हाल बेताब हों रुलाने को
तू मचल कहकहे लगाने को
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को
सांस लेना मुहाल कर देगा
सर चढ़ाया अगर ज़माने को
बिजलियों का है खौफ़ गर तारी
भूल जा आशियाँ बनाने को
हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
62 comments:
बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!
एक उम्दा ग़ज़ल... हर शेर ख़ूबसूरत !!
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
नीरज जी ,
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा इतनी ख़ूबसूरती से बयान किया है आप ने वाह!
मतला भी बहुत उम्दा है
हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को
ख़ुदग़र्ज़ी का ये रूप भी बहुत अच्छी तरह शेर में ढाला गया है
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई
bahut achhi ghazal neeraj ji ..matla aur uske baad ka sher to lazawaaaaaaaabb ....
लाजवाब ग़ज़ल है ... एक एक शेर जैसे एक एक अनमोल मोती ..
बिजलियों का है खौफ़ गर तारी
भूल जा आशियाँ बनाने को
हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को
Waah !
बहुत सुन्दर ग़ज़ल....सच को दर्शाती...
सांस लेना मुहाल कर देगा
सर चढ़ाया अगर ज़माने को !!
वाह्! क्या बात है! बेहतरीन गजल नीरज जी....
bahut achhi ghazal hai ..par mushkilon ka ganit mera sabse pasandeeda sher hua.. :)
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को
बहुत उम्दा नीरज जी .. रोज़मर्रा की बोलचाल के शब्दों से बुनी ... सादा सी ग़ज़ल पर गहरे अर्थ संजोय .... हर शेर खिलते हुवे गैन्दे के फूल के समान ...
ACHCHHEE GAZAL KE LIYE AAPKO
BADHAAEE.
बेहद खूबसूरत गज़ल्………………हर शेर उम्दा।
सांस लेना मुहाल कर देगा
सर चढ़ाया अगर ज़माने को
लाख टके की बात कही है आपने.
bahut sundar..
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
बात सच कही आपने ...vo bhi बड़ी सुन्दरता से
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
Laajawaab to har lafz hai,par chup rahne ka hunar kaise seekhen?
नमस्कार नीरज जी,
इस शेर के क्या कहने, बिना घुमाये फिराए सच बयानी................
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
-हाय!! मगर चुप रहा भी तो नहीं जाता...:)
बहुत बेहतरीन गज़ल जनाब!! वाह!
हाल बेताब हों रुलाने को, तू मचल कहकहे लगाने को; वाह साहब वाह क्या मुकाबला है।
मुश्किलों का गणित ये कैसा है, बढ़ गयीं जब चला घटाने को;
हुजूर
जिन्दगी को गणित नहीं समझो,
गो कि पल का हिसाब रहता है।
दौड़ हम हारते नहीं लेकिन, थम गये थे तुझे उठाने को; अब हुजूर ये तो ज़माने की चाल है लेकिन: कोई गिर जाये रस्ते में तो रुक जाना, उठा लेना
मज़ा कुछ और आता है रकीबों को उठाने में।
सांस लेना मुहाल कर देगा, सर चढ़ाया अगर ज़माने को;
सम्हल कर सर चढ़ायें, यहॉं तो:
वो जो अंगुली पकड़ के चलते थे
आज छाती पे मूँग दलते हैं।
गंभीरता से न लें।
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
बहुत सुन्दर
जीवन का सत्य है शायद
कहीं गुणक में होती तो
वाहवा.. वाहवा.. भाईजी, क्या बात है.... मज़ा आ गया.... ला..ज..वा..ब.. ग़ज़ल.....
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
इन दिनों मेंढ़कों की तरह ग्रीष्म निष्क्रियता में हूं । गर्मी के समापन की प्रतीक्षा में । लेकिन आपके इस मकते ने ग्रीष्म निष्क्रियता से बाहर निकाल दिया । इसमें रंग-ए-नीरज है । खपोली में तो शायद बरसात आ गई होगी । हमारे यहां तो इतनी सड़ी हुई गर्मी पड रही है कि बस । एक और बेहतरीन ग़ज़ल पर बधाई ।
बहुत खूब ,
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
चुप रहने की बाबत कितना कुछ कह दिया है ...
भाईजी ,नमस्कार !
तरस गया था मैं आपकी ताज़ा ग़ज़ल पढ़ने को । …ख़ैर अवसर तो मिला ।
ज़िंदादिली के पैग़ाम को बहुत ख़ूबसूरती के साथ मत्ले में ढाला है…
हाल बेताब हों रुलाने को
तू मचल कहकहे लगाने को
और यहां बोल रही है एक ख़ूबसूरत इंसान की इंसानियत एक ख़ूबसूरत शे'र के माध्यम से…
दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को
…और ऐसी कहन और कहीं नज़र नहीं आई
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
अगली ग़ज़ल का इंतज़ार आज ही शुरू हो गया है , यह याद रखिएगा भाईसाहब !
हालांकि तब तक तीन-चार बार तो इसी ग़ज़ल के हुस्न-ओ-फ़न से खिंचा हुआ यहां आऊंगा ही आऊंगा ।
नमन आपको और आपकी क़लम को !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
Bau jee,
Namaste!
Maine kaha bahut khoob.....
Bina kisi laag-lapet ke khari-khari!
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
to kya mulakaat ka intzaam kare fir?
dekhiye shayad us aor aana ho....hamara....
चुप रहकर भी इतना कुछ कह गए ।
वाह नीरज जी ।
बहुत बढ़िया ।
दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को
कमाल है भाई.... बस कमाल है
टिप्पणी क्या करे कोई इस पर
आप जब आये आज़माने पर
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
बहुत सही नीरज जी... एकदम मजा आ गया इस लाईन पर तो.
बहुत ही सुन्दर लिखा है ।
बेहतरीन गजल जी , धन्यवाद
आज आप हमसे बदला ले लिए नीरज जी! आपका फैन हो गए ई गजल पढकर... हमरा जईसा अनपढ अदमी का भी दिमाग में दूगो शेर आ गया है... बुरा मत मानिएगा...
पाप जी भर के करते जाओ तुम
बहती गंगा तो है नहाने को.
हमने सच बोलने की खाई कसम
आ गए झूठ कल डराने को.
उम्दा गज़ल का लाजवाब मक्ता...
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
...आज तबियत प्रसन्न हो गयी आपकी गज़ल पढ़कर.
.. वाह! क्या बात है !!
Waah waah...bahut khoob
दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को ।
बेहतरीन
बहुत सुन्दर रचना * * * * * *
बहुत सुन्दर रचना
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
बिजलियों का है खौफ़ गर तारी
भूल जा आशियाँ बनाने को
हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को
bahut sunder aur sarthak shej hain--sabhi k sabhi...inme bar bar dil aayaa...
बहुत सुन्दर गजल है.
हर बार सोचते हैं टिप्पणी में कुछ नया लिखें लेकिन अब शब्द कम पड़ते हैं तो क्या करें?
कट पेस्ट करु तो पूरी गज़ल यहा उतारनी होगी . सुन्दर सुन्दर सुन्दर
हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
ख़ूबसूरत गजल ..
अगली ग़ज़ल का इंतज़ार है ..
बहुत ही अच्छी रचना.
'सांस लेना मुहाल कर देगा
सर चढ़ाया अगर ज़माने को'
har sher umda, magar ye bahut khoob hai..........
सभी शेर एक से बढ़ कर एक। बधाई।
कमाल की ग़ज़ल है नीरज भाई ! हर शेर रुकने को विवश करता हुआ ! शुभकामनायें !
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को
बेहद खूबसूरत फल्सफा बयान किया आप ने
मुबारक हो.....
और आप मेरे ब्लोग पर तशरीफ लाये, और चंद अल्फाज़ कहे, सलाह भी दी, आप का बहुत बहुत शुक़्रिया.
सभी कहरहे , कमाल की गज़ल है,
क्या रहगया कहने , बताने को ।
क्या करें चुप न जब बने रहते
और कुछ भी न हो बताने को
लोग जज़्बात निभाते हैं, यहाँ-
एक रिश्ता नहीं निभाने को
आशियाँ है यहीं, रहेगा यहीं
बर्क़ जा - ढूँढ सर छिपाने को
कुछ तकल्लुफ़ था कुछ थी मजबूरी
सर चढ़ाना पड़ा ज़माने को
ज़िन्दगी रेस है, जीतेंगे ज़रूर
भले तुझको ही हार जाने को
घटाना-जोड़ना हिकमत ही सही
कर वो जो हो नफ़ा पाने को
दिल में कुछ दर्द न हो पर रस्मन
रोता रह फ़ोटुएँ खिंचाने को
आपकी ग़ज़ल बहुत पसन्द आई नीरज साहब, मगर इस दिल का क्या करूँ जो आज बच्चे की तरह ज़िद कर बैठा उल्टा सोचने की - सो सब उलट-पलट दिया - और आख़री शे'र से शुरू होकर पहले तक गया। गुस्ताख़ी माफ़ कीजिएगा।
ख़ैर, बच्चों का नटखट-पन तो छोड़िए, मगर आपकी आज की ग़ज़ल बहुत पसन्द आई है। बहुत-बहुत।
बधाई!
और वाह! मेरा कमेण्ट 50वाँ था - अब 51वाँ भी ये हो जाएगा। यानी आधा सैकड़ा। इतनी तो पोस्टें लिखना मुहाल हो जाता है बहुतों को।
वाह!
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
...
सही कह रहे हो जी।
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
वाह!
हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई
एक हलचल सी मच गई है .............. बेहतरीन लिखा है आपने ..........
बहुत अच्छे...
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल! हर एक शेर लाजवाब लगा! उम्दा प्रस्तुती!
BEHD SUNDAR GJAL .
SACH AAJ SARA GNIT HI GDBDA GYA HAI .
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
लाजवाब ग़ज़ल.............
सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक आभार
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
wah !! wah wah !!
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को
लाजवाब शेर हैं नीरज जी।
आपके ब्लाग पर बहुत दिनो बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ दूसरी बात आपने कह दी है
सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को
मेरे पास भे3ए इतने दिन कुछ नया नही था सुनाने को इस लिये नेट से दूर रही
बहुत अच्छी गज़ल है बधाई
बहुत बढ़िया ! हम भी बस यही कह पाते हैं हर बार :)
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को
Beautiful shers sir... so simple yet so effective
अरे वाह-वाह नीरज जी...वाह-वाह! जबरदस्त काफ़ियों वाली कहर ढ़ाती ग़ज़ल। तू मचल कहकहे लगाने को वाले मिस्रे पे तो पहले सौ दाद कबूल फरमायें। बहुत खूब!
इतनी छोटी-सी बहर में जैसे कुछ नहीं छोड़ा आपने। मक्त एकबार फिर लाजवाब करता हुआ....
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