बात सचमुच में निराली हो गई
झूट जब बोला तो ताली हो गई
फेर ली जाती झुका कर थी कभी
उस शरम से आँख खाली हो गई
ये असर हम पे हुआ इस दौर का
भावना दिल की मवाली हो गई
मिल गई उनको इजाज़त जुल्म की
अपनी तो फ़रियाद गाली हो गई
इक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इंसा तो नाली हो गई
डाल दीं भूखे को जिसमें रोटियां
वो समझ पूजा की थाली हो गई
हाथ में कातिल के नीरज फूल है
बात अब घबराने वाली हो गई
झूट जब बोला तो ताली हो गई
फेर ली जाती झुका कर थी कभी
उस शरम से आँख खाली हो गई
ये असर हम पे हुआ इस दौर का
भावना दिल की मवाली हो गई
मिल गई उनको इजाज़त जुल्म की
अपनी तो फ़रियाद गाली हो गई
इक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इंसा तो नाली हो गई
डाल दीं भूखे को जिसमें रोटियां
वो समझ पूजा की थाली हो गई
हाथ में कातिल के नीरज फूल है
बात अब घबराने वाली हो गई
17 comments:
सभी पक्तियाँ एक से बढकर एक है। नव-वर्ष की सुबह ऐसी रचना पढकर मजा आ गया। क्या बात है, वाह।
सुंदर!!
नया साल पहले से बेहतर दे जाए! नए साल की शुभकामनाएं
बहुत बढ़िया रचना । पंकज जी ने सच कहा। व्यापक संवेदनाएं हैं। मुझे -
इक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इंसा तो नाली हो गई
ये पंक्तियां ज्यादा पसंद आईं। सामयिक यथार्थ , बिना किसी बिम्बविधान के ।
शुभ हो नववर्ष ...
आपकी गजलों पर इतनी दाद दी
दाद की गठरी ही खाली हो गई
नए साल के पहले दिन इतनी बढ़िया गजल लिखने के किए शुक्रिया भैया...बहुत सुंदर गजल है.
बहुत बढिया व सत्य का दर्शन कराती आप की रचना बहुत ही बेहतरीन है। आज की सच्चाई को बताती आप की रचना बहुत पसंद आई।
डाल दीं भूखे को जिसमें रोटियां
वो समझ पूजा की थाली हो गई
हाथ में कातिल के नीरज फूल है
बात अब घबराने वाली हो गई
नीरज जी मुझे लगता है कि आपके अंदर तो भरपूर रिदम है पूरी की पूरी ग़ज़ल रिदम में है हालंकि अभी मैंने उड़ती नजरों से देखा है पर विश्वास है कि पूरी ग़ज़ल बहर में भी है कापी करकेरख रहा हूं तकतीई करके और बहर निकाल के क्लास में बताऊंगा इसके बारे में
रात मावस की घिरी घनघोर थी
हंस दिये वो और दिवाली हो गई
फेर ली जाती झुका कर थी कभी
उस शरम से आँख खाली हो गई
bahut khuub neeraj ji....NAV VARSH MANGAL MAY HO
सुन्दर पंक्तियाँ!
नया साल मुबारक हो।
इक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इंसा तो नाली हो गई
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नीरज जी, लगता है यह पंक्तियां मेरे घर के पास बहती गंगा जी का निकट भविष्य बता रही हैं।
नीरजजी
बात सचमुच में निराली हो गई.
झूट जब बोला तो ताली हो गई.
भाई वाह रफ़्ता रफ़्ता आप जीवन की हकीकत से वाकिफ हो रहे हैं.मतले ने मज़ा ला दिया.
ग़ज़ल बहर में है- वज़्न इस प्रकार होगा-
ये उर्दू की बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ है.
फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
2122 2122 212
निम्न उदाहरण देखें इसी बहर में हैं.
दिल के अरमां आँसुओं में बह गये.
हम वफ़ा कर के भी तन्हा रह गये.
बाढ़ की संभावनायें सामने हैं.
और नदियों के किनारे घर बने हैं.दुष्यन्त कुमार
यार ज्यादा ज्ञान ठीक नहीं.आज के लिए इतना काफी है.
ज़िन्दगी की लिख रहे सच्चाई तुम
अनगिनत नजरें सवाली हो गईं
किन्हीं एकाद पंक्तियों की चर्चा नहीं करूंगा मुझे पूरी रचना बहुत ही अच्छी लगी।
नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
सभी बड़े नामो के ब्लॉग पर आपके कमेंट्स पढता हूँ.. भई हमारा न तो कोई बड़ा नाम है न कोई पहचान फ़िर भी ब्लॉग का दुनिया में एक छोटा सा अपना भी घोसला बना लिया है ..एक सवाल जेहन में कई बार उठता है की क्या नाम/पहचान/ और सब कुछ एक खास वर्ग के लिए है
और आपके कमेंट्स भी....
कुछ लिखा है कुछ लिखना है बाकि....
आपका स्नेह चाहूँगा...
अपना पता है-
www.shesh-fir.blogspot.com
डॉ. अजीत
शेष फ़िर.......
बहुत बढ़िया - नए साल में दीवाली हो गई - मनीष
हमेशा की तरह ,बहुत ही सुंदर रचना.पर एक परेशानी आ रही है.यथार्थ के रंगों मे रंगी इस रचना मे जब भी डूब कर इसका रसास्वादन करने और प्रतिक्रिया देने को उद्धत होती हूँ ,आंखों के सामने मधुबाला जी का मुस्कुराता चेहरा आ जाता है.फ़िर जैसे लगता है,यह कह रहा हो,यथार्थ तो है यह पर तुम तो अपने कर्तब्यों के प्रति सजग रह प्रकृति,परिवेश,परिवार,समाज,देश और दुनिया के प्रति अपने कर्तब्यों का अपने सामर्थ्य भर निर्वहन करते जाओ और मुस्कुराते रहो.
kya aapne isiliye blog par yah tasweer dali hai?
apne vichar batate to bada achcha lagta.
डाल दीं भूखे को जिसमें रोटियां
वो समझ पूजा की थाली हो गई
हाथ में कातिल के नीरज फूल है
बात अब घबराने वाली हो गई
वड्डे पापाजी,
देर से आने के लिए माफी मांगता हूँ. बहुत ही खूबसूरत गजल है. बहुत दिनों के बाद आज सारी गजलें पढी. बाकी तो क्या कहूँ. सब तो शिव ने लिख दिया. मेरी गठरी भी खाली हो गई है.
मिल गई उनको इजाज़त जुल्म की
अपनी तो फ़रियाद गाली हो गई
वाह वाह!!! बहुत बहुत सुंदर ...सच लिख दिया आपने ...बहुत ही भाव पूर्ण है यह !!
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