Monday, October 23, 2017

किताबों की दुनिया -148

आज ग़ज़ल बहुत सी भारतीय भाषाओँ में कही जा रही है लेकिन जिस भाषा के साथ ग़ज़ल का जिक्र हमेशा आएगा वो है "उर्दू'. शायरी पर बात करने से पहले आईये उसे पढ़ते हैं जो हमारे आज के शायर ने इस किताब की भूमिका में एक जगह लिखा है "दुनिया की सब सभ्यताएं भाषाओँ पर टिकी हैं। उर्दू ही एक भाषा थी जो धर्म और सभ्यता की सभी सीमाओं को पार कर चुकी थी। इस फैलती हुई भाषा को एक दम से समेट दिया गया। उर्दू एक भाषा है, वोटों की किसी संस्था में नहीं आती। लोग तो बहु या अल्पसंख्यकों में बंटे और ढूंढें जा सकते हैं लेकिन भाषा को हम कहाँ ढूंढें ? वोटो की राजनीति ने भाषा को हमसे छीन लिया और धीरे धीरे उर्दू भाषा को मुस्लिम मज़हब के साथ चस्पां कर दिया। भाषा के साथ ऐसा दुर्व्यवहार शायद ही कहीं दुनिया में हुआ होगा। उर्दू भाषा को अमीर बनाने में सिर्फ मुसलमान शायरों अदीबों और नक्कादों का ही नहीं गैर-मुस्लिम विशेषतः हिंदू शायरों अदीबों और आलोचकों का योगदान कभी भी कम नहीं रहा"

मेरे घर में सब मेहमाँ बन संवर के आते हैं
इक तेरा ही गम है जो, नंगे पाँव आता है

अब तिरा तसव्वुर भी, मुझसा हो गया शायद 
शब को खूब हँसता है, सुबह टूट जाता है 

किस तरह करूँ शिकवा वक़्त से मैं ऐ 'ज़ाहिद' 
वो भी तेरे जैसा है, यूँ ही रूठ जाता है 

हमारे शायर ने आगे लिखा है " आज के इस दौर में, मैं जिसे उर्दू ज़बान के ज़वाल का दौर मानता हूँ , उर्दू शाइरी के पौधों को सींचने वाले उस्ताद भी कम रह गए हैं। उर्दू भाषा और उर्दू लिपि लगभग लुप्त हो गयी है " शायर का ये कथन मुझे आंशिक रूप से सत्य लगता है क्यूंकि आज की नयी पीढ़ी फिर से उर्दू भाषा और उसकी लिपि में दिलचस्पी लेने लगी है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो उर्दू पढ़ने लिखने वालों में शर्तिया इज़ाफ़ा होगा। हमारे आज के शायर की मादरी ज़बान पंजाबी है और उन्होंने उर्दू किसी उस्ताद से नहीं बल्कि उर्दू के कायदे खरीद कर सीखी है और शायरी किताबों से।

क्यों बढ़ाये रखता है उसकी याद का नाखुन 
रोते रोते अपनी ही आँख में चुभो लेगा 

आँख, कान, ज़िहन-ओ-दिल बेज़बाँ नहीं कोई 
जिसपे हाथ रख दोगे, खुद-ब-खुद ही बोलेगा 

तू ख़िरद के गुलशन से फल चुरा तो लाया है 
उम्र भर तू अब खुद को खुद में ही टटोलेगा 
ख़िरद=अक्ल , बुद्धि 

 20 दिसम्बर 1950 को चम्बा हिमांचल प्रदेश में जन्में जनाब "विजय कुमार अबरोल" जो "ज़ाहिद अबरोल " के नाम से लिखते हैं हमारे आज के शायर हैं , उनकी ग़ज़लों की किताब "दरिया दरिया-साहिल साहिल " की बात हम करेंगे। इस किताब को जिसमें अबरोल साहब की 101 ग़ज़लें संकलित हैं ,सन 2014 में सभ्या प्रकाशन ,मायापुरी , नई दिल्ली ने प्रकाशित किया था। ज़ाहिद साहब ग़ज़लों के अलावा नज़्में भी लिखते हैं।


दिल में किसी के दर्द का सपना सजा के देख 
खुशबू का पेड़ है इसे घर में लगा के देख 

सच और झूठ दोनों ही दर्पण हैं तेरे पास 
किस में तिरा ये रूप निखरता है जा के देख 

जो देखना है कैसे जिया हूँ तिरे बगैर 
दोनों तरफ से मोम की बत्ती जला के देख 

मेरी हर एक याद से मुन्किर हुआ है तू 
गर खुद पे एतिमाद है मुझको भुला के देख 
मुन्किर=असहमत , एतिमाद=भरोसा 

दिलचस्प बात ये है कि "ज़ाहिद" साहब ने भौतिक विज्ञान से एम् एस सी की और उसके बाद बरसों पंजाब नेशनल बैंक में काम करते रहे याने विज्ञान और बैंक दोनों ही बातें गैर शायराना हैं उसके बावजूद उन्होंने शायरी का दामन पकडे रखा और अनवरत लिखते रहे। उनका ये शौक उनकी तालीम और नौकरी से बिलकुल मुक्तलिफ़ रहा। उन्होंने सिद्ध किया की अगर आप में हुनर और ज़ज़्बा है तो रेगिस्तान में भी आप पानी से छलछलाती नदी ला सकते हैं।

खुद को लाख बचाया हमने दिल को भी समझाया हमने
लेकिन बस में कर ही बैठा गोरे बदन का काला जादू 

बरसों तेरी याद न आई आज मगर अनजाने में ही 
मुरझाये फूलों में जैसे नींद से जाग पड़ी हो खुशबू

'ज़ाहिद"कौन से अंधियारे में फेंक आएं यह धूप बदन की 
ज़ेहन पे हर पल छाए हुए हैं इस के आरिज़ उस के गेसू 

पंजाब के ख्यातिनाम शायर जनाब 'राजेंद्र नाथ रहबर 'जो अपनी नज़्म, जिसे जगजीत सिंह साहब ने अपनी मखमली आवाज़ दी थी "तेरे खुशबू से भरे ख़त मैं जलाता कैसे " के हवाले से पूरी दुनिया में जाने जाते हैं ने इस किताब की भूमिका में लिखा है कि " ज़ाहिद अबरोल का कलाम सुबह की पहली किरण की तरह तरो-ताज़ा और ताबनाक है। उन्होंने एक लम्बा अदबी सफर तय किया है जिस ने उन की महबूबियत को चार चाँद लगा दिए हैं. उनके सीने में एक सच्चे फनकार का दिल धड़कता है। वो शुहरत और नामवरी की तमन्ना किये बगैर अपना साहित्यिक सफर जारी रखे हुए हैं। कलाम का बांकपन ,रंगों की बहार ,विषयों की नूतनता और अछूतपन प्रभावित करते हैं और पाठक को अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं। सच्ची और उम्दा शायरी की पहचान भी यही है

दिल को जैसे डसने लगे हैं इंद्रधनुष के सातों रंग 
जब से हमने तेरी हंसी को दर्द में ढलते देखा है 

बादल, आंसू, प्यास, धुआं, अंगारा, शबनम, साया, धूप 
तेरे ग़म को जाने क्या क्या भेस बदलते देखा है

'ज़ाहिद' इस हठयोगी दिल को हमने अक्सर सुबह-ओ-शाम
नंगे पाँव ही दर्द के अंगारों पर चलते देखा है 

नज़्में 'ज़ाहिद अबरोल ' साहब का पहला प्यार हैं। उनकी नज़्मों का पहला संग्रह 1978 में और दूसरा 1986 में उर्दू और हिंदी दोनों ज़बानों में प्रकाशित हुआ। सन 2003 में उन्होंने बाहरवीं सदी के महान संत कवि शैख़ फ़रीद के पंजाबी कलाम को उर्दू और हिंदी में अनुवादित कर धूम मचा दी। उनका 'फरीदनामा' सर्वत्र सराहा गया। 'दरिया दरिया -साहिल साहिल उनका पहला ग़ज़ल संग्रह है जो पहले हिंदी में प्रकाशित हुआ और बाद में ये संग्रह उर्दू में भी प्रकाशित किया गया। इस संग्रह की कुछ ग़ज़लें उर्दू की मुश्किल और तवील बहरों पर भी कही गयी है जो दूसरे ग़ज़ल संग्रहों में आसानी से पढ़ने में नहीं आतीं .

जी में है इक खिलौना सा बन कर कभी एक नन्हें से बच्चे का मन मोह लूँ 
जानता हूँ कि मासूम हाथों से मैं, टूट कर रेज़ा रेज़ा बिखर जाऊंगा 

तश्नगी का समुन्दर है ये ज़िन्दगी इस की हर लहर तलवार से तेज़ है 
आस की नाव के डूब जाने पे भी हौसला है मुझे पार उतर जाऊंगा

मुझको 'ज़ाहिद' इस उखड़े हुए दौर में आइनों का मुहाफ़िज़ बनाते हो क्यों 
नरम-ओ-नाज़ुक तबीयत है मेरी, कि मैं पत्थरों के तसव्वुर से डर जाऊंगा 

किताब की एक और भूमिका में जनाब बी.डी.कालिया 'हमदम' ने लिखा है कि 'ज़ाहिद साहब के शेरों यह अहसास होता है कि यदि आपको किसी भाषा से मुहब्बत है तो उसे सीखने में और भाषा के समंदर में तैरने में कोई मुश्किल सामने नहीं आ सकती। ज़ाहिद अबरोल साहित्यिक रूचि के मालिक हैं। ज़ाहिद अबरोल के कलाम में शब्द एवम अर्थ-सौंदर्य भी है और बंदिश का सौंदर्य भी। अच्छे शेर कहने के बावजूद वो सादगी और नम्रता से यह बात मानते हैं कि वो अभी भी एक विद्यार्थी हैं और उन्हें मंज़िल तक पहुँचने के लिए काफ़ी फ़ासला तय करना है

झुकने को तैयार था लेकिन जिस्म ने मुझको रोक दिया  
अपनी अना ज़िंदा रखने का बोझ जो सर पर काफ़ी था 

तीन बनाये ताकि वो इक दूजे पर धर पायें इलज़ाम 
वरना गूंगा, बहरा, अँधा, एक ही बन्दर काफ़ी था 

ग़म, दुःख, दर्द, मुसीबत,ग़ुरबत सारे यकदम टूट पड़े 
इस नाज़ुक से दिल के लिए तो एक सितमगर काफ़ी था

किताब की सौ ग़ज़लों से चुनिंदा शेर छांटना कितना मुश्किल काम है ये मैं ही जानता हूँ और ये भी जानता हूँ कि मैं हर शेर के साथ इन्साफ नहीं कर सकता इसीलिए बहुत से ऐसे शेर आप तक पहुँचाने से छूट जाते हैं जो कि यहाँ होने चाहियें थे तभी तो आपसे गुज़ारिश करता हूँ कि आप किताब मंगवा कर पढ़ें और सभी शेरों का भरपूर आनंद लें. इस किताब को मंगवाने के लिए आप ज़ाहिद साहब की शरीक-ऐ-हयात मोहतरमा रीटा अबरोल साहिबा से उनके मोबाईल न 97363 23030 पर बात करें । ज़ाहिद साहिब ने उनका ही मोबाईल न नंबर शायद इसलिए दिया है क्यूंकि उन्होंने ही ज़ाहिद साहब के अंदर के इंसान और शायर को ज़िंदा रखने में मदद की है। आप से मेरी ये गुज़ारिश है कि उनके खूबसूरत कलाम के लिए आप ज़ाहिद साहब को उनके मोबाईल न 98166 43939 पर संपर्क कर बधाई जरूर दें।

चलते चलते पेश हैं उनके कुछ चुनिंदा शेर :-

एक घर में तो फ़क़त एक जला करता था
घर में बेटे जो हुए जल उठे चूल्हे कितने 
*** 
बज़ाहिर ओढ़ रक्खा है तबस्सुम 
मगर बातिन सरापा चीखता है 
बज़ाहिर : सामने , बातिन : पीछे 
*** 
मैं नए अंदाज़ से वाकिफ हूँ लेकिन शायरी 
और भी कुछ है फ़क़त लफ़्ज़ों के जमघट के सिवा 
*** 
खत्म कर बैठा है खुद को भीड़ में 
जब तलक तन्हा था वो मरता न था 
*** 
तू मेरी कैद में है मैं भी तेरी कैद में हूँ 
देखें अब कौन किसे पहले रिहा करता है
*** 
काठ के फौलाद के हों या लहू और मांस के
एक से हैं सारे दरवाज़े कहीं दस्तक न दो

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-10-2017) को
"दो आँखों की रीत" (चर्चा अंक 2767)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत said...

जनाब "विजय कुमार अबरोल" की ग़ज़लों की किताब "दरिया दरिया-साहिल साहिल " की सुन्दर समीक्षा प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

Parvez Muzaffar said...

Bahoot khoob

Habib Murshid Khan said...

اسے پڑھ اور دیکھ کر پوری کتاب کی خواہش۔مبرکباد
Habib Murshid Khan
Islamnagar colony, Barahpura.Bhagalpur 812001
Mob.9939068547

Habib Murshid Khan said...

*مبارکباد