( सलाम करता हूँ भाई पंकज सुबीर जी को जिनके इशारे से ग़ज़ल की खामियां दूर कर पाया हूँ , प्रस्तुत है संशोधित ग़ज़ल)
नींद आंखों की उड़ाता कौन है
रात भर मुझको जगाता कौन है
भूल जाना चाहता हूं मैं जिसे
याद उसकी ही दिलाता कौन है
ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन पाता है लुटाता कौन है
प्यार के गुल रौंद मेरे मुल्क में
खार नफरत के उगाता कौन है
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
गीत मेरा गुनगुनाता कौन है
किसको फुर्सत आज के इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
मोल अपने आसुंओं का जानिये
मोतियों को यूं लुटाता कौन है
राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन है
हम किसे आवाज दें ‘नीरज’ बता
देख कर बदहाल आता कौन है
47 comments:
वाह ! क्या बात है !!
आँखों में ख्वाब-सी सजी
भूली-भूली-सी यादो की याद दिलाती
प्रेम की सच्ची प्यास जगाती
फिर भी
दुनियादारी की तल्खी का एहसास दिलाती हुई
आँखों के रास्ते दिल में उतर जाने वाली ग़ज़ल !
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बधाई नीरज भाई.
चन्द्रकुमार
मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है
ye sher bahut hi badhiya ban pada hai.. warna tippani dene aata kaun hai.. :)
मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है
" wonderful, very sensitvly composed, each word has a deep meaning"
" hum to feejaon mey firteyn hain khyalon kee treh,
humare tarunum ko gungunata kaun hai..."
Regards
आप नायाब अंदाज से गंभीर बातें भी छोड़ जाते हैं-
गुल बिछाता हूँ मैं उसकी राह में
खार नफरत के उगाता कौन है
साथ्ा ही,
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
ये शेर बहुत पसंद आया....
गुल बिछाता हूँ मैं उसकी राह में
खार नफरत के उगाता कौन है
रंजन
aadityaranjan.blogspot.com
बहुत गहरी गहरी बातें कहते शब्द।
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है
बहुत खूब वाह।
"है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है"
अपनी कहानी लगी नीरज जी! और जब अपनी कहानी लगे तो ये कहने की जरुरत नहीं की कैसी पंक्तियाँ है !
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
नीरज जी कविता की समझ मुझको बहुत
कम ही है ! पर जैसे मिठाई के स्वाद के लिए
मिठाई बनाना आना जरुरी नही है ! आपकी
रचनाए पढ़ने में आनंद के साथ और भी रसों
की प्राप्ति होती है ! बहुत धन्यवाद आपको !
सुन्दरतम !
नीरज जी वाह बहुत ही बढ़िया
देख के बदहाल आता कौन है
वाह
ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन देता और पाता कौन है
अपने में ही पूरी लाइन हैं ये
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
bahut khuub!!
'रूठ जाने पर मनाता कौन है'
बहुत ख़ूब! क़ैफ़ी आज़मी की नज़्म-'मैं ये सोच कर उसके दर से उठा था…'की याद ताज़ा हो गई। वही बात इतने कम शब्दों में कह दी। मान गये।
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है
वाह!! क्या बात है साहब!! बहुत सुन्दर लब्जों में खूबसूरत ग़ज़ल कही है!!
BAHUT HI achchha Neeraj ji . sahi kaha apane . darasl ye dunia hi aisi hoti hai jisamen pahunch janen ke bad tow shikawe hi shikawe hote hain .
sudar likhaa hai aapne..
mere blog par tippni ka dhanyawad.
भूलना तो चाहता हूँ मैं उसे
याद उसकी पर दिलाता कौन है
बहुत खूब
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
सही कहा कोई नही मनाता ..हर कोई ख़ुद में ही उलझा है :)
छा गए हैं सर. क्या बह्र है, क्या लय है ...... क्या बात है. वाह !
गुल बिछाता हूँ मैं उसकी राह में
खार नफरत के उगाता कौन है
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
waah...behtarin,poori gazal lajawab.
mujhe sabse accha ye sher laga
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
गुल बिछाता हूँ मैं उसकी राह में
खार नफरत के उगाता कौन है.
वाह,खूबसूरत ग़ज़ल है.
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है
*********
नीरज जी इतनी अच्छी कविता पर लोगों का आपको याद करना और आपको हिचकियां आना लाजमी है।
.
मेरी नज़र कमजोर है...
या यह मेरी नज़रों का कुसूर, बता नहीं सकता..
एक ब्लागर की दृष्टि में..
’ है किसे फुर्सत बता इस दौर में
पोस्ट लिखने पर टिपियाता कौन है
... ही पढ़ पा रहा हूँ
बेहतरीन नीरज भाई ...वाह वाह !
वाह-वाह बहुत खूब।
ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन देता और पाता कौन है
बिलकुल सही दिल को छू गई ये लाइने
बहुत खूबसूरत गजल. हमेशा की तरह.
राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन है
लेकिन इस शेर पर खतरा मंडरा रहा है. रागी, विरागी, अनुरागी, सारे ब्लॉगर आपकी हर गजल पढ़कर आपकी पीठ थपथपा कर जाते हैं......:-)
वाह! वाह!
वड्डे पापाजी, कमाल कर दिया आपने. एक-एक शेर 'भारतीय' है. अद्भुत रचना है.
sach ab ye hai,ki aapki post se jyada intzaar mai mishti ki nai tasveer ka karti hu....mai kabhi na kabhi to mishti se milne jaroor aungi, apni kuku ke saath
सुंदर,..........
बेहतरीन,.......
भूलना तो चाहता हूँ मैं उसे
याद उसकी पर दिलाता कौन है
Neeraj ji, bahut achchhi line lagi yah.
Badhai
नीरज जी,
बहुत ही सुंदर रचना. एक एक लाइन कमाल की है, धन्यवाद!
राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन
waise to aapki bat sahi hai par aapke blogger mitr to thapthapate hain. Api dafliyan bhi bajate hain, par kadr dan bhi to hain ana.
KHOOBSURAT KAVITA.
निरजभाई
बहुत खूब
बधाइयां
हर्षद जांगला
एटलांटा युएसऐ
है किसे फुर्सत बता इस दौर में
रूठ जाने पर मनाता कौन है
मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है
waah neeraj ji
मोल अपने आंसुओं का जानिए
मोतियों को यूँ लुटाता कौन है
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है
WAH..Wah
नीरज जी,
क्या बात है...
गजल कही है आपने..... गजल....
साधुवाद..
छोटे बहर और आमफहम शब्दावली में बहुत खूब कहा है आपने। मुबारकबाद स्वीकारें।
ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन देता और पाता कौन है
kya baat hai...ek aur umda ghazal.
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है.......
kis tarah yah mann jane kya kya sochta hai.....
bahut badhiyaa
बहुत ही सुन्दर कविता हमेशा की तरह से...
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है.......
धन्यवाद
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
नाम मेरा गुनगुनाता कौन है
राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन है
नीरज जी क्या बात है. आगे भी ऐसी ही रचनाओं का इन्तिज़ार रहेगा
नीरज जी आपकी ग़ज़लों ने तो वाकई मुझे दीवाना बना दिया है खास तौर पर आपकी पंच लाइन ने तो मुझे बहुत ही प्रभावित किया : शायरी मेरी तुम्हारे ज़िक्र से मोगरे की यार डाली हो गयी।
आपकी ग़ज़ल का एक ये शेर जो मुझे बहुत ही पसंद आया : मोल अपने आंसुओं का जानिए मोतियों को यूँ लुटाता कौन है. वाकई में काबिल-ए-तारीफ है। बधाई स्वीकार कीजिये ।
पीठ दूजी थपथपाता कौन है
यथार्थ वर्णन किया है जीवन का नीरज जी !
बहुत बेहतरीन गजल है
एक एक शेर मासूमियत से ख़ुद को प्रस्तुत करते है
बहुत अच्छा निभाया है आपने काफिया को बधाई स्वीकार करें
वीनस केसरी
ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन खोता और पाता कौन है
प्यार के गुल रौंद मेरे मुल्क में
खार नफरत के उगाता कौन है
शाम से ही आ रही हैं हिचकियाँ
गीत मेरा गुनगुनाता कौन है
kavita pasan aai. kafi achchhi hai
हमेशा की तरह उम्दा
राग अपना और अपनी ढपलीयाँ
पीठ दूजी थपथपता कौन है ?
बहुत ही खूब है नीरज जी क्या बात है.
लीजिए इस पर शेर है किन्ही शायर का -
ग़ैर काहे को सुनेंगे तेरा दुखड़ा बिस्मिल ?
उनको फ़ुर्सत ही नहीं, अपनी ग़ज़ल गाने से !
ये पता चलता नहीं है इश्क में
कौन खोता और पाता कौन है
राग अपने और अपनी ढफलियां
पीठ दूजी थपथपाता कौन है
क्या कहने है नीरज जी ! बहुत खूबसूरत ख्याल है !मुझे तो लगता है प्यार में सिर्फ़ पाते ही पाते है खोते कुछ भी नहीं !आपकी ग़ज़ल पढ़कर मन एक सुखद अनुभूति से भर गया ! सच कहूँ तो बहुत भटकने के बाद ब्लॉग पर इतनी अच्छी ग़ज़ल पढ़ने को मिली है , हार्दिक बधाई स्वीकार करें !
मोल अपने आसुंओं का जानिये
मोतियों को यूं लुटाता कौन है
भाई बहुत खूब। मजा आ गया।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
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