Monday, July 20, 2009

बरसे बदरिया सावन की




मुंबई से मेंरे मित्र श्री देवमणि पांडे जी ने मुझे ई-मेल भेजा जिसे मैं बिना कांट छाँट के आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ. देवमणि जी आयकर विभाग में कार्यरत हैं और ग़ज़ब के गीत ग़ज़लें लिखते हैं, उनके गीत उन्हीं से सुनना एक ऐसा अनुभव है जिसे भुलाना आसान नहीं. चुम्बकीय व्यक्तित्व के मालिक देवमणि जी सच्चे अर्थों में साहित्य के पुजारी हैं.

13 जुलाई को सावन माह का पहला सोमवार था । सावन में तीज का त्योहार मनाया जाता है । राजस्थान में इसे हरियाली तीज और उत्तर प्रदेश में कजरी तीज या माधुरी तीज कहा जाता है । हरापन समृद्धि का प्रतीक है । स्त्रियाँ हरे परिधान और हरी चूड़ियाँ पहनती हैं । हरे पत्तों और लताओं से झूलों को सजाया जाता है । झूले और कजरी के बिना सावन की कल्पना नहीं की जा सकती । हमारे यहाँ हर त्योहार के पीछे कोई न कोई सामाजिक या वैज्ञानिक कारण होता है । कुछ लोगों का कहना है कि बरसात में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है । झूला झूलने से हमें अधिक ऑक्सीजन मिलती है ।

कजरी में प्रेम के दोनों पक्ष यानी संयोग और वियोग दिखाई देते हैं । कभी-कभी इसके पीछे बड़ी मार्मिक दास्तान भी होती है । आज़ादी के आंदोलन का दौर था । शहर में कर्फ़्यू लगा हुआ था । एक नौजवान अपने प्रियतम से मिलने जा रहा था । एक अँग्रेज़ सिपाही ने गोली चला दी । मारा गया । मगर वह आज भी कजरी में ज़िंदा है - 'यहीं ठइयाँ मोतिया हेराय गइले रामा हो...।'

मॉरीशस और सूरीनाम से लेकर जावा-सुमात्रा तक जो लोग आज हिंदी का परचम लहरा रहे हैं, कभी उनके पूर्वज एग्रीमेंट पर यानी गिरमिटिया मज़दूर के रूप में वहाँ गए थे । इन लोगों को ले जाने के लिए मिर्ज़ापुर सेंटर बनाया गया था । वहाँ से हवाई जहाज़ के ज़रिए इन्हें रंगून पहुँचाया जाता था । जहाँ पानी के जहाज़ से ये विदेश भेज दिए जाते थे । बनारस की कचौड़ी गली में रहने वाली धनिया का पति जब इस अभियान पर रवाना हुआ तो कजरी बनी । उसकी व्यथा-कथा को सहेजने वाली कजरी आपने ज़रूर सुनी होगी-

मिर्ज़ापुर कइले गुलज़ार हो ...कचौड़ी गली सून कइले बलमू
यही मिर्ज़ापुरवा से उड़ल जहजिया
पिया चलि गइले रंगून हो... कचौड़ी गली सून कइले बलमू

इस कजरी को शास्त्रीय गायिका डॉ.सोमा घोष जब मुम्बई के एक कार्यक्रम में गा रही थीं तो उनके साथ संगत कर रहे थे भारतरत्न स्व.उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ । उन्होंने शहनाई पर ऐसा करुण सुर उभारा जैसे कलेजा चीरकर रख दिया हो । भाव भी कुछ वैसे ही कलेजा चाक कर देने वाले थे । प्रिय के वियोग में धनिया पेड़ की शाख़ से भी पतली हो गई है । शरीर ऐसे छीज रहा है जैसे कटोरी में रखी हुई नमक की डली गल जाती है -

डरियो से पातर भइल तोर धनिया
तिरिया गलेल जैसे नोन हो... कचौड़ी गली सून कइले बलमू

डॉ.सोमा घोष को स्व.उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ अपनी पुत्री मानते थे । .सोमा जी हर साल उस्तादजी की याद में कार्यक्रम करती हैं । पिछले साल के कार्यक्रम में उन्होंने 'यादें' नामक सीडी रिलीज़ की । उसमें यह लाइव कजरी शामिल है ।
25 साल से मुंबई में हूँ । अपने गाँव में आख़िरी बार जो झूला देखा था उसकी स्मृतियाँ अभी भी ताज़ा हैं । आँख बंद करता हूँ तो झूले पर कजरी गाती हुई स्त्रियाँ दिखाईं पड़ती हैं - 'अब के सावन मां साँवरिया तोहे नइहरे बोलइब ना ।' उन्हीं स्मृतियों के आधार पर लिखे गए तीन गीत आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

महीना सावन का

उमड़-घुमड़ आए कारे-कारे बदरा
प्यार भरे नैनों में मुस्काया कजरा
बरखा की रिमझिम जिया ललचाए
भीग गया तनमन भीग गया अँचरा

सजनी आंख मिचौली खेले बांध दुपट्टा झीना
महीना सावन का
बिन सजना नहीं जीना महीना सावन का

मौसम ने ली है अंगड़ाई
चुनरी उड़ि उड़ि जाए
बैरी बदरा गरजे बरसे
बिजुरी होश उड़ाए

घर-आंगन, गलियां चौबारा आए चैन कहीं ना

खेतों में फ़सलें लहराईं
बाग़ में पड़ गये झूले
लम्बी पेंग भरी गोरी ने
तन खाए हिचकोले

पुरवा संग मन डोले जैसे लहरों बीच सफ़ीना

बारिश ने जब मुखड़ा चूमा
महक उठी पुरवाई
मन की चोरी पकड़ी गई तो
धानी चुनर शरमाई

छुई मुई बन गई अचानक चंचंल शोख़ हसीना

कजरी गाएं सखियां सारी
मन की पीर बढ़ाएं
बूंदें लगती बान के जैसे
गोरा बदन जलाएं

अब के जो ना आए संवरिया ज़हर पड़ेगा पीना

( इस गीत को radiosabrang.com के सुर संगीत में सुना जा सकता है )

सावन के सुहाने मौसम में

खिलते हैं दिलों में फूल सनम सावन के सुहाने मौसम में
होती है सभी से भूल सनम सावन के सुहाने मौसम में ।

यह चाँद पुराना आशिक़ है
दिखता है कभी छिप जाता है
छेड़े है कभी ये बिजुरी को
बदरी से कभी बतियाता है

यह इश्क़ नहीं है फ़िज़ूल सनम सावन के सुहाने मौसम में।

बारिश की सुनी जब सरगोशी
बहके हैं क़दम पुरवाई के
बूंदों ने छुआ जब शाख़ों को
झोंके महके अमराई के

टूटे हैं सभी के उसूल सनम सावन के सुहाने मौसम में

यादों का मिला जब सिरहाना
बोझिल पलकों के साए हैं
मीठी सी हवा ने दस्तक दी
सजनी कॊ लगा वॊ आए हैं

चुभते हैं जिया में शूल सनम सावन के सुहाने मौसम में


बरसे बदरिया (लोकधुन पर आधारित)

बरसे बदरिया सावन की
रुत है सखी मनभावन की

बालों में सज गया फूलों का गजरा
नैनों से झांक रहा प्रीतभरा कजरा
राह तकूं मैं पिया आवन की
बरसे बदरिया सावन की

चमके बिजुरिया मोरी निंदिया उड़ाए
याद पिया की मोहे पल पल आए
मैं तो दीवानी हुई साजन की
बरसे बदरिया सावन की

महक रहा है सखी मन का अँगनवा
आएंगे घर मोरे आज सजनवा
पूरी होगी आस सुहागन की
बरसे बदरिया सावन की


(मुंबई की एक काव्य गोष्ठी में देवमणि जी कविता पाठ करते हुए.)

रचनाएँ पसंद आने पर पाठक श्री देवमणि जी को सीधे ही इस पते पर धन्यवाद प्रेषित कर सकते हैं
M : 98210-82126 / R : 022 - 2363-2727
Email : devmanipandey@gmail.com

48 comments:

mehek said...

बारिश ने जब मुखड़ा चूमा
महक उठी पुरवाई
मन की चोरी पकड़ी गई तो
धानी चुनर शरमाई


छुई मुई बन गई अचानक चंचंल शोख़ हसीना


behad khubsurat bhav

डॉ .अनुराग said...

देवमणि जी गजब के व्यक्तित्व के स्वामी है ...इसे नेट का शुक्रिया ही कहे की कई विलक्षण व्यक्तित्व इस तरह से सामने आ रहे है ..वैसे भी बादल मुंबई पर ज्यादा मेहरबान है....

चाय ओर पकोडो के दरमियाँ एक नयी गजल.....?????

vandana gupta said...

shandaar

ओम आर्य said...

bahut hi kubsurat rachana hai.....waise saawan ki jhadi lagi huee hai ........our nazme bhi jawaan ho rahi hai ......

Razi Shahab said...

achcha bahut achcha

दिगम्बर नासवा said...

देवमणि जी से parichay का shukriyaa........... bahu aayaami हैं dev जी........ barkha तो neeras लोगों को भी प्यार करना sikha देती है........ फिर ऐसे लाजवाब गीत तो kahar dhaa देते हैं..........लाजवाब और आपका भी शुक्रिया........

रंजू भाटिया said...

बहुत सुन्दर

यह चाँद पुराना आशिक़ है
दिखता है कभी छिप जाता है
छेड़े है कभी ये बिजुरी को
बदरी से कभी बतियाता है

शुक्रिया

रश्मि प्रभा... said...

बरसे बदरिया सावन की
रुत है सखी मनभावन की
........
बारिश का हर लम्हा खूबसूरत

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने!

Prem Farukhabadi said...

महक रहा है सखी मन का अँगनवा
आएंगे घर मोरे आज सजनवा
पूरी होगी आस सुहागन की
बरसे बदरिया सावन की

bahut hi sundar

Science Bloggers Association said...

ye barsat mubarak ho.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Dr. Amar Jyoti said...

एक तरफ़ सावन की फुहारों के चित्र तो दूसरी ओर गिरमिटिया मज़दूरों की व्यथा-कथा!सावन में आँखें भिगोने का पूरा प्रबन्ध कर दिया आपने। हार्दिक आभार।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहत सुन्दर प्रस्तुति।
दिल बाग-बाग हो गया।

Murari Pareek said...

वाह बारिश न होते हुए भी बारिश में भिगो दिया | जैसे अभी अभी बारिश का आनंद उठा रहा हूँ !! नीरज जी हम खुश किस्मत हैं जो ऐसी ऐसी कलाओं के धनि व्यक्तियों के बारे में आपसे जान पाते है !

Anonymous said...

शहर में पैदा होने और बड़ा होने के दौरान कभी कजरी से वास्ता ही नहीं जुड़ पाया....
लेकिन ये शायद लेखनी का ही कमाल है की सब कुछ सामने ही सा घटता दिखाई देता है....
शुभकामनायें...
www.nayikalam.blogspot.com

Alpana Verma said...

सावन की इतनी सुन्दर रचनाएँ..देवमणि जी को धन्यवाद.और आप को भी इन्हें यहाँ प्रस्तुत करने का..
आप अपने घर से कितने भी समय से दूर रहे हों..तीज त्यौहार कहाँ भूलते हैं...आप के बताये गीत रेडियो सबरंग पर सुनने जा रही हूँ..'कजरी' की एक पॉडकास्ट यहाँ भी लगा देते तो अच्छा रहता..
बहुत ही मनभावन पोस्ट है.

Shiv said...

देवमणि जी को धन्यवाद जो उन्होंने इतनी बढ़िया मेल लिखी. लोकगीत की बात हो तो शायद कजरी सबसे पहले आती है. बहुत ही बढ़िया गीत लिखा है पाण्डेय जी ने. बहुत बढ़िया पोस्ट है.

संजय सिंह said...

भईया प्रणाम

आपके गीतों ने सावन को महसूस करा दिया है. बड़ा ही जीवंत भावः है. अति सुन्दर

यह इश्क नहीं है फ़िज़ूल सनम सावन के सुहाने मौसम में।
टूटे हैं सभीभ के उसूल सनम सावन के सुहाने मौसम में
चुभते हैं जिया में शूल सनम सावन के सुहाने मौसम में
बरसे बादल, खिले "नीरज" सावन के सुहाने मौसम में

देवमणि से परिचय करने के लिए सुक्रिया

Udan Tashtari said...

देवमणि जी से परिचय कराने का आभार..

कचोड़ी गली भई सून..कजरी की बात ही निराली है. हमारी तो ससुराल मिर्जापुर है...

सभी गीत और बल्कि यूँ कहें कि पूरा ईमेल प्रस्तुत करने का आभार.

निर्मला कपिला said...

देव मणी जी से परिचय बहुत अच्छा लगा और उन की उन सामयिक रचनाओं ने तो दिल को छू लिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद्

ताऊ रामपुरिया said...

बारिश ने जब मुखड़ा चूमा
महक उठी पुरवाई
मन की चोरी पकड़ी गई तो
धानी चुनर शरमाई

बस क्या कहूं? पूरी पोस्ट का एक एक शब्द लाजवाब है. बधाई स्वीकार करें.

रामराम.

श्रद्धा जैन said...

बारिश ने जब मुखड़ा चूमा
महक उठी पुरवाई
मन की चोरी पकड़ी गई तो
धानी चुनर शरमाई

wah

Devmani ji waqayi bahut diggaj kavi hai

Shukriya Neeraj ji
itni achhi mail hum sabse share karne ke liye

Gyan Dutt Pandey said...

ओह यह तो अधिकारी+साहित्यकार की झलक है। पूर्णकालिक साहित्यकार होते तो जाने कितना सशक्त हस्ताक्षर होते!
परिचय के लिये धन्यवाद नीरज जी।

SAHITYIKA said...

teeno hi kavitaye..ek se badh kar ek laajawab hai ..

Manish Kumar said...

देवमणि जी ने तो समा बाँध दिया सावन का। अगर उनकी आवाज़ में ये रचनाएँ सुनने को मिल जातीं तो सोने पर सुहागा हो जाता।

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही बेहतरीन पोस्ट है ,देवमणी जी को सामने लाने के लिए आपको बहुत धन्यवाद ,इन लाइनों नें तो मस्त ही कर दिया है क्योंकि कजरी तो मिर्जापुरी ही अच्छी लगती है-
मिर्ज़ापुर कइले गुलज़ार हो ...कचौड़ी गली सून कइले बलमू
यही मिर्ज़ापुरवा से उड़ल जहजिया
पिया चलि गइले रंगून हो... कचौड़ी गली सून कइले बलमू .

pran sharma said...

NEERAJ JEE,
DEVMANI PANDEV JEE KEE
SAAVAN KEE BARSAAT SE BHEEGEE-
BHEEGEE KAVITAYEN PADH RAHAA HOON.
KHOOB ANAND AA RAHAA HAI.KYA HEE
ACHCHHA HOTA AGAR YE KAVITAYEN
UNKEEE MADHUR VANEE MEIN SUNTAA!

बवाल said...

वाह वाह नीरज दा क्या बेहतरीन हस्ती से और उसके फ़न से हमारा परिचय कराया आपने। बहुत आभार आपका इसके लिए।

अनिल कान्त said...

बहुत अच्छा लगा पढ़कर...
इनसे परिचय करवाने के लिए शुक्रिया

कडुवासच said...

...शानदार-जानदार....बधाईंयाँ !!!

संजीव गौतम said...

यह चाँद पुराना आशिक़ है
दिखता है कभी छिप जाता है
छेड़े है कभी ये बिजुरी को
बदरी से कभी बतियाता है
क्या कहने हैं अद्भुत!
आपके सौज्न्य से इन देवमणि जी के इन तीन गीतों में इस बार की पूरी वर्षा रितु जी ली नहीं तो यहां सूखा देख-देखकर फ्रस्टेशन सा होने लगा है. शुक्रिया दादा

पंकज सुबीर said...

सावन तो अब आ ही गया इन गीतों को सुन कर । ये गीत हमारे समय की थाती है जिनकों हमें इसी प्रकार से आने वाली पीढ़ी को सौंपना है । ठीक है कि आने वाली पीढ़ी इसका महत्‍व नहीं जानती लेकिन हमें तो अपना फर्ज पूरा करना है । देवमणी जी का आभार ।

लता 'हया' said...

shukria.

latahaya

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

देवमणि जी को बहुत बहुत धन्यवाद...
और आप को भी....

विनोद कुमार पांडेय said...

kajari to sun rakhkha tha
par aapne jo jaankari di sawan ke bare me rochak laga..

Riya Sharma said...

नीरज जी
अभी कल ही हमने भी मनाया अपनी संस्था के साथ हरियाली तीज...बहुत आनंद आया ..

आप के लेख से दोगुना हो गया

देवमणि जी से परिचय कराने का आभार !!

Dr. Chandra Kumar Jain said...

गज़ब....खूब....बहुत खूब.
====================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Asha Joglekar said...

यहाँ बैठे बैठे सावन की याद दिला दी देवमणि जी की कविताओं ने ।
आवन की मन भावन की
सखी छाई बदरिया सावन की ।
धन्यवाद आपको भी ।

गौतम राजऋषि said...

देवमणि जी के तो हम सब फैन हैं...उअन्कीइ न गीतों से परिचय करवाने का आभार नीरज जी।
...और बोनस में मिली ये अनूठी जानकारियों के लिये भी

adwet said...

काफी जानकारीपूर्ण लिखा है आपने

रविकांत पाण्डेय said...

मन तो जैसे रस से भींग गया. कजरी की बात ही निराली है. लोकगीतों की मिठास कहीं और पाना मुश्किल है. हां, कजरी से याद आया कईसे खेले जईबू सावन में कजरिया, बदरिया घिर आईल ननदी जैसे गीतों का आनंद को भुलाया नहीं जा सकता. बहुत अच्छा लगा श्री देवमणि जी से मिलकर.

सुशीला पुरी said...

niraj ji ! bahut sundar....par jahan
barish hi n ho rahi ho wahan ka kya karen ????(sushila goswami)ab -sushila puri.

daanish said...

saavan ke baare meiN itni vistrit jaankaari ke liye dhanyavaad ....
aur . . . .
'bin dukhoN ke zindgaani, bhool ja'
kamaaaaaaal !!!
abhivaadan svikaareiN .
---MUFLIS---

Dr. Ravi Srivastava said...

आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।

आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं। आप मेरे ब्लॉग पर आये और एक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया दिया…. शुक्रिया.
आशा है आप इसी तरह सदैव स्नेह बनाएं रखेगें….

आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...

Link : www.meripatrika.co.cc

…Ravi Srivastava

जितेन्द़ भगत said...

आनंदवि‍भोर हो गया पढ़कर। आभार।

Neeraj Kumar said...

Neeraj Sir, aapke blog ko aaj bade dhyan se padha...Rachanaon men itni...main badai nahin kar sakta...Surya ko roshani dikhane jaisa...
Lekin kahna chahunga ki aap logon ki rachnaon ko padhta hun to lagta hai ki main to yun hi likhe ja raha hun aur Adhjal gagri chhalkat jay" ki tarah likhe jata hun...bina prakriti, mitti aur jiwan ki gahrai se parichit hue kavita ka koi mol nahi...Is kaaran bhi achanak kavita ke liye BHAV aur SHABD khatm ho jaate...
Prantu jo bhi likh paunga use publish karta rahunga taki aaplog ki tipanni mile aur sampark bhi bana rahe...
Saadar
Neeraj

समय चक्र said...

हर लम्हा खूबसूरत लाजवाब.

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 8 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!