Tuesday, April 29, 2008

शाम का अखबार हो गये

इंसानियत के वाक़ये दुशवार हो गये
ज़ज्बात ही दिल से जुदा सरकार हो गए

कब तक रखेंगे हम भला इनको सहेज कर
रिश्ते हमारे शाम का अखबार हो गये

हमने किये जो काम उन्हें फ़र्ज़ कह दिया
तुमने किये तो यार वो उपकार हो गये

कांटे मिलें या फूल हमें पथ में क्या पता
जब साथ चलने को कहा तैय्यार हो गए

ढूँढा जिसे था वो कहीं हमको नहीं मिला
आँखे करी जो बंद तो दीदार हो गये

रोंदा जिसे भी दिल किया जब थे गुरूर में
बदला समय तो देखिये लाचार हो गये

कल तक लुटाते जान थे हम जिस उसूल पर
लगने लगा है आज वो बेकार हो गये

नीरज करी जो प्यार की बातें कभी कहीं
सोचा सभी ने हाय हम बीमार हो गये

Saturday, April 19, 2008

माँ की लोरी,पप्पी,बातें


(भाईपंकज जी ने इस ग़ज़ल पर कृपा दृष्टि डाल दी थी ,मैं उनके स्नेह से अभिभूत हूँ )

सीधी बातें सच्ची बातें
भूले सारी अच्छी बातें

ठंडे मन से गर कर लो तो
हो जाती सब नक्की बातें

जीवन में लज्जत ले आती
उसकी मीठी खट्टी बातें

बढ़ जाती है उसकी पीड़ा
दिल में जिसने रख्खी बातें

मत ले लेना दिल पर अपने
उसकी पक्की कच्ची बातें

हासिल क्या होता है करके
बे मतलब की रद्दी बातें

जीवन जीना सिखलाती है
माँ की लोरी,पप्पी,बातें

सीखी हमने जो पुरखों से
अब लगती हैं झक्की बातें

उलझें तो ना सुलझें नीरज
ज्यूँ धागे की लच्छी बातें

Friday, April 11, 2008

दिन में दिखता चन्दा तारा




घर अपना है ये जग सारा
बिन दीवारें बिन चोबारा

मन उसने ही तोडा अक्सर
जिस पर अपना सब कुछ वारा

सच का परचम थामो देखो
कैसे होती है पौ बारा

दुश्मन दिल से सच्चा हो तो
वो भी लगता हमको प्यारा

भूखा जब भी मांगे रोटी
मिलता उसको थोथा नारा

सूखी है भागा दौड़ी में
सबके जीवन की रस धारा

सुख में दुःख में आ जाता क्यों
इन आंखों से पानी खारा

दिल में चाहत हो तो 'नीरज'
दिन में दिखता चन्दा तारा

Monday, April 7, 2008

मन अमराई यादें कोयल


जड़ जिसने भी काटी प्यारे
अपना ही था साथी प्यारे

सच्चा तो सूली पे लटके
लुच्चे को है माफ़ी प्यारे

उलटी सीधी सब मनवा ले
रख हाथों में लाठी प्यारे

सोचो क्या होगा गुलशन का
माली रखता आरी प्यारे

इक तो राहें काटों वाली
दूजे दुश्मन राही प्यारे

भोला कहने से अच्छा है
देदो मुझको गाली प्यारे

मन अमराई यादें कोयल
जब जी चाहे गाती प्यारे

तेरी पीड़ा से वो तड़पे
समझो सच्ची यारी प्यारे

तन्हा जीना ऐसे नीरज
ज्यूँ बादल बिन पानी प्यारे

Wednesday, April 2, 2008

आखरी जब उडान हो



ज़िंदगी भर यहाँ वहाँ भटके
क्या मिला अंत में बता खटके

आचरण में न बात गर लाये
वक्त जाया न कर उसे रटके

आखरी जब उडान हो या रब
मन हमारा जमीं पे ना अटके

वार पीछे से कर गए अपने
काश करते मुकाबला डटके

संत है वो कि जो रहा करता
भीड़ के संग भीड़ से कटके

राह आसान हो गयी उनकी
जो चले यार बस जरा हटके

बोलना सच शुरू किया जबसे
लोग फ़िर पास ही नहीं फटके

आजमाना न डोर रिश्तों की
टूट जाती अगर लगे झटके

रहनुमा से डरा करो "नीरज"
क्या पता कब किसे कहाँ पटके