हम आपको शायरी की किताब के बारे में बताने आये हैं न के पहेलियों में उलझाने के लिए, इसलिए आप का अधिक वक्त न लेते हुए बता देते हैं के आज जिस शायरा का जिक्र हम कर रहे हैं उनका नाम है " शाहिदा हसन" जिनका वतन पाकिस्तान है लेकिन जिनकी शायरी दुनिया भर में हर शायरी के दीवाने के दिल में बसी हुई है. इनकी कज़िन परवीन शाकिर थीं जो इनसे सिर्फ दो या तीन साल ही बड़ी थीं. दोनों ने एक की कालेज में तालीम हासिल की और दोनों ने ही अंग्रेजी भाषा में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. आज हम शाहीदा जी किताब " शाम की बारिशें" का जिक्र करेंगे.
शाहिदा जी परवीन जी की बहन जरूर हैं लेकिन दोनों की शायरी में बहुत फर्क है दोनों की शायरी के रंग और खुशबू जुदा हैं. हमारा इरादा इन दोनों की शायरी के भेद को खंगालना नहीं है बल्कि सिर्फ और सिर्फ शाहिदा जी और उनकी इस किताब के बारे में बात करना ही है.
दिल इतना बोझिल होता है
बैठे - बैठे ढह जाती हूँ
चढ़ती हैं जब शाम की लहरें
रेत की सूरत बह जाती हूँ
तेरे आंसू कैसे झेलूं !
अपने दुःख तो सह जाती हूँ
ख़ुशी के अश्क हो जाने का डर है
ख़ुशी में ग़म समो जाने का डर है
हुई है याद के सहरा में बारिश
दिलों में रंज बो जाने का डर है
इसी मिटटी में खिलना चाहती हूँ
इसी मिटटी में सो जाने का डर है
किसी को खो के मिलना देखती क्या
किसी के मिलके खो जाने का डर है
किसी घर से मुझको उठाया गया
किसी घर में लाकर बिठा दी गयी
जहाँ जी में आया है रक्खा मुझे
जहाँ से भी चाहा हटा दी गयी
बहलने की ख़्वाहिश अगर दिल ने की
मैं झूले में रख कर झुला दी गयी
इसी अलग से अंदाज़ की उनकी एक और बेजोड़ ग़ज़ल के चंद शेर देखें और महसूस करें के शाहिदा जी किस ख़ूबसूरती और सादगी से अपनी बात हम आप तक बेरोकटोक पहुंचाती हैं. कहन का ये हुनर ही अच्छे और बहुत अच्छे फनकार में फर्क महसूस करवा देता है.
सलामत रहे दिल तो जिंदा रहूँ
बदन सिर्फ जिंदा नहीं चाहिए
जिन्हें दूर तक साथ देना न हो
उन्हें साथ चलना नहीं चाहिए
बहुत टूट कर याद आते हैं लोग
कभी खुद से मिलना नहीं चाहिए
मेरे पहलू में खोला
तेरी यादों ने बिस्तर
दुःख की तितली बैठी है
रातों की फुलवारी पर
नींद की ख्वाइश से पहले
पलकें हो जाती हैं तर
कितने अच्छे लगते हैं
दिल को मीठे-मीठे डर
लिक्खे इक-इक सांस तुझे
महका जाए सारा घर
अपनी लाजवाब शायरी की बदौलत शाहिदा जी ने बहुत से राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार एवं सम्मान जीते हैं जिनमें नयी दिल्ली में दिया गया फनी बदायुनी अवार्ड और निशाने एजाज़ अवार्ड जो उन्हें कोलंबस अमेरिका में दिया गया प्रमुख हैं. शाहिदा जी को ह्यूस्टन टेक्सास के मेयर द्वारा वहां की मानद नागरिकता भी प्रदान की गयी है.
अपनी शायरी का परचम उन्होंने डेनमार्क , नोर्वे, अमेरिका, कनाडा, चीन, मिडल ईस्ट, सिंगापूर, इरान, भारत और नेपाल आदि देशों में सफलता पूर्वक फहराया है.
अक्सर मिटटी में ये सारा घर अट जाता है
यादों की आंधी का क्या है जब भी आती है
इतने पत्ते झड़ते हैं रस्ता पट जाता है
अपने दादा पर ही गया है मेरा बेटा भी
पहले सच कहता है फिर उस पर डट जाता है
आयी हूँ किसलिए मैं यहाँ ये नहीं सवाल
जाना है किस तरफ़ को मुझे ये सवाल है
पहले तुझे नसीब थी अब खुद को हूँ नसीब
मेरा हुनर था वो, तो ये तेरा कमाल है
ये तो आप भी मानेगे के इस किताब में दिए लगभग छै- सात सौ शेरों में महज़ 18-20 शेर छांटना कितना मुश्किल काम है , इस के चलते कुछ बेहतरीन शेर ना चाहते हुए भी छूट जाते हैं,क्या करूँ ? ये मेरी मजबूरी है लेकिन शायद इसका एक फायदा भी है वो ये के हो सकता है मेरे यहाँ दिए शेरों से अतृप्त हुआ कोई प्यासा अपनी प्यास बुझाने और तृप्त होने के लिए इस किताब को खरीदने की योजना बना ले और खरीद भी ले. ये ही तो इस श्रृंखला उद्धेश्य है.
तो अब आखिर में चलते चलते एक अलग से काफिये रदीफ़ वाली ग़ज़ल के चंद शेर पढवाता हूँ उम्मीद हैं पसंद आयेंगे.
जो कुछ पहचानना मुमकिन नहीं हो
भला क्या फायदा देखें न देखें
जो सारे झूट ही सच लग रहे हैं
पड़ेगा फर्क क्या, बोलें न बोलें
यहाँ हैं एक से अहवाल* सबके (*अहवाल = समाचार)
किसी का हाल अब पूछें न पूछें
43 comments:
हमें इन शेरों और इतने अच्छे रचनाकारों की रचना पढ़ने का मौका देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
उजला-उजला रखती हूँ हर चीज़ को मैं फिर भी
अक्सर मिटटी में ये सारा घर अट जाता है
यादों की आंधी का क्या है जब भी आती है
इतने पत्ते झड़ते हैं रस्ता पट जाता है
kya baat hai .. bahut hi khoobsurat sher hai sabhi...
aapka bahut dhanywad...
कहाँ से ,ओटी ढूंढ लेट हैं आप...नायाब शेर हैं .
बहुत खूबसूरती से गाया है गीत..वाह
एक बार फिर सुन्दर तोहफा हमेशा की तरह। और पुस्तक समीक्षा मे आपकी महारत तो काबिले तारीफ है ही। धन्यवाद और शुभकामनायें
सरहद पार की बेहतरीन शायरा के नायाब कलाम से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया नीरज जी.
तेरे आंसू कैसे झेलूं !
अपने दुःख तो सह जाती हूँ
एक से एक बेहतरीन रचनाएं...बहुत बहुत शुक्रिया...इन शायरा की किताब से परिचित कराने का.
अनमोल से अनमोल चीज़ें आप ढून्ढ लाते हैं.बहुत श्रम कर रहे हैं.इतना समय दे पाते हैं, आप पर तो अलग से ही एक पोस्ट लिखने का मन हो रहा है.
समय हो तो इस कविता नुमा अंश को पढ़ें ..
बाज़ार, रिश्ते और हम http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2010/07/blog-post_10.html
शहरोज़
वाह!! शाहिदा जी की पुस्तक से शेरों की खुशबू का अहसास इन चन्द शेरों से ही हो गया:
पहले तुझे नसीब थी अब खुद को हूँ नसीब
मेरा हुनर था वो, तो ये तेरा कमाल है
और फिर उनको सुनना भी बहुत अच्छा लगा. ध्यान रहेगा, कभी किताब दिखी तो जरुर खरीदी जायेगी.
आपका इस आलेख माला से भारत पहुँच कर किताबें खरीदना सरल हो जायेगा, यह तय है अन्यथा तो तलाशते ही समय बीत जाता है कि कौन सी खरीदी जाये.
आपका आभार.
नारी पक्ष का सुन्दर वर्णन देखने को मिला शाहिदा जी कि शायरी में ।
अच्छी पेशकश ।
Is duniya me doobo to ubarna mushkil hota hai!
परवीन शाकिर का तो मै दीवाना हूँ....कसम से कैसे इतनी आसानी से कह देती थी वो दिल की बात .....वक़्त ने उन्हें अपना हिस्सा कम दिया.....उनकी बहन भी अच्छा लिखती मालूम होती है .पहले पढ़ा नहीं था ......ये शेर बहुत अच्छा लगा
मेरे पहलू में खोला
तेरी यादों ने बिस्तर
and this one too......
अपने दादा पर ही गया है मेरा बेटा भी
पहले सच कहता है फिर उस पर डट जाता है
बहुत लाजवाब.
रामराम.
सलीका इश्क में मेरा बड़े कमाल का था...
ये एक चिराग भी घर में अजब मिसाल का था...
बहुत खुब..
LAJAWAAB SHERON PAR LAJAWAAB
VYAKHYA.BADHAAEE.
वाह नीरज जी आज फिर एक हीरे से परिचित कराया .. आभार !
बहुत बढिया.
जाने नवरात्रे के बारे मे
ruma-power.blogspot.com पर
नीरज जी,
स्वयम् नहीं जाता औरों को पहुँचा देता मधुशाला के उलट आप त सब के बदले खुद मधुशाला हो आते हैं अऊर सबको नसा में सराबोर कर देते हैं... साहिदा जी का हर सेर लाजवाब है अऊर आपके बर्नन को सुनकर त उसमेंचार चाँद लग जाता है... एगो संका का समाधान करेंगे...
इसी मिटटी में खिलना चाहती हूँ
इसी मिटटी में सो जाने का डर है
उपर वाला सेर में इसी मिट्टी में सो जाने का हकीकत से डरने का बात से सायरा का का मतलब है... अगर गैरवाजिब सवाल नहीं हो त समाधान करने का अनुरोध है!!! एक बार फिर धन्यवाद!
शाहिदा जी से परिचय कराने का बहुत शुक्रिया....समीक्षा बहुत अच्छी लगी...बहुत सुन्दर चयन
ये समीक्षा भी समीक्षा की माला में एक और मोती है... सच कहूं तो जाने क्यूँ मुझे शाहिदा जी की शायरी मरहूम शायरा परवीन जी से कुछ बेहतर लगती है.. शायद ये मेरा अपना ख्याल है अपनी सोच है.. आभार सर..
सुन्दर! बहुत अच्छा परिचय कराया आपने। शुक्रिया।
तेरे आंसू कैसे झेलूं !
अपने दुःख तो सह जाती हूँ
जिस इंसान को अल्लाह ने ये जज़्बा दिया हो कि वो दूसरों के आंसू नहीं झेल सकता सही माने में वो इंसान कहलाने का मुस्तहक़ है
किसी घर से मुझको उठाया गया
किसी घर में लाकर बिठा दी गयी
जहाँ जी में आया है रक्खा मुझे
जहाँ से भी चाहा हटा दी गयी
बहलने की ख़्वाहिश अगर दिल ने की
मैं झूले में रख कर झुला दी गयी
वाक़ई कभी कभी नारी की यही दशा होती है ,जब उस के अरमानों की कोई क़ीमत नहीं होती
धन्यवाद नीरज जी ,एक नई शायरा से मुलाक़ात करवाने के लिए
स्वर्गीय मीना कुमारी की तरह शाहिदा हसन की शाइरी, दर्द और निराशा की शाइरी है। मैं नहीं जानता औरों के साथ क्या होता है लेकिन मेरा अनुभव रहा है कि शाइरी में दर्द की सटीक अभिव्यक्ति कठिन होती है जिसका कारण यह है कि जब इंसान दर्द में डूबता है तो शब्द नहीं मिलते और शब्दों से दर्द तक पहुँचना चाहे तो रास्ता नहीं मिलता दर्द की गहराईयों का। दूसरी ओर उल्लास में शब्द हवाओं में तिरते आते हैं, स्वर लहरियॉं साथ देती हैं और बात कब पूरी हो जाती है पता ही नहीं लगता।
दर्द में भी खुद का दर्द जीना तो शायद फिर भी आसान होता होगा लेकिन जग के दर्द को जिये बिना उसके एहसास तक पहुँचना तो और भी कठिन काम हुआ।
इस तरह की अभिव्यक्ति कब निकलती होगी? यही सोच रहा हूँ. बहुत बढ़िया किताब से परिचय हुआ. गजब की नुकीली पोएट्री है. धंस जाती है.
कितने अच्छे लगते हैं
दिल को मीठे-मीठे डर
bahut achhe lage ye ehsaas
"बैठे - बैठे ढह जाती हूँ" बस इस एक मिस्रे को पढ़कर किताब खरीदने का मंसूबा बना लिया है।
कहाँ-कहाँ से लाते हैं आप भी नीरज जी ये मोती खंगाल कर कि उफ़्फ़्फ़्फ़...
दिल इतना बोझिल होता है
बैठे - बैठे ढह जाती हूँ
चढ़ती हैं जब शाम की लहरें
रेत की सूरत बह जाती हूँ
नीरज जी , शाहिदा हसन के विषय में इतनी तफसील से जानकारी देने का शुक्रिया......उनका ये दीवान खुश-किस्मती से मैंने पढ़ रखा है.
पाकिस्तान की इस लोकप्रिय शायरा के कलाम को हम सब तक पहुँचाने का दिल से शुक्रिया.
उनका वो शेर तो आपको याद है न....
सबब क्या है कभी समझी नहीं मैं,
की टूटी तो बहुत बिखरी नहीं मैं.
और यह एक ग़ज़ल
आँख क्या हादिसे दिखाती है
नींद से रात रूठ जाती है
गर्द-ए-आईना-ए विसाल हूँ मैं,
तेरी तस्वीर मुस्कुराती है
दरमियान-ए-हुजूम-ए-शाम वो याद,
दर-ए-तन्हाई खटखटाती है...
आभार.....!
भाई आप ने तो आदत बना ली है इतनी शानदार पोस्ट्स लिखने की ..... ये श्रृंखला बस कमाल है .... A Collector's Delight.
नीरज जी किताबों की दुनिया और आप क बधाई देना चाहूँगा इतनी बढ़िया ग़ज़ल और महान शायर-शायरा से रूबरू करवाने की एक बढ़िया पहल...आज शाहिदा जी की ग़ज़ल तो बहुत ही बढ़िया लगी..धन्यवाद नीरज जी
नमस्कार नीरज जी,
आपके नायाब ज़खीरे से ये एक और नगीना ..........वाह वाह
शाहिदा हसन जी के शेर ख़ुद ही बोल रहे हैं, उनके बारे में कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है,
तेरे आंसू कैसे झेलूं !
अपने दुःख तो सह जाती हूँ
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जिन्हें दूर तक साथ देना न हो
उन्हें साथ चलना नहीं चाहिए
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जो सारे झूट ही सच लग रहे हैं
पड़ेगा फर्क क्या, बोलें न बोलें
आपने बहुत मुश्किल काम को बहुत ख़ूबी से अंजाम दिया है - मुबारक़!
शाहिदा जी के इतने कम अश'आर चुनना और वो भी इतने माकूल जो उनकी शायरी के पूरे मिज़ाज को दिखा सकें - बहुत दुश्वार था।
अब लग रहा है कि उनकी शायरी बहुत आसान चीज़ है।
हक़ीक़तन ऐसा है नहीं। उर्दू पर अच्छी पकड़ माँगती है उनकी शायरी, परवीन और फ़राज़ की ही तरह। परवीन जहाँ बेवफ़ाई से दो-चार होने और उसके बावज़ूद ख़ुद को न टूटने देने, बोल्डनेस की मर्दानी हद तक पहुँचने और निसाई मिज़ाज क़ायम रख पाने वाली शायरा हैं, वहीं शाहिदा आम लड़की-औरत के सुख-दु:ख-जज़्बात समेटे शायरी का घरेलू गुलदस्ता हैं।
सारा शगुफ़्ता भी कमाल थीं - पाकिस्तानी शायराओं में। इन पर पता नहीं आपने लिखा है या नहीं - और हुमेरा रहमान पर?
देखिए - ये बच्चों जैसा लालच है - ख़ुद पढ़ा है मैंने -अपनी राय भी क़ायम की है, मगर आपका लिखा पढ़ने की लत सी पड़ रही है -और इसका कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं है। सो आपसे दर्ख़्वास्त करता जाता हूँ।
:)
धन्यवाद नीरज दा.
आज आपकी कृपा से एक बेहतरीन शाइरा से मुलाकात हुई.
आयी हूँ किसलिए मैं यहाँ ये नहीं सवाल
जाना है किस तरफ़ को मुझे ये सवाल है
पहले तुझे नसीब थी अब खुद को हूँ नसीब
मेरा हुनर था वो, तो ये तेरा कमाल है
अद्भुत हैं
bahot sunder.taareef ke liye shbd hi nahin hain.
बहुत बढ़िया है...
सलामत रहे दिल तो जिंदा रहूँ
बदन सिर्फ जिंदा नहीं चाहिए ।
आपने बहुत ही खूबसूरती से किताबों की दुनिया से चुनकर यहां प्रस्तुत किया जिसके लिये आपका आभार ।
कितनी मेहनत करते हैं आप हर पोस्ट पर ....पुस्तक के साथ साथ विडिओ उपलब्ध करानी और इतनी विस्तृत जानकारी ........सच इस तेज गर्मी में बारिश का काम किया आपकी पोस्ट ने .......कुछ अशआर जो काफी नजदीक लगे ........
तेरे आंसू कैसे झेलूं !
अपने दुःख तो सह जाती हूँ
किसी घर से मुझको उठाया गया
किसी घर में लाकर बिठा दी गयी
जहाँ जी में आया है रक्खा मुझे
जहाँ से भी चाहा हटा दी गयी
दुःख की तितली बैठी है
रातों की फुलवारी पर
जो सारे झूट ही सच लग रहे हैं
पड़ेगा फर्क क्या, बोलें न बोलें
आवाज़ भी सुनी ......बड़ी पुरजोर आवाज़ है ......ठहर ठहर कर बोलती हैं ......
सलीका इसक में मेरा बड़े कमाल का था
ये चराग भी घर में बड़े कमाल का था
शाम की ये बारिशें, तनमन भिगो गयी हैं।
................
नाग बाबा का कारनामा।
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?
मैने तो इन तीन शेरों का दिल में समा लिया..
सलामत रहे दिल तो जिंदा रहूँ
बदन सिर्फ जिंदा नहीं चाहिए
जिन्हें दूर तक साथ देना न हो
उन्हें साथ चलना नहीं चाहिए
बहुत टूट कर याद आते हैं लोग
कभी खुद से मिलना नहीं चाहिए
..दिल ने आपको ढेर सारी दुआ दी है।
मुहब्बतों में मैं कायल थी लब न खुलने कि..
जवाब वरना मेरे पास हर सवाल का था....
क्या बात है...
वोही तो गिर गया, आँखों से बन के कतरा-ऐ-अश्क
मेरी ख़ुशी से जो रिश्ता, तेरे मलाल का था..
बहुत आभार आपका..नीरज साहब..
हर बार नई किताब से या शायर से रूबरू होने का इन्तिज़ार रहता है , हर बार की तरह इस बार भी मायूस नहीं हुए , मैं जरा टूर पर निकली हुई थी , इसीलिए देर से पहुँची । शायरा की कहन , आपकी कहन बहुत पसंद आई । धन्यवाद ।
रक्षा बंधन की शुभ kamna. Sagrika is looking very cute.कविता बहुत achchi हैं.
बहुत दिनों से तमन्ना थी खुद को पाने की
शुक्रिया आपने मुझको मेरा पता बता दिया
बहत ही शुन्दर शायरी है
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
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