Saturday, December 1, 2007

परिंदे प्यार के रख हाथ




क्यों ऐसे रहनुमा तुमने चुने हैं
किसी के हाथ के जो झुनझुने हैं

तपिश रिश्तों में न ढूंढे कहीं भी
शुकर करना अगर वो गुनगुने हैं

बहुत कांटे चुभेंगे याद रखना
अलग गर रास्ते तुमने चुने हैं

जबाँ को दिल बनाया है उन्होंने
जिन्होंने गीत कोयल से सुने हैं

यहाँ जीने के दिन हैं चार माना
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं

परिंदे प्यार के रख हाथ नीरज
हटा जो जाल नफरत के बुने हैं

13 comments:

पारुल "पुखराज" said...

बहुत खूब …हर शेर अपने आप मे खूबसूरत है……

Pramendra Pratap Singh said...

बेहतरीन रचना है। दिल को छू जाने वाली

अमिताभ मीत said...

ये क्या है सर ? ज़हन पे छा गया हर शेर. कमाल है.... जिन्दाबाद.

haidabadi said...

जनाबे नीरज साहिब !
आपकी ग़ज़ल देखी तबीअत बाहिशत हो गई !
आ तेरे "चाँद" से चेहरे की बलाएँ ले लूं !
आपकी ज़मीन पर चंद कलियॉ आपकी नज़र कर रहा हूँ .
नां ही देखे कभी नां ही सुने हैं
ग़ज़ल मैं शेयर जो तूने बुने हैं
अपना मनवा लिया है तूने लोहा
लवज़ मुश्किल जो थे तूने चुने हैं
तू शायर है सजीला दिल रुबा है
शेयर कईओं के हमने भी सुने हैं.
चाँद हदियाबादी शुक्ला डेनमार्क

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत कांटे चुभेंगे याद रखना
अलग गर रास्ते तुमने चुने हैं
***************************
नीरज जी, कांटे चुभने की बात सही है। पर सही सपाट पर चलने की मोनोटोनी बहुत मारक होती है।
सब को फूल भी मुबारक और अनगढ़ रास्तों के कांटे भी।
आपकी पोस्टों की बहुत तलब रहती है। फ्रीक्वेन्सी बढ़ायें।

Sanjeet Tripathi said...

हर शेर शानदार और वज़नदार बन पड़ा है!!

Shiv Kumar Mishra said...

बहुत बढ़िया भैया...एक-एक शेर शानदार है...

महावीर said...

बहुत ही नपी तुली खूबसूरत ग़ज़ल है। हर शे'र असरदार है। ये शे'र बहुत पसंद आयाः
यहाँ जीने के दिन हैं चार माना
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं
हां, आप की तरफ़ से एक फ़ैसला चाहूंगाः
मेरे एक दोस्त और मैं आपकी ग़ज़ल की बहर में मुतफ़रिक हैं? मेरे हिसाब से यह रजज़ की ही एक बहर हैः म फ़ा ई लुन, म फ़ा ई लुन, फ़ ऊ लुन (1222,1222,122),
दोस्त साहब का कहना है कि यह रमल की एक बहर में भी डाली जा सकती हैः
(122, 2122, 2122)। अब फ़ैसला आपके हाथ में है।

Manish Kumar said...

जबरदस्त हर शेर कमाल का है पर इन्हें पढ़ कर मुंह से बेसाख्ता वाह वाह निकल आती है

तपिश रिश्तों में न ढूंढे कहीं भी
शुकर करना अगर वो गुनगुने हैं

जबाँ को दिल बनाया है उन्होंने
जिन्होंने गीत कोयल से सुने हैं

महावीर said...

आपकी अगली रचना का इंतज़ार है।

रंजना said...

bahut,bahut,bahut sundar...

रंजू भाटिया said...

तपिश रिश्तों में न ढूंढे कहीं भी
शुकर करना अगर वो गुनगुने हैं

बहुत कांटे चुभेंगे याद रखना
अलग गर रास्ते तुमने चुने हैं

क्या बात कही है आपने बहुत ही सुंदर है यह

कालीपद "प्रसाद" said...

जबाँ को दिल बनाया है उन्होंने
जिन्होंने गीत कोयल से सुने हैं

यहाँ जीने के दिन हैं चार माना
मगर मरने के मौके सौ गुने हैं

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल नीरज जी !
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