Monday, April 26, 2010

हर मौसम घूमने का मौसम है

(ये पोस्ट मेरे हम नाम भाई नीरज जाट जी की घुमक्कड़ी को समर्पित है)


कहीं पढ़ा था "घूमने का कोई मौसम नहीं होता, जब दिल करे तब घूमिये"...याने हर मौसम घूमने का मौसम है क्यूँ की हर मौसम का अपना आनंद है. मन में घूमने की ललक हो तो जेठ की धूप भी चांदनी सी लगती है. अक्सर लोग मौसम का इंतज़ार ही करते रह जाते हैं और घूमने का समय हाथ से निकल जाता है.

आप सोचेंगे क्या उल-जलूल बात की जा रही है, बाहर भयंकर गर्मी पड़ रही है और ये महाशय घूमने की बात कर रहे हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें के भाई हम बात ही नहीं करते घूमते भी हैं

अभी पिछले दिनों की ही बात है.अचानक बैठे ध्यान आया की हमारे घर के पास एक बहुत विशेष हिल स्टेशन है, जहाँ किसी भी प्रकार के वाहन के चलने पर प्रतिबन्ध है और जिसे हमने आजतक देखा भी नहीं है, तो क्यूँ ना वहां चला जाए? ...जी हाँ आप सही समझे हम "माथेरान" का जिक्र कर रहे हैं. साथ चलने के लिए बहुत से मित्रों से बात चीत की जिनमें से अधिकाँश मौसम, गर्मी, समय की कमी, बच्चों की पढाई और तबियत नासाज़ होने जैसे शाश्वत बहाने बना कर किनारा कर गए. एक मित्र जो निहायत शरीफ किस्म के हैं और हमारी किसी भी बात को नहीं टालते साथ चलने को तैयार हो गए.

नेरल स्टेशन से, जो हमारे घर से मात्र तीस की.मी. दूर है, एक छोटी सी खिलौना रेल गाडी माथेरान तक चलती है. अंग्रेजों के ज़माने से चली इस ट्रेन को कोई सौ साल हो चुके हैं. हमारे "माथेरान" जाने के कार्यक्रम के पीछे पहाड़ के अलावा इस ट्रेन की यात्रा का लोभ भी था. घर से सुबह छै बजे अपनी कार से चले और सात बजे तक नेरल स्टेशन पहुँच गए जहाँ से साढ़े सात की माथेरान जाने वाली पहली ट्रेन पकड़ ली, जिसका रिजर्वेशन पहले से ही करवा के रखा था. ड्राइवर को बोल दिया की भाई तुम दोपहर तक माथेरान में जहाँ तक कार जा सकती है वहां हमें लेने आ जाना. ट्रेन के कूपे में हम दो परिवार ही थे. कारण ये के छुट्टियाँ न होने की वजह से भीड़ अधिक नहीं थी और दूसरे मुंबई वाले ये सुबह की ट्रेन कम ही पकड़ते हैं क्यूँ की इसके लिए उन्हें अपना घर पांच बजे जो छोड़ना पड़ता है.

नेरल जंक्शन मुंबई से लगभग अस्सी की.मी. दूर है और यहाँ से पूना या दक्षिण की और जाने वाली गाड़ियाँ धडधडाती हुई गुज़रती रहती हैं. छोटी सी चार डिब्बों की टॉय ट्रेन जब नेरल स्टेशन से चली तो हम बिलकुल बच्चे बन गए...भूल गए के हमारे पोती(मिष्टी)-पोते(इक्षु) भी हैं...दरवाज़े के बाहर लटक लटक कर धीमी गति से चलती ट्रेन से फोटो खींचने लगे...शोर मचाने लगे... आज मैं इस पोस्ट के माध्यम से माथेरान यात्रा की उन्हीं फोटो से आपका परिचय करवा रहा हूँ...आप में से जो खोपोली के नाम से से मेरे यहाँ आने में कतराते रहे हैं वो कम से कम ये चित्र देख कर इस यात्रा का लुत्फ़ लेने जरूर आयेंगे.

सबसे पहले देखिये वो ट्रेन जो नेरल से आपको माथेरान तक ले जाएगी.



दो घंटों की यात्रा में ट्रेन कोई तीन सौ से अधिक बार बल खाती है.



मज़े की बात है इस छोटी सी यात्रा में दो स्टेशन भी हैं, पहला है जुम्मा पट्टी. जहाँ ऊपर से आने वाली ट्रेन को पास दिया जाता है. यहाँ आप चाय और नमकीन का लुत्फ़ उठा सकते हैं.


जुम्मा पट्टी के बाद असली चढाई शुरू होती है और ट्रेन का बल खाना भी बढ़ जाता है.



बीच बीच में सड़क भी हमारे साथ चलती है और कोई आठ दस बार पटरियों को क्रास भी करती है.



अभी साथ लाया नाश्ता ख़तम होता है के दूसरा स्टेशन आ जाता है , "वाटर पाइप" .



वाटर पाइप स्टेशन के बाद बाहर का दृश्य बदल जाता है...आप बहुत ऊंचे उठ जाते हैं....नीचे घाटी में मकानों से उठता धुआं और साथ चलती हरियाली आपका मन मोहने लगती है.



कुछ दृश्य तो सांस रोक कर देखने लायक मिलते हैं.



जैसे जैसे माथेरान पास आने लगता है बाहर की हरियाली बढती जाती है.


और फिर माथेरान से पहले का अंतिम स्टेशन "अमन लाज" आता है, अगर आप कार से या और किसी भी यांत्रिक वाहन से यात्रा कर रहे हैं तो आपको यहीं रोक दिया जायेगा. सिर्फ रेल ही यहाँ से आगे जाती है, वर्ना यहाँ से माथेरान जाने के लिए या तो आप अपने पाँव का सहारा लें या फिर घोड़े या पालकी का.



दो घंटे की दिलचस्प और यादगार यात्रा के बाद आ जाता है माथेरान स्टेशन .


पच्चीस रुपये का टैक्स भर कर फिर आप माथेरान में दाखिल होते हैं. यहाँ रुकने के लिए सैंकड़ों छोटे बड़े होटल हैं, खाने पीने के रेस्टुरेंट हैं और घूमने के लिए बीस से ऊपर जगह हैं. जैसा की मैंने पहले ही बताया यहाँ घूमने के लिए आपको कोई टैक्सी, बस या ऑटो नहीं मिलेगा. घोड़ों खच्चरों और पालकियों की भरमार मिलेगी. हमने बाहर निकल कर घोड़े किये. ज़िन्दगी में पहली बार जाना घुड सवारी का मज़ा क्या होता है. अपनी शादी में भी घोड़े पर ये सोच कर नहीं बैठे की क्या पता हमारे इस क्रांतिकारी कदम से प्रभावित हो कर , घोड़े पर बैठने जैसे पुराने रिवाज़ से लोग मुंह मोड़ लेंगे, ऐसा कुछ हुआ नहीं, लेकिन अब शादी के चौंतीस साल बाद घोड़े पर बैठने का औचित्य समझ में आया .

मैं आम इंसान की बात कर रहा हूँ, घुड सवारों की नहीं.शादी और घोड़े पर बैठने में एक समानता है. अगर आप पहली बार घोड़े पर बैठे हैं तो आपको बहुत आनंद आएगा रोमांच होगा और थोड़ी देर बाद जब घोडा अपने हिसाब से चलने लगेगा तो डर के मारे आपकी घिघ्घी बंध जाएगी आखिर उस पर से उतरने के बाद आपके जो अंग प्रत्यंगों में पीड़ा और जकड़न होगी वो कई दिन तक आपको न ढंग से बैठने देगी और न सोने. आप कहेंगे तौबा मेरी तौबा जो फिर से घोड़े पे बैठा तो.

शादी में भी ये ही कुछ होता है...शुरू शुरू में रोमांच आनंद और फिर बाद में वोही सब कुछ जो घोड़े पे बैठे रहने पर होता है...डर, दर्द और जकड़न. घोड़े पर से आपको उतरने की सुविधा है लेकिन शादी नाम के घोड़े से आपको आसानी से उतरने नहीं दिया जाता. आप हाय हाय करते बैठे रहते हैं.

हमने घोड़े वाले से बिनती की के हमें पूरा दिन नहीं घुमाये सिर्फ एक आध जगह पर ही ले जाये बस.

ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर घुड़सवारी का आनंद(?) उठाते हुए जब हम वहां की एकमात्र छोटी सी झील पर पहुंचे तो सारी थकान उतर गयी.




माथेरान देखने की यात्रा में बन्दर आपका साथ कभी नहीं छोड़ते...आपके साथ रहते हैं लेकिन तंग नहीं करते.




जब ऐसे दृश्य सामने हों तो जी करता है समय यहीं रुक जाए.



और सच में तब कितना भी बड़ा बोझ चाहे कन्धों पर हो या दिल में बोझ लगता ही नहीं...प्रकृति के नजदीक जाने पर ये करिश्मा आप भी देख सकते हैं.



हम तो उसी दिन वापस लौट आये लेकिन अगर आप माथेरान आना चाहते हैं तो कम से कम दो दिन वहां रुकें...देखें, घूमें, आनंद लें.एक जरूरी बात आपको इस छोटी टॉय ट्रेन का टिकट पहले से ही करवा लेना चाहिए क्यूँ की इसका टिकट बहुत आसानी से नहीं मिलता क्यूँ की भाई कम सीटें जो हैं. यूँ तो आप माथेरान कभी भी जा सकते हैं लेकिन जुलाई से सितम्बर तक के समय को छोड़ दें तो फिर कभी भी जाएँ वैसे इस मौसम का भी अपना आनंद है क्यूँ के इन दिनों भारी बरसात होती है लेकिन जुलाई से सितम्बर तक ये ट्रेन बंद रहती है. अक्तूबर में आप खूब हरियाली के अलावा इक्का दुक्का झरने भी देख सकते हैं. तो फिर कब आ रहे हैं इन दृश्यों का आनंद उठाने?

गाडी बुला रही है...सीटी बजा रही है...



{ये चित्र मेरे साधारण मोबाईल के दो मेगा पिक्सल वाले कैमरे से खींचे गए हैं...सोचिये यदि येही चित्र किसी डिजिटल कैमरे से खींचे गए होते तो कैसे लगते और जब आपकी आँख इन वास्तविक दृश्यों को त्रि-आयाम में देखेगी तो कैसा लगेगा? आप समझ रहे हैं न जो मैं कह रहा हूँ}


जो लोग किसी कारण वश चाह कर भी माथेरान यात्रा का लुत्फ़ नहीं उठा सकते उनके लिए विशेष तौर पर ये वीडिओ लगाया है , जिसे मैंने आप सब के लिए यू-टयूब से चुराया है वो भी बिना विडिओ मालिक की अनुमति लिए. इस उम्मीद के साथ के अगर मुझ पर कापी राईट उलंघन का आरोप लगाया जाता है जो आप मेरी मदद को आयेंगे. आयेंगे ना?

46 comments:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

माथेरान की सैर कराने के लिए धन्यवाद !
मिष्ठी इक्षु सहित आपके साथ सैर सपाटा करके मज़ा आ गया …

P.N. Subramanian said...

मुंबई में रहकर ७.३० के पहले नरेल पहुंचना ही तो सबसे तकलीफ वाली बात है. सुन्दर विवरण और विडियो. एक बात हमने पायी है. मुंबई वाले अपने दैनिक आपाधापी में इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हें पता ही नहीं रहता कि उनके आसपास कौन कौन सी जगह घूमने लायक है. खोपोली तो मुंबई सी दूर और जीवन धीमी गति वाली होगी. अबकी बार हम प्रयास करेंगे.आभार.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

माथेरान की सैर... वाह बहुत बढ़िया!!
सभी चित्र मनमोहक !!

सुशीला पुरी said...

आपने तो यहीं से आधी यात्रा करा दी नीरज जी !!!और आपका मोबाइल कैमरा तो कमाल का है ।कभी मौका लगा तो जरूर जाऊँगी माथेरान .........

नीरज मुसाफ़िर said...

जुम्मा पट्टी तो चलो ठीक है, लेकिन वाटर पाइप और अमन लॉज नाम बडे अजीब से लग रहे हैं। नये रूट पर पहली बार रेल यात्रा करने पर इसी तरह के नये नाम मन मोह लेते हैं।
आपने पूछा है कि:
तो फिर कब आ रहे हैं इन दृश्यों का आनंद उठाने?
अजी हमसे क्या पूछना? तैयार बैठे हैं। जब आज्ञा दोगे, दौडे चले आयेंगे।

नीरज मुसाफ़िर said...

अभी अभी वीडियो देखी। अच्छी लगी।
यहां लाल मिट्टी है? मेरा एक दोस्त कुछ दिन बेलगाम में रहा था। कहता था कि मिट्टी इतनी लाल है कि धुलने के बाद भी लाली छुटती नहीं है। अच्छा भला सफेद कपडा लाल हो जाता था।

mamta said...

माथेरान की इतनी मनोहारी सैर कराने के लिए धन्यवाद ।

फोटो और विवरण दोनों ही बहुत अच्छे लगे।

डॉ .अनुराग said...

मुझे ये घुमक्कड़ शायर पसंद है........

booze.... said...

आपने मेरे भीतर दबे हुए सैलानी को जगा दि‍या है। मि‍लता हूँ जल्‍दी ही:)

कुश said...

अपना प्रोग्राम पक्का...!

जितेन्द़ भगत said...

मजेदार यात्रा वि‍वरण, जैसे घूम आए आपके साथ ही।
पुराने कि‍स्‍म के कैमरों में 2 मेगापि‍क्‍सल कहॉं होता था। अब कैमरा कैसा है इससे भी ज्‍यादा जरूरी है कि‍ वह कि‍सके हाथ में है:)
मतलब ये कि आपने बेहतरीन तस्‍वीरें ली हैं।

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! लाजवाब पोस्ट।
मेरे मन में यूं ही खयाल आता है कि इस सेक्शन में किसी स्टेशन का स्टेशन मास्टर होता मैं! :)

रश्मि प्रभा... said...

aapne to baithe bithaye ghuma diya.....mazaa aa gaya

तिलक राज कपूर said...

मज़ा आ गया इस यात्रा में, न सुबह उठना पड़ा, न टिकट लेना पड़ा, न कैमरे का सरदर्द, न आने जाने में समय और पैसे का व्‍यय।
अगली यात्रा कब करा रहे हैं?

प्रवीण पाण्डेय said...

अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा ।

राज भाटिय़ा said...

मजा आ गया जी आप के लॆख को पढ कर ओर इस ट्रेन मै बेठ कर. धन्यवाद

संजय @ मो सम कौन... said...

नीरज साहब,
मजा आ गया, आपकी घुमक्कड़ी देखकर।
खोपोली के साथ माथेरान भी, पैकेज बढि़या है।
टॉय ट्रेन देखकर भी बहुत अच्छा लगा। सच में, हम लोगों को अपने और काम धंधों के बीच अपने व अपने परिवार के लिये ऐसे ब्रेक लेने चाहियें।

इतनी सुंदर पोस्ट के लिये(और चोरी की वीडियो के लिये भी) आपका आभार।

Dr. Amar Jyoti said...

माथेरान के बारे में सुना तो था। पर आपके सौजन्य से तो घर बैठे वहां घूम भी लिये।
हार्दिक आभार।

Anita kumar said...

नीरज जी अभी पिछले हफ़्ते ही एम टी डी सी ( महाराष्ट्रा टूरिस्ट डिपार्टमेंट कोर्पोरेशन) का इश्तेहार आया था कि अगर आप के पास महाराष्ट्रा के कि्सी भी मनोरम स्थल की तस्वीरें हो तो भेजें। महाराष्ट्रा को भी टूरिस्ट स्पोट मे बदलने की ठानी है अपनी सरकार ने। तो जनाब खपौली की फ़ोटोस तो भेजनी ही चाहियें आप को। महाराष्ट्रा के नक्शे में साधारण सा दिखने वाला खपौली आप के केमरे से असाधारण दिखता है। और एम टी डी सी वाले तो आप से पूछ रहे होगे जनाब कब हमें जॉवइन कर रहे हैं।
मा्थेरन की इस टॉय ट्रेन का लुत्फ़ ही कुछ और है । कई यादें ताजा हो आईं।
धन्यवाद

Manish Kumar said...

सुंदर रहा ये यात्रा विवरण !

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

नीरज जी आदाब.
मुफ़्त में सैर हो गई...साथ ही आपके वर्णन और तस्वीरों ने उत्सुकता जगा दी.
देखें कब देख पाते हैं ये मनोहारी दृष्य.

डॉ. मनोज मिश्र said...

एक नई और सुंदर जगह से परिचित करने के लिए आपको धन्यवाद.

वीनस केसरी said...

पोस्ट पढ़ कर हसते रहे रोते रहे

हसते आपकी बात कहने के अंदाज पर रहे :)

और रोते इसलिए कि इलाहाब से कितना दूर है :(

कोइ बात नहीं जी हम भी बहुत जल्द मुंबई से रिश्ता जोड़ने जा रहे हैं
फिर आपके पास आयेंगे :)

Himanshu Mohan said...

सफ़र ग़ज़ब का माथेरान घुमा डाला -
सुबह से हो गई शाम तुझको अल्ला रक्खे

नीरज जी ने अपनापन बरसाया है
जल्द बने प्रोग्राम तुझको अल्ला रक्खे

गर्मी में ठण्डक आँखों को दे डाली
तुझको मेरा सलाम तुझको अल्ला रक्खे

आप सरीखे दोस्त किसे यूँ मिलते हैं
हम से ख़ुश हैं राम तुझको अल्ला रक्खे

नज़्म ज़िन्दगी, ग़ज़ल बने हर पल-छिन-दिन
उम्र करे एहतेराम, तुझको अल्ला रक्खे

Alpana Verma said...

सच bada ही सुन्दर और मनोरम स्थान है...पहली बार नाम सुना है.
चित्र भी बहुत achche लिए hain..
*बल खाती रेल!
देख कर डर लग रहा है!
-माथेरान की सैर कराने के लिए आभार.

अजित वडनेरकर said...

माथेरान जाने के बचपन से ख्वाहिशमंद रहे हैं। यकीन है कि अभी कुछ बरस इसे और सीने में दबा कर रखना होगा।

बहुत बहुत बहुत अच्छी पोस्ट। मज़ा आया। आपसे जितना बन पड़ा, हमें घुमाया है।
आभार

Apanatva said...

saalo pahile jab mumbai me the gaye the lagata hai 25 saal baad bhee kuch badala nahee hai......
khushee huee .
aabhar

Shiv said...

बहुत बढ़िया पोस्ट. मेरा प्रोग्राम पक्का. आ रहा हूँ मैं.

माधव( Madhav) said...

माथेरान की सैर कराने के लिए धन्यवाद !, पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ , अच्छा लगा !

http://www.madhavrai.blogspot.com/

नीरज गोस्वामी said...

Comment received from Udan Tashtari, Canada.

अरे वाह, कसम से न बताते तो आपकी फोटो देखकर हम समझते कि ग्रेड केनियन में घूम रहे हैं.

अब तो पक्का समझो कि अगली भारत यात्रा में समीर लाल धमक रहे हैं आपके पास माथेरन जाने के लिए.

आप खुद ही जिम्मेदार हैं ऐसा वृतांत देकर हमारे धमकने के लिए. :)

झेलो झेलो भाई.. हमें...:)

अन्तर सोहिल said...

"माथेरान"
नाम ही सुना था जी, आज आपने घुमा भी दिया।
अपनी आंखों से भी देखने जायेंगें जी कभी
तस्वीरों के लिये धन्यवाद

प्रणाम स्वीकार करें

मीनाक्षी said...

अपने सफ़र से बेहद चिड़े हुए है लेकिन आपके खूबसूरत भ्रमण ने सोचने पर विवश कर दिया है कि यहाँ का सफ़र भी मौका मिलने पर करना ही चाहिए...

hem pandey said...

बढ़िया रही माथेरान और टॉय ट्रेन की जानकारी.'माथेरान' नाम पहली बार सुना

Abhishek Ojha said...

माथेरान तो हम एक बार जाते-जाते रह गए. एक दोस्त ने इतना डराया कि... बहुत गर्मी होती है... ये सीजन नहीं है जाने का, बरसात में फिर भी ठीक है अभी तो बहुत बेकार होगा. वगैरह वगैरह. और हम नहीं गए :(

daanish said...

नीरज जी .....
आपकी यात्रा हम सब को आनंद दे गयी , वाह !
मन में ऐसा बिलकुल नहीं था क मुम्बई या आसपास
ऐसे मनोहारी दृश्य भी हो सकते हैं
तो.... आ रहा हूँ... सपरिवार !!

शोभना चौरे said...

मुंबई में कुल मिलकर १७ साल रही पर माथेरान नहीं घूम पाई ,कितु आपने तो बैठे बिठाये ही भ्रमण करा दिया |वैसे ये भी सच है कि घूमने के लिए मोसम कोई मायने नहीं रखता |अभी अभी मै उतरांचल कि यात्रा करके लौटी हूँ वैसे तो मोसम वहा ठंडा होना चहिये किन्तु बहुत गर्मी थी इस साल ,और इसी गर्मी में हरद्वार और ऋषिकेश भर दोपहर में चले क्योकि कुम्भ के कारण कई किलोमीटर तक वाहनों पर प्रतिबंध था \फिर भी बहुत आनंद आया \
आपके इस यात्रा संस्मरण ने मन मोह लिया |

डॉ टी एस दराल said...

माथेरान कि यात्रा सुहानी लगी ।
एक बार हम भी मुंबई से पुणे गए थे ट्रेन द्वारा । तब खंडाला और लोनावाला शायद रस्ते में आये थे ।
बहुत सुन्दर तस्वीरें लगाई हैं आपने ।
और आप तो बड़े यंग लग रहे हैं , नीरज भाई।
ये भी ghumakkad hone का नतीजा लगता है ।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अब तो अपना भी मन बावरा हो रहा है।
--------
गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Ashish said...

Baat to aapki sahi hai Neeraj ji... ki ghuumne ka koi alag mausam nahin hota..

Bharat ki ek aur ghuumne layak jagah batane ke liye dhanyawad..

Kuch waqt se padh raha hooon aapko.. padhkar achcha lagta hai..

Nipun Pandey said...

बहत सुन्दर विवरण नीरज जी और उतने ही सुन्दर चित्र | एक बार मैं भी गया था माथेरान वाकई बहुत सुन्दर जगह है ! आपका ब्लॉग पढ़ कर वो सब फिर से याद आ गया !

और ये झील तो वास्तव में बहुत सुन्दर है ....मैं तो पैदल ही पूरा माथेरान घुमा था तो इस झील पर पहुच कर एकदम थकान मिट गई थी पूरी ! वाकई बहुत अच्छी जगह है !

और नीरज जी ऐसे डराया मत कीजिये बच्चो को ....
शादी में भी ये ही कुछ होता है...शुरू शुरू में रोमांच आनंद और फिर बाद में वोही सब कुछ जो घोड़े पे बैठे रहने पर होता है...डर, दर्द और जकड़न. घोड़े पर से आपको उतरने की सुविधा है लेकिन शादी नाम के घोड़े से आपको आसानी से उतरने नहीं दिया जाता. आप हाय हाय करते बैठे रहते हैं.


हम तो शादी से वैसे ही डरे हुए हैं और आपकी बातें सुन के तो पसीने निकल रहे हैं !

Roshani said...

suhani yatra neeraj ji..
aur aapke moobile ne bhi bahut hi acchi pic khhinchi hai...
use bhi badhaii....

नीरज गोस्वामी said...

E-mail received from Om Sapra Ji:-

shri neeraj ji
namastey
due over business i could not see this mail earlier,
today i went through your post and saw all photographs,
really it is like a walk in peaceful and devine heaven.
all photos are very volatile and attractive because of their natural look.

a very good attemp, congrats,
regards
-om sapra, delhi-9

गौतम राजऋषि said...

आज दिनों बाद अपने प्रिय शायर से मिलने आ पाया हूँ,,तो मुलाकात का सिलसिला छुट गयी पोस्टों से ही शुरु कर रहा हूँ।

ये दिलचस्प यात्रा-वृतांत भी आपकी किसी खूबसूरत ग़ज़ल से कम नहीं नीरज जी। सारी तस्वीरें लाजवाब अशआर के जैसे...और बीच-बीच के पंच-लाइन...दो घंटे की यात्रा में ट्रेन का तीन सौ से अधिक बार बल खाना या फिर घुड़सवारी और वैवाहिक-जीवन में साम्य ढ़ूंढ़ना...उफ़्फ़्फ़्फ़!

Unknown said...

ऐसा लगा मानो खुद ही घूम कर आ गए हैं। बस एक चीज अखर रही है नीरज जी, आपने बताया टिकट की काफी मारामारी है। सो इंदौर से इतनी दूर जाकर आना बहुत ही त्रासदायक होगा। टिकट कन्फर्म के लिए कुछ व्यवस्था नहीं है।

ghughutibasuti said...

नीरज जी, हम तो खोपोली कब से आना चाह रहे हैं। बोलिए कब आएँ? हम ही क्या आपका एक पाठक भी जो मेरा मित्र है आपसे मिलना चाहता है।
घुघूती बासूती