देखने में मकां जो पक्का है
दर हकीकत बड़ा ही कच्चा है
ज़िंदगी कैसे प्यारे जी जाए
ये सिखाता हरेक बच्चा है
छाँव मिलती जहाँ दुपहरी में
वो ही काशी है वो ही मक्का है
जो अकेले खड़ा भी मुस्काये
वो बशर यार सबसे सच्चा है
जिसको थामा था हमने गिरते में
दे रहा वो ही हमको धक्का है
आप रब से छुपायेंगे कैसे
जो छुपा कर जहाँ से रख्खा है
जब चले राह सच की हम "नीरज"
हर कोई देख हक्का बक्का है
दर हकीकत बड़ा ही कच्चा है
ज़िंदगी कैसे प्यारे जी जाए
ये सिखाता हरेक बच्चा है
छाँव मिलती जहाँ दुपहरी में
वो ही काशी है वो ही मक्का है
जो अकेले खड़ा भी मुस्काये
वो बशर यार सबसे सच्चा है
जिसको थामा था हमने गिरते में
दे रहा वो ही हमको धक्का है
आप रब से छुपायेंगे कैसे
जो छुपा कर जहाँ से रख्खा है
जब चले राह सच की हम "नीरज"
हर कोई देख हक्का बक्का है
{ग़ज़ल पर इस्लाह के लिए भाई पंकज सुबीर को धन्यवाद}
14 comments:
बहुत खूब। नीरज जी मिष्टी कौन है
BADEE DER KAR DEE MEHRBAN
SUKRA HAI PHIR TUM AAYE TO.
AAS NE DIL KA SAATH NIBHAYAA
VAISE HAM GHABRAYE TO....
AAPKEE LAZAVAAB TAZAA GAZAL MEIN EK MISARA MEREE ZANIB SE KUBOOL HO...
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USNE DUNIYA KA NOOR PAYAA HAI
JISKE DIL KA ZAHAAN SACHCHA HAI
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बहुत अच्छा है सर जी.
जिसको थामा था हमने गिरते में
दे रहा वो ही हमको धक्का है
नीरज जी बहुत खुब,बहुत ही उम्दा कविता हे, एक सच्चई हे उपर की पक्तियो मे
सच की राह वास्तव में बहुत सरल पर आश्चर्य से युक्त होती है। जब सरल सी चीज - जैसे यह गज़ल, सामाने आती है तो लगता है कि कितनी जटिलता में हम व्यर्थ सिर मारते रहे।
यह पोस्ट पढ़ कर यही अहसास हुआ। पता नहीं आपके क्या भाव रहे होंगे!
बहुत बढ़िया...हमेशा की तरह ही.
ऊपर शिव जी के कमेन्ट का रिपीट और सादर -
आप जो जिस तरह से कहते हैं
वो ही साझा है सच से अच्छा है
rgds - manish
वाह वाह!!! बहुत खूब,,,,ऐसा ही उम्दा लेखन जारी रहे, शुभकामना. लौटने की बम्बई से फ्लाईट है, मुलाकात हो सकती है..२६ अप्रेल की.
मजा आ गया। बहुत जबरदस्त है नीरजजी।
मोहतरम नीरज साहिब
आदाब
किसने पत्थर फैंक कर हलचल मचा दी झील में
झिलमिलाते "चाँद" की तस्वीर धुँधली हो गई
ग़ज़ल की जुल्फ तुम संवारोगे
तेरे दिल का इरादा पक्का है
देख के तेरी ग़ज़ल ऐ नीरज
चाँद भी अबके हक्का बक्का है
इससे पहले के बद नज़र असर कर जाए
आ तेरे चाँद से चेहरे की बलाएँ ले लूँ
देर न कर सबरंग पर आ
ना अब इतनी देर लगा
चाँद हदियाबादी डेनमार्क
जिसको थामा था हमने गिरते में
दे रहा वो ही हमको धक्का है
नीरज भाई बहुत उम्दा गज़ल है..और फ़िर सुबीर भाई को भी धन्यवाद...
Behatareen
bahut hi khuubsurat ghazalen hain aap ki neeraj ji--
बेहतरीन ग़ज़ल.....
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