Monday, August 20, 2012

आंखें करती हैं बातें



मैं राजी तू राज़ी है
पर ग़ुस्‍से में क़ाज़ी है

आंखें करती हैं बातें
मुंह करता लफ्फाजी है

जीतो हारो फर्क नहीं
ये तो दिल की बाज़ी है

तुम बिन मेरे इस दिल को
दुनिया से नाराजी है

कड़वा मीठा हम सब का
अपना अपना माजी है

सब में रब दिखता जिसको
वो ही सच्चा हाजी है

दर्द अभी कम है ‘नीरज’
चोट अभी कुछ ताज़ी है


( ये ग़ज़ल गुरु देव पंकज सुबीर जी का मिडास टच लिए हुए है )

38 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

अखियन में
फागुन लहराया!
शरमाई
फूलो में पंखुरियाँ
अलसाई
रतनारी आँखरियाँ!
अधरों पर
अनव्याहा छंद मुखर आया
चहक रही
तितली सी चितवन,
ठुमकी पायल
खनके कंगन!
भूला-सा एक नाम
सुधियों में आया!
अखियन में फागुन लहराया!
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,

Vaanbhatt said...

ये प्रोफेशनल लेखन है प्रभु...स्वान्तः सुखी नहीं...उम्दा ग़ज़ल...चुनिन्दा शेर...

सब में रब दिखता जिसको
वो ही सच्चा हाजी है

ANULATA RAJ NAIR said...

उसको हो इनकार भले ही
अपनी तो हांजी हांजी है
:-)

सच्ची मिडास टच है.....दमकती हुई गज़ल...

सादर
अनु

देवेन्द्र पाण्डेय said...

आंखें करती हैं बातें
मुंह करता लफ्फाजी है
..यह शेर अच्छा लगा।

प्रवीण पाण्डेय said...

अहा, प्रभावी..सुन्दर..

Onkar said...

बहुत प्रभावशाली ग़ज़ल

Anonymous said...

सब में रब दिखता जिसको
वो ही सच्चा हाजी है---बहुत सुन्दर

kshama said...

Bahut sundar! Kuchh choten hamesha taazee rahtee hain shayad....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जीतो हारो फर्क नहीं
ये तो दिल की बाज़ी है

बहुत सुंदर गज़ल....

Pawan Kumar said...

ईद के मौके पर ग़ज़ल ईदी का काम कर गयी.... सलाम नीरज भाई. ईद की मुबारकबाद!

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बहुत सुन्दर ......

तिलक राज कपूर said...

Aapki gazelen ab dil lootne lagi hein, qatl to bahut pahle se karti rahi hein.

दीपक बाबा said...

दर्द अभी कम है ‘नीरज’
चोट अभी कुछ ताज़ी है

कुछ जख्म जिदगी भर इंसान को परेशान करते रहते हैं.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

आपकी ग़ज़लों की खुशबू,
आज भी कितनी ताज़ी है.
/
छोटी बहर में इतनी खूबसूरत गज़ल आप ही कह सकते हैं!!!

virendra sharma said...

सब में रब दिखता जिसको
वो ही सच्चा हाजी है,छोटी बहर की इस गजल में बहुत सुन्दर व्यंजना और रूपक का निर्वाह हुआ है . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
सोमवार, 20 अगस्त 2012
सर्दी -जुकाम ,फ्ल्यू से बचाव के लिए भी काइरोप्रेक्टिक

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आंखें करती हैं बातें
मुंह करता लफ्फाजी है
इतनी छोटी बहर में इतनी बड़ी बात...नीरज जी बहुत बड़ा फ़न है ये...बधाई

कड़वा मीठा हम सब का
अपना अपना माजी है...
ये शेर तो दिल को छू गया...वाह

PRAN SHARMA said...

GAAGAR MEIN SAAGAR BHAR DIYA HAI
AAPNE . MUBAARAQ .

Dr (Miss) Sharad Singh said...

कड़वा मीठा हम सब का
अपना अपना माजी है


बहुत खूब कहन......
हर शेर शानदार है....

वाणी गीत said...

सबमे रब दिखता जिसको वो ही सच्चा हाजी है !
बेहतरीन !

Shiv said...

दर्द अभी कम है ‘नीरज’
चोट अभी कुछ ताज़ी है


वाह! सुन्दर ग़ज़ल.
आपको और गुरुदेव पंकज सुबीर का धन्यवाद् इस ग़ज़ल के लिए.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.


छोटी बह्र में कही गई आपकी यह ग़ज़ल दिल ले गई …
सब में रब दिखता जिसको
वो ही सच्चा हाजी है

बहुत सच कहा नीरज भाईजी आपने …
पूरी ग़ज़ल बहुत ख़ूब कही है

बहुत बहुत शुभकामनाएं …

दिगम्बर नासवा said...

कड़वा मीठा हम सब का
अपना अपना माजी है

वाह ... छोटी बहर में आपका कमाल देख रहा हूं ... हर शेर दिल में उतर जाता है नीरज जी ... बधाई ...

dr.mahendrag said...


सब में रब दिखता जिसको
वो ही सच्चा हाजी है

दर्द अभी कम है ‘नीरज’
चोट अभी कुछ ताज़ी है
bahut hi khoobsurat gazal

सदा said...

जीतो हारो फर्क नहीं
ये तो दिल की बाज़ी है
वाह ... बेहतरीन ... उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति

विभूति" said...

bhaut hi khubsurat....

Manish Kumar said...

kya baat hai halki phulki mazedar ghazal

Fani Raj Mani CHANDAN said...

सब में रब दिखता जिसको
वो ही सच्चा हाजी है

दर्द अभी कम है ‘नीरज’
चोट अभी कुछ ताज़ी है


बहुत सुन्दर ग़ज़ल है सर :-)

Parul Singh said...

खूब गजल कही है
नीरज जी .....
दर्द अभी कम है ‘नीरज’
चोट अभी कुछ ताज़ी है
........सच है ..
तुम बिन मेरे इस दिल को
दुनिया से नाराजी है....दोनों
बहुत ही लाजवाब शेर

kunwarji's said...

लाजवाब....

कुँवर जी,

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत खूब नीरज भाई |

ऋता शेखर 'मधु' said...

जीतो हारो फर्क नहीं
ये तो दिल की बाज़ी है

बहुत सुंदर...सभी शेर खूबसूरत !!

Asha Joglekar said...

बढिया है बहुत ये गज़ल
और फिर ताज़ी ताज़ी है ।

Narendra Mourya said...

बहुत खूब, उम्दा ग़ज़ल

SATISH said...

नीरज साहब,
वाह वाह...इस सादगी का जवाब नहीं. बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है...तबीयत खुश हो गयी...अच्छे अशआर....

"जीतो हारो फर्क नहीं
ये तो दिल की बाज़ी है"
क्या कहने...

कड़वा मीठा हम सब का
अपना अपना माजी है
वाह वाह...

दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं.

सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
जुहू , मुंबई - 49.

राहुल said...

अरे सर आपने तो बस बोलती बंद कर दी क्या खूब लिखा है मज़ा आ गया पढ़ कर | सच बताऊँ तो कम ही मिलती है ऐसी रचना इन ब्लॉगस की बरसातों में |

नीरज गोस्वामी said...

Msg received on mail:-

Chhoti behr men achhi ghazal bhai!
ye do ashaar bahot achhe lage :-
आंखें करती हैं बातें
मुंह करता लफ्फाजी है
जीतो हारो फर्क नहीं
ये तो दिल की बाज़ी है
Bahut Khoob!

Gyan Dutt Pandey said...

क्या समझें गज़ल, हमारा
मनवा एक दम पाजी है।

Anonymous said...

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