Monday, April 20, 2009

बिजलियां टूटी कहां हैं आपके घर पर अभी


दोस्तों एक मुद्दत के बाद दिल की ये हसरत की अपने ब्लॉग पर गुरुदेव पंकज सुबीर जी की ग़ज़ल लगाऊँ, अब जा कर पूरी हुई है. उनसे ग़ज़ल निकलवाने में जो पापड़ बेलने पड़े उसकी दास्तां फिर कभी...पर ये जरूर है की अगर फरहाद को शीरीं के लिए पहाड़ खोद कर नदी लाने की जगह पंकज जी की ग़ज़ल लाने के लिए कह दिया जाता तो उनके प्रेम की कहानी कुछ और ही होती , फरहाद महाशय शीरीं का ख्याल भूल कहीं चल दिए होते....

आज के माहोल पर एक दम माकूल इस ग़ज़ल का आप सभी गुणी जन आनंद लें...साथ ही पंकज जी को लिखने और मुझे पेश करने पर धन्यवाद दें...

कह रहा हूं फैंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
इस बग़ावत ने कहां बदला हर इक मंज़र अभी

जो तुम्हारा हक़ है उसकी मांगते हो भीख़ क्यों
गिड़गिड़ाओ मत, उसे तुम छीन लो उठकर अभी

सह रहें हैं हर सितम बस आसमां को देखकर
जाने किसने कह दिया था आएगा ईश्वर अभी

ग़ैर के जलते मकां का आप जानें दर्द क्या
बिजलियां टूटी कहां हैं आपके घर पर अभी

मुट्ठियां तनती हों गर जो आपकी तो जान लो
रीढ़ की हड्डी बची है आपके अंदर अभी

ख़ून कितना बह चुका है आज तक इन्सान का
और उनके हाथ का प्यासा ही है ख़ंजर अभी

एक ही नारा लगा और कुर्सियां थर्रा गईं
फैलने तो दो ज़रा विद्रोह को घर घर अभी

बज गया फिर से चुनावों का बिगुल अब देखना
सांप सारे बांबियों से आयेंगें बाहर अभी

52 comments:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नीरज जी....लाज़वाब !
ये तो ग़ज़ल में हौसला
और हौसले की ग़ज़ल का
दमदार उदाहरण है...हर शब्द
रीड़ की हड्डी की तरह है इसमें.
आपको और सबीर साहब को साधुवाद.
==============================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Shiv said...

पंकज जी की गजल पढ़कर मन प्रसन्न हो गया. एक-एक शेर जीवन की सच्चाई बतला रहा है.
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति.

vandana gupta said...

sabse pahle to neeraj ji aapka dhanyavaad itni badhiya gazal padhwane ke liye.

pankaj ji aapne to is gazal mein har sher aisa likha hai jaise moti jad diye hon..........aaj ka katu satya.

मोना परसाई said...

कह रहा हूँ फेंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
इस बगावत ने कहाँ बदला हर इक मंज़रअभी .
वाह....बहुत खूब .... दुष्यंत कुमार जी के तेवर याद आते है .पंकज सुबीर जी व नीरज जी ,धन्यवाद .

Abhishek Ojha said...

गजल-वाजल तो अपने को बहुत समझ में नहीं आती है. पर ये तो बहुत बढ़िया लगी !

डॉ .अनुराग said...

कह रहा हूँ फेंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
इस बगावत ने कहाँ बदला हर इक मंज़रअभी .


ye sher achha laga ji......

रश्मि प्रभा... said...

पंकज जी की इतनी अच्छी ग़ज़ल का रसास्वादन करवाने के लिए बधाई......

रंजू भाटिया said...

सुन्दर गजल लगी यह ..शुक्रिया

seema gupta said...

पंकज जी की शानदार गजल पढ़कर बहुत अच्छा लगा ,एक एक शेर लाजवाब और जीवन की सच्चाई से भरपूर

regards

admin said...

हर लाइन शानदार, हर शेर लाजवाब।

-----------
खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्‍ट का दुखद अंत

मीनाक्षी said...

एक एक शेर ज़िन्दगी का सच दिखाता हुआ.. हमेशा की तरह असरदार भाव...

दिगम्बर नासवा said...

नीरज जी
गुरुदेव की ग़ज़ल और लाजवाब न हो............और आपके ब्लॉग पर तो और भी फब रही है.............इतने प्यार से, इतने मनुवार से आपने कहा होगा........गुरु जी मन भी करते तो कैसे.

पूरी ग़ज़ल मस्त, तेवर से भरी है, होंसले बुलंदियों तक, चुन चुन कर मोतियों की तरह है सब की सब शेर........खूबसूरत शेर..........सारे शेर लाजवाब है........पूरी ग़ज़ल मस्ती भरी.........मज़ा आ गया

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kuchh karne ka hausla pradan kar rahi hai aapki yeh ghazal.

Dr. Amar Jyoti said...

'जाने किसने कह दिया था…'
'बिजलियां टूटी कहां हैं…'
बहुत, बहुत ख़ूब!

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब गजल. अब हम जैसे नौसिखिये पंकल जी और आपकी रचना पर क्या कमेंट करें? हमें तो यह दुष्यन्त कुमार जी जैसी ही रचना लगी.

आपको बहुत धन्यवाद पढवाने के लिये और गुरुजी को प्रणाम.

रामराम.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

बिलकुल दुष्यंत जी की रचनाओ की याद दिला रही है यह रचना . सच मे गुरूजी कमाल है .

Anita kumar said...

पंकज जी की तारीफ़ करना तो सूरज को चिराग दिखाना है…। यूं तो पूरी की पूरी गजल ही कमाल है लेकिन ये शेर
बज गया फिर से चुनावों का बिगुल अब देखना
सांप सारे बांबियों से आयेंगें बाहर अभी
भई धमाल है।

आप की भी तारीफ़ करनी होगी कि क्या जौहरी की नजर पायी है। एक एक नगीना अपने ब्लोग पर टांका है।

Anonymous said...

ग़ज़ल की समझ तो नही है मुझे पर दिल तक पहुँचने वाली प्रस्तुति है.

Tapashwani Kumar Anand said...

sahi kaha chunav ka mausam ho to kide to bahar ayenge hi...

समय चक्र said...

बहुत उम्दा गजल . बधाई नीरज जी.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भाई श्री पँकज जी सिध्ध हस्त साहित्यकार हैँ "गज़ल गुरु देव" को
आपने
आज आपके जाल घर पे
प्रस्तुत कर ही दिया नीरज भाई !
बधाई !!
आप दोनोँ मेँ स्नेह यूँ ही बना रहे,
ताकि हम ऐसा ही पढते रहेँ ...
- लावण्या

"अर्श" said...

नीरज जी आप मुझे कहते है के मैं भाग्यशाली हूँ के मैं गुरु जी से मिल सका अहो धन्यभाग हमारे ... मगर ये क्या है आपको तो गुरु देव का आशीर्वाद खुल के मिल रहा है है... जय हो... इस बात के लिए ... मैं तो आखिर एक्लाब्या ही हूँ...क्या कहूँ... इस ग़ज़ल के बारे में अब अगर मैं कुछ कहूँ तो पाप कर बैठूँगा ... बस यही के गुरु देव को सादर चरण स्पर्श जरुर कह दें आप... और आपको भी ढेरो बधाई इस पे बहोत इंतज़ार किया है आपने और इंतज़ार का फल तो मीठा होता ही है आपने तो आज ये स्वाद चखा ही है ... बहोत बहोत शुभकामनाएं आपको साहिब....


अर्श

Divya Narmada said...

नीरज-पंकज में नहीं, सलिल देखता फर्क.
जो देखे उसका खुदा, करदे बेडा गर्क.
करदे बेडा गर्क, गजल यह शानदार है.
मुर्दों को जिंदा करदे, यह जानदार है.
'सलिल' सुन रहा गज़ल, गूँजती हर सरसिज में.
फर्क देखता नहीं तनिक नीरज-पंकज में.

-divyanarmada.blogspot.com

-sanjivsalil.blpgspot.com

हरकीरत ' हीर' said...

नीरज जी आज तो न जाने क्या बात है एक से एक बढ़ कर पोस्ट पढने को मिल रही है ....उधर गौतम जी की पोस्ट...और इधर अब ये आपकी.... सुबीर जी आप तो बस लाजवाब ही कर देते हो....अब आपकी गज़लों की तारीफ तो हमारे बस की नहीं है.......!

जो तुम्हारा हक है उसकी मांगते हो भीख क्या ...

वाह....!!

सह रहे हैं हर सितम बस आसमां को देखकर
जाने किसने कह दिया था आएगा ईश्वर अभी

सुभानाल्लाल.......!!

गैर के जलते मकां का आप जाने दर्द क्या
बिजलियाँ टूटी कहाँ है आपके घर पर अभी

लाजवाब....!!

Anil Pusadkar said...

इसे कहते हैं गज़ल्।सलाम पंकज गुरूजी को और आभार आपका एक दमदार गज़ल पढने का मौका देने के लिये॥

गौतम राजऋषि said...

अभी कल ही तो चर्चा चली थी गुरूजी से मोबाइल पर इस गज़ल की...
तारीफ़ में कुछ कह सकूँ, ये तो हिमाकत के बराबर होगी। कापी कर ले जा रहा हूँ ग़ज़ल को
एक ही नारा लगा और कुर्सियां थरा गईं---उफ़्फ़्फ़

सुशील छौक्कर said...

वाह जी वाह हर शेर पसंद आया।

सह रहे हैं हर सितम बस आसमां को देखकर
जाने किसने कह दिया था आएगा ईश्वर अभी

वाह दिल खुश हो गया पढकर।

Udan Tashtari said...

अल्टीमेट!!!

गुरुजी..याने मास्साब को सुनना अपने आप में एक उपलब्धी है..आपने सुनाया..आपका साधुवाद. मास्साब के तो क्या कहने!!

गर्दूं-गाफिल said...

यहाँ तंज भी है और रंज भी है क्या खूब कहन है वाह वाह वाह
तीर ऐ जुबां खामोश भी है तलवार भी है ये वाह वाह वाह

वो रोज़ बयान बदलने को कहते हैं सियासत ,मजबूरी
बे खौफ ऐ खुदा ,बन्दा ऐ खुदा करते हैं इबादत वाह वाह वाह

कोई झल्लाए तो धमकी है , कोई धमकाए तो पागलपन
ये कातिल मौज निजामत की क्या खूब अदा है वाह वाह वाह

तलवों पे सितमगर के मालिश भलमनसाहत के घर नालिश
आफत में आब ओ ताब मिले ये अपनी जम्हूर्त वाह वाह वाह

मस्ती में दहशत गर्द यहां दहशत में देश के वाशिंदे
मुजरिम की अदालत में मुंसिफ खैर मनाता वाह वाह वाह

कडुवासच said...

... वाह-वाह ...बहुत खूब ..... सोने पे सुहागा .... चमचमाता मोती .... बधाईयाँ।

Mohinder56 said...

जिन्दगी की असलियत के बहुत करीब की रचना.. हर शेर खास बन पडा है... पढवाने के लिये आभार

Yogesh Verma Swapn said...

bahut khoob neeraj ji ek behatareen gazal se parichay ke liye aapko aur lajawaab lafzon se madhi gazal ke liye pankaj ji ko badhai/dhanyawaad.

पंकज सुबीर said...
This comment has been removed by the author.
Dr. Zakir Ali Rajnish said...

और ईश्‍वर न करे कि किसी पर बिजलियॉं टूटें भी। शानदार गजल, बधाई।

-----------
खुशियों का विज्ञान-3
ऊँट का क्‍लोन

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया गज़ल है।हर शेर लाजवाब!!

सतपाल ख़याल said...

sah rahe ho har sitam.....
bahut hi umda she'r!
muthiaN tantee ho to....
lajwab!
ghair ke jalte..

wah wa !
ye pahli ghazal paRee hai Pankaj ji ki umeed karta hoon ki phir se jald doosree ghazal bhi isee manch se aaye.
regards
khyaal

Alpana Verma said...

कह रहा हूँ फेंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
इस बगावत ने कहाँ बदला हर इक मंज़र अभी .

वाह! बहुत उम्दा!

सभी शेर एक से बढ़ कर एक हैं.

लाजवाब ग़ज़ल नीरज जी!
बधाई!

Naveen Tyagi said...

neeraj ji neta sanp nahi ajgar hai.

डॉ. मनोज मिश्र said...

कह रहा हूँ फेंकिये मत हाथ का पत्थर अभी
इस बगावत ने कहाँ बदला हर इक मंज़रअभी .
बहुत खूब .

वीनस केसरी said...

नीरज जी,
गुरु जी की गजल पढ़ कर दिल खुश हो गया आज गुरु जी ने भी नई पोस्ट ब्लॉग पर लगाईं बस वहां से ही आपके पास पंहुचा हूँ और यहाँ आ का तो ऐसा गजब नजारा हुआ की अब क्या कहूं मैं मैं खुद गुरु जी से कई बार कह चूका हूँ मगर हम पर नजरे इनायत न हुई कोई बात नहीं आप ने जो म्हणत की उसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद
गजल का मतला तो ऐसा है की दिल पर किसी ने खंजर उतर दिया हो और आह आह की जगह मुह से वाह वाह निकल रहा हो

वीनस केसरी

pran sharma said...

Gazal ho to aesee ho. Badhaaee.

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,

भाई पंकज जी के ग़ज़ल, शेर, जो सहज ही उपलब्ध नहीं होते, उस असहजता को भी लगता है कि आपने मुठ्ठियाँ तान कर ही निकलवाया है, तभी तो गुरुवर भी पहचान गए कि अभी भी आपमें रीढ़ की हड्डी बची है, अतः उनको भी कहना ही पड़ा कि

मुट्ठियां तनती हों गर जो आपकी तो जान लो
रीढ़ की हड्डी बची है आपके अंदर अभी

उन्हें लगा होगा कि भाई नीरज जी भी एक मजे हुए शायर हैं तो कहीं उनकी शायर आत्मा भीख में ग़ज़ल मँगाने के बजाय ताल ठोंककर ग़ज़ल छीनने ही यह कहते हुए आ गए तो, .......

जो तुम्‍हारा हक़ है उसकी मांगते हो भीख़ क्‍यों
गिड़गिड़ाओ मत, उसे तुम छीन लो उठकर अभी

अब तो लगता है कि चुनाव नहीं , बल्कि ग़ज़ल पेशी का बिगुल बज़ गया है और सभी सांप (अर्थात गजल) हम सभी क्षुधी पाठकों तक आप जरूर पहुंचायेगें. शायद इसी की हामी भरते हुए गुरुवर समीर जी को कहना ही पड़ा

बज गया फिर से चुनावों का बिगुल अब देखना
सांप सारे बांबियों से आयेंगें बाहर अभी

ऐसा लगता है कि गुरुवर समीर जी की ग़ज़लों में ज्यादातर विद्रोह ही अधिक देखने को मिलेगा, कहीं मेरा आकलन गलत तो नहीं....................

चन्द्र मोहन गुप्त

Nitish Raj said...

नीरज भाई आपने तो मारने में कसर छोड़ी ही नहीं थी पर सुबीर जी तो जान लेकर ही मानेंगे। बहुत ही खूब। आपकी ये प्रेरणा बहुत ही अच्छी लगी। सुभानअल्लाह।

रविकांत पाण्डेय said...

इसे कहते हैं मणिकांचन योग!या कहें सोने पे सुहागा!
नीरज जी का कुशल संचालन और गुरूदेव की शानदार गज़ल। किम अधिकं विज्ञेषु?

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बज गया फिर से चुनावों का बिगुल अब देखना
सांप सारे बांबियों से आयेंगें बाहर अभी

चुनावी जिम्मेदारियों (सरकारी) के बीच यह शेर पढ़कर लगा जैसे अभी-अभी इन साँपों के बीच से होकर आ रहा हूँ। बेहद उम्दा ग़ज़ल पढ़वाने के लिए शुक्रिया।

Manish Kumar said...

पंकज जी की इस ग़ज़ल को प्रस्तुत करने का आभार। तमाम अशआर लाजवाब हैं।

पंकज सुबीर said...

मेरे उस्‍ताद कहा करे थे कि एक मंच पर सारे नामचीन कवियों और शायरों को ले आओ और उस मंच का संचालन किसी नौ‍सीखिये को दे दो कार्यक्रम फ्लाप हो जायेगा । और किसी मंच पर कोई नामचीन को मत बुलाओ बस संचालन कियी सिद्धहस्‍त को दे दो कार्यक्रम सुपरहिट हो जायेगा । इसीलिये तो संचालक को अंग्रेजी में मास्‍टर आफ द सेरेमनी कहा जाता है । नीरज जी का ब्‍लाग भी ऐसा ही है जहां पर नीरज जी का संचालन इतना सधा हुआ होता है कि हम जैसे ऐरे गेरे भी हिट हो जाते हैं । खैर ये तो रही मजाक की बात असल में तो बात सही है कि श्री नीरज गोस्‍वामी जी का प्रस्‍तुतिकरण का ढंग इतना सधा हुआ होता है कि लोगों में उम्‍मीद तो जाग ही जाती है । वास्‍तव में संचालक वही होता है जो श्रोताओं की उम्‍मीद को जगाए रखता है । आप सभी ने ग़ज़ल को पसंद किया उसके लिये आभार ।

vijay kumar sappatti said...

neeraj ji

namaskar

deri se aane ke liye maafi chahunga , main tour par tha ..


main ab gazal ki kya tareef karun , ye to suraj ko diya dikhlane wali baat hongi ..

pankaj ji bahut sadhe hue gazalkar hai .. wo behatr likhte hai aur wakai guru hai . mera naman unko aur aapko bhi ,itni acchi prastutikaran ke liye ..

neeraj ji , ab to main bhi request karunga ki meri bhi koi poem aapke blog par daal hi de.. hamari bhi jai jai ho jayengi ..aapke blog ke ambiance me..

aako bahut badhai sir ji .


vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com

daanish said...

Aadarneey Pankaj ji ka umda aur meaari kalaam....
aur Neeraj ji ki shandaar prastuti...
SONE PAR SUHAGA . . .

badhaaaaeeee !!!

---MUFLIS---

निर्झर'नीर said...

laajavab , neeraj ji

निर्मला कपिला said...

देर आये भी तो दुरुस्त आये
इतनी अच्छी गज़ल तो पढ पाये
मुझे गज़ल की अधिक समझ तो नही है
मगर आप्की गज़ल पढ कर लगा कि यही होती है गज़ल बहुत खूब्

संजीव गौतम said...

वाह नीरज जी! आनन्द आ गया राजेश जी और सुबीर जी को आपकी दृष्टि से पढ़कर. राजेश जी का तो मैं भी प्रशंसक हूँ हद से ज़्यादा तक. सुबीर जी का आज और अभी से. उनकी ग़ज़ल पढ़कर बहुत रूह ताज़ा हो गई. तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं. वाकई वे बड़े शाइर हैं. आप सौभाग्यशाली हैं कि एक आपके मित्र हैं और एक गुरूजी. .
संजीव गौतम