कुछ बातें अचानक ऐसी हो जातीं हैं जिनके होने के बाद लगता है कमाल हो गया. एक ग़ज़ल पर काम कर रहा था कुछ शेर बनते फिर उसके बाद दिमाग काम करना बंद कर देता था. किसी तरह खुदा खुदा करके ग़ज़ल मुकम्मल हुई तो उसे गुरुदेव पंकज सुबीर जी के पास इस्लाह के लिए भेजा. जैसा की मुझे उम्मीद थी वो ही बात हुई. गुरुदेव ने कुछ शेर पसंद किये और कुछ सिरे से खारिज कर दिए, और कहा की खारिज किये गए शेरों को सुधार कर फिर से लिखिए. खारिज कीगये शेर फिर से लिखे लेकिन वो फिर से खारिज हो गए. ये सिलसिला चलता रहा. तंग आ कर गुरु देव ने कहा देखिये मैं कुछ शेर उधाहरण के लिए इसी रदीफ़ काफिये पर दे रहा हूँ ताकि आपको पता चले की मैं आपसे क्या चाहता हूँ.
शेर आये मैंने पढ़े और गुरुदेव से बिनती की मुझे इन शेरों को उनके नाम से ही ग़ज़ल के रूप में प्रस्तुत करने की इजाज़त दें. गुरुदेव ने कहा ऐसा करते हैं की हम दोनों मिल कर अपने अपने शेर चुनते हैं और एक ग़ज़ल संयुक्त प्रयास से कहते हैं. प्रस्तुत है वोही ग़ज़ल जिसका एक शेर (लाल रंग वाला)गुरुदेव का है और एक मेरा(नीले रंग वाला).सिर्फ ग़ज़ल का मकता ही हम दोनों ने मिलकर लिखा है .
मित्रो उम्मीद है की संयुक्त प्रयास से किये गए ग़ज़ल लेखन के इस प्रयोग को आप सभी सुधि पाठक पसंद करेंगे और अपनी कीमती राय से अवगत करवाएंगे.
हर नदी में हो रवानी, भूल जा
बिन दुखों के जिंदगानी, भूल जा
पायेगा मेहनत का फल ही सिर्फ तू
कुछ मिलेगा आसमानी, भूल जा
याद करने से जिन्हें तकलीफ हो
वो सभी बातें पुरानी, भूल जा
अब कोई खुश्बू वहां रहती नहीं
उस गली की रातरानी, भूल जा
रोटियां देकर कहा ये शहर ने
गांव की अब रुत सुहानी, भूल जा
कह रहा विज्ञान, पत्थर हैं वहां
चांद पर बैठी है नानी, भूल जा
भीड़ है ये झूठ की इसमें तेरा
साथ देगी सच बयानी, भूल जा
शहर भी कव्वों का है और दौर भी
भूल जा कोयल की बानी, भूल जा
जिस्म की गलियों में उसको ढूंढ अब
इश्क वो कल का रुहानी, भूल जा
उसने ख़त में जो लिखा वो याद रख
जो कहा उसने जुबानी, भूल जा
खिल रहे 'पंकज' या 'नीरज' देख वो
है मलिन पोखर का पानी, भूल जा
( मकते में प्रयुक्त 'पंकज' और 'नीरज' का अर्थ कमल का फूल है )
66 comments:
रोटियां देकर कहा ये शहर ने
गांव की अब रुत सुहानी, भूल जा
ये क्या लिख दिया आपने... जबरदस्त उम्दा.. सबकी कहानी ही लिख डाली आपने तो..
चाँद पर नानी वाला शेर भी बढ़िया है..
मंटो का इन्तेज़ार है... :)
ओह !!! लाजवाब क्या कहूँ छोटे मुह बड़ी बात होगी !! इतना ग़ज़ब भी कोई लेखन हो सकता है !! सफल हो गया आपके ब्लॉग पर आना और मेरा ब्लॉग बनाना !! आपकी रचनाओं का इंतजार रहता है !! आप दोनों के ही शेर अनमोल हैं !! इनकी कोई तारीफ नहीं हो सकती !!!
याद करने से जिन्हें तकलीफ हो
वो सभी बातें पुरानी, भूल जा
अब कोई खुश्बू वहां रहती नहीं
उस गली की रातरानी, भूल जा
bahut khoobsoorat.
kyaa kahu aapke ek ek panktiyan lazawaab hai ..........
हर नदी में हो रवानी, भूल जा
बिन दुखों के जिंदगानी, भूल जा
yah har kisi ke jindagi ka sach hai ............our iatani sahajata se baat nikali hai ki kyaa kahane ...bahut khub .........atisundar
aabhar
om arya
जब आप दो महानुभाव एक सात कुछ रचे तो हम बच्चे क्या कहें...
एक-एक शे'र समेटे हुए है अमूल्य अनुभूति...
भीड़ है ये झूठ की इसमें तेरा
साथ देगी सच बयानी, भूल जा
शहर भी कव्वों का है और दौर भी
भूल जा कोयल की बानी, भूल जा
जिस्म की गलियों में उसको ढूंढ अब
इश्क वो कल का रुहानी, भूल जा
उसने ख़त में जो लिखा वो याद रख
जो कहा उसने जुबानी, भूल जा
खिल रहे 'पंकज' या 'नीरज' देख वो
है मलिन पोखर का पानी, भूल जा
aap ne jitna bhi likha itna achcha hai ki main shabdon mein bayan nahi kar sakta ...badhai mubarak
lajawaab bangi hai ...........isse jyada kahna to soorj ko chirag dikhana hoga.
वाह क्या जुगलबंदी बनी है। हर शेर दिल खुश करने वाला है। हर शेर की अलग कहानी।
पायेगा मेहनत का फल ही सिर्फ तू
कुछ मिलेगा आसमानी, भूल जा
वाह वाह ....
आपको और आपके गुरुदेव को प्रणाम. आप दोनों ने संयुक्त प्रयास वाली एक और गजल लिखी. दोनों गजलें एक से बढ़कर एक. ऐसा आप दोनों ही कर सकते हैं.
वाह!
वाह-वाह यह तो कमाल है
---
प्रेम अंधा होता है - वैज्ञानिक शोध
सुभान आलहा, बहुत सुंदर जुगल बंदी..
अब कोई खुश्बू वहां रहती नहीं
उस गली की रातरानी, भूल जा
जबाब नही जी, वाह वाह वाह वाह
दो दिग्गजों के अद्भुत शेर पढ़ने के बाद एक ही काम बचता है-तालियां बजाना। कितनी सहजता से एक-एक शेर गढ़े हैं आप गुरूओं ने। मैं तो सोचकर ही हैरान हूं। मैं तो इस पर शेर निकालने भी बैठता तो कुछ उलजलूल निकालता जैसे-
अबके सावन में बदरिया ना दिखे
मन मिरे, अब रंग धानी, भूल जा
नीर जमुना में नहीं ना श्याम है
यार,पनघट की कहानी, भूल जा
बहुत खूब रही यह जुगलबंदी...
खिल रहे'पंकज'या'नीरज' देख वो
है मलिन पोखर का पानी, भूल जा
Neeraj Bhai,
bahut hi sundar!! dono hastiyon ka vyaktitv gazal mein saaf jhalak raha hai.dil se badhai!!!
जब दो कमल के fool khil rahen hon तो samaa तो lajawaab hona ही है........ और ये prayaas नहीं.......... safar है........... नए prayog क जो guru dev और आप मिल कर करते हैं...........
अब comment करने के लिए इस gazal से एक sher talaashne के लिए poori gazal dubaara लिखना ठीक नहीं क्योंकि हर sher dusre के samaanantar ही चल रहा है............lajawaab हैं सब sher.............. badhaai........... badhaai......... badhaai
दो दिग्गजो के संयुक्त प्रयास को क्या कहा जा सकता है....! कोई नया शब्द हो तो मुझे बताये कोई..!
नीरज जी मुझे आपके लिखे शेर
अपने दिल के ज्यादा करीब लगे !
ख़ास तौर पर :
हर नदी में हो रवानी, भूल जा
बिन दुखों के जिंदगानी, भूल जा
भीड़ है ये झूठ की इसमें तेरा
साथ देगी सच बयानी, भूल जा
जिस्म की गलियों में उसको ढूंढ अब
इश्क वो कल का रुहानी, भूल जा
कमाल के शेर हैं ... जो जिन्दगी की तल्ख़ सच्चाईयों को बहुत संजीदगी से बयां करते हैं !
दिली मुबारकबाद !
आज की आवाज
खिल रहे 'पंकज' या 'नीरज' देख वो
है मलिन पोखर का पानी, भूल जा
भाई नीरज जी!
कमाल के शेर हैं,
सब एक से बढ़कर एक है।
बधाई।
आज तो शुरु से आखिर तक गजब की रचना है. जैसे आपकी गाई हुई गजल अब भी सुनते हैं उसी तरह अभी दो बार पढ चुके हैं यह रचना और अब कापी करके ले जा रहे हैं. शुभकामनाएं.
रामराम.
याद करने से जिन्हें तकलीफ हो
वो सभी बातें पुरानी, भूल जा
अब कोई खुश्बू वहां रहती नहीं
उस गली की रातरानी, भूल जा..waah...bahut khuub..sundar ghazal...
WAH,KYA KHOOBSOORAT GURU AUR SHISHYA KAA SANYUKT PRAYAAS HAI!
LAGAA KI JAESE KISEE FILM MEIN
QAWAALEE KE MANMOHAK MUQAABLE
KAA NAZAARAA HO.DONO AUR SE EK
SE BADHKAR EK SHER.GURU KEE KHOOBEE DEKHIYE KI UNHONE SHISHYA KO HAARNE NAHIN DIYAA.
शहर भी कव्वों का है और दौर भी
भूल जा कोयल की बानी, भूल जा
जिस्म की गलियों में उसको ढूंढ अब
इश्क वो कल का रुहानी, भूल जा
waah behad shandar,har sher apne aap mein kohinoor sa.bahut badhai.
भाई, क्या किस्मत है-जुगलबंदी और वो भी गुरुदेव के साथ - तब तो यह गज़ब होना ही था:
शहर भी कव्वों का है और दौर भी
भूल जा कोयल की बानी, भूल जा
जिस्म की गलियों में उसको ढूंढ अब
इश्क वो कल का रुहानी, भूल जा
-वाह!! आनन्द आ गया. बहुत बधाई.
अब कोई खुश्बू वहां रहती नहीं
उस गली की रातरानी, भूल जा
wah!
रोटियां देकर कहा ये शहर ने
गांव की अब रुत सुहानी, भूल जा
wah wa!!
छोटे बहर की लाजवाब गजल। बधाई।
Ap to bahut khubsurat likhte hain..umda jugalbandi !!
Kabhi mauka mile to hamare blog par bhi ayen.
कह रहे पंकज औ नीरज, भूल जा ?
दिल को छू बैठी कहानी, भूल जा ?
वाह वाह वाह वाह नीरज दा क्या बात है आज तो हर तरफ़ पंकज गुरू ही छाए रहे और आप ऎसे दिग्गज शायर जुगलबंदी लफ़्ज़ पर ही चार चाँद लगा रहे हैं। बहुत बेहतर बहुत उम्दा।
उस्ताद शागिर्द ने खूब लिखी यह ग़ज़ल
भूल कर भी न भूलेगी यह ग़ज़ल
दिन पर दिन आप दोनों की जुगलबंदी नए नए कमाल दिखला रही है। असली कलाकारी वो होती है जब सामान्य से दिखने वाली शब्द रचना से दिल को छूने वाली भावनाएँ जाग्रत कर दी जाएँ । और इस मामले में ये ग़ज़ल पूरी तरह सफल रही है।
Neeraj ji
shabdon ke abhav main bas itna hee
Awesome , simply Wow
Amazing !!!!
नीरज-ओ-पंकज मिले जब 'ताल'में,
होगा कोई उसका सानी ? भूलजा .
-म.हाश्मी
wow! Interesting presentation....no doubt gazal behtareen hain but joint effort lajawaab
पायेगा मेहनत का फल ही सिर्फ तू
कुछ मिलेगा आसमानी, भूल जा
.....
waah
इस जुगल बंदी के लिए क्या कहूँ मूक दर्शक बने हुए हूँ ... नीरज जी ये तो आपकी किस्मत और काबलियत ही है के आप गुरु जी के साथ जुगलबंदी कर रहे है ...
आप दोनों को सलाम करने के सिवा कोई शब्द नहीं है मेरे पास...
आभार
अर्श
मेरे लिए तो गुरू और शिष्य दोनो ही गुरू हैं। आप दोनो को सादर प्रणाम।
बहुत कुछ सीखने को मिलता है यहाँ। शुक्रिया।
वाह नीरज जी आज तो आपने मुझे लाज्वाव्ब कर दिया क्या कहूं ......
बस दिल खुश हो गया है और बार बार गजल पढ़ रहा हूँ
वीनस केसरी
खिल रहे 'पंकज' या 'नीरज' देख वो
है मलिन पोखर का पानी, भूल जा
एक शब्द में कहूं तो "लाजवाब!"
सभी का आभार और ये शेर देखें
गुड़ रहा उस्ताद और चेला शकर
है कोई नीरज का सानी भूल जा
खासियत गुड में हुआ करती है जो
वो हुआ करती शकर में भूल जा
नीरज जी......
कहते है न ....कई बार कुछ शेर जैसे गजल से बाहर झांकते है....ये दो शेर ऐसे ही है...
रोटियां देकर कहा ये शहर ने
गांव की अब रुत सुहानी, भूल जा
जिस्म की गलियों में उसको ढूंढ अब
इश्क वो कल का रुहानी, भूल जा
हर नदी में हो रवानी, भूल जा
बिन दुखों के जिंदगानी, भूल जा
wah kya matla hai
पायेगा मेहनत का फल ही सिर्फ तू
कुछ मिलेगा आसमानी, भूल जा
याद करने से जिन्हें तकलीफ हो
वो सभी बातें पुरानी, भूल जा
अब कोई खुश्बू वहां रहती नहीं
उस गली की रातरानी, भूल जा
रोटियां देकर कहा ये शहर ने
गांव की अब रुत सुहानी, भूल जा
kamaal ka sher hai
कह रहा विज्ञान, पत्थर हैं वहां
चांद पर बैठी है नानी, भूल जा
wah wah bahut khoob
भीड़ है ये झूठ की इसमें तेरा
साथ देगी सच बयानी, भूल जा
शहर भी कव्वों का है और दौर भी
भूल जा कोयल की बानी, भूल जा
जिस्म की गलियों में उसको ढूंढ अब
इश्क वो कल का रुहानी, भूल जा
kya baat hai
उसने ख़त में जो लिखा वो याद रख
जो कहा उसने जुबानी, भूल जा
खिल रहे 'पंकज' या 'नीरज' देख वो
है मलिन पोखर का पानी, भूल जा
bahut khoob aisi gazal sadiyon mein banti hai
Aap dono ko bahut bahut badhayi
Pankaj ji ke reply mein aapki tarif padhi wo sher bhi bahut pasand aaya
Hai nahi Neeraj ka saani bhul jaa
sahi kaha hai ji
शहर भी कव्वों का है और दौर भी
भूल जा कोयल की बानी, भूल ज
पूरी गज़ल ही काबिले तारीफ है मगर गुरु शिश्य संवाद तो माशा् अल्लाह लाजवाब प्रस्तुति
ये टिप्पणी ए उपर तो अब देखा तुझ को रखे रम तुझ को----- हा हा हा ये सुबीर जी के नाम है
बहुत ही बेहतरीन जुगलबंदी रही यह तो ...एक से बढ़ कर एक शेर लगे .शुक्रिया
नीरज जी,
आपकी हर पहल...पहले से
बेहतर होती है......शुक्रिया.
=======================
आपका
चन्द्रकुमार
to neeraj ji:
# गुड़-शकर में छिड़ गयी अब खैर हो !
'चींटी'* अब तो छेड़खानी भूल जा.
* रसीले पाठक
to subir ji:
# गुड़-शकर बाहम मिले मधु-रस बना,
नाचना 'छत्ते की रानी' * भूलजा.
*Queen Bee
-म. हाशमी
नीरज जी बिल्कुल सही तरीके से आपने कविताई सोच को बयां किया है । आपने जो लिखा है एकदम सही है ।
हर नदी में हो रवानी, भूल जा
बिन दुखों के जिंदगानी, भूल जा
पायेगा मेहनत का फल ही सिर्फ तू
कुछ मिलेगा आसमानी, भूल जा
शुक्रिया
भाई जवाब नहीं इस experiment का. एक से बढ़ कर एक शेर. किस किस की तारीफ़ हो ! लाजवाब ग़ज़ल.
एक बार फिर सफल जुगलबन्दी. इसी तरह पूरा संकलन हो जाये. सारे शेर बेहतरीन कोट करने के लिये किसी को छोड नहीं पा रहा हूं.
गद्य व पद्य का सुन्दर समन्वय. आपकी ये पंक्तियाँ विशेष रूप से पसंद आयीं-
उसने ख़त में जो लिखा वो याद रख
जो कहा उसने जुबानी, भूल जा
खिल रहे 'पंकज' या 'नीरज' देख वो
है मलिन पोखर का पानी, भूल जा
नीरज जी,
शायद इसे ही सोने पर सुहागा कहते होंगे।
और कुछ भी लिखना या कहना बेमानी होगा।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
'याद करने से जिन्हें तकलीफ हो
वो सभी बातें पुरानी, भूल जा'
- पढ़ कर निम्न पंक्तियाँ याद आ गयीं जो संभवतः हरिवंश राय बच्चन की हैं :
जीवन का यह पृष्ठ पलट मन
इस पर जो थी लिखी कहानी
वह अब तुझको याद ज़ुबानी
बार बार पढ़ कर क्यों इसको
व्यर्थ गंवाता जीवन के क्षण
जीवन का यह पृष्ठ पलट मन
मैं मौन हूँ....निःशब्द हूँ !
इस अनूठी जुगलबंदी के समक्ष नत-मस्तक हूँ।
एक-एक शेर संग्रह के काबिल है। सोचता हूँ, पंकज-नीरज की जोड़ी एक नया राह खोलेगी गीतकार की जोड़ियों के लिये। अभी तक तो हम संगीतकार जोड़ियों को ही सुनते आये हैं...
गुरूदेव का "कुछ मिलेगा आसमानी" और " उस गली की रातरानी" और चांद पर नानी" वाले शेर कहते हैं कि वो गुरू क्यों हैं...
और नीरज जी मतला का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है..और "रोटियां" वाला शेर और "इश्क कल का रूहनी" वाले शेर पर बस हमारी सारी तालियां, हमारी तमाम वाह-वाह कबूल करें..
सीडी जल्द ही भिजवा रहा हूँ।
sayukt pryas bhut hi acha lga .
badhai
आदरणीय नीरज जी नमस्कार मेरे लिए आप की इस बेहतरीन गजल पे कहने के लिए शब्द ही नहीं मैं नतमस्तक हूँ और हर शेर को कई दफा और कई दफा दोहरा रहा हूँ सोचता हूँ इसमें से ही कुछ कहने को मिल जाये बस एक शब्द मेंमें ही बात ख़त्म करूँगा अतुलनीय
मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर प्रवीण पथिक
9971969084
" Nishabd ho,yahaan se laut jaa,
kuchh kahne aayee thee,bhool jaa!"
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खिल रहे 'पंकज' या 'नीरज' देख वो
है मलिन पोखर का पानी, भूल जा
यही करके तो अब तक यहाँ टिके हैं । बेहद खूबसूरत जुगलबंदी ।
भईया प्रणाम.
जब दो गुरुदेव एक साथ एक ही विचार को लेकर किसी रचना को लिखें और वह यदि गजल हो तो क्या कहने.
आप दोनों के सभी गजल आज की मानवीय अनुभूति का अन्यतम उदाहरण है. मुझे हर एक गजल बहुत अच्छी लगी.
मजे की बात ....
इस जुगलबंदी में बहुत मजा आया...
क्या मस्त तालमेल है.....
एस.एम्.एस./एस.एम्.एस. खेले होगे ना...?
har ek sher lajwab hai....neeraji....
bahut bahut badhaiya
aadarniya neeraj ji ,
namaskar ..deri se aane ke liye kshama chahunga......
ab tak to shastriy sangeet ki jugalbandi ke baare me suna tha .aaj gazal ki bhi dekh li , padh li ....
aap dono mahanubhavo ko mera naman aur pranaam..
main kis sher ki tareef karun ,kis ki nahi ... yahan to har sher hi umda ban padha hai ...
mujhe na jaane kab gazla likhna aayenga sir...
खिल रहे 'पंकज' या 'नीरज' देख वो
है मलिन पोखर का पानी, भूल जा
ye sher bahut hi philosphical approch wala hai sir...
'याद करने से जिन्हें तकलीफ हो
वो सभी बातें पुरानी, भूल जा'
ye ek positivity ki aor zindagi ko le jaata hai ..
उसने ख़त में जो लिखा वो याद रख
जो कहा उसने जुबानी, भूल जा
ye waala , mere liye hai sir..
aabhar...
vijay
आज सातवी बार गजल पढ़ रहा हूँ ..
सीखने वालों के लिए प्रतिमान सी लगी.बस पढ़ के मन में उतारने का जी चाहता है.इन्टरनेट पर गडबडी चल रही है.कभी फोन खराब हो जाता है तो कभी लाईट चली जाती है.हर बार टिप्पणी लिखने से पहले कुछ ऐसा हो जाता है कि टिप्पणी पूरी नहीं हो पाती है.आज गूगल ट्रांस लिटरेशन जवाब दे गया तो मैं हरी इच्छा समझ गया कि ये गजल टिप्पणी के लिए नहीं है.
पढने वाले के लिए पढने का आनंद देने वाली रचना है...
लिखने वाले के लिए बहुत कुछ सिखाने वाली शायरी है..
इंसान के लिए जिन्दगी का फलसफा है ..
नीरज जी सबने सारी तारीफ़ कर डाली है
इतनी सुन्दर गजल के लिए तारीफ़ शब्दों में नहीं की जा सकती...
और गुरुदेव आपकी सीख जो मुझे मिली--
गर सीखना है ज्ञान है यह गजल
होगा कहीं और ज्ञानी भूल जा
आपका
प्रकाश (अर्श या पाखी)
जो भी आप समझें...
@अर्श
अर्श भाई ...आज नीरज जी फिर मुझे अर्श कहकर छेड़ रहे थे ..इसलिए आपका तख्खलुस भी लगा लिया थोडी देर के लिए ...
प्रकाश
ऐसे सु - प्रयासोँ से होती है गहन आनँदानुभूति ! बधाई आप दोनोँ को ~~ इसी तरह सह्र्दयता से लिखते रहेँ ताकि
एक बडा पाठक वर्ग
हिन्दी ब्लोग के जरीये,
उम्दा साहित्य पढता रहे
( अब ब्लोग साहित्य है
या नहीँ
उस बात पर,
विद्वानोँ की चर्चा तो होती रहेगी :)
स स्नेह, सादर,
- लावण्या
रोटियां देकर कहा ये शहर ने
गांव की अब रुत सुहानी, भूल जा.....
बहुत सच बात कह गए आप
कशमकश को याद रख तू ऐ सखा
वो पुरानी लन्तरानी भूल जा
जो नई शुरूआत करनी है तुझे
मेरी तेरी वो कहानी भूल जा
श्याम सखा श्याम
बहुत ही बेहतरीन रचना
प्रेरित हो के एक शेर लिखने की गुस्ताखी कर रहा हूँ, उम्मीद है आप माफ़ कर देंगे...
आग है गलियों में नज़ारों मे धुँआ
वो बहारों की रवानी भूल जा
http://rohitler.wordpress.com
Ap kahan hain..mujhse naraj to nahin hain..mishthi kaisi hai..Mishti..Wishing "Happy Icecream Day"...aj dher sari icecream khayi ki nahin.
See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"
क्या बात है! बहुत ही बढिया गज़ल कही है. किसी एक शेर को चुनना बाकी शेरों का अपमान होगा.
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