आप कहेंगे वहां पंकज जी के ब्लॉग पर तो इसे पढ़ा ही था अब फिर से यहाँ क्यूँ पढ़ें? हम कहेंगे सही कह रहे हैं आप , ये कोई ग़ालिब का कलाम तो है नहीं जिसे बार बार पढ़ा जाए लेकिन अगर आप पूरी ग़ज़ल पढने के मूड में नहीं हैं तो न सही ग़ज़ल का मक्ता ही पढ़ते चलिए क्यूँ के यहाँ ये वो नहीं है जो वहां था, नहीं समझे?.... उस मकते से अलग है...:))
गुलों को चूम के जब से चली हवाएँ हैं
गयीं, जहॉं भी, वहॉं खुशनुमा फि़ज़ाऍं हैं
भुला के ग़म को चलो आज मिल के रक्स करें
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएँ हैं
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है, तो दूर ये बलाएँ हैं
रकीब हों, के हों कातिल, के कोई अपना हो
हमारे दिल में सभी के लिए दुआएँ हैं
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं
चला हजूम सदा साथ झूठ के " नीरज "
लिखी नसीब में सच के सदा खलाएं हैं
हिरास : निराशा
बेकसी : निःसहाय
ख़लाएँ :एकाकीपन
57 comments:
चला हजूम सदा साथ झूठ के " नीरज "
लिखी नसीब में सच के सदा खलाएं हैं
बेहतरीन ग़ज़ल| मकता कमाल का है .......दिल से मुबारकबाद|
तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है, तो दूर ये बलाएँ हैं
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं
नीरज जी क्या शेर निकाले हैं। ये दोनो शेर तो कमाल के हैं । आपकी गज़ल और गुरूदेव जब दोनो साथ होतेहै तो भला इतनी सुन्दर गज़ल क्यों न बने। दिल को छू गयी गज़ल। बधाई।
बहुत खूब गजल कही है।
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
laajwab
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं ।
सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
मैं तो सोचता था - सिर्फ मेरे साथ ही ऐसा होता है. - अब पता चला ज़माने का दस्तूर है :
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
नीरज जी आपको साधुवाद.
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
बेहद खूबसूरत और उम्दा शेर्…………यही आपकी खासियत है कि ज़िन्दगी उतार कर रख देते हैं।
दो शेर तो बहुत पसंद आए ,
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं...
अजब मन है ?
चला हजूम सदा साथ झूठ के " नीरज "
लिखी नसीब में सच के सदा खलाएं हैं
बड़ा बेरहम है जमाना ।
तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है, तो दूर ये बलाएँ हैं
रकीब हों, के हों कातिल, के कोई अपना हो
हमारे दिल में सभी के लिए दुआएँ हैं
नीरज जी हमने तो इनका चुना है। क्योंकि यह फितरत अपनी है।
सुभानाल्लाह, नीरज साहब ...........
"सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
रकीब हों, के हों कातिल, के कोई अपना हो
हमारे दिल में सभी के लिए दुआएँ हैं"
वाह....वाह.........दाद कुबूल फरमाएं..............बहुत खूब |
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या............. कहने का मतलब शायद अब पढ़े-लिखे हैं ही नहीं जो शरीफ और गुनाहगार का अंतर समझ शरीफ को सजा के मुक्कमल तो न समझते....................
घायल ही घायल के दर्द को समझता है.......
बिना ठोकर ज्ञान नहीं मिलाता...................
बेमिसाल प्रस्तुति पर एक बार पुनः बधाई स्वीकार करें
चन्द्र मोहन गुप्त
गज़ब की अभिव्यक्ति, बेहतरीन।
"सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं"
बेहतरीन पंक्तियाँ लगीं..
आभार..
रकीब हों, के हों कातिल, के कोई अपना हो
हमारे दिल में सभी के लिए दुआएँ हैं
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं
वाह वाह
वहां भी...वाह वाह
यहां भी...वाह वाह
और ये ग़ज़ल जहां भी मिलेगी, हर पढ़ने वाला...हर जगह वाह वाह ज़रूर करेगा...
नीरज जी, ये ग़ज़ल इतनी ही बेहतरीन है.
गुलों को चूम के जब से चली हवाएँ हैं
गयीं, जहॉं भी, वहॉं खुशनुमा फि़ज़ाऍं हैं
बेमिसाल .....
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
neetraj jee
pranam !
bahut khoob hai.
shukariya
नीरज साहब, ये क्या कह गये आप कि ’गालिब का कलाम तो है नहीं.........’ ये अन्याय है हमारे साथ।
ऐसी खूबसूरत गज़ल बार बार पढेंगे हम,बेशक आपकी जगह किसी गुमनाम शायर ने भी लिखी होती।
इसका मतलब तारीफ़ रचना की है, रचयिता की तो गुडविल होती है।
एक एक शेर शानदार है, कई बार पढ़ लिया और कई बार और पढ़ेंगे।
आभार स्वीकार करें।
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है, तो दूर ये बलाएँ हैं
बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है...बहुत खूब
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है, तो दूर ये बलाएँ हैं
रकीब हों, के हों कातिल, के कोई अपना हो
हमारे दिल में सभी के लिए दुआएँ हैं
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं
नीरज जी कौन सा शेर छोड़ा जाए और किस की तारीफ़ की जाए ,ख़ूबसूरत और मुकम्मल ग़ज़ल पेश की है आप ने
बहुत ख़ूब!
जैसे अमीन सयानी की बिनाका माला की हर सोमवार (शायद) प्रतीक्षा रहती थी। उसी प्रकार सोमवार का इंतजार रहता है। आपकी लिखी पंक्तियाँ, पुस्तक समीक्षा काफी सुकूनदायक होती हैं। अन्य किसी ब्लॉग पर भी आपका फीडबैक या फोटो दिखाई देता है तो मन प्रसन्न हो जाता है। Thnx Uncle..
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं
कमाल ! कमाल है साहब ! आप हर बार लाजवाब कर जाते हैं !!
चला हजूम सदा साथ झूठ के " नीरज "
लिखी नसीब में सच के सदा खलाएं हैं
बहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.
रामराम.
तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है, तो दूर ये बलाएँ हैं
रकीब हों, के हों कातिल, के कोई अपना हो
हमारे दिल में सभी के लिए दुआएँ हैं
इन शेरों का मुकाबला नही है .... बहुत कमाल लिखते हैं नीरज जी आप .... अच्छे दिलवालों से सभी के लिए दुआ ही निकलती हैं ...
सभी शेर बेमिसाल लगे । बेहतरीन ग़ज़ल ।
सभी एक से बढ कर एक हैं ...बेहद खूबसूरत ..
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
रकीब हों, के हों कातिल, के कोई अपना हो
हमारे दिल में सभी के लिए दुआएँ हैं
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं।
हमारी नजर में तो आप मिर्जा गालिब से कम नहीं। जो पंकज जी के ब्लोग पर दिया था वो भी पेश किया जाए…हम फ़िर पढ़ेगें।
नीरज जी, आप ई कईसे कह दिए कि पंकज जी के यहाँ ई लोग पढ चुका होगा..माफ कीजिएगा हम त आज आपके लिंक से वहाँ पहुँचे... बताइए अगर आप एही सोचकर ई गजल नहीं पोस्ट करते त हमरे जईसा साधारन आदमी त एतना बेहतर गजल से महरूम रह जाता.
आपके गजल के बारे में त हम कहने के काबिल हैं ही नहीं. अऊर जब एतना ओस्ताद लोग जब तारीफ कर दिया त हम कहाँ. बस दिल खुस हो गया. आपके हर रचना से हम लोग जैसा लोग हमेसा सीखता है.
पुनस्चः वहाँ आपका फोटो देखकर त हम अचकचा गए. लगा ही नहीं कि आपका है.
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
..आम जन के भावनाओं की सफल अभिव्यक्ति है इस शेर में।
बेहतरीन तो लिखते ही हो आप .
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
आज यही सच है
बहुत खूब !
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
क्या बात कही नीरज जी..आज के जमाने की सच्चाई कह डाली आपने..बहुत सुंदर पंक्तियाँ...सुंदर शेर के लिए बधाई
यही तो खूबसूरती है आपके दिल से निकलने वाले कलाम की; सभी के वास्ते दुआऍं हैं और नेक सदाऍं है। और भाई आप तो शराफ़त कभी न छोड़ना भले ही:
सबूत लाख करे पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं।
लों को चूम के जब से चली हवाएँ हैं
गयीं, जहॉं भी, वहॉं खुशनुमा फि़ज़ाऍं हैं
भुला के ग़म को चलो आज मिल के रक्स करें
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएँ हैं
wah wah kya kahne...
मैं तो जी बस यूँ ही पास से गुजर रहा था. यहाँ भी नमस्ते कहने चला आया. बस यूं ही. अब कविता भी पढ़ ली. कुछ समझ आयी कुछ नहीं ... बस और कुछ नहीं.... अच्छा अब चलता हूँ.
सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
लाजवाब
गजब..गजब..वाह वाह!!
तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है, तो दूर ये बलाएँ हैं
-हाय!
कोई दोस्त है न रकीब है,
तेरा शहर कितना अजीब है
मैं किसे कहूं मेरे साथ चल,
यहां हर सर पे सलीब है,
कोई दोस्त है न रकीब है,
तेरा शहर कितना...
जय हिंद...
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
रकीब हों, के हों कातिल, के कोई अपना हो
हमारे दिल में सभी के लिए दुआएँ हैं
बहुत उमदा और खुशगवार शेर !
नीरज साहब !
हर जगह हर कोई नहीं पहुंच सकता है। मगर आपके पास तो सब आना चाहेंगे।
आपकी कलम में वो जादू है। जानी पहचानी जगह हो तो और अच्छा।
सारे शेर अद्भुत! ग़ज़ल के क्या कहने.
वाह!
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं ।
बेहद ख़ूबसूरत लिखा है...
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं ..
awesome !
खूबसूरत ग़ज़ल....बधाई.
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
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सारे शेर लाजवाब......
नीरज जी ...बहुत उम्दा और जबरदस्त ग़ज़ल लिखी है .
बार -बार पढ़ा तब जाकर संतोष हुआ . इस बेहतरीन
ग़ज़ल के लिए आपको आभार .
bahut achchi likhi .
रकीब हों, के हों कातिल, के कोई अपना हो
हमारे दिल में सभी के लिए दुआएँ हैं
चला हजूम सदा साथ झूठ के " नीरज "
लिखी नसीब में सच के सदा खलाएं हैं
ग़ज़ल के अश`आर कह रहे हैं
कि ज़हन-ओ-दिल में अंगराईयाँ लेने वाले जज़्बात
नीरज के हुक्म की तामील करते हुए ,
नीरज की लेखनी को सलाम करते हुए
खुद ही किसी कागज़ पर खूबसूरत लफ्ज़ बन कर
उतर आये हैं ... वाह
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
वैसे तो पूरी गज़ल ही बेमिसाल है पर ये वाला शेर दिल को छू गया । हकीकत जो बयां करता है ।
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं !!
कितनी सुंदर बात कही है आपने और कितनी मधुर !
बहुत बहुत बधाई ! आज के समय पर कुछ लिखा है ध्यान चाहूंगी !
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
yahi dastuur hai zamane ka
अच्छी गज़ल है ।
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
bahut umda ghazal hai........
जब गुलों को चूम कर हवायें चलेंगी तो जहां भी जायंेगी खुशनुमा माहौल बनायेगी ।जब सांवली घटायें हो तो वकौल गालिब साहव ’तौवा को तोडने की नीयत न थी मगर, मौसम का अहतराम न करते तो जुर्म था ।सही है जब अकेले हैं तभी तक ये बलायें हैं। ’सवूतलाख पेश करो’ कहा है कि ’खतावार समझेगी दुनिया तुझे तू इतनी जियादा सफाई न दे ।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल ,मज़ा आ गया ।
नमस्कार नीरज जी,
एक बार फिर से इस ग़ज़ल को पढने का लुत्फ़ उठाया,
तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है, तो दूर ये बलाएँ हैं
वाह वाह क्या बात है। अदम जी सचमुच अद्वितीय हैं।
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