Tuesday, December 18, 2007

डालियों पर देखिये फल भर दिए




जिस शजर* ने डालियों पर देखिये फल भर दिए
उसको चुनचुन कर के लोगों ने बहुत पत्थर दिए

कौन करता याद सच है बात बिल्कुल दोस्तों
वो दीवाने ही हैं जो ये जान कर भी सर दिए

फूल देता है सभी को क्या गज़ब इंसान है
भूल जाता किसने उसको बदले में नश्तर दिए

प्यार गर जागा नहीं दिल में तेरे किसकी खता
हर बशर** को तो खुदा ने सैंकडों अवसर दिए

कैद कर रखना था पंछी को अगर सैय्याद ने
फड्फड़ाने के लिए क्यों छोड़ उसके पर दिए

कुछ नहीं मिलता है रब से जान लो खैरात में
नींद लेता उस से जिसको रेशमी बिस्तर दिए

ज़िंदगी बख्शी खुदा ने इस तरह नीरज हमें
यूँ लगा हमको की जैसे खीर में कंकर दिए

*शजर=पेड़ **बशर= इंसान


12 comments:

Shiv Kumar Mishra said...

बहुत बढ़िया गजल....एक-एक शेर लाजावाब है. बहुत खूब.

पारुल "पुखराज" said...

कैद कर रखना था पंछी को अगर सैय्याद ने
फड्फड़ाने के लिए क्यों छोड़ उसके पर दिए

कुछ नहीं मिलता है रब से जान लो खैरात में
नींद लेता उस से जिसको रेशमी बिस्तर दिए
bahut khuub neeraj ji....

बालकिशन said...

एक शानदार और जानदार गजल लेकर फ़िर आप आए.
हर शेर लाजवाब है. मुझे सबसे ज्यादा ये पसंद आया.
"ज़िंदगी बख्शी खुदा ने इस तरह नीरज हमें
यूँ लगा हमको की जैसे खीर में कंकर दिए"

Unknown said...

भाईजान - सबेरे सबेरे लम्बी छुट्टी के दौरान - हमेशा की तरह डूबने का आनंद, - नींद और बिस्तर की बात कितनी सच है, (महसूस होती है); (आप अब आदत में इजाफा हैं - तबीयत में कमजोरी हैं - बहुत ज़रूरी हैं ) - इरशाद

रंजू भाटिया said...

प्यार गर जागा नहीं दिल में तेरे किसकी खता
हर बशर को तो खुदा ने सैंकडों अवसर दिए

बहुत बहुत सुंदर ग़ज़ल लगी आपकी नीरज जी

मीनाक्षी said...

हर शेर में वज़न है कई सेर का

Gyan Dutt Pandey said...

यह दो अलग और विपरीत से लगते जीवन पक्ष सदा देखने में आते हैं। मन उनपर विचार भी करता है। पर उनपर इतनी बढ़िया कविता गूंथी जा सकती है - यह अहसास आपकी यह रचना पढ़कर हुआ।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया रचना है।बधाई।

महावीर said...

निहायत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है। अल्फ़ाज़ों का चुनाव भी ख़ूबसूरत है। एक मुकम्मल ग़ज़ल है। आप जैसे ही लफ़्ज़ों के धनी व्यक्तियों की ज़रूरत है।
मुबारकबाद सहित
महावीर

anuradha srivastav said...

प्यार गर जागा नहीं दिल में तेरे किसकी खता
हर बशर** को तो खुदा ने सैंकडों अवसर दिए
बहुत खूब..........

Vinod Kumar said...

bahut khoob...keep writing...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहतरीन गज़ल। मतले के भाव पर मैने भी कभी लिखा था....

आम में आ गए जब टिकोरे बहुत
बाग में छा गए तब छिछोरे बहुत

पेड़ को प्यार का मिल रहा है सिला
मारते पत्थरों से निगोड़े बहुत।