Monday, April 12, 2010

किताबों की दुनिया :27 / 2




अपनी पिछली पोस्ट में मैंने आपसे वादा किया था के मैं आपको अल्वी साहब की शीन काफ निजाम और नन्द किशोर जी द्वारा सम्पादित पुस्तक " उजाड़ दरख्तों पे आशियाने" में प्रकाशित लगभग चालीस नज्मों में से कुछ बानगी के तौर पर पढ्वाऊंगा...आप शायद भूल गए हों लेकिन मुझे अपना वादा याद रहा है. अल्वी साहब और उनकी इस किताब की जानकारी आप पिछली पोस्ट में ले ही चुके हैं इसलिए आपका वक्त बर्बाद किये बिना मैं उनकी सिर्फ पांच छोटी छोटी नज्में प्रस्तुत कर रहा हूँ...इसी से अंदाज़ा लगाईये की के बाकी की कैसी होंगी...और इस किताब को न खरीद कर आप साहित्य के कितने बड़े खजाने से वंचित हैं.


उम्मीद

एक पुराने हुजरे* के
अधखुले किवाड़ों से
झांकती है एक लड़की .
हुजरे* = कोठरी

इलाजे - ग़म
मिरी जाँ घर में बैठे ग़म न खाओ
उठो दरिया किनारे घूम आओ
बरहना-पा* ज़रा साहिल पे दौड़ो
ज़रा कूदो, ज़रा पानी में उछलो
उफ़क में डूबती कश्ती को देखो
ज़मीं क्यूँ गोल है, कुछ देर सोचो
किनारा चूमती मौजों से खेलो
कहाँ से आयीं हैं, चुपके से पूछो
दमकती सीपियों से जेब भर लो
चमकती रेत को हाथों में ले लो
कभी पानी किनारे पर उछालो
अगर खुश हो गए, घर लौट आओ
वगरना खामुशी में डूब जाओ !!
बरहना-पा* = नंगे पाँव

हादसा
लम्बी सड़क पर

दौड़ती हुई धुप
अचानक
एक पेड़ से टकराई
और टुकड़े-टुकड़े हो गयी

कौन

कभी दिल के अंधे कूएँ में
पड़ा चीखता है
कभी दौड़ते खून में
तैरता डूबता है
कभी हड्डियों की
सुरंगों में बत्ती जला के
यूँ ही घूमता है
कभी कान में आ के
चुपके से कहता है
तू अब भी जी रहा है
बड़ा बे हया है
मेरे जिस्म में कौन है ये
जो मुझसे खफा है


खुदा

घर की बेकार चीजों में रक्खी हुई
एक बेकार सी
लालटेन है !
कभी ऐसा होता है
बिजली चली जाय तो
ढूंढ कर उसको लाते हैं
बड़े ही चैन से जलाते हैं
और बिजली आते ही
बेकार चीजों में फैंक आते हैं !!

43 comments:

पारुल "पुखराज" said...

हादसा- कितना खूबसूरत है

Lalit Pandey said...

बहुत खूबसूरत पोस्ट। आपका धन्यवाद- अपने कहे को वास्तविक अमलीजामा पहनाने के लिए।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

नीरज जी आदाब
इलाजे-गम ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है.

तिलक राज कपूर said...

खुदा, तर्जुमा है आज की इन्‍सानी सोच की। हमारे आस-पास रोज़ कितने रिश्‍ते बेकार चीज़ों में बदलते हैं और जरूरत मुताबिक ढूँढ कर निकाले जाते हैं।
उम्‍दा नज्‍़में।

pran sharma said...

KHOOBSOORAT SHABDON AUR BHAAVON KE
LIYE UTTAM PRASTUTI.

vijay kumar sappatti said...

neeraj ji , aapki is shaandar koshish ko salaam , kyonki aapke hi jariye to hum nayi nayi kitaabe aur naye andaajo se ru-bu-ru hote rahte hai .. padhkar bahut khushi hui ..

aabhar aapka

vijay

डॉ टी एस दराल said...

हादसा

लम्बी सड़क पर
दौड़ती हुई धुप
अचानक
एक पेड़ से टकराई
और टुकड़े-टुकड़े हो गयी

वाह नीरज भाई , कितनी सादगी से बढ़िया बात कह दी ।
अच्छा लगा अल्वी साहब को पढना । लालटेन वाली भी बहुत भायी।

ghughutibasuti said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सत्यम् शिवम् सुन्दरम्!

सतपाल ख़याल said...

अगर खुश हो गए, घर लौट आओ
वगरना खामुशी में डूब जाओ !!
awesome poem !!

Apanatva said...

घर की बेकार चीजों में रक्खी हुई
एक बेकार सी
लालटेन है !
कभी ऐसा होता है
बिजली चली जाय तो
ढूंढ कर उसको लाते हैं
बड़े ही चैन से जलाते हैं
और बिजली आते ही
बेकार चीजों में फैंक आते हैं !!
ati sunder...........
aabhar...........

दिगम्बर नासवा said...

खुदा ...
कमाल की रचना है .. सच में कोने में रखी लालटेन की तरह ...
अल्वी साहब को जितना पढ़ो लगता है कम है ... शुक्रिया आपका भी बहुत बहुत ...

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया...आनन्द आया.

खुदा ने झकझोरा!! कितना सच!!

आभार आपका नीरज भाई.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बेहतरीन ! सभी रचना अपना जबरदस्त असर छोडती हुई. जल्द ही पढूंगा अल्वी साहब को.

rashmi ravija said...

सारी रचनाएं, एक से एक नायाब हैं....अल्वी साहब की किताब से परिचित करवाने का बहुत बहुत शुक्रिया

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत खूबसूरत पोस्ट..

अमिताभ मीत said...

कमाल है ... कमाल है भाई.. हर बार की तरह .....

आप की पसंद, आप का चयन ... बेहतरीन पोस्ट एक बार फिर.

डॉ .अनुराग said...

हादसे ने दिल ले लिया .....नीरज जी.....कुछ ओर नज्मे मेल करे

Mansoor ali Hashmi said...

aapke zauk-e-jameel ko salam.

वीनस केसरी said...

खुदा को पढ़ कर फिर पढ़ा और फिर ...

जिन्दगी को ईतनी पास से छूती रचना है कि दिल मसोस गया

Manish Kumar said...

अल्वी साहब ने इस मुए ग़म के इलाज़ की बड़ी अच्छी तरकीब बताई है। पढ़ कर मन प्रसन्न हुआ।

संजय @ मो सम कौन... said...

"तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे"

और पढ़वाओ साहब, आग लग गई है।

संजय भास्‍कर said...

कमाल की रचना है .

ताऊ रामपुरिया said...

नायाब नीरज जी. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

सुशीला पुरी said...

bahut sundar ......

Gyan Dutt Pandey said...

खुदा

घर की बेकार चीजों में रक्खी हुई
एक बेकार सी
लालटेन है !
----------
सोचने को बाध्य कर दिया। जब नहीं होगी कोई रोशनी तो काम आयेगा यही। जरा तलाश लूं कि कहां रख छोडा है अटाले में उसे।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

-आभार।

सुशील छौक्कर said...

खुदा वाली रचना बहुत पसंद आई।

Alpana Verma said...

वाकई इस पुस्तक को पढ़ना चाहिये.
खज़ाना ही लग रही है.
मुझे तो यहाँ प्रस्तुत सभी रचनाएँ ही पसंद आयीं.
आभार.

Shiv said...
This comment has been removed by the author.
Shiv said...

गजब पोस्ट है. मोहम्मद अल्वी साहब का ये लेखन भी बहुत पसंद आया.

खुदा वाली नज़्म पर निदा फाजली का लिखा हुआ याद आ गया कि;

मंदिरों-मस्जिदों की दुनियाँ में
मुझको पहचानते कहाँ हैं लोग
रोज मैं चाँद बनाकर आता हूँ
बन के सूरज मैं जगमगाता हूँ
मैं खनकता हूँ माँ के गहनों में
मैं ही हँसता हूँ छुप के बहनों में
मैं ही मजदूर के पसीने में
मैं ही बरसात के महीने में
मेरी तस्वीर आँख का आंसू
मेरी तहरीर जिस्म का जादू
मस्जिदों मंदिरों की दुनियां में
मुझको पहचानते नहीं जब लोग
मैं ज़मीनों को बेजिया करके
आसमानों में लौट जाता हूँ
मैं खुदा बन के कहर ढाता हूँ

श्रद्धा जैन said...

वाह नीरज जी हर बार की तरह इस बार भी कमाल की किताब बताई है आपने
हादसा पढ़ कर मन खुश हो गया, क्या पकड़ है कलम और सोच पर .....
बहुत बहुत शुक्रिया इस तरह किताबों की दुनिया में ले जाने के लिए

Urmi said...

बहुत बढ़िया लगा! लाजवाब! उम्दा प्रस्तुती!

Neeraj Kumar said...

बहुत हि अच्छी प्रस्तुति और आपने अल्वि साहब की उत्तम रचनाओं को पढाया...धन्यवाद...

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

लम्बी सड़क पर
दौड़ती हुई धुप
अचानक
एक पेड़ से टकराई
और टुकड़े-टुकड़े हो गयी
Kya khoobsoorat haadsa hai!

रचना दीक्षित said...

लाजवाब नीरज जी बहुत बढ़िया लगी ये पोस्ट बहुत कुछ नया जानने मिला वाकई इस पुस्तक को पढ़ना चाहिये.

आभार

Prem Farukhabadi said...

saari rachnayen lajabaw.

Ankit said...

नीरज जी,
हादसा, खुदा और कौन नज्में बेहद पसंद आई.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

घर की बेकार चीजों में रक्खी हुई
एक बेकार सी
लालटेन है !
कभी ऐसा होता है
बिजली चली जाय तो
ढूंढ कर उसको लाते हैं
बड़े ही चैन से जलाते हैं
और बिजली आते ही
बेकार चीजों में फैंक आते हैं !!
बहुत खूबसूरत. बधाई नीरज जी.

गौतम राजऋषि said...

"हादसा" को जाने कितनी जगह quote करता फिरता हूँ

Rajeev Bharol said...

बेहद सुंदर कवितायेँ.

Asha Joglekar said...

सारी की सारी रचनाएँ सुंदर पर अल्वी साहब को पढाने का शुक्रिया । इलाजे गम बहुत भाया । लालटेन क्या और खुदा क्या सहेजे जाने चाहिये तभी तो वक्त पर काम आयेंगे । शिव जी के खुदा भी कमाल के लगे ।

Unknown said...

मेरे जिस्म में कौन है ये
जो मुझसे खफा है

यह नज्म वाकई दिल, हड्‍डियों और रग-रग को झकझोर गई। बहुत खूब!!