Saturday, January 5, 2008

फैसले की घड़ी जो आयी हो


झूठ कहने की चाह की जाए
ज़िंदगी क्यों तबाह की जाए

दिल लगाया तो ये ज़रूरी है
चोट खा करके वाह की जाए

वो अदाओं से मारते हैं पर
चाहते ये न आह की जाए

है खुदा गर बसा तेरे दिल में
काहे काबे की राह की जाए

हो न गर जो उमीद मरहम की
किस लिये फिर कराह की जाए

फैसले की घड़ी जो आयी हो
अपने दिल से सलाह की जाए

चाँदनी हो या रात हो काली
संग तुम्हारे निबाह की जाए

जो मिला उस में खुश रहो नीरज
ना किसी से भी डाह की जाए.

14 comments:

Shiv Kumar Mishra said...

सामने जब हो फैसले की घड़ी
अपने दिल से सलाह की जाए

बहुत खूब गजल है भैया....

मिले पढ़ने को आपकी गजलें
पढ़ें उनको और वाह दी जाए

पारुल "पुखराज" said...

नीरज जी,कुछ बातें बहुत खरी कहीं आपने…बहुत सुंदर…आभार

Sanjeet Tripathi said...

"सामने जब हो फैसले की घड़ी
अपने दिल से सलाह की जाए"


जब भी कोई फैसला कीजिए
दिल से भी मशवरा किजिए।

बढ़िया रचना
शुक्रिया!

रंजना said...

lajawaab,sundar,sadhuwad......

bilkul sahi
jo mila usme khush raho neeraj
na kisi se daah kee jaye...
gurumantra jeevan me utarne ka prayas karungi.

अमिताभ मीत said...

बस कमाल है मालिक. किस शेर की, किस किस शेर की बात करूँ ...... साफ़गोई को साफ़गोई से आदाब.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही बेहतरीन रचना है।बहुत बढिया कहा-

जो मिला उस में खुश रहो नीरज
ना किसी से भी डाह की जाए.

Gyan Dutt Pandey said...

नीरज जी, आपने इस कविता के हर पद में जीवन-कला के सूत्र दे दिये हमें। ये तो संजो कर रखने के लिये हैं।
बहुत सुन्दर।

पंकज सुबीर said...

वो अदाओं से मारते हैं मुझे
हो न उम्‍मीद जहां मरहम की
सामने जब हो फैसले की घड़ी
इन तीनों ही मिसरों में समस्‍या है एक मात्रा बढ1 रही है पहले और तीसरे में बीच वाले में जो जहां शब्‍द आया है वो गलत आया है
वो अदाओं से मारते हैं पर
चाहते ये न आह की जाए
ऐसा कुछ तीना में करने की जरूरत है

मीनाक्षी said...

बहुत सुन्दर ...बार बार पढकर आनन्द और बढता जाता है.... बहुत गहरी बात कह दी गर कि हम समझें...

Pankaj Oudhia said...

जो मिला उस में खुश रहो नीरज
ना किसी से भी डाह की जाए.

वाह क्या कहने। क्या बात है। वाह, वाह

पंकज सुबीर said...

वो अदाओं से मारते हैं पर
चाहते ये न आह की जाए
हो न गर जो उमीद मरहम की
( उम्मी द को उमीद किया जा सकता है )
किस लिये फिर कराह की जाए
फैसले की घड़ी जो आ जाए
अपने दिल से सलाह ली जाए

नीरज गोस्वामी said...

पंकज भाई
राम ने कहा था " भरत भाई कपि के उरिन हम नाहीं...." उम्मीद है मुझे आप ये कहने का मौका नहीं देंगे..गुरु दक्षिणा तो आप को लेनी ही होगी...आदेश कीजिये...
मैंने आप के द्वारा ठीक किए शेर पोस्ट पर लगा दिए हैं...धन्यवाद कह के ऋण मुक्त नहीं हो सकता...इसलिए चुप हूँ...
नीरज

शोभा said...

नीरज जी
बहुत बढ़िया लिखा है आपने ।
सामने जब हो फैसले की घड़ी
अपने दिल से सलाह की जाए
आप गज़ल बहुत अच्छी लिखते हैं
बधाई

रजनी भार्गव said...

है खुदा गर बसा तेरे दिल में
काहे काबे की राह की जाए

हो न गर जो उमीद मरहम की
किस लिये फिर कराह की जाए
आपकी गज़ल अच्छी लगी.