
sabse pahle to dhanywad neeraj sahab,es behtreen kitab ki behtreen samiksha ke liye....wese me bhi 'PAHAL' aur A.F. NAZAR sahab ke fans me shamil hu.......
किसी को जब मिला कीजे सदा हंस कर मिला कीजे
उदास आँखों को अक्सर लोग जल्दी भूल जाते हैं
Bahoot khoob kaha nazar saahab ne
Very very Happy new year both of you
किसी को जब मिला कीजे सदा हंस कर मिला कीजे
उदास आँखों को अक्सर लोग जल्दी भूल जाते हैं
bahoot khoob kaha NAZAR saahab ne
Very very Happy new year 2014
both of you
umda......
................
ATULYA .........................
Aadarneey Neeraj Ji,
Nav Varsh ki haardik shubh kaamnaaon ke saath aapki yah post bhi bahut achchhee lagee...
Ek se ek ashaar padhne ko mile 'Nazar' Sahab ko mubaarakbaad aur aapka bahut shukriya...
"किसी को जब मिला कीजे सदा हंस कर मिला कीजे // उदास आँखों को अक्सर लोग जल्दी भूल जाते हैं // ......Bahut khoob...
Sadar,
Satish Shukla 'Raqeeb'
Juhu, Mumbai
चूल्हा चौका फ़ाइल बच्चे, दिन भर उलझी रहती है
वो घर में और दफ्तर में अब आधी आधी रहती है
मिलकर बैठें दुःख सुख बांटे इतना हम को वक्त कहाँ
दिन उगने से रात गए तक आपा-धापी रहती है
क्या अब भी घुलती हैं रातें चाँद परी की बातों में
क्या तेरे आँगन में अब भी बूढी दादी रहती है --------vaah kya khoob kha.nazar sahab ko bhoot bhoot bhadhai
नज़र साहब की खूबसूरत शायरी के लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई और ऐसे शायर को खोज कर लाने और उनसे परिचय करवाने के लिए नीरज जी का बहुत बहुत शुक्रिया।
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