Monday, February 28, 2011

ज़हर पाया है अक्सर, खूबसूरत आबगीने में



जियें खुद के लिये गर हम, मजा तब क्या है जीने में
बहे औरों की खातिर जो, है खुशबू उस पसीने में

है जिनके बाजुओं में दम, वो दरिया पार कर लेंगे
बहुत मुमकिन है डूबें वो, जो बैठे हैं सफीने में

ये कैसा दौर आया है, सरों पर ताज है उनके
नहीं मालूम जिनको फर्क, पत्थर औ' नगीने में

हमारे दोस्तोँ की महरबानी इक छलावा है
ज़हर पाया है अक्सर खूबसूरत आबगीने में

गए तुम दूर जब से, दिल ये कहता है करो तौबा
मज़ा आता नहीं, खुद ही उठा कर ज़ाम पीने में

लगाये टकटकी हम राह पर बैठे रहे सदियों
सुना था लौट आएगा, वो ज़ालिम इक महीने में


सितम सहने की आदत, इस कदर हम को पड़ी "नीरज"
कहीं कुछ हो, नहीं अब खौलता है, खून सीने में


सफीने: कश्ती , नाव
आबगीने: शराब की छोटी कांच की सुन्दर बोतलें

46 comments:

निर्मला कपिला said...

ये कैसा दौर आया है, सरों पर ताज है उनके
नहीं मालूम जिनको फर्क, पत्थर औ' नगीने में
सही बात है आज की राजनिती की असली तस्वीर।

हमारे दोस्तोँ की मुस्कुराहट इक छलावा है
ज़हर पाया है अक्सर खूबसूरत आबगीने में
इसमे भी सुन्दर सन्देश छिपा है। मतला तो कमाल का है। बधाई नीरज जी सुन्दर गज़ल के लिये।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

है जिनके बाजुओं में दम, वो दरिया पार कर लेंगे
बहुत मुमकिन है डूबें वो, जो बैठे हैं सफीने में...
वाह..वाह...वाह...क्या नसीहत दी है नीरज जी, कमाल का शेर है..
ये कैसा दौर आया है, सरों पर ताज है उनके
नहीं मालूम जिनको फर्क, पत्थर औ' नगीने में
सच्चा शेर...पूरी ग़ज़ल शानदार है...
सुबह खुशगवार हो गई.

सदा said...

सितम सहने की आदत, इस कदर हम को पड़ी "नीरज"
कहीं कुछ हो, नहीं अब खौलता है, खून सीने में
बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

रश्मि प्रभा... said...

सितम सहने की आदत, इस कदर हम को पड़ी "नीरज"
कहीं कुछ हो, नहीं अब खौलता है, खून सीने में
kya baat hai, bahut achha laga

राजेश उत्‍साही said...

सुंदर।

प्रवीण पाण्डेय said...

दूसरों के लिये बहे पसीने की बात ही निराली है।

vandana gupta said...

बहुत ही शानदार गज़ल ……………सभी शेर लाजवाब्।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत गज़ल ...हर शेर में कुछ सीखने को मिल रहा है ...

Neeraj said...

आबगीने में वैसे जहर ही भरा होता है |

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब रचना.

रामराम.

Unknown said...

Padhne ke bad is blog se jane ka ji nahi karta. din me kam se kam tin char bar to visit kar hi jata hu.
aap gajba ke likhte hai .
www.maibolunga.blogspot.com

pran sharma said...

NEERAJ BHAI , KYA GAZAL KAHEE HAI
AAPNE ! MATLA , MAQTA AUR HAR SHER
MARM SPARSHEE HAI . BHARPOOR
BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.

Anonymous said...

आभार

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर, धन्यवाद

डॉ टी एस दराल said...

गए तुम दूर जब से, दिल ये कहता है करो तौबा
मज़ा आता नहीं, खुद ही उठा कर ज़ाम पीने में

किस किस की करें तारीफ
हर शेर उतर गया सीने में ।

बहुत सुन्दर ग़ज़ल ।

अरुण चन्द्र रॉय said...

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल.. यह शेर लाजवब है ...
"है जिनके बाजुओं में दम, वो दरिया पार कर लेंगे
बहुत मुमकिन है डूबें वो, जो बैठे हैं सफीने में"..

पंकज सुबीर said...

गए तुम दूर जब से, दिल ये कहता है करो तौबा
मज़ा आता नहीं, खुद ही उठा कर ज़ाम पीने में

नीरज जी ये वो शेर है जिसके बारे में कभी कभी हमें ही नहीं पता होता कि हमने क्‍या हीरा तराश दिया है ।

Kailash Sharma said...

है जिनके बाजुओं में दम, वो दरिया पार कर लेंगे
बहुत मुमकिन है डूबें वो, जो बैठे हैं सफीने में..

बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर बहुत सटीक और सार्थक ...

तिलक राज कपूर said...

जानलेवा ग़ज़ल।
ठंडे से ठंडे सीने में आग लगात शेर:
सितम सहने की आदत, इस कदर हम को पड़ी "नीरज"
कहीं कुछ हो, नहीं अब खौलता है, खून सीने में
अब आप तो फुल-टाइम शायर हो गये लगते हैं। चोगा वोगा सिलवा लिया कि नहीं?

Mansoor ali Hashmi said...

खूबसूरत ग़ज़ल, बधाई नीरज जी.
मतला मौजूदा हालात की अक्कासी करता है.

सितम सहने की आदत, इस कदर हम को पड़ी "नीरज"
कहीं कुछ हो, नहीं अब खौलता है, खून सीने में

हमारी उदासीनता का चित्रण है इसमें.

आपके लिए एक सिफारिशी शेर:-

कई सदियों से बेकल है ये 'नीरज दोस्त',ए ज़ालिम,
तू करदे दूर तन्हाई , बसंती इस महीने मे!

m.hashmi
http://aatm-manthan.com

Abhishek Ojha said...

बढ़िया. आबगीने शब्द पहली बार ही सुना.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

नीरज सर! इस बार बहुत लम्बी छुट्टी कर दी आपने.. मुझे तो सचमुच लगाकि महीनों बाद मिले हैं आप.. बहुतहल्के फुल्के अंदाज़ में गहरी शायरी की है आपने.. दिल बाग बाग हो गया..
मक़्ता तो अटक गया है सीने में.. वो ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता!!!

Manish Kumar said...

पूरी ग़ज़ल पढ़कर आनंद आ गया। बहुत खूब !

'साहिल' said...

लगाये टकटकी हम राह पर बैठे रहे सदियों
सुना था लौट आएगा, वो ज़ालिम इक महीने में

सितम सहने की आदत, इस कदर हम को पड़ी "नीरज"
कहीं कुछ हो, नहीं अब खौलता है, खून सीने में


लाजवाब शेर, उम्दा ग़ज़ल

सम्वेदना के स्वर said...

ये कैसा दौर आया है, सरों पर ताज है उनके
नहीं मालूम जिनको फर्क, पत्थर औ' नगीने में.

हमारी सोच की तर्जुमानी करता शेर.. लिये जा रहे हैं...इस गज़ल के नगीने को चुन लिया है हमने!

Udan Tashtari said...

गए तुम दूर जब से, दिल ये कहता है करो तौबा
मज़ा आता नहीं, खुद ही उठा कर ज़ाम पीने में

-ओह!! आह!! वाह!!

वाह...क्या बात है जनाब! गज़ब!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

बाऊ जी,
नमस्ते!
आनंद! आनंद! आनंद!
आशीष
--
लम्हा!!!

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही शानदार गज़ल …

इस्मत ज़ैदी said...

जियें खुद के लिये गर हम, मजा तब क्या है जीने में
बहे औरों की खातिर जो, है खुशबू उस पसीने में
waah !bilkul sach kaha ap ne lekin hai ye behad mushkil

है जिनके बाजुओं में दम, वो दरिया पार कर लेंगे
बहुत मुमकिन है डूबें वो, जो बैठे हैं सफीने में
bahut khoob !kyaa baat hai !
poori ghazal hi bahut umda hai .
mubarakbad qubool karen.

vijay kumar sappatti said...

sir , saare sher ek se badkar ek hai , is baar har sher me thode shades sukh ke hai .. aur isi wazah se sabhi lajawaab hai .. aapki lekhni ko salaam ..

----------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई नीरज आप वाकई बहुत सुंदर काम कर रहे हैं आपकी प्रस्तुति बेजोड़ है |गज़ल के प्रति आपकी दीवानगी देखकर तबीयत खुश हो जाती है |

Anonymous said...

नीरज जी,

वाह...वाह.....सुभानाल्लाह......हर शेर खुबसूरत....दिली दाद कबूल करें|

Asha Joglekar said...

हमारे दोस्तोँ की महरबानी इक छलावा है
ज़हर पाया है अक्सर खूबसूरत आबगीने में ।

ऐसा न कहिये दोस्ती ही तो है जो इस बुरे वक्त में भी साथ दे रही है ।
कहने की बात है वरना गजृल तो बहुत ही खूबसूरत है ।

Shiv said...

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है. अद्भुत!!

ये वाला शेर बहुत ही बढ़िया लगा.

है जिनके बाजुओं में दम, वो दरिया पार कर लेंगे
बहुत मुमकिन है डूबें वो, जो बैठे हैं सफीने में

mridula pradhan said...

wah.ekdam kamaal ki pangtiyan.

जितेन्द़ भगत said...

रवानगी चुस्‍त दुरूस्‍त
पढ़कर मजा आ गया।

Unknown said...

लगाये टकटकी हम राह पर बैठे रहे सदियों
सुना था लौट आएगा, वो ज़ालिम इक महीने में
jai baba banras--

Arvind Mishra said...

लगाये टकटकी हम राह पर बैठे रहे सदियों
सुना था लौट आएगा, वो ज़ालिम इक महीने में
वाह जबरदस्त -एक से बढ़कर एक

डॉ .अनुराग said...

सुना था लौट आएगा, वो ज़ालिम इक महीने में


गोया छलका भी गये ओर पी भी गए.... .....
सुभानाल्लाह !


गायत्री कमलेश्वर वाली किताब का नाम है मेरे हमसफ़र ....प्रकाशन शायद राजपाल ब्रदर्स है ....

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan said...

"शायरी मेरी तुम्हारे जिक्र से, मोगरे की यार डाली हो गयी"- बहुत खूब अंदाज़-ए-बयां है आपका नीरज जी.
"सितम सहने की आदत, इस कदर हम को पड़ी "नीरज"
कहीं कुछ हो, नहीं अब खौलता है, खून सीने में"
आज के समाज में ऐसी ही स्थिति आ गयी है. बधाई स्वीकारें

साभार -अवनीश सिंह चौहान

Rakesh Kumar said...

मन के गहन भावों की अति सुंदर अभिव्यक्ति .
बहुत बहुत आभार .

Kunwar Kusumesh said...

गए तुम दूर जब से, दिल ये कहता है करो तौबा
मज़ा आता नहीं, खुद ही उठा कर ज़ाम पीने में

वाह वाह ,वाक़ई साक़ी की कमी को भला कौन पूरा कर पायेगा. बहुत खूबसूरत शेर .
किसी का एक शेर याद आ रहा है,शेर है:-

साक़ी तेरी निगाह में क्या आलमे-मस्ती है.
दुनिया मेरी आँखों में उजड़ी हुई बस्ती है

Ashish said...

Bahut khuub....

S.M.Masoom said...

जियें खुद के लिये गर हम, मजा तब क्या है जीने में
बहे औरों की खातिर जो, है खुशबू उस पसीने में
.
हमेशा के लिए खूबसूरत अंदाज़ और अच्छा पैग़ाम

मीनाक्षी said...

हमारे दोस्तोँ की महरबानी इक छलावा है
ज़हर पाया है अक्सर खूबसूरत आबगीने में.... हमेशा की तरह सदाबहार अन्दाज़...

अभिषेक पाण्डेय said...

मज़ा आ गया! बहुत खुब!