ऐ खुदा रेत के सेहरा को समन्दर कर दे
या छलकती हुई आँखों को भी पत्थर कर दे
तुझको देखा नहीं मेहसूस किया है मैंने
आ किसी दिन मेरे एहसास को पैकर* कर दे
पैकर* = आकृति
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे
बरसों से जब भी जगजीत सिंह जी की आवाज़ में ये ग़ज़ल उनके अल्बम 'ऐ साउंड अफेयर' को सुनता हूँ तो इसे बार बार रीवाइंड कर सुनने को जी करता है . एक तो जगजीत जी की आवाज़ और उसपर ये जादुई अशार मुझे बैचैन कर देते हैं .
इस खूबसूरत ग़ज़ल के शायर हैं जनाब "डा. शाहिद मीर" साहब. आज 'किताबों की दुनिया' श्रृंखला में उन्हीं की बेजोड़ किताब " ऐ समंदर कभी उतर मुझ में " का जिक्र करेंगे. दरअसल इस किताब में मीर साहब के चुनिंदे कलामों का संपादन किया है श्री अनिल जैन जी ने. संपादन क्या किया है गागर में सागर भर दिया है.
पद्म श्री "बेकल उत्साही" साहब ने लिखा है " हज़रत जिगर मुरादाबादी की खिदमत में रहता था तो वो बार-बार हिदायत करते 'बेटे, बहुत अच्छे इंसान बनो फिर बहुत अच्छे अशआर कहोगे' सच है कि अच्छा इंसान ही अच्छी सोच से अच्छी बातें करता है. शाहिद इस कसौटी पर खरे उतरते हैं."शाहिद मीर" ने राजस्थान के तपते सहरा, मध्य प्रदेश की ऊबड़ खाबड़ ज़मीन पर रह कर किस क़दर बुलंदियों को छुआ है जहाँ किसी फ़नकार और कलमकार को पहुँचने के लिए एक उम्र सऊबतें झेलकर भी पहुंचना मुश्किल है "
एम.एससी, पी.एच डी. (औषधीय वनस्पति), किये हुए "शाहिद मीर" साहब बाड़मेर राजस्थान के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में उप प्राचार्य के पद पर काम कर रहे हैं. आपकी 'मौसम ज़र्द गुलाबों का' (ग़ज़ल संग्रह), 'कल्प वृक्ष' (हिंदी काव्य संग्रह) और 'साज़िना' (कविता संग्रह) प्रकाशित हो चुके हैं. उनका कहना है की " विज्ञानं का विद्यार्थी होने की वजह से बौद्धिक स्तर पर किसी एक दृष्टिकोण और वाद को सम्पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया."
उर्दू ज़बान की मिठास, कहने का निराला ढंग और सोच की नयी ऊँचाइयाँ आपको इस किताब को पढ़ते हुए जकड लेंगी. "बशीर बद्र" साहब ने "मीर" साहब के लिए ऐसे ही नहीं कहा की " कायनात के बहुत से रंग ज़र्द मौसमों और सुर्ख़ गुलाबों के पैकरों में हमारे सामने ब राहे-रास्त नहीं आते बल्कि उन खूबसूरत अल्फाज़ के शीशों में अपनी झलक दिखाते हैं, जिनमें "शाहिद मीर" ने खुद को तहलील कर रखा है."
डायमंड बुक्स, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक को आप फोन न.011-41611861 या फेक्स न.011-41611866 पर सूचित कर मंगवा सकते हैं, अथवा उनकी वेब साईट www.dpb.in या मेल आई.डी. sales@diamondpublication.com पर लिख कर भी संपर्क कर सकते हैं. आप कुछ भी करें लेकिन यदि आप उर्दू शायरी के कद्रदां हैं तो ये किताब आपके पास होनी ही चाहिए.
आप जब तक इस 95 रु.मूल्य की किताब में प्रकाशित 149 ग़ज़लों का लुत्फ़ लें तब तक हम निकलते हैं आपके लिए एक और किताब की तलाश में, खुदा हाफिज़ कहने से पहले ये शेर भी पढ़वाता चलता हूँ आपको :
पहले तो सब्ज़ बाग़ दिखाया गया मुझे
फिर खुश्क रास्तों पे चलाया गया मुझे
रक्खे थे उसने सारे स्विच अपने हाथ में
बे वक़्त ही जलाया, बुझाया गया मुझे
पहले तो छीन ली मेरी आँखों की रौशनी
फिर आईने के सामने लाया गया मुझे
सूखे गुलाब, सरसों के मुरझा गए हैं फूल
उनसे मिलने के सारे बहाने निकल गए
पहले तो हम बुझाते रहे अपने घर की आग
फिर बस्तियों में आग लगाने निकल गए
'शाहिद' हमारी आँखों का आया उसे ख़याल
जब सारे मोतियों के खज़ाने निकल गए
तेरा मेरा नाम लिखा था जिन पर तूने बचपन में
उन पेड़ों से आज भी तेरे हाथ की खुशबू आती है
जिस मिटटी पर मेरी माँ ने पैर धरे थे ऐ 'शाहिद'
उस मिटटी से जन्नत के बागात की खुशबू आती है
उर्दू ज़बान की मिठास, कहने का निराला ढंग और सोच की नयी ऊँचाइयाँ आपको इस किताब को पढ़ते हुए जकड लेंगी. "बशीर बद्र" साहब ने "मीर" साहब के लिए ऐसे ही नहीं कहा की " कायनात के बहुत से रंग ज़र्द मौसमों और सुर्ख़ गुलाबों के पैकरों में हमारे सामने ब राहे-रास्त नहीं आते बल्कि उन खूबसूरत अल्फाज़ के शीशों में अपनी झलक दिखाते हैं, जिनमें "शाहिद मीर" ने खुद को तहलील कर रखा है."
चिलमन-सी मोतियों की अंधेरों पे डालकर
गुज़री है रात ओस सवेरों पे डालकर
शायद कोई परिंदा इधर भी उतर पड़े
देखें तो चंद दाने, मुंडेरों पे डालकर
आखिर तमाम सांप बिलों में समां गए
बदहालियों का ज़हर सपेरों पे डालकर
डायमंड बुक्स, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक को आप फोन न.011-41611861 या फेक्स न.011-41611866 पर सूचित कर मंगवा सकते हैं, अथवा उनकी वेब साईट www.dpb.in या मेल आई.डी. sales@diamondpublication.com पर लिख कर भी संपर्क कर सकते हैं. आप कुछ भी करें लेकिन यदि आप उर्दू शायरी के कद्रदां हैं तो ये किताब आपके पास होनी ही चाहिए.
उजले मोती हमने मांगे थे किसी से थाल भर
और उसने दे दिए आंसू हमें रूमाल भर
उसकी आँखों का बयां इसके सिवा क्या कीजिये
वुसअतें* आकाश सी, गहराईयाँ पाताल भर
वुसअतें*= फैलाव
आप जब तक इस 95 रु.मूल्य की किताब में प्रकाशित 149 ग़ज़लों का लुत्फ़ लें तब तक हम निकलते हैं आपके लिए एक और किताब की तलाश में, खुदा हाफिज़ कहने से पहले ये शेर भी पढ़वाता चलता हूँ आपको :
जिस्म पर ज़ख्म तीर वाले हैं
हम सलामत ज़मीर वाले हैं
ज़ायका लब पे सूखी रोटी का
सामने ख्वान* खीर वाले हैं
ख्वान* = बर्तन
आत्मा उनकी है अँधेरे में
जो चमकते शरीर वाले हैं
49 comments:
सुन्दर विश्लेषण नीरज जी ! बहुत खूब, हमें तो पढने का भी वक्त ना के बराबर मिल पाता है, आपने तो हर चीज ढूंढ-ढूंढ के निकाली !
नीरज बहुत सुन्दर समीक्षा है और गज़ल के शेर एक से बढ कर एक हैं। शाहिद मीर जी को शत शत नमन पता नोट कर लिया है मंगवाते हैं किताब धन्यवाद और शुभकामनायें
bahut hi sunder vishleshan,khubsurat sher ke saath
आर्डर तो कर चुका हूँ .... जल्द ही मेरे पास होगी यह मोती जो आपने
समंदर से उठा कर हमारे पास रखा है .... बधाई क्या दूँ बस सलाम करता
चलूँ...
अर्श
शाहिद मीर साहब की गजलों के साथ उनके परिचय के लिए बहुत आभार ...!!
इतनी बेहतरीन समीक्षा पढ़कर यही लफ्ज निकलते हैं लाजवाब प्रस्तुति, जिसके लिये आपका आभार एवं शुभकामनायें ।
पहले तो छीन ली मेरी आँखों की रौशनी
फिर आईने के सामने लाया गया मुझे
उसकी आँखों का बयां इसके सिवा क्या कीजिये
वुसअतें* आकाश सी, गहराईयाँ पाताल भर
वाह-वाह! ...इधर से गुज़रा था सोचा, सलाम करता चलूँ...
नीरजजी, आपने तो इस समीक्षा के ज़रिए ब्लॉग के पाठकों को थाल भर मोती दे ही दिये !
ऐ खुदा रेत के सेहरा को समन्दर कर दे
या छलकती हुई आँखों को भी पत्थर कर दे
पहले तो छीन ली मेरी आँखों की रौशनी
फिर आईने के सामने लाया गया मुझे
'शाहिद' हमारी आँखों का आया उसे ख़याल
जब सारे मोतियों के खज़ाने निकल गए
aaj to sari gazalein aur har sher jaise dil ki gahraiyon mein utar gaya hai..........shukriya niraj ji itni umda shayri padhwane ke liye.
बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी,इन मोतियों से अशआर वाले किताब से परिचित करवाने के लिए...सच कहा यह किताब तो संग्रह में होनी ही चाहिए,इस तरह की किताबों के लिए मैं bookstalls पर दुकानों में अक्सर भटकती रहती हूँ,पर निराशा ही हाथ लगती है,...thanx again for providing the add.
एक अच्छे शायर और उनके बेहतरीन शायरी से रूबरू कराने का शुक्रिया
itanaa sunder kaam aap kar rahe hai ise hee mai sacchee sahity seva samajhatee hoo . nek kaam ke liye badhai .
आपकी इस दुनिया में दुर्लभ खजाने मिलते हैं
वाह नीरज जी बहुत बढ़िया लगा! बेहद सुंदर प्रस्तुती! शाहिद मीर साहब की गजलों से परिचित करवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
पहले तो सब्ज़ बाग़ दिखाया गया मुझे
फिर खुश्क रास्तों पे चलाया गया मुझे
पहले तो छीन ली मेरी आँखों की रौशनी
फिर आईने के सामने लाया गया मुझे....achhe lage....
बहुत सुन्दर संग्रह.. खरिदनी होगी ये पुस्तक..
हम तो आप के यहां ही जितना मिलता है पढ लेते है, अब कहा बुक करे, ओर कब आये बहुत झंझट है, ओर अगर आ भी जाये तो कब पढेगे??
लेकिन आप का यह किताबो का खजाना बहुत किमती लगा.
धन्यवाद
बहुत सुन्दर संग्रह.
हिन्दीकुंज
ओह ये तो बहुत सुना है जगजीत सिंह की आवाज में. अब भी रिपीट में लगा कर बार-बार सुन लेता हूँ. लेकिन ये नहीं पता था किसने लिखा है. आभार.
वाह इस किताब को जरुर लेना होगा ..शुक्रिया इस की जानकारी के लिए .नीरज जी
सुंदर प्रस्तुति, आभार।
हमारी पसंदीदा ग़ज़ल का ज़िक्र हो और जानकारी भी हो ...इतना अच्छा मिलाप कहाँ मिलेगा ....नीरज जी , इतनी खूबसूरत गजलों को कौन छोड़ना चाहेगा ...ये संग्रह तो खज़ाना है ...
BHAAREE-BHARKAM MAGAR
Bahut chhota sa comment.
NICE.
चुन चुन के मोती निकाल लाते है आप . शाहिद मीर साहिब की गज़लो का गुलदस्ता सच में बेह्तरीन है
Pranamya Prastuti.....
aabhaar...
वाह एक परिचय बढ़ गया किताब से और वो भी बिना खोजे......
आज ही मांगता हूँ.....
धन्यवाद.....
पहले तो सब्ज़ बाग़ दिखाया गया मुझे
फिर खुश्क रास्तों पे चलाया गया मुझे
रक्खे थे उसने सारे स्विच अपने हाथ में
बे वक़्त ही जलाया, बुझाया गया मुझे
पहले तो छीन ली मेरी आँखों की रौशनी
फिर आईने के सामने लाया गया मुझे
---डा० शाहिद मीर का नाम तो सुना था लेकिन परिचय से अनजान था
....हमेशा की तरह एक नायाब तोहफा, धन्यवाद।
एक बार फिर हमेशा की तरह एक बेहतरीन पुस्तक से मिलवाया...एक से एक शेर. आनन्दित हो उठे और मूँह से निकला...वाह नीरज भाई, क्या पढ़ते पढ़ाते हो!! लगे रहिये!!
shukriya janaab ek baar phir!
पहले तो हम बुझाते रहे अपने घर की आग
फिर बस्तियों में आग लगाने निकल गए
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
वाह नीरज भाई ...बढ़िया शायर से मुलाकात करवाई आज आपने शुक्रिया जी
और ये शेर ,
" उसकी आँखों का बयां इसके सिवा क्या कीजिये
वुसअतें* आकाश सी, गहराईयाँ पाताल भर
वुसअतें*= फैलाव
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मधुबाला जी की तस्वीर के ठीक ऊपर
लगा दीजिये ...
:-)
- लावण्या
वाह नीरज जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका ....... इन मोतियों को तो संजो कर रकना चाहिए ........ आपका धन्यवाद इस किताब से परिचित करवाने के लिए...संग्रह में होनी ही चाहिए इ पुस्तक ..... अप किताबों की व्याख्या इस अंदाज़ से करते हैं की मज़ा अ जाता है ..........
... फ़िर एक चमकते हीरे से परिचय, धन्यवाद !!!
"डॉ.शाहीद मीर" से मिलवाने के लिए और उनकी रचनाओं की प्रस्तुतीकरण के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!
नमस्कार नीरज जी,
जनाब शहीद मीर साहेब की गजलों से रूबरू करवाने के लिए शुक्रिया.
हर शेर एक अलग एहसास छोड़ जाता है, जैसे
"तुझको देखा नहीं मेहसूस किया है मैंने
आ किसी दिन मेरे एहसास को पैकर कर दे"
बेबसी को कितना अच्छी तरह और खूबसूरती से कहा है इस शेर में,
"रक्खे थे उसने सारे स्विच अपने हाथ में
बे वक़्त ही जलाया, बुझाया गया मुझे"
यूँ तो हर शेर कायल कर रहा है मगर ये शेर तो दिल को छु गया है,
"उजले मोती हमने मांगे थे किसी से थाल भर
और उसने दे दिए आंसू हमें रूमाल भर"
Thanks for nice post
नीरज भाई
ग़ज़लों की किताबों को मुतारिफ़ तेरा नीरज
दुःख है मुझे मैं साहिबे दीवान क्यों नहीं
अरसा दराज़ से देख रहा हूँ आप गाहे बगाहे
अच्छे अच्छे ग़ज़लकारों की किताबों को रुशनास
करवातो हो आपकी इस फिराख दिली और दरिया दिली का मैं लोहा मानता हूँ यह
आपका ही शेवा है आज के छपास युग में हर कोई छपने के जुगाड़ में रहता है
मेरी नज़र में आपका ब्लॉग किसी धर्मयुग से कम नहीं है किसी हुनर मंद
को इज्ज़त और मुकाम बड़े सबाब का काम होता है और आप इसे अंजाम दे रहें हैं
में दिल की गहराईओं से आपको मुबारिक बाद देता हूँ और आपकी भूरी भूरी परशंषा
करता हूँ अपना एक शेर आपकी नज़र करता हूँ
वोह चार चाँद लगाता जिधर भी जाता था
जिसे समझाते थे ग़ालिब वोह मेरे निकला था
आदाब
चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क
बहुत सुन्दर समीक्षा.
बहुत बहुत शुक्रिया!
डॉ शाहिद मीर साहब मेरे गृहनगर बाड़मेर में उप प्राचार्य पद पर है और अफ़सोस इस बात का है कि लम्बे समय से वहा जाना नहीं हो रहा है. .उनके लेखन पर आपकी पोस्ट बेहद उपयोगी लगी.आभार!
bahut badhiya sameeksha karte hain aap ,
"meer sahib" ki takhliqaat se ru.b.ru karvaane ka bahu bahut shukriyaa Neeraj Bhaaee...!
naaqid ki soorat meiN aap bahut achhe raah-numaa haiN...
sach meiN..!!
नया शब्द पता चला - पैकर। अन्यथा अभी तक मूवर्स और पैकर्स ही जानता था।
और ये कल के ब्लॉगर की या उनके बारे में पोस्ट तो प्रस्तुत कीजिये नीरज जी।
नीरज जी
आप अच्छी जानकारियाँ दे रहे हैं 'किताबों की दुनियाँ में' .सच ही है कि अच्छा रचनाकार बनने से पूर्व अच्छा इंसान बनना ज़रूरी होता है .
जिस्म पर ज़ख्म तीर वाले हैं
हम सलामत ज़मीर वाले हैं
ये लाईन्स इसके ऊपर दिख रहीं हैं, ऐसा क्यों है ?
तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे
विलंब से आने के लिये क्षमाप्रार्थी हूं नीरज जी...नुकसान मेरा ही होने जा रहा था जो ये पोस्ट छूट जाती मुझसे। शाहिद साब की ग़ज़लों की किताब की बहुत दिन से तलाश थी मुझे। सारे पूछ्ताछ सिफ़र ही रहे थे अबतक....और अब अचानक से देवदूत बन कर आ गये आप।
शुक्रिया...शुक्रिया...शुक्रिया...
ऐसा लगता है आपकी अलमारी में डाका डालना पड़ेगा मुझे ....नहीं तो मुलाकात पे दो चार किताबे लिए बगैर जायूँगा नहीं........
वाह ...niraj जी kahaan से ये nayab gazlon के sangrah dhoodh dhoondh कर late हैं ......हर sher chhalni karta huaa ......
ऐ खुदा रेत के सेहरा को समन्दर कर दे
या छलकती हुई आँखों को भी पत्थर कर दे
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे
वाह....shubhaanallah .....!!
रक्खे थे उसने सारे स्विच अपने हाथ में
बे वक़्त ही जलाया, बुझाया गया मुझे
वाह.... kitani saral bhasha में ...इतना gahra she'r .....
उजले मोती हमने मांगे थे किसी से थाल भर
और उसने दे दिए आंसू हमें रूमाल भर
dekhiye kitani sral bhasha है ..
डा. शाहिद मीर को nman ...और श्री अनिल जैन का आभार .....
आभार आपका भी ...!!
( अनुराग जी डाके में मेरा भी हिस्सा रहेगा ......!! )
जिस्म पर ज़ख्म तीर वाले हैं
हम सलामत ज़मीर वाले हैं
बढ़िया किताब और महान शायर के बारे में जानकारी मिली. जल्दी ही आ रहा हूँ और सारी किताबें उठाकर ले जाऊँगा.
neeraj ji pahle to apke bahut hi achi jankario se bhare log ke liye shukriya bahut bahut...aap khud bhi bahut aacha likhte hai..kya apka ye blog roman main bhi dekha ja sakta hai
haan to karpya btaye kesse?
dhanyavad
apke blog ki aadat aesi ho gyi roj sham ko eske liye time nikal hi leti hun mai...shukriya
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