Wednesday, October 1, 2008

ये गुलाबों की तरह नाज़ुक


( नमन छोटे भाई समान द्विज जी को जिन्होंने इस ग़ज़ल को कहने लायक बनाया )


कब किसी के मन मुताबिक़ ही चली है जिन्दगी
राह तयकर इक नदी —सी ख़ुद बही है जिन्दगी

ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी

मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी

बस जरा सी सोच बदली तो मुझे ऐसा लगा
ये नहीं दुश्मन कोई सच्ची सखी है ज़िन्दगी

जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी

मोल ही जाना नहीं इसका, लुटा देने लगे
क्या तुम्हें ख़ैरात में यारो ! मिली है जिन्दगी

जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी

34 comments:

seema gupta said...

जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
"behtreen , koee muskurana aapse seekhe, dukh ho khushee ho muskurane ka naam hai jindgee, very inspiring"

regards

रंजू भाटिया said...

ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी

वाह बहुत खूब ...

जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी

सच में यही है ज़िन्दगी ..

सुशील छौक्कर said...

क्या कहूँ इस गजल के बारें में। शब्द ही नही मिल रहे। बहुत ही अच्छी हैं। हर बार की तरह दो लाईन पसंद की नही निकाल पाया। यहाँ हर लाईन दिल को छू रही है। जो चीज जिदंगी को छूती वो दिल को भी छूती है। वाह वाह वाह.......वाह।

mamta said...

ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी

अति सुंदर ।
नीरज जी आप तो कवि बन गए ।

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,
आजकल तो लगता है कि जिंदगी लफ्फेबाज़ी का दूसरा नाम है. जिसको देखो कम न कर बात की लडाई लड़ता है.
अक्सर कुछ क्या बहुत से लोग कहते मिल जाते हैं कि
"जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है"
कुछ समझदार लोग ऐसे भी होते हैं जो जिन्दगी के अन्बवों के बाद आप ही की तरह गजला उठाते हैं कि
" कब किसी के मन मुताबिक़ ही चली है जिन्दगी
राह तयकर इक नदी —सी ख़ुद बही है जिन्दगी"
खैर सच-झूंट की लडाई तो समझ के फेर के कारण है. पर गजल के सारे शेर एक से बढ़ कर एक है.
keep it up.

चन्द्र मोहन गुप्त

Ashok Pande said...

बढ़िया है नीरज जी!

pallavi trivedi said...

वाह...इतनी अच्छी ग़ज़ल कही है आपने की कोई एक या दो शेर चुनकर नहीं निकाले जा सकते हैं!
जिंदगी पर इससे अच्छी ग़ज़ल मैंने नहीं देखी.....शब्द नहीं हैं तारीफ के लिए...

Gyan Dutt Pandey said...

ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी
-----
प्रेरक है यह। एक बार सांस भर कर जद्दोजहद का यत्न किया जाय!

ताऊ रामपुरिया said...

ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी

बहुत सुंदर ! शुभकामनाएं !

डॉ .अनुराग said...

ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी

वाह बहुत खूब ...

Dr. Amar Jyoti said...

'ये नहीं दुश्मन कोई सच्ची सखी है ज़िन्दगी'
बहुत सुन्दर!
एक अज्ञात कवि की ये पँक्तियां याद आ गईं।:-
'तमाम उम्र किया हमने ज़िन्दगी से गिला
तमाम उम्र हमें ज़िन्दगी ने प्यार किया।'
बधाई।

admin said...

जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी।

बहुत प्यारा शेर है, बधाई।

Kavi Kulwant said...

Aap ka kavya prem sarahaniya hai..
Thanks for your visit to Anushakti Nagar kavi sammelan on 28th September.
with love
K singh
http://kavikulwant.blogspot.com

makrand said...

कब किसी के मन मुताबिक़ ही चली है जिन्दगी
राह तयकर इक नदी —सी ख़ुद बही है जिन्दगी

bahut umadaa rachana
regards

मोहन वशिष्‍ठ said...

मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी
नीरज जी बेहतरीन रचना के लिए आपको बारंबार बधाई

कुश said...

क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी

bahut khoob ji.. bahut hi badhiya..

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

नीरजजी
आप ऐसे ही सुँदर
व सच्ची बातेँ लिखते रहेँ ,
शुभकामनाएँ!

Udan Tashtari said...

जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी


--छा गये महाराज!! बहुत उम्दा गज़ल!! आनन्द आ गया. दाद कबूलें.

श्रद्धा जैन said...

मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी

wah kya baat kahe di hai

जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी

bhaut achha msg

bhaut bhaut achha

योगेन्द्र मौदगिल said...

मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी

Wah Wah...
मजा आ गया नीरज जी

वीनस केसरी said...

बहुत बेहतरीन गजल है
पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद


वीनस केसरी

पंकज सुबीर said...

जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
नीरज जी ये हासिले ग़ज़ल शेर है इसे संभाल कर रखियेगा । ये आपने नहीं लिखा ये सरस्‍वती ने प्रसन्‍न होकर स्‍वयं ही आपको उपहार दिया है और आपसे लिखवाया है । जिसके बारे में कहा जाता है कि ऊपर से उतरा हुआ शेर है ।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी

बेहद खुद्दार शेर कह दिया भाई.
=======================
बधाई
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Manish Kumar said...

जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी

behad sundar panktiyan dil ko choo gayin.

Devi Nangrani said...

जंग का हिस्सा है यारो, जीतना या हारना
ख़ुश रहो गर आख़िरी दम तक लड़ी है जिन्दगी

sachayi se khoob sunder andaaz mein parichit karwaya hai Neeraj

Zindagi junG choti si to nahin
Maine jaana hai par ladi to nahin.

Daad ke saath
Devi Nangrani

Shiv said...

शानदार!
एक-एक शेर बहुत बढ़िया.....पता नहीं कब तलक रहेगी ज़िन्दगी लेकिन जब तक आपकी गजलें पढने को मिलें, इस जीने का तरीका सीखते रहेंगे.

BrijmohanShrivastava said...

बहुत बढ़िया / तूने रंजो अलम के सिवा क्या दिया , आँख हमसे मिला बात कर जिंदगी /

गौतम राजऋषि said...

किस किस शेर पर दाद दें नीरज जी हम.कैसे इतने सुंदर शब्दों में इतने अद्‍भुत विचारों को इतने मनोरम और आसान तरिके से आप बाँध लेते हैं शेरों में और वो भी एकदम नपा-तुला.मजाल है कि एक बिन्दु तक इधर से उधर हो जाये...

बवाल said...

क्या बात है नीरज जी ! बहुत क़ामयाब लिक्खा है जी आपने. क्या कहना !

Smart Indian said...

ये गुलाबों की तरह नाज़ुक नहीं रहती सदा
तेज़ काँटों सी भी तो चुभती कभी है जिन्दगी

बहुत सुंदर, नीरज जी!

Unknown said...

wah....
ek ek sher bahut sachha... lajawab... kya kahene....!

badhi....

regards
mamta kiran

Harshad Jangla said...

निरजभाई
हम भी तकलीफ में मुस्कुराने लगे |
बहोत खूब लिखा है |
धन्यवाद
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए

Tapashwani Kumar Anand said...

मौत से बदत्तर समझ कर छोड़ देना ठीक है
ग़ैर के टुकड़ों पे तेरी गर पली है ज़िन्दगी

जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी

is rftar bhari zindagi ka bahut hi sahi chitran kiya hai aapne..
Nayab rachna hai.....

shama said...

Neeraj ji,
Bohot dertak padhtee rahee aapka blog...kkya kahun...kuchhbhee kehna soorajko raushanee dikhane walee baat hogee...mai din b din aapkee rachnayonkee kayal hotee ja rahee hun. Aur aap jistarahse, itnee vinamrtake saath jisbhee kisee se seekha uska ullekh karte hain, ye baat badeehee achhe lagee..!
"Kab kiske man mutabiq hee chalee hai zindagee,
Raah tay kar ik nadee-see khud bahee hai zindagee"...laga jaise mere jeevanka saransh in panktiyonme aa gaya..!