Monday, June 21, 2010

थम सा गया है वक्त





होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्‍यार में

चल तो रहा है फिर भी मुझे ये गुमाँ हुआ
थम सा गया है वक्त तेरे इन्तजार में


जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ
कुछ राग छिड़ गये मेरे मन के सितार में


किस्मत कभी तो पलटेंगे नेता गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में


दुश्वारियां हयात की सब भूल भाल कर
मुमकिन नहीं है डूबना तेरे खुमार में

ये तितलियों के रक्स ये महकी हुई हवा
लगता है तुम भी साथ हो अबके बहार में

वो जानते हैं खेल में होता है लुत्फ़ क्या
जिनको न कोई फर्क हुआ जीत हार में


अपनी तरफ से भी सदा पड़ताल कीजिये
यूँ ही यकीं करें न किसी इश्तिहार में


'नीरज' किसी के वास्ते खुद को निसार कर
खोया हुआ है किसलिये तू इफ्तिखार में

इफ्तिखार= मान, कीर्ति, विशिष्ठता, ख्याति


( अज़ीज़ दोस्त और छोटे भाई तिलक राज जी को शुक्रिया कहे बगैर ये ग़ज़ल मुकम्मल नहीं होगी )

57 comments:

रंजन (Ranjan) said...

चल तो रहा है फिर भी मुझे ये गुमाँ हुआ
थम सा गया है वक्त तेरे इन्तजार में


बहुत खूब...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय नीरज भाईसाहब
प्रणाम !

मछली बज़ार में इत्र की तलाश !
क्या अछूता बिंब लाए हैं !

मेरी आज की पोस्ट देखेंगे तो मौसम बदला हुआ मिलेगा , कल तक इसी रंग में डूबा था मैं भी …
जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ
कुछ राग छिड़ गये मेरे मन के सितार में


सारे शे'र एक से बढ़कर एक हैं

बहुत बहुत बधाई !

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Apanatva said...

har sher ek se bad kar ek hai.
Aabhar

vandana gupta said...

दुश्वारियां इस ज़िन्दगी की भूल भाल कर
मुमकिन नहीं है डूबना तेरे खुमार में

क्या बात कही है………………सच से कैसे भागा जा सकता है वो कहते है ना इश्क़ के लिये भी वक्त चाहिये वक्त बे वक्त इश्क़ नही फ़रमाया जा सकता और किसी की याद मे डूबने वाले ज़माने तो ना जाने कहाँ खो गये।

एक बार फिर एक बेहतरीन गज़ल्……………आभार्।
ये लिंक भी देखियेगा।
http://vandana-zindagi.blogspot.com

स्वाति said...

चल तो रहा है फिर भी मुझे ये गुमाँ हुआ
थम सा गया है वक्त तेरे इन्तजार में
बहुत खूब...
बेहतरीन गज़ल है ...

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इतनी शानदार गजल पढ कर जो खुशी मिली, उसे बयाँ नहीं किया जा सकता।

दिगम्बर नासवा said...

दुश्वारियां इस ज़िन्दगी की भूल भाल कर
मुमकिन नहीं है डूबना तेरे खुमार में

बहुत समय बाद आइकी कलाम का जादू देखा है ... मज़ा आ गया ... हर शेर नायाब है ...

Shiv said...

बहुत शानदार ग़ज़ल.

निर्मला कपिला said...

बहुत दिन बाद आपकी गज़ल पढी है। लाजवाब तिलक जी और आपको बधाई

डॉ टी एस दराल said...

होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्‍यार में

क्या खूब तुलना की है ।
बढ़िया ग़ज़ल ।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

ये रहनुमा किस्मत बदल देंगे गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में
वाह!!

दुश्वारियां इस ज़िन्दगी की भूल भाल कर
मुमकिन नहीं है डूबना तेरे खुमार में
क्या बात है!!

वो जानते हैं खेल में होता है लुत्फ़ क्या
जिनको न कोई फर्क हुआ जीत हार में
अतिसुन्दर. सभी शे’र बहुत शानदार, लेकिन ये तीन तो कमाल के हैं.

रश्मि प्रभा... said...

ये रहनुमा किस्मत बदल देंगे गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में
bahut hi badhiyaa

शारदा अरोरा said...

आम आदमी की जुबान बोलती हुई लाजवाब ग़ज़ल ...
आप दोनों ही बधाई के पात्र हैं ।
नीरज जी , आपने झांसी के मशहूर शायर इन्द्रमोहन मेहता "कैफ "जी के बारे में जरुर सुना होगा ...इनकी दो पुस्तकें ' खिड़की भर आकाश ' और ' आसमान खाली है ' ...मुझे इनकी ही बहू ने भेजी हैं , जो मेरी मौसेरी बहन हैं । सच बताऊँ तो मुझे किसी शायर के रिश्तेदार होने से ही बड़ी गरिमा महसूस हो रही है । मैं चाहूंगी कि आप अपनी पुस्तकों की कड़ी में इनकी पुस्तकें शामिल करिए ..इनके कुछ मशहूर मोती पेश करती हूँ ...हिंदुस्तान पाकिस्तान के बँटवारे के दर्द को बयान करता ये शेर ..." मैं मोतियों की लड़ी था जब अपने शहर में था , तुम्हारे शहर में आकर बिखर गया हूँ मैं "
" अजीब पेड़ है बैठा हूँ जिसकी छाँव तले, "
कि दिल तो धूप में जलने लगे बदन न जले "
वफ़ा की पाबन्दी देखिये
" मिटती कदरों में भी पाबंदे वफ़ा हैं हम लोग
किसी चलते हुए जोगी की सदा हैं हम लोग "
आह इस शेर में किस कदर अँधेरा है
"कोई आंसू नहीं जुगनू नहीं तारा भी नहीं
हिज्र की रात में इतना सा उजाला भी नहीं "
आपके ब्लॉग को पढने वाले भी बहुत हैं , और आपका अंदाजे-बयाँ भी कुछ और ही है , दूसरे किताबों की कड़ी जुड़ी रहनी चाहिए । मैंने आपका ध्यान दिलवा दिया है चाहें तो लिख सकते हैं ।
सधन्यवाद

मनोज कुमार said...

शुभान अल्लाह!!
क्या एक-से-बढकर-एक मोतियों को पिरोया है आपने इस हार में। इस एक शे’र ....
ये रहनुमा किस्मत बदल देंगे गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में

.... पर तो हज़ार जान क़ुर्बान!!

राज भाटिय़ा said...

होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्‍यार में
अरे वाह जी क्या बात है, बहुत सुंदर लाजवाब

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल..एक एक शेर मन में उतरता हुआ...

इस्मत ज़ैदी said...

वो जानते हैं खेल में होता है लुत्फ़ क्या
जिनको न कोई फर्क हुआ जीत हार में

नीरज' किसी के वास्ते खुद को निसार कर
खोया हुआ है किसलिये तू इफ्तिखार में

बहुत ख़ूब!
वाक़ई नीरज जी खेल खेलना भी इसी भावना से चाहिये ,आज कल हमारे टी.वी. वाले खेलों को भी समर ,युद्ध ,संग्राम जैसे नाम दे देते हैं

मक़ते में भी जो जज़्बा है वो क़ाबिल ए तारीफ़ है

तिलक राज कपूर said...

हर शेर पुख्‍ता बयान है आपकी परिपक्‍वता का। आनंद आ गया। बस यूँ ही चलती रहे आपकी कलम और ब्‍लॉग।
और ये जो आप आखिर में एक लाईन जोड़ देते हैं इससे सीना दो इंच और फूल जाता है कि कोई है इस दुनिया में जिससे मैं कभी मिला नहीं मगर अपना समझता है मुझे।
भीड़ में ढूँढा बहुत, दूर तक दिखता नहीं,
कौन है ये शख्‍स जो अपना समझता है मुझे।
मुस्‍कुराता है हमेशा, बोलता कुछ भी नहीं
देर तक तन्‍हाई में सुनता ही रहता है मुझे।

सुशीला पुरी said...

जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ
कुछ राग छिड़ गये मेरे मन के सितार में
...........?

सम्वेदना के स्वर said...

नीरज जी, ये तो ज़्यादती है, पहले तो आप लाजवाब कर देने वाली ग़ज़ल कहते हैं और फिर कहते हैं कि तास्सुरात बयान करूँ...कुछ कहने के क़ाबिल छोड़ा होता तब तो कुछ कहता… लिहाजा ख़त को तार और थोड़े को बहुत समझने की ज़हमत गवारा करेंगे...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

पहिले हम सोचे कि पहिलका शेर बढिया है...आगे बढे त लगा ई वाला उससे अच्छा है..अऊर फिर त बुझाया कि आप मज़ाक किए हैं …ई त पहेली बुझाए हैं अऊर नाम गजल दे दिए हैं... बूझो त जानें कि कऊन शेर सबसे अच्छा है.. लोग ओझराएल रहेगा अऊरबुझिये नहीं पाएगा... जै हो गुरुदेव, नीरज जी!!

Dev Vyas said...

मज़ा आ गया ... बहुत शानदार ग़ज़ल

http://deveshvyas.blogspot.com

वीनस केसरी said...

बहुत बेहतरीन गजल है (हमेशा की तरह :)

दूसरा शेर बहुत पसंद आया

मकता तो जानलेवा है

नीरज' किसी के वास्ते खुद को निसार कर
खोया हुआ है किसलिये तू इफ्तिखार में


मगर आपकी सोच, आपके व्यवहार से अलग है, आपकी खासियत से उलट है

जितना आपको जाना समझ है, इफ्तिखार आपसे कोसों दूर है

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

हमेशा की तरह बेहतरीन

प्रवीण पाण्डेय said...

ये रहनुमा किस्मत बदल देंगे गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में

यही एतबार तो ले डूबा है देश ।

अपना हुनर पहचानने का आईना नहीं,
हम ढूढ़ते है जौहरी आकर बाज़ार में ।

विवेक रस्तोगी said...

बहुत ही जानदार गजल,

एक एक शेर पढ़ते ही रह गये।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

वो जानते हैं खेल में होता है लुत्फ़ क्या
जिनको न कोई फर्क हुआ जीत हार में
...बात असल लुत्फ़ की
अपनी तरफ से भी सदा पड़ताल कीजिये
यूँ ही यकीं करें न किसी इश्तिहार में
...बात पते की
'नीरज' किसी के वास्ते खुद को निसार कर
खोया हुआ है किसलिये तू इफ्तिखार में
...बात जिंदगी की जरुरत के वास्ते

सुपरहिट ग़ज़ल !!

स्वप्निल तिवारी said...

होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्‍यार में

ek dum ghazab ka matla..kya prateek uthaya hai aapne ...

ये तितलियों के रक्स ये महकी हुई हवा
लगता है तुम भी साथ हो अबके बहार में

:)

अपनी तरफ से भी सदा पड़ताल कीजिये
यूँ ही यकीं करें न किसी इश्तिहार में

ye to hats off wala sher hai ..

badhiya ghazal hui hai ..

vijay kumar sappatti said...

AADARNIY NEERAJ JI DERI SE AA RAHA HOON , MAAFI CHAHUNGA... IN FACT MERA SHOULDER RACTURE HUA HAI ...

AAPKI GAZAL TO BAHUT HI ACCHI RAHTI HAI , LEKIN TISARE SHER NE DIL PAR BADA JAABRDAST ASAR KIYA HAI ...TITALIYO WAALE SHER NE BHI DIL PAR DASHTAK DI HAI ...

EMOTIONS KO SHABDO ME BAANDNA TO AAPKI JAADUGARI HAI SIR..

JYADA NA LIKH PAAUNGA ..KYONKI LEFT HAND SE TYPE KAR RAHA HON

REGARDS

VIJAY

vipinkizindagi said...

बेहतरीन....अच्छी.... ग़ज़ल

रचना दीक्षित said...

नीरज जी सब से पहले मेरी कविता की प्रशंसा के लिए आभार. बस आप लोगों का सहयोग मिलता रहे ऐसे ही आकांक्षा है.आपकी पोस्ट तो हमेशा ही लाजवाब होती है सबसे ज्यादा हैरान हूँ "तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में" समझ नहीं आता की किस तरह से तारीफ़ करूँ बस एक ही शब्द है बेमिसाल!!!!!

हरकीरत ' हीर' said...

'नीरज' किसी के वास्ते खुद को निसार कर
खोया हुआ है किसलिये तू इफ्तिखार में

इस शे'र की भला आपको क्या जरुरत .....

इतनी विनम्रता ,,,,इतनी शालीनता ...इतना अपनापन है आपमें ....
जब कहीं आपकी टिप्पणियाँ पढ़ती हूँ तो लगता है आपसे बहुत कुछ सीखना है अभी .....!!

Usha Giri said...

कोशिशें ही कामयाब होती हैं नीरज जी........

सतपाल ख़याल said...

ये तितलियों के रक्स ये महकी हुई हवा
लगता है तुम भी साथ हो अबके बहार में

ati-sundar !! bahut khoob hai yih she'r aur khoobsurat matla bhii...

डॉ .अनुराग said...

अपनी तरफ से भी सदा पड़ताल कीजिये
यूँ ही यकीं करें न किसी इश्तिहार में


ईमानदारी से कहूँ...तो पिछले कई पोस्टो में कुछ बेहतरीन शेर मुझे चुनने हो तो मै इसे चूनुगा......

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आदरणीय नीरज जी आदाब
शायरी की परम्परा को निभाते हुए
आपने हमेशा परम्परा से हटकर
ऐसा कुछ दिया है, जो अलग ही जहान में ले जाता है.
पेश की गई ग़ज़ल के सभी शेर बहुत खूबसूरत हैं...
मतला और मक़ता लाजवाब हैं.

شہروز said...

क्या बात है ..बहुत खूब ! यूँ तो हर शेर में बात है लेकिन मतला तो लाजवाब है.

होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्‍यार में

नीरज गोस्वामी said...

तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ अपने गुरु देव प्राण साहब का और छोटे भाई शाहिद का जिन्होंने ग़ज़ल के दो एक शेर की कमियों की और इशारा ही नहीं किया बल्कि उन्हें ठीक करने की तजवीज भी भेजी जिसे मैंने अपना लिया है.

नीरज

Himanshu Mohan said...

"लगता है तुम भी साथ हो अबके बहार में"

ख़ुश्बुओं से ख़ूब रिश्ता आपका
महके मुस्तक़बिल-गुज़िश्ता आपका

मोगरा है, रातरानी या गुलाब
कौन अल'बेला' फ़रिश्ता आपका!

ख़ूब!

अर्चना तिवारी said...

किस्मत कभी तो पलटेंगे नेता गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में .....बहुत शानदार ग़ज़ल

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बेहतरीन गजल.
हर एक शेर लाजवाब बन पड़े हैं...क्या मतला क्या मक्ता..वाह!
आप दूसरों की किताबें मन से पढ़ते हैं और उनपर अपनी समीक्षा लिखते हैं..इस गजल को पढ़कर ऐसा लगा कि आप पर सबकी दुआओं का असर है.

होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में
निकले तलाशने जो वफ़ा आप प्‍यार में
...यह कटाक्ष जोरदार है.

Anonymous said...

आपकी गजलें पढते समय सचमुच मन करता है कि वक्त थम जाए।
---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

संजीव गौतम said...

aapaka ye rang sabse ziyada achchhaa lagta hai.
aur ye sher bahut gahara hai-
वो जानते हैं खेल में होता है लुत्फ़ क्या
जिनको न कोई फर्क हुआ जीत हार में

Urmi said...

बहुत सुन्दर और सठिक रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा प्रस्तुती!

बालकिशन said...

आदरणीय वड्डे पाप्पाजी
प्रणाम !
बहुत दिन बाद आपकी गज़ल पढी है।
"वो जानते हैं खेल में होता है लुत्फ़ क्या
जिनको न कोई फर्क हुआ जीत हार में "
लगता है की कुछ बहुत खास जिंदगी से जो निकल गया था वो वापस मिल गया है.
इस वक़्त यही अहसास हो रहा है.
अति सुन्दर!

Tapashwani Kumar Anand said...

चल तो रहा है फिर भी मुझे ये गुमाँ हुआ
थम सा गया है वक्त तेरे इन्तजार में

जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ
कुछ राग छिड़ गये मेरे मन के सितार में

adbhut rachna badhai ho sir

Shabad shabad said...

Bahut acchee lagee aap ke gazal.

S.M.Masoom said...

वो जानते हैं खेल में होता है लुत्फ़ क्या
जिनको न कोई फर्क हुआ जीत हार में

देवेन्द्र पाण्डेय said...

जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ
कुछ राग छिड़ गये मेरे मन के सितार में
.....आपने नहीं, इस गज़ल ने फिर बुलाया है हमें.

Avinash Chandra said...

har ek sher bahut achchha laga...aisa likhne ke liye badhai

Himanshu Mohan said...

मुझे पता है कि मैं पहले यहाँ कमेण्ट कर चुका हूँ - मगर दिल ही तो है - जो "मछली बज़ार" तक खिंचा चला आया। जल्दी में हूँ - निकलता हूँ - मगर कहे जाता हूँ - !

Unknown said...

इस ब्लॉग को मैं नियमित रूप से पढ़ता हूँ। लेकिन नीरज जी आज तक मैंने आपकी कुछ गजलें ही पढ़ी हैं। 'वक्त थम गया है' ग़ज़ल के चौथे शेर से मैं समझ गया था कि यह नीरज जी की ग़ज़ल होगी। जब इसकी सत्यता का भान हुआ तो वाकई बहुत खुशी हुई। किसी दिन 2 शब्द मेरे फीडबैक पर लिख देंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।

लता 'हया' said...

इसको कहूँ भला कि मैं उम्दा इसे कहूँ
हर शेर लाजवाब है मैं कशमकश में हूँ .

विनोद कुमार पांडेय said...

नीरज जी बहुत अच्छी लगी आपकी यह ग़ज़ल..उम्दा शेर...बधाई हो साथ साथ तिलक जी को भी शुक्रिया..

गौतम राजऋषि said...

अहा...एक लंबे अर्से के बाद अपने प्रिय शायर की कोई ग़ज़ल पढ़ रहा हूं।

"जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ
कुछ राग छिड़ गये मेरे मन के सितार में"

एक खूबसूरत शेर नीरज जी...रट लिया है, इधर-उधर मारने के लिये :-)

और मक्ते पे अलग से दाद।

manu said...

नीरज साब...!

क्या असर है मतले का...कि पढने के बाद कुछ देर बजाय अगले शे'र पर उतरने के वो मंजर सोचता रहा...

मछली बाज़ार....और उसमें कहीं से भी इत्र की खुशबू आने की गुंजाइश...

हैरान हूँ..



दुश्वारियां हयात की सब भूल भाल कर
मुमकिन नहीं है डूबना तेरे खुमार में


बेहद बेहद हसीं शे'र...

और ये तितलियों वाला शे'र भी कहीं ले चला है....

Ankit said...

अहा, क्या खूबसूरत मिसरे पिरोये हैं आपने इस ग़ज़ल में और वो जब निखार के शेर बन रहे हैं तो कमाल कर रहे हैं,

चल तो रहा है फिर भी मुझे ये गुमाँ हुआ
थम सा गया है वक्त तेरे इन्तजार में

वाह नीरज जी, मिसरा-ए-उला में "हौले से आ छुआ" का जादू तो मेरे सर पे चढ़ गया है..........................

जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ
कुछ राग छिड़ गये मेरे मन के सितार में

सच बयानी और हालात को सामने रखता हुआ ये शेर दोनों चीज़ें कितनी आसानी से कह रहा है. ये करिश्मा आपकी कलम से ही हो सकता है,

किस्मत कभी तो पलटेंगे नेता गरीब की
कितनों की उम्र कट गयी इस एतबार में