Thursday, December 27, 2007

तभी मुस्कान होती है.



चलिए इस बार आप को कुछ हलकी फुलकी रचनाओं से रूबरू करवाता हूँ. इन्हें समझना आसान है क्यों की ये ग़ज़ल के शेर की तरह घुमावदार नहीं हैं. सीधी बात सीधे ढंग से कही गई है . तकनिकी दृष्टि से ये शायद रुबाई नहीं हैं लेकिन उसी की सगी सम्बन्धी जैसी की कुछ हैं, जो भी हैं आप तो आनंद लीजिये.




मेरे दिल को समझती हो
मैं सच ये मान जाता हूँ
तेरे दिल की हरेक धड़कन को
मैं भी जान जाता हूँ
मगर फ़िर भी ये लगता है
कहीं कुछ बात है हम में
जिसे ना जान पाती तुम
ना मैं ही जान पता हूँ





ये सूखी एक नदी सी है
कहाँ कोई रवानी है
इबारत वो है के जिसका
नहीं कोई भी मानी है
मैं कहना चाहता जो बात
बिल्कुल साफ है जानम
तुम्हारे बिन गुजरती जो
वो कोई जिंदगानी है ?





तुम्हारे साथ हँसते हैं
तुम्हारे साथ रोते हैं
कहीं पर भी रहें
लगता है जैसे साथ रहते हैं
जो दूरी का कभी एहसास
होने ही नहीं देता
मेरी नज़रों से देखो तो
उसी को प्यार कहते हैं





कहाँ किसकी कभी ये
ज़िंदगी आसान होती है
कभी जलती ये सहरा सी
कभी तूफ़ान होती है
मगर जब हाथ ये तेरा
हमारे हाथ आ जाए
तभी खिलती ये फूलों सी
तभी मुस्कान होती है.

17 comments:

रंजना said...

धन्यवाद स्वीकारें !
आपने जिस आनंद के साथ आनंद भेजा हमने ले लिया.अब मात्रा के बारे मे यह बताना मुश्किल है कि आपको लिखकर पढने मी ज्यादा आनंद आया या हमे आपका लिखा पढने मे.

परमजीत सिहँ बाली said...

आप की ये रचनाएं मेरे विचार से मुक्तक की श्रैणी में आते हैं।बहुत बढिया लिखें हैं।बधाई।

रंजना said...

विनम्रता से साथ एक आपत्ति दर्ज करानी थी कि रचना को हल्का फुल्का कहकर आपने इसके साथ न्याय नही किया है. रचना कोमल भावों से ओत प्रोत है और उतनी ही कोमलता से मन को छूती है.तो जो रचना मन को छूने का सामर्थ्य रखती है हल्की नही हो सकती.

नीरज गोस्वामी said...

रंजना जी
आप की आपत्ति सही है. मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ.
नीरज

Pankaj Oudhia said...

मगर जब हाथ ये तेरा
हमारे हाथ आ जाए
तभी खिलती ये फूलों सी
तभी मुस्कान होती है.

वाह क्या बात है। लेखनी मे जबरद्स्त पकड है आपकी।

समय चक्र said...

बहुत बढ़िया लिखते रहिए

Srijan Shilpi said...

बहुत सुन्दर रचना। वाह...

Shiv Kumar Mishra said...

हमारी बात मानी आपने
और ब्लॉग पर आए
हमारे वास्ते
गजलों की ये सौगात ले आए
ये है किस्मत हमारी
आपकी गजलें पढ़े हमसब
हमारे दिल में भी
कोमल से कुछ जज्बात जग जाए

पता नहीं करना कि ये मुक्तक हैं या रुबाइयां....लेकिन जो भी हैं, बहुत खूब हैं.

Gyan Dutt Pandey said...

मुझे तो यह पोस्ट अच्छी लगी पर उससे ज्यादा अच्छा लगा रंजना जी के कहने पर आपका अपने शब्द वापस लेने का कृत्य।
सही में, आप रचना को हल्का नहीं कह सकते।

राकेश खंडेलवाल said...

कहाँ किसकी कभी ये
ज़िंदगी आसान होती है
कभी जलती ये सहरा सी
कभी तूफ़ान होती है
मगर जब हाथ ये तेरा
हमारे हाथ आ जाए
तभी खिलती ये फूलों सी
तभी मुस्कान होती है.

a अब इसके आगे तो कुछ भी कहना मुश्किल है

अमिताभ मीत said...

..........
मगर जब हाथ ये तेरा
हमारे हाथ आ जाए
तभी खिलती ये फूलों सी
तभी मुस्कान होती है.

क्माल कित्ता सर जी, क्माल. क्या कहूँ ... बस कमाल है. अच्छा एक शेर याद आ गया सुन लीजिये :

फूल, गुल, शम्स-ओ-क़मर सारे ही थे
पर हमें उन में तुम्हीं भाये बहुत

पारुल "पुखराज" said...

नीरज जी,हाजरी लगाने आयी थी मगर यहां आ कर सबसे खूबसूरत बात जो पायी------

मेरे दिल को समझती हो
मैं सच ये मान जाता हूँ
तेरे दिल की हरेक धड़कन को
मैं भी जान जाता हूँ
मगर फ़िर भी ये लगता है
कहीं कुछ बात है हम में
जिसे ना जान पाती तुम
ना मैं ही जान पता हूँ
##################

बहुत खूब--------

विनोद पाराशर said...

आपकी रचनाओं को पढकर मुझे एक शायर की कुछ पंक्तियां याद आ गई-
’जो पूछा यार से मॆंने,तुझे किसी से मॊहब्बत हॆ
तो यों लगा,हंसकर के कहने,बस तुम्ही पर दम निकलता हॆ.’नीरज जी ,जंहा तक मॆं समझता हूं-कविता में तकनीक नहीं,भावों की गहनता अधिक महत्व रखती हॆ.आप बिना किसी संकोच के लिखते रहिये.

महावीर said...

भावों को जिस ख़ूबसूरती से संजोया है, लाजवाब हैं।
बहुत सुंदर।

नया वर्ष आप सब के लिए शुभ और मंगलमय हो।
महावीर शर्मा

haidabadi said...

जनाबे नीरज साहिब,
आपने अपने ब्लॉग में मेरी ग़ज़ल शुमार करके जो मेरा मान रखा है. उसके लिए में आपका तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ. मेरी नज़र में आपका कद इससे भी बुलुन्द है.आपने जो इन्सान दोस्ती का अलम उठा रखा है.आपका यह परचम लहलहाता रहे यह मेरी दुआ है .
हुस्ने आवाज़ मोहतरमा पुराल,जनाबे शिव कुमार साहिब,मोहतरमा रंजना साहिबा, श्री परमजीत बाली, दर्दे हिंद श्री पंकज अवधिया,महजबीं मीनाक्षी साहिबा,श्री जे .पी नारायण साहिब, इस्लाह गो जनाबे मोहतरम राकेश खंडेलवाल,और श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय जी का आभार प्रकट करता हूँ,आप सब ने मुझे दादे तहसीन से नवाजा है.
किसी हमदर्द ने यह जिंदगी आसान कर दी है
खलूसे दिल से मेरे होंठों पे मुस्कान भर दी है
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क

बालकिशन said...

बहुत खूब. ग़ज़ल हो या फिर मुक्तक, जो भी लिखते हैं, सब जबरदस्त. बहुत बढ़िया रचना है.

रंजू भाटिया said...

बहुत ही सुंदर गजल है यह पढ़ के बहुत अच्छा लग इस को ..