मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है
खुदा इस शहर को महफूज़ रखे
ये बच्चों की तरह हँसता बहुत है
इसे आंसू का एक कतरा न समझो
कुआँ है और ये गहरा बहुत है
मैं हर लम्हे में सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ इक लम्हा बहुत है
बेवक्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पर नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
ये फूल कोई मुझको विरासत में मिले हैं
तुमने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा
आंसुओं से मिरी तहरीर नहीं मिट सकती
कोई कागज़ हूँ कि पानी से डराता है मुझे
दूध पीते हुए बच्चे की तरह है दिल भी
दिन में सो जाता है रातों में जगाता है मुझे
सर पे सूरज की सवारी मुझे मंज़ूर नहीं
अपना कद धूप में छोटा नज़र आता है मुझे
पद्म श्री बशीर बद्र साहब का जन्म 15 फरवरी 1935 को अयोध्या में हुआ. अलीगढ यूनिवर्सिटी से एम् ऐ, पी.एच डी. करने बाद कुछ समय वहीँ लेक्चरार की हैसियत से पढाया और फिर बरसों मेरठ कालेज में उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष रहे. एक हादसे के दौरान बशीर साहब का घर आग में जल गया और उसके कुछ समय बाद उनकी पत्नी का भी देहांत हो गया. इन दोनों हादसों ने बशीर साहब को तोड़ कर रख दिया. उन्होंने दुनिया और अपनी शायरी से नाता तोड़ लिया. दोस्तों और रिश्तेदारों के बेहद इज़हार के बाद वो भोपाल चले आये जहाँ उनकी मुलाकर डा. राहत से हुई जिनसे बाद में उन्होंने निकाह भी किया. डा. राहत ने बशीर साहब के टूटे दिल को फिर से जिंदगी की ख़ूबसूरती से रूबरू करवाया. उसके बाद बशीर साहब ने फिर मुड़ कर नहीं देखा.
सर पे सूरज की सवारी मुझे मंज़ूर नहीं
अपना कद धूप में छोटा नज़र आता है मुझे
पद्म श्री बशीर बद्र साहब का जन्म 15 फरवरी 1935 को अयोध्या में हुआ. अलीगढ यूनिवर्सिटी से एम् ऐ, पी.एच डी. करने बाद कुछ समय वहीँ लेक्चरार की हैसियत से पढाया और फिर बरसों मेरठ कालेज में उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष रहे. एक हादसे के दौरान बशीर साहब का घर आग में जल गया और उसके कुछ समय बाद उनकी पत्नी का भी देहांत हो गया. इन दोनों हादसों ने बशीर साहब को तोड़ कर रख दिया. उन्होंने दुनिया और अपनी शायरी से नाता तोड़ लिया. दोस्तों और रिश्तेदारों के बेहद इज़हार के बाद वो भोपाल चले आये जहाँ उनकी मुलाकर डा. राहत से हुई जिनसे बाद में उन्होंने निकाह भी किया. डा. राहत ने बशीर साहब के टूटे दिल को फिर से जिंदगी की ख़ूबसूरती से रूबरू करवाया. उसके बाद बशीर साहब ने फिर मुड़ कर नहीं देखा.
बशीर साहब अपनी शरीके हयात डा. राहत के साथ...दुर्लभ फोटो.
बस गयी है मिरे एहसास में ये कैसी महक
कोई ख़ुशबू मैं लगाऊं तिरी ख़ुशबू आये
मैंने दिन रात खुदा से ये दुआ मांगी थी
कोई आहट न हो दर पे मिरे और तू आये
उसने छू के मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बाद मिरी आँखों में आंसू आये
कोई पत्थर नहीं हूँ कि जिस शक्ल में मुझको चाहो बनाया बिगाड़ा करो
भूल जाने की कोशिश तो की थी मगर याद तुम आ गए भूलते भूलते
आँखें आसूं भरी, पलकें बोझिल घनी, जैसे झीलें भी हों नर्म साये भी हों
वो तो कहिये उन्हें कुछ हंसी आ गयी, बच गए आज हम डूबते डूबते
अब वो गेसू नहीं हैं जो साया करें अब वो शाने नहीं जो सहरा बनें
मौत के बाजुओ तुम ही आगे बढ़ो थक गए आज हम घूमते घूमते
पास रह कर जुदा सी लगती है
ज़िन्दगी बेवफ़ा-सी लगती है
नाम उसका लिखा है आँखों में
आंसुओं की खता सी लगती है
प्यार करना भी जुर्म है शायद
मुझसे दुनिया खफा सी लगती है
बशीर साहब की ग़ज़लों को यूँ तो बहुत से गायकों ने अपना स्वर दिया है खास तौर पर जगजीत सिंह जी ने तो उनकी बेशुमार ग़ज़लें गायीं हैं लेकिन मैं आपको वो सब नहीं सुना रहा. मैं आपको वो सुना रहा हूँ जो आपने शायद नहीं सुना होगा. सन 2003में भारत में पहली बार एक फिल्म बनी जिसमें हाड मांस के किरदारों के साथ एनिमेटेड कलाकार भी थे. फिल्म थी "भागमती" . उस फिल्म का एक गीत था जिसे बशीर बद्र साहब ने लिखा, रेखा भारद्वाज जी ने गाया और हेमा मालिनी पर फिल्माया गया था. आप ये गीत सुनिए और देखिये अगर पसंद आये तो मुझे धन्यवाद दीजिये. मैं तो इस गीत का दीवाना हूँ और ना जाने इसे कितनी बार सुन देख चुका हूँ.
36 comments:
neeraj ji , mujhe basheer saheb ki gazale, bahut pasand hai .. unse bahut pahle ek mulakhaat bhi hui thi .. choti si thi .. lekin unhone us mauke par bhi kuch sher sunaya aur mujhe badi khushi hui thi,.. aaj aapne kamaal kar diya unke baare me post laga kar. shukriya ...
vijay
basheer badra ko padhna khud ko jeene jaisa lagta hai...
बशीर बद्र जी के लिये हम तो क्या कह सकते हैं सिवाय इसके कि आपने आज उन्हे पढवाकर हमे अनुग्रहित किया………हार्दिक आभार्।
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
नीरज जी , टिप्पणी करने की अपनी औकात नही ..
जो कुछ आपने पढवाया, सुनवाया
सब कुछ है ,इस में समाया....
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है
खुश और स्वस्थ रहें !
आभार!
मुझे फख़्र है कि मैं भी उसी मेरठ की माटी का हूं, जिसमें बशीर बद्र साहब की खुशबू बसती है...
मैं शर्मिंदा हूं कि मेरठ में ही चंद सरफिरों ने बशीर साहब का घर जलाकर उन्हें यहां से हमेशा के लिए नाता तोड़ने को मजबूर कर दिया...
बशीर साहब के बेटे नुसरत से दोस्ती की वजह से मेरठ में एक-दो बार इनके घर जाने का मौका मिला था...नुसरत ने खुद मुंबई जाकर गीतकार के रूप में नाम कमा लिया है...शाहरुख की फिल्म देवदास फिल्म में नुसरत ने गीत लिखे थे...
नीरज जी आपका आभार, बशीर साहब पर इस खूबसूरत पोस्ट के लिए...
जय हिंद...
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है
बेहतरीन पोस्ट,बशीर साहब के फैन तो हम भी हैं.
PUTAKON KEE KADEE MEIN EK AUR LAJWAAB KITAAB .BASHEER BADR IS
DAUR KE SHAANDAR SHAAYAR HAIN .
UNKEE SHAAYREE KO PADHNA MAANO
JEEWAN KO PADHNA HAI .
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पर नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
abhar sunder shayari padhwane ke liye....
नीरज जी आज तो आप कोहेनूर खोज के लाये हैं ... बशीर साहब किसी कोहनूर से कम नहीं हैं ... उर्दू जुबां और गज़ल को पसंद करने वालों के बीच उनका खास मुकाम है ... हर शेर, कर कलाम मिट्टी की खुशबू और रुमानियत लिए होता है ... आप का बहुत बहुत शुक्रिया इस किताब के बारे में जानकारी देने का ... अपनी कलेक्शन में एक और मोती बढ़ जायगा इसी बहाने ...
कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं ...
neeraj ji apne all time fav shayar ko padna aur unke jindagi ke khuch aur pahluo ko janna aacha laga behat khubsurat song se rubaru karane ke liye apka shukriya bahut bahut..bashir sahab ke hi khuch sher jubaa par aa rahe hai ..
koi haath bhi na milayega jo gale miloge tapak se
ye naye mizaz ka sahar hai jra faslo se mila karo
nahi behizab vo chand sa ke nazar ka koi asar na ho
usee etni garmiye shonk se badi der tak na taqa karo
ye khiza ki zard si shawl main jo udas ped ke pas hai
ye tumhare ghar ki bahar hai esse aansuo se hara karo
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..बशीर जी की रचनाएँ सदैव दिल को छूती हैं.
जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
बेहतरीन पोस्ट,बशीर साहब का मैं बहुत सम्मान करती हूं.
"भागमती" का गीत वाकई नायाब हीरे-सी प्रस्तुति है.
मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूं
कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए...
नीरज जी, ऐसे शेर के ख़ालिक डा. बशीर बद्र साहब की कुछ और शायरी से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया.
बशीर साहब की ग़ज़लों में बहुत कुछ होता है विशेषकर नये शायरों के लिये सीखने को। और मैं तो इन्हें जीता जागता स्कूल मानता हूँ। हर शेर जब काफि़या तक पहुँचता है बेसाख्त: 'वाह' निकले बिना नहीं रहती।
भोपाल रहवासी होने के नाते कह सकता हूँ कि:
यूँ तो रहते हैं आस पास कहीं
बस, मुलाकात हो नहीं पाती।
बेहतरीन गीत के साथ बेहतरीण जानकारी....शुक्रिया
अच्छा लिखा है. सचिन को भारत रत्न क्यों? कृपया पढ़े और अपने विचार अवश्य व्यक्त करे.
http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com
नीरजजी , आपका ब्लॉग गागर मैं सागर है .हिंदी साहित्य प्रेमियों को अच्छी व चुनिन्दा रचनाये प्रदान करने के लिए साधुवाद .
विजयकांत बड़सर
pranam !
kya jaa saktaa hai basheer saaab ke klaama ke baare me har sher har gazal laajaab hotaa hai . unki kalam ko naman hai , aaur neeraj saab aap ko sadhuwad !
saadar
बशीर साहब की ताजा पुस्तक और चित्र के लिये बहुत आभार आपका.
रामराम
दूध पीते हुए बच्चे की तरह है दिल भी
दिन में सो जाता है रातों में जगाता है मुझे
उसने छू के मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
मुद्दतों बाद मिरी आँखों में आंसू आये
बशीर बद्र साहब को पढवाने का शुक्रिया नीरज जी । उनकी शान में कुछ कहने की तो हिम्मत नही कर सकती पर बहुत ही अच्छा लगा आपके द्वारा चुने हुए उनके शेर पढ कर ।
बशीर जी को पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है ...और आज आपकी इस प्रस्तुति के लिये मैं नि:शब्द हूं ...बहुत-बहुत आभार इस उम्दा प्रस्तुति के लिये ..बधाई स्वीकारें ।
बशीर साः के क्या कहने..आपका बहुत आभार!!
अरे वाह! ये किताब तो मैंने भी कुछ हफ्ते पहले एक बुक स्टोर में देखी थी पर खरीदा नहीं..
अगली बार जाऊँगा तो ज़रूर खरीदूंगा.. ऐसी रोचक जानकारी के लिए धन्यवाद!
Msg received on my e-mail:-
bhai neeraj ji
u really deserve thanks for giving such a gud write up about bashi badr's shairi.
iam also fan of shir badra.
Could u get time to go through kuldip salil's poetry book "dhoop ke saye mein"
regds.
-om sapra, delhi-9
क्या टिप्पणी लिखूं .....
कालजयी रचनाएँ किसी तारीफ और परिचय की मोहताज नहीं.....
आपका शुक्रिया कि पुन: पुराने शेरों को दोहराने का मौका दिया !!!
बशीर साहब और उनकी शायरी से मैं वाकिफ हूँ..............बहुत खूब लिखते हैं......शुक्रिया आपका|
आप ने सही फरमाया, इन के जैसे रेशमी एहसास वाले शाहकार दुर्लभ हैं। कामिल बहर के तो ये शहंशाह हैं।
बशीर बद्र को पढ़ना अपने आप में अनुभव रहा है।
बशीर बद्र साहब को पढ़ना ज़िंदगी जीने के गुर सीखने जैसा है. एक से बढ़कर एक गज़लें. इस किताब के बारे में पहली बार पढ़ा.
बहुत बढ़िया पोस्ट!
नीरज जी
आशीर्वाद
पहली बार गीत सुना अच्छा लगा
धन्यवाद
गुड्डो दादी चिकागो से
बशीर बद्र जी कि निजी जिंदगी के बारे में नई बातें पता चलीं और गीत तो कमाल है ही। बेहतरीन पोस्ट।
'उलझन में हूँ, कहाँ से शुरू करूँ?....aap hi ki tarah main bhi isi mushqil me hun..Basheer sahab se ru-b-ru karwane ka sgukriya neeraj ji...mujhe unke sath kuchh manchon per baithne ka soubhagy mila hai yahi sochkar khush bhi hun..:)
सुन्दर प्रस्तुति!
संग्रहणीय...!!!
bashir ji padhna saubhagya se kum nahi'n. meri nazar me un se badhia shair ho hi nahi'n sakta. aap ka shukriya jin ki wajah se basheer sahab ka kalaam padhne ka saubhagya haasil hua.
'Baseer sb K sath bitai ek shaam do subhon ki khoobsurt yadon mein lout gaya mein bahut shukriya meharbani Neeraj ji
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