Monday, March 1, 2010

खुशियों की हों पिचकारियॉं

सभी पाठकों को होली की ढेरों शुभ कामनाएं

आपको शायद याद हो सन 1973 में अमिताभ, राजेश खन्ना और रेखा की एक मशहूर फिल्म आई थी "नमक हराम". फिल्म तो इतनी नहीं चली जितना उसका ये गीत "दिए जलते हैं फूल खिलते हैं बड़ी मुश्किल से मगर दुनिया में दोस्त मिलते हैं..." तब ये मेरे लिए सिर्फ एक गीत था, एक मधुर गीत...आज मुझे इस गीत के मायने समझ आये हैं. दोस्त बहुत मुश्किल से मिलते हैं. बहुत समय के बाद मुझे ब्लॉग जगत में कुछ ऐसे शख्स मिले हैं जिन्हें दोस्त कहने में फक्र महसूस होता है. उन में से एक हैं जनाब तिलक राज कपूर साहब. आप भोपाल में रहते हैं और बहुत बड़े सरकारी अफसर होते हुए भी जमीन से जुड़े हुए हैं. बेहतर इंसान हैं इसलिए बेहतरीन शायरी भी करते हैं. आपने उन्हें उनके अपने या पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर जरूर पढ़ा होगा.

हँसते हुए नूरानी चेहरे वाले तिलक राज कपूर

उनसे मेरा मेल शेल का राबता है एक आध बार फोन शोन पे बात चीत भी हुई है बस, लेकिन मुझे वो बेहद अपने लगते हैं. उनका ज़िन्दगी के प्रति रवैय्या बहुत सकारात्मक है और वो हर बात में हास्य ढूंढ लेते हैं. एक बार खतो-किताबत के दौरान मैंने उन्हें कहा क्यूँ न हम मिल कर एक ग़ज़ल लिखें. उनको मेरा ये विचार ज्यादा पसंद नहीं आया लेकिन मैंने भी उनका पीछा नहीं छोड़ा और एक दिन ग़ज़ल लिखने के संयुक्त प्रयास का आगाज़ हुआ. ये सिलसिला पूरे एक महीने तक चला.कुछ वो लिखते कुछ मैं और हम एक दूसरे के लिखे में दोष ढूढ़ते हुए उन्हें दुरुस्त करते. ज्यादा मेहनत उन्होंने ने ही की. जो समझदार होगा मेहनत भी उसी को करनी पड़ती हैं ना. खैर एक महीने की जद्दो जहद के बाद जिस ग़ज़ल ने अंततोगत्वा जन्म लिया वो सुधि पाठकों के सामने प्रस्तुत है. इस ग़ज़ल में हम दोनों के ( तिलक जी के अधिक) विचार इतने अधिक गडमड हैं की ये बताना अब मुश्किल है की इसमें कहाँ से उन्होंने कहना शुरू किया है और कहाँ मैंने ख़तम किया है.

ये संयुक्त प्रयास कैसा रहा आप नहीं बताएँगे तो कौन बताएगा?

खुशियों की हों पिचकारियॉं




रंजिशों को अलविदा की, यूँ करें तैयारियां
दिल के गुलशन में उगायें प्यार की फुलवारियां

ज़ख्‍म जो देती हैं ये, ताउम्र वो भरते नहीं
खंज़रों से तेज़ होती हैं, ज़बां की आरियाँ

छत, दरो-दीवार, खिड़की, या झरोखे से नहीं
घर बुलाता है अगर, गूँजें वहॉं किलकारियॉं

चंद लम्हों बाद थक कर सुख तो पीछे रह गया
पर चलीं बरसों हमारे साथ में दुश्वारियां

जि़न्‍दगी, आनन्‍द से जीना है तो फिर छोड़ दें
झूठ, गुस्‍सा, डाह, लालच, वासना, मक्कारियां

आप तो सो जायेंगे, महफूज़ बंगलों में कहीं
खाक कर देंगी शहर, अल्‍फ़ाज़ की चिंगारियॉं।

काश इस होली में मज़हब का ना कोई फर्क हो
रंग हों बस प्‍यार के, खुशियों की हों पिचकारियॉं



हम को तो पहचानते हैं ना आप

62 comments:

डॉ टी एस दराल said...

भेद भाव को भूलकर , सब मीठी बोलें बोली
जेम्स , जावेद, श्याम और संता , सब मिलकर खेलें होली।

आपको और आपके समस्त परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें।

डॉ. मनोज मिश्र said...

काश इस होली में मज़हब का ना कोई फर्क हो
रंग हों बस प्‍यार के, खुशियों की हों पिचकारियॉं..
वाह,शुभ होली

समयचक्र said...

रंजिशों को अलविदा की, यूँ करें तैयारियां
दिल के गुलशन में उगायें प्यार की फुलवारियां

बहुत सुन्दर प्रेरक सन्देश देती बेहतरीन रचना .
होली पर्व पर शुभकामनाये और बधाई .

Yogesh Verma Swapn said...

wah neeraj ji, sanyukt prayas , shaandaar parinaam. samyochit.............holi ki dheron shubhkaamnayen.

Apanatva said...

ek se bad kar ek sher maza aa gaya.....aapka ye samuhik prayas gazab ka safal raha .......
badhai........
holi kee shubhkamnae bhee sweekare.....

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आदरणीय नीरज जी, प्रणाम...
आदरणीय तिलकराज जी, आपको भी प्रणाम, सलाम
कौन सा शेर..या मिसरा...किनका है....
पहचानना बहुत आसान है....
देखिये-
रंजिशों को अलविदा की, यूँ करें तैयारियां
दिल के गुलशन में उगायें प्यार की फुलवारियां

आप तो सो जायेंगे, महफूज़ बंगलों में कहीं
खाक कर देंगी शहर, अल्‍फ़ाज़ की चिंगारियॉं।

ये गारंटी से आप दोनों के ही हैं.....हा हा हा....
अब होली है, तो इतना खुमार तो हमें भी होगा (है कि नहीं?)
और शेर-
काश इस होली में मज़हब का ना कोई फर्क हो
रंग हों बस प्‍यार के, खुशियों की हों पिचकारियॉं
ये सिर्फ़ आप दोनों का नहीं...
अम्नो-अमान..
भाईचारा..
मेल-मिलाप...
चाहने वाले हर इंसान के जज़्बात का संगम है....
आपकी ग़जल और इसमें पिरोई गई भावनाओं को दिल से सलाम.
होली की हार्दिक शुभकामनाएं.

तिलक राज कपूर said...

नीरज भाई ज़र्र:नवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया।
नीरज भाई से वैचारिक स्‍तर पर साम्‍यता ही है जो मुख्‍य आधार रही है उनसे संवाद का वरना मुझे करीब से जानने वाले एक खुशतबीयत इंसान के रूप में तो जानते हैं पर ये भी जानते हैं कि मुझसे संपर्क रखते हुए भी दोस्‍ती हर किसी के बस की बात नहीं। बहुत झेला है इन्‍होंने मुझे; शायद यह ध्‍यान में रखकर कि:
कुछ दिनों कोशिश करो फिर खुद कहोगे,
रफ़्त: रफ़्त: प्‍यार होता जा रहा है।
मैं बहुत दोस्‍त नहीं बना पाया क्‍यूँकि:
दोस्‍ती कैसी वफ़ा की बात कैसी,
आदमी बाज़ार होता जा रहा है।
ग़ज़ल जैसी है आपके सामने है। मेरी भूमिका सीमित है अशआर पर चर्चा करते हुए अपना मत रखने की इसे नीरज भाई ने संयुक्‍त प्रयास माना है, शिरोधार्य है। उद्देश्‍य तो अभिव्‍यक्ति का है श्रेय का नहीं।
गुलज़ार साहब ने स्‍वर्गीय मीनाकुमारी की डायरी के पन्‍ने समर्पित करते हुए कहा था कि कहने के बाद कलाम शायर का नहीं रह जाता, अवाम का हो जाता है। शाहिद भाई के कथन से भी यही पुष्‍ट होता है।
जि़न्‍दगी में रोने के लिये बहुत है और खुश रहने के लिये भी बहुत, अब जिसे जिसमें आनंद आता हो- अपना अपना नज़रिया है। नीरज भाई को खुलकर जीना आता है, यही उनके आनंद का आधार है।

अविनाश वाचस्पति said...

बेरंग कैसे पहचानें
रंग लगाकर आओ
चेहरे पर तो जानें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

होली की शुभकामनाएँ!

अजय कुमार said...

होली की सतरंगी शुभकामनायें

girish pankaj said...

holi ki shubhkamanaye.....

daanish said...

हर बार की तरह एक उम्दा और मेआरी कलाम
दो ज़हन लेकिन दिल एक !!
जिंदगी को बड़े क़रीब से समझाते हुए अश`आर ...
वाह-वा

दिल का हर कोना हुआ है प्यार की खुशबू से तर
आप दोनों की बड़ी नायाब हैं गुलकारियाँ

vandana gupta said...

WAAH WAAH..........BAHUT HI SUNDAR SANYUKT PRAYAS RAHA .........SABHI SHER EK SE BADHKAR EK HAI ..........KISI EK KI TARIF DOOSRE KE SATH NAINSAAFI HOGI.

HOLI KI HARDIK SHUBHKAMNAYEIN.

http://vandana-zindagi.blogspot.com
http://redrose-vandana.blogspot.com
http://ekprayas-vandana.blogspot.com

शोभा said...

अच्छा लिखा है। होली की शुभकामनाएं।

संजय भास्‍कर said...

होली की ढेरों शुभ कामनाएं

विवेक रस्तोगी said...

होली की शुभकामनाएँ ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

होली के अवसर पर नसीहत भरी गज़ल लाजवाब है

Randhir Singh Suman said...

आपको तथा आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ.nice

jayanti jain said...

ज़ख्‍म जो देती हैं ये, ताउम्र वो भरते नहीं
खंज़रों से तेज़ होती हैं, ज़बां की आरियाँ
great truth

shikha varshney said...

काश इस होली में मज़हब का ना कोई फर्क हो
रंग हों बस प्‍यार के, खुशियों की हों पिचकारियॉं

waah nehtareen bhav...
aapko avam aapke pariwar ko holi ki samast shubhkamnaye

देवेन्द्र पाण्डेय said...

संयुक्त प्रयास के बाद आये बच्चे बहुत अच्छे हैं!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अरे..सभी शेर बहुत अच्छे हैं ...कहना क्या चाहता था क्या लिख दिया ..मेरा मतलब है कि सभी शेर प्यारे बच्चों की तरह बहुत ही अच्छे हैं. खासकर इसका तो कहना ही क्या..
छत, दरो-दीवार, खिड़की, या झरोखे से नहीं
घर बुलाता है अगर, गूँजें वहॉं किलकारियॉं
...पहली टिप्पणी के लिए इतना ही कह सकता हूँ ..बुरा न मानो होली है.

मुंहफट said...

नीरज जी, अच्छी रचना और होली, दोनों की हार्दिक शुभकामनाएं. पढ़ते रहिए www.sansadji.com सांसदजी डॉट कॉम

प्रकाश पाखी said...

नीरज जी, और आदरणीय तिलक राज जी दोनों के संयुक्त प्रयास से तो चमत्कार होना ही था...कमाल की उस्तादी है गजल के हर शेर में नजाकत भी है ,खूबसूरती भी है.पैनापन भी है तो दिल में उतरने का अंदाज भी है.आपने हमारी होली की मस्ती को सैकड़ों गुना बढ़ा दिया है
होली की शुभकामनाएं!

kshama said...

रंजिशों को अलविदा की, यूँ करें तैयारियां
दिल के गुलशन में उगायें प्यार की फुलवारियां
In alfazonka kya kahna!
Sansmaran padhna bhi bahut achha laga!

SURINDER RATTI said...

Neeraj Ji,
HOLI KI AAP SABKO SHUBH KAAMNAYEIN - SURINDER RATTI
GHAZAL KE MADHYAM SE HOLI KE SUNDER VICHAAR .....

काश इस होली में मज़हब का ना कोई फर्क हो
रंग हों बस प्‍यार के, खुशियों की हों पिचकारियॉं

अनूप शुक्ल said...

जय हो!
छत, दरो-दीवार, खिड़की, या झरोखे से नहीं
घर बुलाता है अगर, गूँजें वहॉं किलकारियॉं

पढ़कर लगा कि बुजुर्गों को घर काटने को क्यों दौड़ता है!

अर्चना तिवारी said...

होली है होली रंगों की रंगोली
आओ हम मिलजुल खेलें
संग यार नटखटों की टोली
मुबारक हो आपको ये होली

Udan Tashtari said...

वाह वाह!! बहुत खूब!!


ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.


आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

-समीर लाल ’समीर’

अपूर्व said...

खाक कर देंगी शहर, अल्‍फ़ाज़ की चिंगारियॉं।
और लोग कहते हैं कि पेट्रोल, किरोसीन जरूरत होते हैं शहर मे आग लगाने के लिये..
होली की भावना को व्यक्त करती गज़ल के लिये शुक्रिया और होली की शुभकामनाएँ

तिलक राज कपूर said...

सुबह एक बिन्‍दु पर टिप्‍पणी करते करते रह गया, अब भी व्‍यक्‍त नहीं हुआ तो स्‍वयं से न्‍याय नहीं कर सकूँगा इसलिये फिर लौटा हूँ।
संघ लोक सेवा आयोग हो या राज्‍य सेवा आयोग, वह सिर्फ लोक सेवकों का चयन करता है और मैं भी मात्र एक लोक सेवक हूँ। मेरे सेवा दायित्‍व लोक सेवक के हैं और मेरी स्‍पष्‍ट प्रतिबद्धता लोक सेवा से है। अफसर शब्‍द से मुझे एक विचित्र सी असहनीय बू आती है।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगा आज आप को पढना.
होली की बहुत बहुत बधाई

वीनस केसरी said...

वाह नीरज जी ये भी खूब रही
अब आपको कौन नहीं जानता ब्लॉग जगत में :)

आप जब भी जुगलबंदी करते है कमाल होता है पहले भी आपने और गुरु जी ने ये कमाल किया हुआ है
तिलक जी के साथ का ये प्रयास भी रंग ले आया और क्या खूब शेर निकले है
दुश्वारियां, पिचकारियाँ जैसे काफिया में जो बात निकाल ली गई है बस बार बार पढ़ कर रह जाता हूँ
तिलक जी से तो मुझे जो सीखने को मिल रहा है उसके बारे में क्या कहूँ
मुझ जैसे गजल की गलियों के नवजात शिशु को तिलक जी जो स्नेह दे रहे है मेरे लिए बहुत गर्व की बात है आजकल तिलक जी से बढ़िया मेल संपर्क बना हुआ है और चैटिंग भी खूब करता हूँ

आप लोगों से जितना सीखने को मिल रहा है समेट रहा हूँ

अंत में बस यही कहूँगा कि मैं बहुत भाग्यशाली हूँ
पहले गुरु जी मिले फिर आप और फिर तिलक जी :)

Anita kumar said...

यूं तो हर शेर दिल को छूता है लेकिन ये बहुत अच्छा लगा
ज़ख्‍म जो देती हैं ये, ताउम्र वो भरते नहीं
खंज़रों से तेज़ होती हैं, ज़बां की आरियाँ

आप को और तिलक जी को होली की शुभकामनाएं

गर्दूं-गाफिल said...

जब दो दीवाने दिल लेकर पीछे पड़ जाये
शेर बेचारे क्या करे ,,हाथ चाटने आये
हाथ चाटने आये .हर एक की रंगत ऐसी
दिल पे कब्ज़ा गांठ के कर दी ऐसी तैसी

रंग लेकर के आई है तुम्हारे द्वार पर टोली
उमंगें ले हवाओं में खड़ी है सामने होली

निकलो बाहं फैलाये अंक में प्रीत को भर लो
हारने दिल खड़े है हम जीत को आज तुम वर लो
मधुर उल्लास की थिरकन में आके शामिल हो जाओ
लिए शुभ कामना आयी है देखो द्वार पर होली

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बेहद उम्दा मखमली ग़जल में एक टाट का पेबन्द मेरी ओर से होली के नाम पर-

आज होली की उमंगो में रंगी खिलती रही
शर्ट, पतलूनें, पजामें, चोलियाँ औ सारियाँ

दीपक 'मशाल' said...

Waah, waah, waah... :)
aur jitnee baar kah sakta hoon utnee baar waah.. ye padh kar apne ek senior jo ab scientist hain Allahabad University me ke sath jugalbandee me likhi kavitaayen yaad ho aayeen.. :)
Jai Hind...

अमिताभ मीत said...

चंद लम्हों बाद थक कर सुख तो पीछे रह गया
पर चलीं बरसों हमारे साथ में दुश्वारियां

क्या बात है ... लाजवाब ग़ज़ल है भाई ..... हर शेर उम्दा.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आप दोनों तो मेरे आदर्श हैं और मैं क्या कहूँ.
मेरी जिंदगी कब ग़ज़ल हुई, ये मैं कैसे बताऊ...

कारवाँ ये अमन का, चैन का, प्यार का बस बढ़ता रहे.

Shiv said...

बहुत उम्दा गजल है. पंकज जी और आपकी जुगलबंदी पढ़ी है. आज कपूर साहब और आपकी जुगलबंदी भी उतनी ही भायी.

कपूर साहब के बारे में जानना सुखद रहा.

रश्मि प्रभा... said...

saath ka kamaal bahut hi shandaar raha......yah dosti, in bhawnaaon ka saath hamesha rahe

सुशील छौक्कर said...

सच कहते हो जी कि खुशियों की हो पिचकारियाँ। होली के शुभ अवसर पर एक और बेहतरीन गजल।
जि़न्‍दगी, आनन्‍द से जीना है तो फिर छोड़ दें
झूठ, गुस्‍सा, डाह, लालच, वासना, मक्कारियां

वाह जी वाह क्या कहने।

Renu goel said...

रंगों की बात करते करते कहाँ खो गए ...हमने तो समझा होली का कोई गीत सुनाने जा रहे हैं ....
वैसे होली के हर रंग की तरह सबकी जिन्दगी रंगीन रहे यही हमारी कामना है .... HAPPY HOLI

शरद कोकास said...

हमने पहचान लिया हँसता हुआ नूरानी चेहरा आपका भी है ।

लता 'हया' said...

wah,
aap donon ko sanyukt badhayi,qabile-tareef hain aap donon ki sanyukt tayariyn,dushwariyan etc.....

इस्मत ज़ैदी said...

नीरज जी और तिलक जी ,
बहुत ही सुंदर ,सुबहान अल्लाह,


आप तो सो जायेंगे, महफूज़ बंगलों में कहीं
खाक कर देंगी शहर, अल्‍फ़ाज़ की चिंगारियॉं।

चंद लम्हों बाद थक कर सुख तो पीछे रह गया
पर चलीं बरसों हमारे साथ में दुश्वारियां

ज़ख्‍म जो देती हैं ये, ताउम्र वो भरते नहीं
खंज़रों से तेज़ होती हैं, ज़बां की आरियाँ

हर शेर लाजवाब है ,रूह को तसकीन देती हुई रचना ,सच है अगर पर्व त्योहारों से ये मज़हब के रंग हट कर एकता और भाईचारे का ही रंग चढ़ जाए तो दुनिया कितनी हसीन हो जाए ,
आप दोनों मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं

Unknown said...

होली के इस शुभ अवसर पे आपने जो रंग जमाया है, कभी न भूल पायेंगे ऐसा शेर फरमाया है !
होली मुबारक चाचा जान.

Pawan Kumar said...

क्या खूब जुगलबंदी की है कपूर साहब और आपने..........बिलकुल नहीं लग रहा की आप दो ने यह ग़ज़ल लिखी.....हम ख्याल होना भी कम आश्चर्य नहीं.........बहरहाल ग़ज़ल के शेर तो बेशकीमती हैं........
ज़ख्‍म जो देती हैं ये, ताउम्र वो भरते नहीं
खंज़रों से तेज़ होती हैं, ज़बां की आरियाँ
आप तो सो जायेंगे, महफूज़ बंगलों में कहीं
खाक कर देंगी शहर, अल्‍फ़ाज़ की चिंगारियॉं।
साधुवाद आप दोनों शायरों को .......

Kusum Thakur said...

तिलक जी और आपको बहुत बहुत धन्यवाद !! साथ ही इतने अच्छे शेर के लिए बधाई !!

निर्मला कपिला said...

इतनी महत्वपूर्ण पोस्ट मुझ से छूट गयी ये कैसे हो गया। नीरज जी िआदरणीय तिलक राज कपूर जी की सुह्रदयता और सरलता से भला कौन प्रभावित नही होगा। वो बहुत अच्छे इन्सान हैं जीवन मे बहुत लोग देखे हैं मगर उन जैसा अच्छा इन्सान नही देखा था। किसी को आगे बढाने और मदद करने के लिये एक दम तयार रहते हैं । मुझे उन से बहुत प्रेरणा मिलती है। उनकी गज़लें तो लाजवाब होती ही हैं । ये संयुक्त प्रयास तो बहुत ही अच्छा रहा। एक एक शेर क्या कमाल है बस पढे जा रही हूँ और दाद दिये जा रही हूँ
मतला ही उनकी पहचान है और आप भी उसमे शामिल हो गये तो सोने पे सुहागा हो गया। खुशियाँ बाँटने वाले ही ये मतला कह सकते हैं।

चंद लम्हों बाद थक कर सुख तो पीछे रह गया
पर चलीं बरसों हमारे साथ में दुश्वारियां
वाह बहुत खूब
जि़न्‍दगी, आनन्‍द से जीना है तो फिर छोड़ दें
झूठ, गुस्‍सा, डाह, लालच, वासना, मक्कारियां

आप तो सो जायेंगे, महफूज़ बंगलों में कहीं
खाक कर देंगी शहर, अल्‍फ़ाज़ की चिंगारियॉं। वाह कमाल के शेर घडे हैं दोनो ने मिल कर जीवन का सन्देश देते हुये।

काश इस होली में मज़हब का ना कोई फर्क हो
रंग हों बस प्‍यार के, खुशियों की हों पिचकारियॉं
बहुत सुन्दर अद्भुत गज़ल है आशा है ये प्रयोग भविषय मे भी जारी रहेगा। कपूर भाई साहिब और आपको बहुत बहुत शुभकामनायें और इतनी अच्छी गज़ल पढवाने के लिये धन्यवाद भी।

नीरज गोस्वामी said...

E-Mail received from HPS Mandi Dabwali:

WAH JANAB WAH.
BAHUT KHOOB.
ANAND AA GAYA.
THANKS
RAMESH SACHDEVA

नीरज गोस्वामी said...

E-Mail received from Mr.Jay Sodera from USA:

Neeraj,

Thanks a million for sharing beautiful poems you write. I love'm all and read every time it shows up in my email and enjoy every word and line of it. I need your permission to read some of your poems on Dallas Radio station and airwaves where, coincidentally, I am doing the radio jockey also.
Bye the way, neeraj teri photo dekhi, yaar bilkul bhi nahi badla too to..Wahi ghane baal..hansta chehra...Very good and very inspiring... love it man...

Sodera

नीरज गोस्वामी said...

E-Mail Received from Respected Chandrabhan Bhardwaj Ji:-

भाई नीरज जी और तिलक राज जी ,
बेहद सुंदर गज़ल है काफियों को बहुत ही सलीके से
पिरोया है। इन्हीं काफियों को लेकर मेरी एक गज़ल
मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुकी है और दूसरी कल प्रकाशित होगी।
आपकी गज़ल के मतले और मकते में कुछ सुझाव देना चाहता हूँ।
देखें कैसे लगते हैं -
मतला -
रंजि़शों को अलविदा कर यूँ करें तैयारियाँ
दिल के गुलशन में उगाऐं प्यार की फुलवारियाँ

मकता-
काश होली में न मज़हब का कहीं कुछ फ़र्क हो
रंग हों बस प्यार के खुशियों की हों पिचकारियाँ

चन्द्रभान भारद्वाज

कडुवासच said...

छत, दरो-दीवार, खिड़की, या झरोखे से नहीं
घर बुलाता है अगर, गूँजें वहॉं किलकारियॉं
....बहुत सुन्दर,प्रसंशनीय गजल,बधाईंया!!!

Urmi said...

जि़न्‍दगी, आनन्‍द से जीना है तो फिर छोड़ दें
झूठ, गुस्‍सा, डाह, लालच, वासना, मक्कारियां..
बिल्कुल सही कहा है आपने! बहुत ही सुन्दरता से आपने हर एक पंक्तियाँ प्रस्तुत किया है जो प्रशंग्सनीय है! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

काश इस होली में मज़हब का ना कोई फर्क हो
रंग हों बस प्‍यार के, खुशियों की हों पिचकारियॉं
bahut sarthak panktiyan hain neeraj ji.
kya hamari kitab per bhi nazar dali aapne?

Ankit said...

ये लीजिये, ये तो सोने पे सुहागा वाली बात हो गयी
दो धमाकेदार लोगो की जोड़ी
काश इस होली में मज़हब का ना कोई फर्क हो
रंग हों बस प्‍यार के, खुशियों की हों पिचकारियॉं

"अर्श" said...

आप दोनों ही उस्ताद हैं फिर कुछ कहना बाकी नहीं रहता ....

पूरी ग़ज़ल मुकम्मल ...

अर्श

योगेन्द्र मौदगिल said...

behtreen jugalbandi .... aap dono ko pranam...

Asha Joglekar said...

काश इस होली में मज़हब का ना कोई फर्क हो
रंग हों बस प्‍यार के, खुशियों की हों पिचकारियॉं ।

ऐसी ही हो सबकी होली ।

नीरज गोस्वामी said...

E-Mail received from Ankur:-

बहुत सारा मीठा खाने के बाद अगर कुछ स्वादिष्ट नमकीन मिल जाये तो जो आनंद आता है कुछ वैसा ही आनंद मुझे इस पोस्ट को पढ़ कर मिला.

होली के अवसर पर हर तरफ हंसी ठिठोली का माहौल है. हर टी.वी. चैनल, मैगजीन, ब्लॉग, होली के इस अवसर पर हास्य व्यंग बिखेर रहा है .
ऐसे वक़्त पर एक संजीदा, सटीक, सार्थक और बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ कर होली का जायका ही बदल गया.
वैसे मैंने ऐसा अंदेशा लगाया था की इस बार का ब्लॉग होली के अवसर पर इस ब्लॉग पर भी कुछ हास्य रस वाला मसाला ही होगा.
पर कहेते है ना के " मन का हो तो भला , न हो तो और भी भला" .
वैसे शायरी की मुझे कुछ खास समझ नहीं है , फिर भी जितना मैं समझा हूँ उस लिहाज़ से मैंने इस ग़ज़ल को बहुत एन्जॉय किया है.
तिलक राज कपूर अंकल को सादर प्रणाम प्रेषित कीजिएगा

अंकुर

गौतम राजऋषि said...

इस जुगलबंदी पे कौन न मर जाये ऐ खुदा...आहहा!

तिलक साब तो एकदम से हर दिल अजीज बन गये हैं...