"पांडू" मेरे साथ पिछले पांच साल से काम कर रहा है...मुंबई का है,पचास के लगभग उम्र होगी, ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है ,शायद आठवीं पास हो, लेकिन अपने काम में बहुत होशियार है, जिस मशीन पर लगा दो मस्त उत्पादन देता है. मुझे उसके पास जा कर बात करने में बहुत आनंद आता है क्यूँ की उसकी भाषा और अनुभव दोनों अनूठे हैं. अपने अनुभव से हमें जीवन के वो सब रंग दिखाता है जो हम इतना पढ़ लिख कर भी नहीं देख पाते. आज की ये ग़ज़ल उसी की भाषा और अनुभव के आधार पर लिखी गयी है. उम्मीद है आपको ये खांटी प्रयास पसंद आएगा.
बेजा क्यूँ शर्माने का
अपना हक़ जतलाने का
जीना मुश्किल है तो क्या
इस डर से मर जाने का ?
जब भी जी घबराए तो
गीत लता के गाने का
सबके पास नमक है रे
अपने जख्म छुपाने का
पल दो पल के जीवन में
खिट खिट कर क्या पाने का
देश नहीं जिसको प्यारा
उसका गेम बजाने का
रब को गर पाना है तो
खुद को यार मिटाने का
"नीरज" (पांडू) जी खुश रहने को
कड़वी बात भुलाने का
(गुरुदेव पंकज सुबीर जी के प्रोत्साहन से लिखी ग़ज़ल )
60 comments:
देश नहीं जिसको प्यारा
उसका गेम बजाने का
वाह लाजवाब रचना ..पांडू को भी हमारी तरफ़ से शुभकामनाएं कहें. आपको तो अनेकों है ही.
रामराम.
बहुत खूब भैया...कहाँ-कहाँ से प्रेरणा ले लेते हैं. वाह!
पांडू जी को मेरा नमन!
गजल की बातें करनी हैं?
पांडू से मिल आने का
वाह नीरज जी
मुम्बईया अंदाज में ग़ज़ल का रस कुछ और ही निखर गया. भाषा किसी भी बात को कहने में बाधा नहीं होती......ये बात बाखूबी बता दी है आपने..............ग़ज़ल के शेर संजीदा भी हैं.............जीवन के करीब भी हैं.............जीवन का दर्शन भी भरा है इनमे और मस्ती भी खूब है.
लाजवाब है ...............
bahut badhiya.........yeh geet kyunki seedhe dil se nikla hai.jaroori thode hai ki koi padha likha hi geet ga sakta hai,ye to man ke bhav hote hain j geet ki shakl mein dhal jate hain.
pandu ji ko badhyi dijiyega.
aapki nazar bahut parkhi hai.
बेजा क्यूँ शर्माने का
अपना हक जतलाने का
वाह...वाह.....!!
देश नहीं जिसको प्यारा
उसका गेम बजाने का
लाजवाब ....इस शैली में भी इतनी गहरी बात ...ये तो सिर्फ आप ही कर सकते हैं......!!
बहुत बढिया
बहुत खूब बढ़िया रहा यह जीना मुश्किल है तो क्या .इस डर से मर जाने का ....
पांडू के अनुभवों को क्या खूब रंग दिया है आपने ! पांडू जी के पास 'जीवन' का अनुभव है.
सभी शे'र एक से बढ़ कर एक। किसकी तारीफ़ करें, किसे छोड़ें!
बधाई
bahut achi kavita, tajurbe sach bolte hai ..
वाह -बहुत सुंदर .
अलग सी प्यारी शैली। पांडू जी को हमारा सलाम और शुभकामनाएं।
सबके पास नमक है रे
अपने जख्म छुपाने का
देश नही जिसको प्यारा
उसका गेम बजाने का
वाह जी वाह मजा आ गया।
आपने आम्जन की भाषा में रचना की-बधाई
नजीर अकबरा बादी को उसके समकक्ष इसलियेशायर नहीं मानते थे कि वह आमजन जिसे तथाकथित विद्वान भदेस-या ोगामड़ू भाषा भी कहते हैं ,लेकिन नजीर आज भी लोगो की जुबान पर जिन्दा है-लैला की उंगलियां है ये ककड़ियां,या त्ल के लड्डू आदि अब भी लोग गलियों मे आवाज लगाते मिल जाएंगे पर उन विद्वान लोगों की कहीं खोज खबर नहीं है।
बाबा तुलसी को पंडितो ने देवभाषा त्यागकर अवधी में रामचरित लिखने पर लताड़ा था पर आज...
जब मैने हरियाणवी में अपना उप्न्यास लिखा तो अनेक बंधुओम ने मुझे हतोत्साहित किया था,अब वे लोग भी हरियाणवी मेंलिख रहे हैं
आप के इस अन्दाज में वाकई आपके भीतर का कलाकार बोल रह है-बधाई लिखते रहें.
श्याम सखा‘श्याम
वाह पांडु भाई वाह!! वाकई असल जिन्दगी के तजुर्बे से निकली बात.
एक्दम सही बोलता है पांडू भाई
Wah Pandu ji aur wah wah Neeraj Bhaee. kya khantee gazal hai.
वाकई मज़ा आ गया
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
Waaah waah...
Ati Aanandam...
~Jayant
pandu ji ke anubhav se nikli anupam shabd rachna. neeraj ji badhai sweekaren.
५० साल के पांडू की जिन्दगी के तजुर्बे का निचोड़ है यह ग़ज़ल
रब को गर पाना है तो
खुद को यार मिटाने कासरल सी कविता में ही होता है गहन दर्शन!
SABKE PAAS NAMAK HAI RE
APNA JAKHM CHHUPAANE KA ...
NEERAJ JI KYA BAAT KAHI HAI AAPNE.. KITANI SARALATAA SE YE UCHH KOTI KI BAAT AAPNE KAHI HAI HAI BAHOT KHUB RAHI YE SARAL MAGAR AASAADHAARAN SI GAZAL TARALATA SE JAHAN TAK UTARATI CHALI GAYEE... UFFFFFFF...
ARSH
पांडू जी की जीवन के प्रति इतनी सुलझी हुई सोच से इस ग़ज़ल के माध्यम से रूबरू कराने का बहुत बहुत शुक्रिया।
neeraj ji,
Aapse shikayat kar saktee hun? shayad ye adhikaar mujhe nahee, lekin aapki gaimaujudgee kahltee hai..
aur lataji to meree aradhya daivat hain...
mujhe laga unhen sunna yaa unke baareme padhanaa milega...aisa hai kaheen aapke blogpe?
Gar kuchh kkhata huee ho to maafee chahtee hun..aaplogonse wahee pehlewala sneh chahtee hun,aur maargdarshanbhee..
नीरज जी,
हर शेर एक नया लुत्फ़ लिए हुए है एक गजल में कितने रंग समेटे आपने
हर रंग का अस्तित्व आपने बचाए रखा ये बात मुझे बहत अच्छी लगी जैसे इन्द्रधनुष के रंग हो,
"अपने में सर्वगुण संपन्न मगर अन्य रंगों की छठा को समेटे हुए "
वीनस केसरी
उलझ गया हूँ नीरज जी...सावधान में खड़े होकर आपको सैल्युट मारूँ कि दंडवत चरण-स्पर्श करूँ....
"सबके पास नमक है रे / अपने जख्म छुपाने का"
लाजवाब, अद्भुत, बेमिसाल...
सबसे देरी से आ रहा हूं । दरअस्ल में कल के मेरे ब्लागरोल पर आपकी ये पोस्ट दिखाई नहीं दी । खैर पांडु जी को मेरा सलाम । ये ग़ज़ल तो रामगोपाल वर्मा की किसी फिल्म में उपयोग की जा सकती है । रामगोपाल नहीं मधुर भंडारकर ठीक रहेंगे क्योंकि रामगोपाल वर्मा तो कहीं फिर से आग बना बैठे तो उनका तो कुछ नहीं पर ग़ज़ल का नाश हो जायगा । जब सारे देश में संस्कृत में लिखी हुई वाल्मिकी रामायण प्रचलन में थी उस समय जब तुलसीदास ने आम आदमी की भाषा में मानस लिखना प्रारंभ किया तो काफी विरोध हुआ था उनका । किन्तु आज सब जानते हैं कि मानस इतिहास रच चुकी है । जब तक हम आम की भाषा में नहीं सृजन करेंगें तब तक साहित्रू का भला नहीं होने वाला । किन्तु हो ये गया है कि हम मास को छोड़कर क्लास के लिये लिखने लगे हैं । और साहित्य में पांडु का कोई स्थान ही नहीं रहा । खैर परिवर्तन हर दौर में आता है । आपकी ये दो ग़ज़लें नई धारा की ग़ज़लें हैं । आज कुछ लोगों को ये भले ही अटपटी लगें किन्तु कल इनको ही लोग गुनगुनायेंगें । बधाई एक और सुंदर ग़ज़ल के लिये । ( सच कहूं तो कहीं ऐसा न हो कि बधाई देते देते हमारे हाथ थक जायें ।)
वाह भाई वाह, सरल और सरस.. मजा आ गया..
पांडू जी को शत-शत नमन! आम भाषा में इतना गहरा दर्शन! तालियां! तालियां।
गजल बहुत सुंदर है, पर मक्ता तो लाजवाब है।
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किस्म किस्म के आम
क्या लडकियां होती है लडको जैसी
हुज़ूर आदाब !!
खुद को बिलकुल बे-लफ्ज़ पा रहा हूँ....
इस अनूठी , नायाब , और दिल-फरेब रचना
की तारीफ करने के लिए मन में जो वलवला
है उसे शायद ही ब्यान कर पाऊँ
अदब की तख्लीक़ में ज़बान की कोई भी दीवार
हायल नहीं हो सकती ये साबित कर दिखाया आपने
आमजन , सबजन की भाषा में जो भी सृजन किया जाता है,तवारीख़ का हिस्सा ही जाता है ...
मुबारकबाद कुबूल फरमाएं . . . .
प्यास नहीं बुझ पाई है
और इक घूँट पिलाने का
कहन नया , तकनीक नयी
हम को भी सिखलाने का
---मुफलिस---
aap ki lekhni mein dam hai.yah baat mein dilse maanata hoon.
नीरज भाई, जब आप जैसा समर्थ तथा परिपक्व रचनाकार प्रशंसा करता है तो दिली खुशी मिलती है. आशीर्वाद का हाथ बरकरार रखियगा.
... bahut khoob !!!!!!
भैया, बहुते अच्छा लिख दिए हैं .
जीवन का कटु सच और इसे सहजता से जीने का सरल तरीका को अपने बड़ी हीं
सरलता से लिख दिया हैं. इम्प्रेस तो था हीं बहुते इम्प्रेस हो गया हूँ.
क्या लिख दियें हैं , नतमस्तक हूँ.
"सबके पास नमक हैं रे, अपना जखम छिपाने का"
"जब भी जी घबराए तो, गीत लता के गाने का."
मिलने पर पांडू जी से जरूर मिलूंगा
देश नहीं जिसको प्यारा
उसका गेम बजाने का
क्या मस्त लिखा है नीरज जी,
एक दम झक्कास गजल ,,,एक से बढ़कर एक शेर,,,,ना केवल आम जबान में बल्कि हर मन में बसने वाले ख्याल,,,
इस रचना पर मेरे को नहीं कुछ बताने का
मुरारी सीधा रचना सेलेक्ट करने का,
फिर कॉपी करने का और अपने सेलेक्शन मैं सजाने का!!
हा..हा...हा..
इतनी छोटी बहर पकड़कर
इतनी बात बनाने का?
www.andaz-e-byan.blogspot.com
खुद को मिटाना और कड़वी बात भुलाना दौनों ही कठिन हैं /खुद को मिटाना याने खुदी को मिटाना "" खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे ,कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे //""
नाराजगी की कोई खास वजह।
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SBAI TSALIIM
aaj dekha aapka blog..... Itna kuch hain aapke pass ki hum kah nahi sakte..... kya likhte hain aap aur aap ki soch.....hum to hairan hain aapke hunar ko dekh kar
नीरज भयी और क्या बोलेन्गा झक्कास !
बीच बीच मे ऐसाच गेम बजाते रैने क क्या !
अरे वाह, शायरी नहीं यह तो जीवन दर्शन ही हो गया. पांडु को हमारा सलाम पहुंचे!
अद्भुत.
लता अंतिम सत्य है
लता जी पर विशेष पढने की आस लिये आया था. अगर हो सके तो फ़िर कभी...
बिलकुल मुम्बैया ग़ज़ल... शानदार
I agree 100 % with the message given in this Gazal :)
" Geet lata ke Gaane kaa "
क्या बात है नीरज जी...शुक्रिया पांडू की सिफत से तआरुफ कराने का...
देश नहीं जिसको प्यारा
उसका गेम बजाने का
असल कमाल तो आपका है ...छोटी बहर का ....
बहुत खूब
NEERAJ JI PATA NAHI KYA PROB HAI MAIN AAPKI KITABON KI DUNIYAA WAALI POST PADH NAHI PAA RAHAA...JAANE KYUN..? WO LINK HI NAHI KHUL RAHI..?
ARSH
वाह बहुत सुंदर रचना आपको बहुत बधाई नीरज जी
rachna padh kar tipiane se raha nahi gaya der se hi sahi itani achhi rachna padhne ko to mili sach me jise desh nahi piara uska game jaroor bajaaeye bahut sundar badhai
नीरज जी,
आदाब , पहले भी आई थी ....एक बार फिर "गेम बजाने " aa gai ...
haan " punjab ki khusboo" me bhi daliye kuch ....use bhi mil ke chlana hai.....!!
apko badhai aur pandu bhai ko bhi
hmari or se bdhai de dijiyega
jeevn ka maem smjhne ke liye .
बहुत बढ़िया! इसी तरह से लिखते रहिये!
aadarniya neeraj ji , waah , kya baat hai ... aapke kalam me jis ka bhi jikr aa jata hai .. wo to bus hunarmand ho jaata hai ,aur behtar ho jaata hai... aapne bahut sundar tarike se panduji ke baare me kaha aur ye gazla pesh ki .. main to padhte padhte kho gaya tha sirji .. ye kamal sirf aap hi kar sakte hai ...
aapka
vijay
Wow.. ye to maine padha hinn nahin tha..
Aap sach mein Don ban gaye ho..
"Desh nahin jisko pyara uska game bajane kaa.. " hahaha!
Hilarious..
maza aa gaya
kya mast andaaj hai aap ka....main aapki aisi hi rachnayen dhundh raha tha yahaan tab tak aapne mehnat kam karwa di meri ....behad behad shandar rachna.....padh ke mann tript ho gaya
क्या अंदाज़एबयान है दिल को छु गए कुछ शेर तो
ऐसे में तो हर शेर दमदार लगने का है, (पांडू) सर जी मजा आ गया वाह
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