गीत तेरे जब से हम गाने लगे
तब जुदा सबसे नज़र आने लगे
आईने में खास ही कुछ बात थी
आप जिसको देख शरमाने लगे
सोच को अपनी बदल के देखिये
मन तुम्हारा जबभी मुरझाने लगे
खोलने से फायदा क्या खिड़कियाँ
जब चले तूफ़ान घबराने लगे
बिन तुम्हारे खैरियत की बात भी
पूछते जब लोग तो ताने लगे
अजनबी जो लग रहे थे रास्ते
तुम मिले तो जाने पहचाने लगे
ये तरीका भी है इक इनाम का
जिसको देदो उसको हरजाने लगे
साँस का चलना थी "नीरज" ज़िंदगी
तुम मिले तो मायने पाने लगे
14 comments:
क्या खूब कहा है....
वाह् वा.....
जय हो
हम तो बस आपका ही इंतज़ार कर रहे थे. एक और अच्छी ग़ज़ल के लिए धन्यवाद.
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"सोच को अपनी बदल के देखिये
मन तुम्हारा जबभी मुरझाने लगे"
"अजनबी जो लग रहे थे रास्ते
तुम मिले तो जाने पहचाने लगे"
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आनंद की वृष्टि हो रही है. मन करता है पढता की रंहू.
एक तेरा ही सहारा है भगवन बाकी सब
तो इस फानी दुनिया मे बेगाने लगे.
वाह!! बहुत खूब कहा!! बधाई.
अजनबी जो लग रहे थे रास्ते
तुम मिले तो जाने पहचाने लगे
लेकिन ऐसा मिलना कितनों को नसीब हो पाता है?
आप तो अब ब्लॉग पर आने लगे
हम भी खुश हो गीत अब गाने लगे
लिख गये फिर से गजल इक बेहतरीन
टीप कर हम भी तो अब जाने लगे.
गोस्वामी के भजन गाने लगी
गुनगुना के मन को बहलाने लगी
मेरी नीरज से जान पहचान है
बात यह सुन कर वोह इतराने लगी
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क
मैं काकेश को मॉडीफाई कर लिखूंगा -
आप तो अब ब्लॉग पर आने लगे
आप तो अब ब्लॉग पर छाने लगे
बहुत खूब
sajeev sarathie
http://merekavimitra.blogspot.com/2007/10/blog-post_9334.html
वाह! ये रचना जानदार रही ।
पढकर मन प्रसन्न हो गया,
हम समझ बैठे थे जिसको ब्लॉग, बस
असल में गजलों की एक सौगात थी
गजब लिखे हैं, भैया.....
आज 05/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
वाह सर वाह...
सादर.
bahut hu khubsurat likha hai sir....
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