इन दस्तकों ने हमको कितना सताया है
हर बार यूँ लगा है अब के तू आया है
कितने ही रंग बदले हैं याद ने तुम्हारी
घायल कभी किया कभी मरहम लगाया है
जाने क्या बीतती है उस पेड़ पर ये सोचो
जिसकी न डालियों पे चिडियों ने गाया है
वो दोस्त है तभी तो हँसता है देख कर के
मुश्किल में मैंने जब जब आंसू गिराया है
मंजिल तुझे मिलेगी जब तू चलेगा तनहा
संग भीड़ ना किसी ने कुछ यार पाया है
तकलीफ होती देखी है हर बशर के दिल में
जब छोड़ के चले वो जो कुछ कमाया है
गर्दिश के अंधेरों में होता नज़र से ओझल
फितरत है ये उसी की बनता जो साया है
भोला है दिल तभी तो गाने लगा है नीरज
मिलने का फ़िर भरोसा सच मान आया है
12 comments:
सर जी, ख़याल आज भी हमेशा की तरह बहुत अच्छे हैं. कुछ शेर तो बहुत ही उम्दा है. और ये :
"भोला है दिल तभी तो गाने लगा है नीरज
मिलने का फ़िर भरोसा सच मान आया है ...." इस ने तो मस्त ही कर दिया.
बहुत खूब, भैया...
इतना बड़ा खजाना, इन कोमल विचारों का
देखा सभी जगह पर, बस आपमें पाया है.
इन दस्तकों ने हमको कितना सताया है
हर बार यूँ लगा है अब के तू आया है
इतने सरल सहज शब्दों के माध्यम से 'इन्तजार' का जो सुंदर चित्र आपने खींचा है,की पढ़ते ही बस मुंह से बरबस ही 'वाह' निकल जाती है........
कितने ही रंग बदले हैं याद ने तुम्हारी
घायल कभी किया कभी मरहम लगाया है
सच्ची बात,सुंदर अभिव्यक्ति एकदम से मन को छू लेने वाली..........
जाने क्या बीतती है उस पेड़ पर ये सोचो
जिसकी न डालियों पे चिडियों ने गाया है
इस दर्द को आप जैसा अति संवेदनशील ह्रदय ही महसूस कर सकता है
वो दोस्त है तभी तो हँसता है देख कर के
मुश्किल में मैंने जब जब आंसू गिराया है
सच्ची मित्रता ऐसी ही होती है ,जो अत्यन्त दुर्लभ है और बड़े भाग्यवान को ही मिलती है............
मंजिल तुझे मिलेगी जब तू चलेगा तनहा
संग भीड़ ना किसी ने कुछ यार पाया है
एकदम सत्य वचन,इसे मन मे उतार हिम्मत बाँध लिया जाए तो फ़िर राह मे आने वाला कोई गतिरोध,चलने से रोक नही सकती.
तकलीफ होती देखी है हर बशर के दिल में
जब छोड़ के चले वो जो कुछ कमाया है
कितना सही कहा आपने,पर मन को समझा कर जो जितना अधिक इस से बाहर निकल सकता है उतना ही सुखी और संतुष्ट हो सकता है............
गर्दिश के अंधेरों में होता नज़र से ओझल
फितरत है ये उसी की बनता जो साया है
वाह,कितनी सच्ची बात कही आपने.........और कोई ले ना ले हमने तो प्रेरणा ले ली इस से....
भोला है दिल तभी तो गाने लगा है नीरज
मिलने का फ़िर भरोसा सच मान आया है
बहुत,बहुत बहुत सुंदर...................
वाह वड्डे वाप्पाजी जबरदस्त गजल लिखी आपने.
आपकी गजल पढ़ कर हमेशा की तरह एक सुखद अहसास की अनुभूति हो रही है.
सच क्या जादू है आपकी कलम मे
मैं ही क्या हर शख्स खिंचा चला आया है.
यह पोस्ट/गजल तो मुझे अपने व्यक्तित्व के अनुरूप लगती है - अकेलापन, मौन, प्रकृति ---
बहुत अच्छी कही नीरज जी।
इन दस्तकों ने हमको कितना सताया है
हर बार यूँ लगा है अब के तू आया है
बहुत खूब, विशेषकर ये पँक्तियाँ.
मज़ा आया .. आज ..
घूम कर तेरी गली को, देख द्वार द्वार,
हर फ़ल्सफे का फ़साना गुनगुनाया है |
निहायत ख़ूबसूरत ग़ज़ल 'परिन्दे प्यार के रख हाथ' के बाद आज तीनों रचनाएं
'मीरा को ज़हर पिलाते क्यों हो',ज़िंदगी ज्यूं गुलाब की डाली' और 'जब तू चलेगा तनहा' एक ही सांस में पढ़ डालीं। ग़ज़लों को बार-बार पढ़ने को तबीयत करती है। आपकी अनुमति के बिना ही कुछ अशा'र वक्तन-बवक्तन पढ़ने के लिए अपनी फ़ाईल में रख लिए हैं, उम्मीद है आप बुरा ना मानेंगे।
आपके अंदाज़े-बयां का अपना ही सलीक़ा है जो बड़ा पसंद आया। यह तो कहना मुश्किल है कि कौन से अशा'र सब से अच्छे हैं क्योंकि हर शेर अपनी ज़िम्मेदारी निबाह रहा है।
मंगलकामनाओं सहित
महावीर
परम आदरनिये महावीर जी
प्रणाम
आप का मेरे ब्लॉग पर आना और मेरी रचनाओं को पढ़ना मुझे एक ऐसी सुखद अनुभूति से भर देता है की शब्दों में बयां करना मुश्किल है. आप का आशीर्वाद ऐसे ही मिलता रहे तो और क्या चाहिए. मेरे लिए ये बहुत गौरव की बात है की आपने मेरे कुछ अशा'र को वक्तन-बवक्तन पढ़ने के लिए अपनी फ़ाईल में रखा है इसमें बुरा मानने जैसी बात कल्पना मात्र में लाना ही मेरे लिए असंभव है. मुझे अपनी सीमाओं का भान है और ये भी जानता हूँ की मेरी ग़ज़लें, ग़ज़ल लेखन के माप दंडों पर खरी नहीं उतरती हैं, मैं सीखने के सतत प्रयास में हूँ लेकिन अपनी अभिव्यक्ति को सिर्फ़ इसलिए दबा कर रखूं की मुझे उन्हें सही ढंग से पेश करना नहीं आता, सही नहीं लगता.मुझे आशा है की धीरे धीरे मैं कुछ हद तक अपनी रचनाओं में अपेक्षित सुधार कर पाउँगा. आप समय समय पर आकर मेरी रचनाओं को आकर दुलारते रहें बस इतनी ही कृपा चाहिए.
नीरज
मंजिल तुझे मिलेगी जब तू चलेगा तनहा
संग भीड़ ना किसी ने कुछ यार पाया है
बहुत सुंदर नीरज जी
प्रिय मित्रों ! (नीरज झि आपसे मिलने क मौका आ ही गया..
आप सभी को सादर अभिवादन !
आप सभी को जान कर अति हर्ष होगा कि हम मुंबई में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन करने जा रहे हैं । सभी साहित्य प्रेमी, कवि, श्रोता, ब्लागर्स एवं अन्य इच्छुक महानुभावों से विनती है कि कृपया इसमें अवश्य सम्मिलित हों । कृपया अपनी उपस्थिति से, अपनी कविताओं से सभी को भाव- विभोर कीजिए... कनाडा से पधारे समीर लाल जी भी इस गोष्ठी का हिस्सा होंगें...
आप सभी से निवेदन है कि कृपया अपना नाम यथाशीघ्र गोष्ठी में दर्ज करवाएं...
हिन्दी की अलग अलग बिधाओं मे रूचि रखने वाले हिन्दी प्रेमियों के बीच की दूरी को कम करने और अपने विचारों के आदान प्रदान एवं मेल - मिलाप का यह एक सुनहरा अवसर है |
कार्यक्रम का विवरण इस प्रकार है -
स्थान - अणुशक्तिनगर, (चेम्बूर) मुम्बई
तारीख - 12-01-2007 (शनिवार)
समय - प्रात: 10.00 बजे
परिचय - 10 - 10.30 बजे प्रात:
काव्य गोष्ठी - 10.30 - 12.30
कार्यक्रम के उपरांत भोजन (self service) की व्यवस्था भी रहेगी..
संपर्क सूत्र
कवि कुलवंत सिंह
022-25595378 (O)
kavi.kulwant@gmail.com
अवनीश तिवारी -
anish12345@gmail.com
भोला है दिल तभी तो गाने लगा है नीरज
मिलने का फ़िर भरोसा सच मान आया है
नीरज सच के साथ नाता फाइदेमांद होता है.
यकीनों पर भरोसा रखा है तो नफे में हो!!!
कया पाया है क्या खोया है इस सोच में न पड़
ये ही भरोसा जीने के अब काम आया है.
शुभकामनाओं सासित
देवी दीदी
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