Monday, January 17, 2011

लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से



चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्‍यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से

खार के बदले में यारो खार देना सीख लो
गुल दिया करते हैं जो, वो लोग हैं नादान से

जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से

आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,

एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्‍तों को हैं जो फायदे नुकसान से


आप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
गर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से

बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से

ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से

खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से

70 comments:

सुज्ञ said...

बेहद प्रभावशाली गज़ल है।

क्या बात है………॥

ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,

बहुत खूब .... सभी शेर कमाल के हैं....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,

एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्‍तों को हैं जो फायदे नुकसान से

गज़ल का हर शेर बहुत खूब ..इंसानी फितरत को कहता हुआ ....

vandana gupta said...

चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्‍यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से

खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से

शानदार गज़ल ……………हर शेर बेहतरीन्।

सदा said...

आप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
गर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से

हर पंक्ति लाजवाब ..इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये बधाई ।

रचना दीक्षित said...

आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
नीरज जी इनको मैं जानती हूँ जीरो फिगर वाले हैं.... हा हा हा
बेमिसाल ग़ज़ल है. हर एक शेर तराशा हुआ नगीना सा है.

रश्मि प्रभा... said...

बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
waah... bahut badhiyaa

neeraj ji , anurodh hai , ye gazal vatvriksh ke liye bhejiye rasprabha@gmail.com per parichay tasweer blog link ke saath ...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

क्या कहूँ, सहज सरल भाषा पर बेहतरीन ग़ज़ल ... बहुत सुन्दर !

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

नीरज जी, हर शेर लाजवाब करने वाला है। बहुत बहुत बधाई।

---------
ज्‍योतिष:पैरों के नीचे से खिसकी जमीन।
सांपों को दूध पिलाना पुण्‍य का काम है ?
डा0 अरविंद मिश्र: एक व्‍यक्ति, एक आंदोलन।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्‍यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
वाह नीरज जी...कितना बड़ा पैग़ाम दिया है

जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से
यही होता है...इसीलिए तो कहा है ’नेकी कर दरिया में डाल’
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
तादाद बहुत कम हो गई न, हैरानी की बात तो है ही :)
बहुत अच्छी ग़ज़ल है नीरज जी...शिक्षाप्रद.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

वाह! नीरज जी,

चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्‍यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से

ग़ज़ल के मतले ने ही बता दिया कि पूरी ग़ज़ल कितनी ज़ोरदार है !

हर शेर लाजवाब !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
मक्ता क्या खूब कहा है,
"खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से "
एक आम और बेहद अहम बात को, बहुत अच्छे से आप ने शेर में पिरो दिया है.

Anonymous said...

नीरज जी,

क्या कहूँ....पहले शेर से समां बांध दिया इस ग़ज़ल ने.....कोई शेर किसी क़दर भी किसी से कम नहीं.....गुनगुनाने लायक ग़ज़ल है ये......आपकी ग़ज़ल की सरलता ही उसको ऊँचे मुकाम तक ले आती है|

इस पोस्ट के लिए हैट्स ऑफ टू यू.....

shikha varshney said...

बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
यही ज़माना आ गया है..
उम्दा गज़ल.

तिलक राज कपूर said...

आपकी इस ग़ज़ल के नौ रत्‍नों में से कौनसा छोड़ा जाये और कौनसा टिप्‍पणी के लिये पकड़ा जाये। पूरी की पूरी ग़ज़ल तर-ब-तर है खुश्‍बुओं से।
खुश्‍बुओं से तरबतर हैं शेर सारे आपके
रंगे महफि़ल पूछिये मत आप इस मेहमान से।

pran sharma said...

AAPKEE LEKHNI KAA KAMAAL HAI KI
HAR SHER GULAAB KEE SEE KHUSHBOO
LUTAA RAHAA HAI .

डॉ टी एस दराल said...

आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,

किस किस की तारीफ़ करें तारीफ
हर शेर की तारीफ़ निकलती है जुबान से ।


बेहतरीन ग़ज़ल नीरज जी ।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...


मारना ही है बड़े भाई, तो ख़ंजर भोंक दो,
ऐसी ग़ज़लें मत सुनाओ आप इतनी शान से!
मैं अभी डूबा हुआ हूँ आपके अशआर में
टिप्पणी मैं फिर कभी दूँगा बड़े आराम से!

P.N. Subramanian said...

बेहद प्रभावशाली.

Parul Singh said...

neeraj ji
manviya bhavnao ka sajeev chitran hai apki ye gajal..ak ke bad ak sher jindagi ke alag alag pahlu ki sachchayi ujagar karne ke sath hi sachet bhi karta hai.............
khar ke badle main yaro khar dena sikh lo, gul diya karte jo vo log hai nadan se...khub

Fani Raj Mani CHANDAN said...

It has been always pleasure to read your Ghazals and Shayri, one awesome creation!

Regards
Fani Raj

daanish said...

वाह नीरज साहब !
एक और खूबसूरत ग़ज़ल ...
बहुत ही खूबसूरत अश`आर से सजी-सँवरी
हर क़ाफ़िया बड़े सलीक़े से निभाया गया है
आपकी गज़लें पढ़ कर
लुत्फ़ तो हासिल होता ही है
कुछ सीखने को भी मिल जाता है जनाब !!

'साहिल' said...

वाह! किस शेर पर दाद दें और किस पर नहीं............तमाम शेर दिल को छू गए.
उम्दा ग़ज़ल!

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत खूब ..

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना जी

मुदिता said...

नीरज जी ,
बहुत सहज शब्दों के साथ गहन बातें कहना आपकी गज़लगोई की खासियत ही ... हर शेर बहुत कुछ कहता हुआ.. जीवन के हर पहलू को छुआ आपने .. एक सशक्त गज़ल देने के लिए बहुत बधाई

प्रवीण पाण्डेय said...

सारे के सारे सूत्र उपयोगी।

Shiv said...

खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से

पढने के बाद मुंह से यही निकला कि भैया आप कमाल कर देते हैं. बार-बार लगातार. हमेशा की तरह शब्द कम पद जाते हैं.
अद्भुत!

संजय @ मो सम कौन... said...

"आप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
गर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से"

एक एक शेर जबरदस्त है, ये वाला तो जी कलेजा निकालकर ले गया।

नीरज भा जी, ओही गल्ल है, ".... जवाब नहीं"

बहुत पसंद आए।

अजय कुमार said...

उम्दा शेरो से सजी सुंदर गजल ,आभार

इस्मत ज़ैदी said...

एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्‍तों को हैं जो फायदे नुकसान से
आसान अल्फ़ाज़ में बड़ी बातें कह जाना और पैग़ाम दे देना आप की शायरी की ख़ुसूसियत है ,

बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
वाक़ई हमारे मूल्य कहां खोते जा रहे हैं??

खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से
बिल्कुल सच है !
बहुत सहज और ख़ूबसूरत शायरी

अरुण चन्द्र रॉय said...

आदरणीय नीरज जी... आपके ग़ज़ल का हर शेर जीवन के एक आयाम को छु रहा है.. कविता जिस बात को कहने में पूरा समय लेती है.. आपके एक शेर ही उसे मुक्कमल रूप में कहता है... वैसे तो सारे शेर बढ़िया है.. मुझे यह शेर सबसे पसंद आया...
"एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्‍तों को हैं जो फायदे नुकसान से"... आज के बदलते मूल्य पर सच्ची टिप्पणी है...

Kunwar Kusumesh said...

हर शेर प्यारा.

खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से

मक्ता तो बहुत ही प्यारा है

प्रतुल वशिष्ठ said...

.

चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्‍यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से.
@ इंसान की ही खाल में कोई वहशी हो अगर
प्यार करने का नतीजा पाओगे प्री-प्लान से.

.

प्रतुल वशिष्ठ said...

.

खार के बदले में यारो खार देना सीख लो
गुल दिया करते जो, वो लोग हैं नादान से
@ इक (हर) तरफ इंसान से तुम प्यार की बातें करो
फिर खार बदले खार बाहर आ रहा क्यों म्यान से.

@ कृपया ऐसे करें ... गुल दिया करते हैं जो, वो लोग हैं नादान से. [बेशक 'है' दो बार आ रहा है...लेकिन मुखसुख इसी में है.]

.

नीरज गोस्वामी said...

प्रतुल जी
आप बिलकुल सही हैं...दरअसल इस मिसरे में हैं टाइप होना छूट गया था...गज़ल में ठीक वो ही मिसरा था जैसा आपने बताया है...गलती की और ध्यान दिलाने का तहे दिल से शुक्रिया...
नीरज

नीरज गोस्वामी said...

E-mail received from Ratan- newzealand

Wahhh Ustaad wahh!!

Bahut khub.. maja aa gaya Neeraj uncle..

Kaise ho aap lo .. How is Aunty Ji..

Wish you a very very happy new year.

We missed you all so much when I went to Jaipur this time.
Had great time with everyone and especially Ammi ji..

With love.
Ratan & Deepika

नीरज गोस्वामी said...

E-mail received from Dr.Bhupendra Singh:-


हमेशा की तरह आपके मानकों पर खरी उतरती ,अनुभवों से भारी एक मुकम्मल ग़ज़ल /नीरज भाई ,कुछ तो बहुत है खास तुम्हारी कलम में दम,
सौ बार सोचते है कि क्यों न नीरज हुए हैं हम ?
आभार ,
Dr.Bhoopendra Singh
T.R.S.College,REWA 486001
Madhya Pradesh INDIA

प्रतुल वशिष्ठ said...

.

जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से.
@ मोह के कारण विकसता है नहीं बच्चा कोई
गुड्डे-गुड़िया छोड़ना पड़ता उसे संज्ञान से.

.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अति सुन्दर , लाजबाब रचना !

nilesh mathur said...

वाह! क्या बात है! बेहतरीन रचना, शब्दों का बहुत सुन्दर प्रयोग !

निर्मला कपिला said...

आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
बिलकुल सही बात है शायद पैसे की दौड से परेशान हैं

एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्‍तों को हैं जो फायदे नुकसान से
बदलते समय मे सिकुडते रिश्ते। बाद मेरिश्तों की एहमियत का पता चलता है जब जीवन की आपा धापी से फ्री होते हैं।
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
आज जिस तरह बडों के प्रति सम्मान की भावना तिरोहित हो रही है उस पर सुन्दर शेर। कमाल की लगी गज़ल। बधाई आपको।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

badh ke koi panv chhoota hai buzurgon ke agar
log rah jate hain usko dekhkar hairan se
umda sher.
behtareen gazal.

pragya said...

एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्‍तों को हैं जो फायदे नुकसान से
गहरी बातें कहती एक सरल ग़ज़ल..

DR.ASHOK KUMAR said...

बहुत ही प्यारी और प्रभावशाली गजल है ।
प्रत्येक शेर लाजबाव ।

बहुत बहुत आभार नीरज जी ।


"गजल................है जान से प्यारा ये दर्दे मुहब्बत"

Anupama Tripathi said...

खूबसूरती से सच्ची बात लिखी है -
शुभकामनायें

Pratik Maheshwari said...

बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ हैं.. सारी की सारी..
अच्छा लगा पढ़ के..

आभार

स्वाति said...

चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्‍यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
bahut khoob.......

महेन्‍द्र वर्मा said...

चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से,
प्‍यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से।

इस बेहतरीन मतले से शुरू की गई ग़ज़ल का हर एक शे‘र शानदार है।
पूरी ग़ज़ल बार-बार पढ़ने और याद रखने लायक है।

mridula pradhan said...

जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से

bemisaal.isse zyada kuch nahin soojh raha.

नीरज गोस्वामी said...

E-mail received from Navniit- Ahmedabaad:--

वाह वाह ! मजे आ गए ! सच है एकदम

Navneet Goswamy

डॉ .अनुराग said...

सुर्खियों में है शहर के आतिशबाज़
जानते है खेलना भी बाहर मैदान के

Akhil said...

एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्‍तों को हैं जो फायदे नुकसान से

waah...waah..Neeraj bhai...sambhavtah aaj pahli baar aapko padhne ka saubhagya le paya hun..bahut bahut khoobsurat gazal..khas taur par ye sher...
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्‍तों को हैं जो फायदे नुकसान से
wah..daad kabool karen..!!

दिगम्बर नासवा said...

जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से ...

नीरज जी ... हर शेर कमाल है ... पहला, फिर दूसरा और फिर तो कमाल ही होता गया ...वह वाह अपने आप ही निकल जाता है मुँह से ... जमाने बात कह रहा है हर शेर ...

मेरे भाव said...

ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से
.......

बहुत ही खूबसूरत गजल है. हमेशा आपसे कुछ सीखने को मिलता है . आभार

हरकीरत ' हीर' said...

चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्‍यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से

वाह ....मतला तो सौ पर भारी है ....

आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,

क्या कहूँ ....?
आप तो प्रश्न पूछ और भी मौन कर देते हैं ...

ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से

आसन सवालों में ही अक्सर ज़िन्दगी उलझ जाती है ....
क्या कहें? हैं मौन से खड़े हम यहाँ ,बस
नमन है लेखनी को आपकी हमारा मान से

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से

bahut bahut bahut khoobsoorat..........

वीनस केसरी said...

एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्‍तों को हैं जो फायदे नुकसान से

सच कहा है

हमेशा की तरह उन्दा गज़ल

नीरज मुसाफ़िर said...

koi sani nahi aapka gajal lekhan me.

नीरज गोस्वामी said...

Received from Sh.Sushiil Baklivaal Ji:-

आप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
गर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से

शब्द-शब्द अनमोल

सुशील बाकलीवाल

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय नीरज जी
नमस्कार !
हर शेर कमाल है
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

संजय भास्‍कर said...

बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ........माफी चाहता हूँ..

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

gazab.....gazab.....gazab....gazab niraj ji....sach.....

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से

sahi baat hai! bahot khoob!

Patali-The-Village said...

बेहद प्रभावशाली गज़ल है। आभार|

गौतम राजऋषि said...

मक्ते पे करोड़ों दाद नीरज जी....लाजवाब हो गया मैं पढ़कर!

Rajeev Bharol said...

हमेशा की तरह एक बेहतरीन गज़ल. आप हर गज़ल में कमाल करते हैं. कैसे करते हैं?
मतला और मकता लाजवाब हैं. साथ में ये शेर भी पसंद आये:

"खार के बदले..",
"जब तलक उनको..",
"आजकल हैं लोग ऐसे..",
"एक दिन तनहा..",
"आप बेहतर है कि..",
"बढ़ के कोई पांव..",
"दूंढते ही हल.."

संतोष त्रिवेदी said...

"कोई होता जिसको हम अपना कह लेते यारों..."
आपसे मिलकर कुछ ऐसा ही फीलगुड हो रहा है.साहित्य की सेवा ऐसे ही करते रहें,हमारा क्या है,हम न सही और सही !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय भाई साहब
प्रणाम !


एक और ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई !


चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्‍यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से

क्या बात कही है … सुब्हानल्लाह !

खार के बदले में यारों खार देना सीख लो
गुल दिया करते हैं जो, वो लोग हैं नादान से

बस, यही सीखने की ज़रूरत है मुझ जैसे अनाड़ियों को …
सब कुछ सीखा हमने , न सीखी …

जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से


दुनिया ओ दुनिया ! तेरा जवाब नहीं …
बहुत अच्छे तरीके से कहा है … वाह वाऽऽह !

खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से

सही कहा , पर उपदेश कुशल बहुतेरे …

पूरी ग़ज़ल रवां-दवां है … जैसे कि हमेशा होती है हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Vineet Pandey said...

kamaal hai sahab. bohot khoob. banaaye rakhiye.