Saturday, August 14, 2010

तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी

स्वतंत्रता दिवस की आप सब को हार्दिक शुभ कामनाएं

मुंबई में मेरे एक मित्र हैं सतीश शुक्ल जी जिनसे मैं अभी तक नहीं मिला हूँ लेकिन मित्रता का मिलने से कोई सम्बन्ध नहीं है, ये बात मैंने ब्लॉग जगत में आने के बाद ही जानी है. उनके बारे में विस्तृत जानकारी तो आप नीचे पढ़ ही लेंगे लेकिन आज स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर आईये पढ़ते हैं उनकी देश प्रेम से ओतप्रोत एक ग़ज़ल :-

शहीदे वतन का नहीं कोई सानी
वतन वालों पर उनकी है मेहरबानी

वतन पर निछावर किया अपना सब कुछ
लड़कपन का आलम बुढ़ापा जवानी

किया दिल से हर फैसला ज़िंदगी का
कोई बात समझी, न बूझी, न जानी

लड़े खून की आख़िरी बूँद तक वो
लहू की नदी भी पड़ी है बहानी

कफ़न की कसम, “हो हिफाज़त वतन की”
वसीयत शहीदों की है मुहँजबानी

वतन के लिए जो फ़ना हो गए हैं
तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी

'रक़ीब' उनका क्यों ज़िक्र दो दिन बरस में
वो हैं जाविदां ज़िक्र भी जाविदानी

सतीश जी के बारे में संक्षिप्त परिचय यूँ है, ग़ज़ल पसंद आने पर आप उन्हें सीधे ही बधाई दे सकते हैं:

नाम : सतीश चन्द्र शुक्ला
उपनाम : रक़ीब लखनवी
प्रचलित नाम : सतीश शुक्ला "रक़ीब"
जन्म स्थान : लखनऊ , उत्तर प्रदेश , भारत
जन्म तिथि : अप्रैल 04 , 1961
पिता : श्री कृपाशंकर श्यामबिहारी शुक्ला
माता : श्रीमती लक्ष्मी देवी शुक्ला
भाई - बहन : ऊषा, शोभा, सुनील, सुधीर, आशा, शशि, सुशील एवं मंजू
पत्नी एवं पुत्री : अनुराधा - सागरिका

संपर्क : बी - 204, एक्सेल हाऊस, १३ वां रास्ता, जुहू स्कीम, जुहू, मुंबई - 400049.
: 022 2620 9913 / 2671 9913 / 09892165892
: sckshukla@rediffmail.com / sckshukla@gmail.com
: www.raqeeblucknowi.mumbaipoets.com

शिक्षा : एम. ए. , बी. एड. , डी.सी.पी.एस.ए.(कम्प्युटर)

वर्तमान सम्प्रति : इस्कॉन के जुहू , मुंबई स्थित गेस्ट हाऊस में सहायक प्रबंधक की हैसियत
से कार्यरत

प्रकाशन : "आज़ादी" सहारा इंडिया द्वारा अगस्त १९९२ में लखनऊ (उ. प्र.) से
: "कुछ कुछ" आज का आनंद द्वारा सितम्बर 2001 में पूना (महाराष्ट्र) से
: "मोहब्बत हो अगर पैदा" आज का आनंद द्वारा अक्टूबर 2001 पूना(महाराष्ट्र)से
: "खाक़ में मिल गए" आज का आनंद द्वारा नवम्बर 2001 पूना (महाराष्ट्र) से

पुरस्कार एवं सम्मान : मुंबई की सामजिक एवं साहित्यिक संस्था आशीर्वाद द्वारा विशेष सम्मान मई
2008 में.

43 comments:

मनोज कुमार said...

स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सतीश जी की गज़ल पढवाने के लिए आभार ...बहुत खूबसूरत गज़ल है ...

स्वाधीनता दिवस की बधाई और शुभकामनायें ,

देर आये दुरुस्त आये ...

कल आपका जन्मदिवस था ..उसके लिए बधाई

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

वतन पर निछावर किया अपना सब कुछ
लड़कपन का आलम बुढ़ापा जवानी
वाह...कितने खूबसूरत अंदाज़ में कहा गया शेर

कफ़न की कसम, “हो हिफाज़त वतन की”
वसीयत शहीदों की है मुहँजबानी
हासिले-ग़ज़ल शेर है...
सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

गुरुदेव.. जब आपका चयन है त नायाब होबे करेगा... आप जैसा लोग साहित्त का सागर में गोता लगाते हैं त ऐसने मोती निकलकर सामने आता है.. रक़ीब साहब से मुलाक़ात का शुक्रिया अऊर आज़ादी का बधाई!!

राज भाटिय़ा said...

स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।

شہروز said...

शहीदे वतन का नहीं कोई सानी
वतन वालों पर उनकी है मेहरबानी

वतन पर निछावर किया अपना सब कुछ
लड़कपन का आलम बुढ़ापा जवानी

किया दिल से हर फैसला ज़िंदगी का
कोई बात समझी, न बूझी, न जानी

लड़े खून की आख़िरी बूँद तक वो
लहू की नदी भी पड़ी है बहानी

कफ़न की कसम, “हो हिफाज़त वतन की”
वसीयत शहीदों की है मुहँजबानी

वतन के लिए जो फ़ना हो गए हैं
तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी

'रक़ीब' उनका क्यों ज़िक्र दो दिन बरस में
वो हैं जाविदां ज़िक्र भी जाविदानी

किस शेर का हवाला दिया जाय.यहाँ तो सब एक से एक हैं यानी बीस!!

बहुत खूब !

अंग्रेजों से प्राप्त मुक्ति-पर्व
..मुबारक हो!

समय हो तो एक नज़र यहाँ भी:

आज शहीदों ने तुमको अहले वतन ललकारा : अज़ीमउल्लाह ख़ान जिन्होंने पहला झंडा गीत लिखा http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_14.html

Rahul Rathore said...

बढ़िया लेख
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है....(जय भारत.)
प्रथम स्वतंत्रता दिवस से जुडी कुछ दुर्लभतम तस्वीरें तथा विडियो

Udan Tashtari said...

आभार पढ़वाने का.


स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

सादर

समीर लाल

इस्मत ज़ैदी said...

देश भक्ति से ओत प्रोत ग़ज़ल


वतन पर निछावर किया अपना सब कुछ
लड़कपन का आलम बुढ़ापा जवानी
क्या बात है ,एक मासूमियत है इस शेर में

वतन के लिए जो फ़ना हो गए हैं
तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी
वाह वाह!


रक़ीब' उनका क्यों ज़िक्र दो दिन बरस में
वो हैं जाविदां ज़िक्र भी जाविदानी

सच है एक देश भक्त के दिल का दर्द बयान हो रहा है इस शेर में ,हम सिर्फ़ १५ अगस्त और
२६ जनवरी को वीरों को याद करते हैं और देश भक्ति गीत गाते हैं बस हमारे कर्तव्यों की इतिश्री हो जाती है

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति ..

स्वंत्रता दिवस की बधाइयां और शुभकामनाएं

Manish aka Manu Majaal said...

'मजाल' शहीद भी सर पीट लेते,
"वही की वही रही परेशानी!"

योगेन्द्र मौदगिल said...

behtreen prastuti......sadhuwad..

तिलक राज कपूर said...

सतीश जी बहुत अच्‍छी ग़ज़ल कही आपने और अब तो हालात कुछ ऐसे हो गये हैं कि शहीदों का जिक्र दो दिन तो कर लिया जाता है उनका जज्‍़बा तो दो पल भी कहीं नहीं दिखता। वन्‍दे मातरम् वन डे मातरम् हो गया है।

निर्मला कपिला said...

लाजवाब गज़ल पढवाने के लिये धन्यवाद
लड़े खून की आख़िरी बूँद तक वो
लहू की नदी भी पड़ी है बहानी

कफ़न की कसम, “हो हिफाज़त वतन की”
वसीयत शहीदों की है मुहँजबानी
वाह बहुत अच्छे लगे ये शेर। रकीब जी को बधाई। आप सब को स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें

Chinmayee said...

जय हिंद
http://rimjhim2010.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html

डॉ टी एस दराल said...

सही सामयिक प्रस्तुति ।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ।

ताऊ रामपुरिया said...

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.

रामराम.

shikha varshney said...

स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं

हरकीरत ' हीर' said...

वतन के लिए जो फ़ना हो गए हैं
तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी

Tirange ki shaan yun hi bani rahe .....

Stish ji ki bahut achhi gazal dali aapne is pavan avsar par ......!!

शारदा अरोरा said...

बढ़िया ग़ज़ल पढवाने के लिये धन्यवाद। स्वतंत्रता दिवस की बधाई हो ।

स्वप्न मञ्जूषा said...

स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी ही सुन्दर गज़ल सतीश जी की।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

क्या उम्दा गज़ल पढ़ाई आपने..आभार.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
--
मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
--
वन्दे मातरम्!

sanu shukla said...

लाजबाब बहुत सुन्दर...!!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!


http://iisanuii.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html

Mansoor ali Hashmi said...

'शहीदे वतन का नहीं कोई सानी'
देश भक्ति पूर्ण रचना के लिए शुक्लाजी को सलाम!, नीरजजी का शुक्रिया.

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाईयाँ!!!

'बहा खूँ शहीदों का पानी की मानिंद,
हुआ खून क्यूँ अपना अब पानी-पानी???

--
mansoorali hashmi

Urmi said...

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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !

Shiv said...

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही सतीश जी ने.
बहुत सुन्दर!!
बबली जी की टिप्पणी ने मन मोह लिया.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

सतीश शुक्ल जी से परिचय करवाया आपने बहुत शुक्रिया आपका.
वतन को समर्पित यह ग़ज़ल बेहतरीन है.

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

SATYA said...

बेहद सुन्दर रचना,
शुभकामना..!!

गौतम राजऋषि said...

अच्छी ग़ज़ल है। सतीश जी को बधाई...खास तौर पर ये मिस्रा खूब भाया "वसीयत शहीदों की है मुहँजबानी "...

Manish Kumar said...

behtareen.....

VIJAY KUMAR VERMA said...

बढ़िया लेख
अच्छी ग़ज़ल पढवाने के लिये धन्यवाद।

विनोद कुमार पांडेय said...

नीरज जी, प्रस्तुत रचना बहुत बढ़िया है..आज़ादी के दीवानों को बयान करती देशभक्ति से ओतप्रोत रचना के लिए बधाई..साथ ही साथ सतीश जी जैसे साहित्यिक प्रतिभा से मिल कर बहुत अच्छा लगा..प्रस्तुति के लिए आभार

पूनम श्रीवास्तव said...

aadarniy sir bahut hi man bhai ye gazal iske liye aapko avam satish ji ko hardik abhinandan.

कफ़न की कसम, “हो हिफाज़त वतन की”
वसीयत शहीदों की है मुहँजबानी

वतन के लिए जो फ़ना हो गए हैं
तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी

'रक़ीब' उनका क्यों ज़िक्र दो दिन बरस में
वो हैं जाविदां ज़िक्र भी जाविदानी
ye panktiyan dil ko chhoo gai.
poonam

सर्वत एम० said...

आज़ादी की ६३ वीं सालगिरह मुबारक. देर सही दुरुस्त तो है.
सतीश जी की देशभक्ति से ओत-प्रोत गजल पढ़वाने के शुक्रगुज़ार हूँ. ऐसे बहुत से अजीम शायर अब भी मुल्क में हैं जिनका कलाम लोगों में ज़िन्दगी की आग भर दे लेकिन हर किसी 'नीरज गोस्वामी' नसीब कहाँ.
एक बात पूछना चाहता था- ये नीरज गोस्वामी का कलाम किस ब्लॉग पर पोस्ट होता है?

rashmi ravija said...

वतन के लिए जो फ़ना हो गए हैं
तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी
बहुत ही शानदार ग़ज़ल है..सतीश जी की रचना से परिचय करवाने का बहुत बहुत शुक्रिया

डॉ० डंडा लखनवी said...

आपने
बहुत उम्दा पोस्ट लगाई है।
देशभक्ति की बात सलीके से उठाई है।
स्वतंत्रता दिवस की
हार्दिक बधाई है ॥
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

SATISH said...

नीरज साहब,

समझ नहीं आ रहा था, किन शब्दों से शुक्रिया अदा करूँ आपका. यही सोचते सोचते तीन दिन बीत गए. नज़्म इतनी अच्छी हो जाएगी, मैंने नहीं सोचा था. अपने ब्लॉग में सही समय पर, खूबसूरत अंदाज़ में पेश करके चार चाँद लगा दिए हैं, आपके इस प्यार और स्नेह के लिए मैं सदैव आभारी रहूँगा.

कफ़न की कसम, “हो हिफाज़त वतन की”
वसीयत शहीदों की है मुहँजबानी

इस भाग-दौड़ की ज़िन्दगी में, कुछ पल के लिए सब भूल कर स्वतंत्रता आन्दोलन की सौ से भी अधिक वर्षों की खयाली यात्रा के दौरान, कुछ पड़ाव, जिनमें न चाहते हुए भी रुक जाना पड़ा, और एक-एक फूल जुड़कर यह गुलदस्ता बन गया.

वतन के लिए जो फ़ना हो गए हैं
तिरंगा उन्हीं की सुनाता कहानी

तमाम साहित्य प्रेमियों, जिन्होंने अपनी भावनाओं के पुष्प प्रतिक्रिया स्वरुप अर्पित / व्यक्त किए हैं, शहीदों को नश्वर और उनकी यादों को हमेशा तरो-ताज़ा रखेंगी. मैं तहे दिल से सभी का शुक्रिया अदा करता हूँ. जनमानस में देशप्रेम की भावना और शहीदों के लिए सम्मान बना रहे, यही कामना है.

'रक़ीब' उनका क्यों ज़िक्र दो दिन बरस में
वो हैं जाविदां ज़िक्र भी जाविदानी

पिछले तीन-चार दिनों में सैकड़ों लोगों द्वारा ये नज़्म पढ़ी गयी, हज़ारों लोगों को e-mail द्वारा भेजी गयी. इस ब्लॉग के साथ-साथ www.shers.in में भी पोस्ट किया गया था इसे.

जय हिंद !

सतीश शुक्ला "रकीब"

Prem Farukhabadi said...

अच्छी ग़ज़ल पढवाने के लिये धन्यवाद!!!!!!!

Rajeev Bharol said...

सतीश जी की ग़ज़ल बहुत भाई. सतीश जी तो बहुत बहुत बधाई. देश भक्ति से ओत प्रोत ग़ज़ल.

Asha Joglekar said...

वहुत सही गज़ल, सही समय पर ।