Tuesday, November 27, 2007

आंधी ये हकीकत की





रखोगे बात दिल की जब तुम जुबाँ पे लाकर
जीना नहीं पड़ेगा फ़िर यार मुहं छुपाकर

ज़ज्बात के ये कागज़ यूँ न खुले में रखना
आंधी ये हकीकत की ले जायेगी उड़ा कर

तुम चाहतों की डोरी इतनी भी मत बढ़ाना
घिर जाए गर्दिशों में दिल की पतंग जाकर

इन आसुओं को अपनी आंखों से मत गिराना
पछताओगे तुम अपनी कमजोरियां दिखाकर

दोहरी है धारवाला खंज़र ये दुश्मनी का
करता उसे भी घायल जो देखता चलाकर

अपने सिवा नहीं कुछ तुमको दिखाई देता
फ़िर यार फायदा क्या यूँ ज़िंदगी बिताकर

ये पाप की परत तो हर पल ही चढ़ रही है
कैसे ये मिट सकेगी गंगा में बस नहा कर

मज़बूत मेरा सीना है या हौसला तुम्हारा
कर लो ये फ़ैसला भी कुछ तीर तो चलाकर

जब नींव ही नहीं है नीरज तेरे मकाँ की
कब तक इसे रखोगे गिरने से तुम बचाकर

7 comments:

बालकिशन said...

ये पाप की परत तो हर पल ही चढ़ रही है
कैसे ये मिट सकेगी गंगा में बस नहा कर

बहुत खूब.! जबरदस्त! अति सुंदर!
वाह! वाह!

Shiv said...

बहुत खूब, भैया...

वैसे तो और भी हैं, इस दुनिया में सुखनवर
लेकिन हमें शुकूं तो, मिलता है यहीं आकर

Sanjeet Tripathi said...

सुंदर!!

Gyan Dutt Pandey said...

बस यही नहीं मालूम कि कितना बतायें और कितना छिपायें।

अमिताभ मीत said...

मज़बूत मेरा सीना है या हौसला तुम्हारा
कर लो ये फ़ैसला भी कुछ तीर तो चलाकर ....

मेरे गुनाह जियादा हैं या करम तेरे
तू ही करीम है .. अब तू ही फ़ैसला कर दे

बहुत अच्छे शेर हुजूर. आज दिन भर के लिए काफ़ी है .... शुक्रिया. आखिरी शेर तो बस .....

Devi Nangrani said...

Waahhhhhhhhhhhhhhhhh!!!

Ek se ek achi Gazal likhi hai.
aapke is blog ka mausam bahut suhaana hai Neeraj ji

Devi

रंजना said...

ati sundar.ek ek shabd dil ko choone,vicharon ko jhakjhorne aur duniyan ka digdarshan karane me saksham hai.
simply great.