उर्दू शायरी पर अगर आप एक नज़र डालें तो वो ज्यादातर गुल,गुलशन ,तितलियाँ, बहार , खार ,दश्त ,ख़िज़ाँ , बादल, हवा, फलक, चाँद, सितारे, ख़्वाब ,नीदें ,सहरा ,झील ,समंदर,दरिया,साहिल ,कश्ती ,तूफाँ ,महबूब ,आँखें ,होंट ,हिज्र , फ़िराक ,विसाल ,भूलना ,याद , मय ,सुबू , मयखाना, ज़ाहिद ,पाक ,होश ,रब ,जन्नत ,जहन्नुम , दोस्त ,दुश्मन ,रकीब ,वफ़ा ,बेवफाई ,शाम, रात ,शमअ, परवाना, अँधेरा,उजाला ,हार,जीत, खंज़र ,दवा ,ख़ामुशी ,शोर ,इंतज़ार ,इज़हार, परिंदा, तीर ,निशाना, मुस्कराहट ,आंसू या अश्क ,तबस्सुम ,ज़ख्म , बरसात ,मौसम , वैगरह वगैरह लफ़्ज़ों के इर्द गिर्द ही रची गयी है।
मज़े बात ये है कि इन्हीं लफ़्ज़ों के सहारे तमाम शायर पिछली तीन सदियों से अब तक और आने वाले कल को भी ऐसा तिलिस्म रचते रहे थे रचते रहे हैं और रचते रहेंगे जिसके हुस्न में गिरफ्तार लोग इसकी तरफ खिचते रहे थे , खिचते रहे हैं और खिचते रहेंगे।
हमारी आज " किताबों की दुनिया " श्रृंखला की शायरा "जया गोस्वामी" ने उर्दू के इन तमाम खूबसूरत लफ़्ज़ों के जुड़वाँ भाई जैसे हिन्दी शब्दों को लेकर अपनी ग़ज़लों की किताब "पास तक फासले " में वैसा ही तिलिस्म रचा है जैसा कि शायर उर्दू लफ़्ज़ों से रचते आये हैं।
भाषा सिर्फ अभिव्यक्ति का एक माध्यम है इसलिए अगर बात खूबसूरत होगी तो वो हर भाषा में खूबसूरत लगेगी। उर्दू हिंदी के झगडे में ग़ज़ल को घसीटने वालों को समझना चाहिए कि कोई शेर अगर बुरा है तो वो उर्दू में भी उतना ही बुरा लगेगा जितना हिंदी में और ये ही बात अच्छे शेर पर भी लागू होती है अच्छा शेर अच्छा ही लगेगा वो चाहे जिस भाषा में कहा गया हो।
उर्दू के शायरों जैसे ज़फर इकबाल , एहतराम इस्लाम आदि ने हिंदी भाषा में कमाल की ग़ज़लें कही हैं लेकिन चूँकि वो हिंदी में कही गयी हैं इसलिए उर्दू पसंद लोगों को हलकी लगती हैं।मुस्लिम शायरों की बात छोड़ें, अफसोस इस बात का है कि ग़ज़लों पर जान छिड़कने वाले हिंदी भाषी पाठक भी जो कि उर्दू भाषा न पढ़ सकते हैं न लिख सकते हैं, हिंदी या उर्दू में ग़ज़लें कहने वाले गैर मुस्लिम शायरों को शायर मानने तक को तैयार नहीं होते। ऐसे माहौल में एक ऐसी शायरी की किताब की चर्चा करना जिसमें शायरा ने शुद्ध हिंदी में कमाल की ग़ज़लें कही हैं ,एक जोखिम भरा काम है और मुझे इस जोखिम को उठाने में मज़ा आ रहा है।
पांच फ़रवरी 1939 को जयपुर में जन्मी जया जी ने प्रारम्भ में हिंदी साहित्य का अध्यन 'साहित्य सदावर्त' में पंजाब विश्व विद्ध्यालय से 'प्रभाकर' परीक्षा पास की तदुपरांत 1962 में जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स मुंबई से ड्राइंग और पेंटिंग में इंटर आर्ट किया। उसके बाद आपने राजस्थान विश्व विद्द्यालय से संस्कृत और समाजशास्त्र विषयों में एम ऐ किया। इतना ही नहीं आपने 'वैदिक सौर देवता ' विषय पर शोध कार्य भी किया है। उनकी ग़ज़लों में प्रस्तुत बिम्ब कैनवास पर बनी पेंटिंग का आभास कराते हैं।
राजस्थान आवासन मंडल में वरिष्ठ कार्मिक प्रबंधक पद से सेवानिवृत जया जी का काव्य लेखन खास तौर पर ग़ज़ल, उम्र के पचास बसंत पार करने के बाद जागा। उन्हीं के शब्दों में " आयु के पचासवें दशक में अचानक न जाने क्यों और कैसे कुछ छंद बद्ध रचने की ललक जागी, मैं स्वयं नहीं जान पायी। चुनौतियाँ स्वीकार करना अपनी फितरत में होने के कारण ही शायद मैं इस कठिन साध्य विद्द्या में प्रवेश करने की हिम्मत कर सकी। " उनकी इसी हिम्मत के फलस्वरूप उनके दो ग़ज़ल संग्रह "अभी कुछ दिन लगेंगे" और "पास तक फासले " क्रमश: 1995 और 2010 में प्रकाशित हो कर लोकप्रिय हो चुके हैं।
बहुआयामी प्रतिभा की धनी जया जी की वार्ताओं का सतत प्रसारण आकाशवाणी से होता रहा है इसके अतिरिक्त ललित कला अकादमी एवं सूचना केंद्र की कला दीर्घाओं में उनकी एकल चित्र प्रदर्शनियां लगती रही हैं। उन्होंने चित्रकला में 'शिल्पायन' नामक नयी शैली का विकास भी किया है। राष्ट्रीय स्तर की सभी प्रमुख पत्र -पत्रिकाओं में उनकी ग़ज़लों ,गीतों ,कविता और लेखों का प्रकाशन होता रहा है।
जया जी के इस ग़ज़ल संग्रह के पहले खंड में 32 ग़ज़लें शुद्ध हिंदी में है और दूसरे खंड में आम हिंदुस्तानी जबान में कही गयी 50 ग़ज़लें हैं। हिंदी ग़ज़लों की बानगी ऊपर प्रस्तुत की चुकी है आईये अब नज़र डालते हैं उन ग़ज़लों पर जो आम जबान में खास बातें कहती हैं। ये ग़ज़लें जया जी की व्यापक सोच को दर्शाती हैं मानव मन की वेदनाएं संवेदनाएं व्यथाएं तो इनमें हैं ही लेकिन इन सब के साथ प्रेम की अतल गहराईयों की झलक भी दिखाई देती है।
बिना विधिवत रूप से किसी गुरु की शरण में गए, उनकी लिखी कुछ ग़ज़लों में कहीं व्याकरण दोष मिल सकता है और शायद ये बात ग़ज़ल प्रेमियों को नागवार भी गुज़रे लेकिन मेरी गुज़ारिश है कि उसे नज़र अंदाज़ करते हुए उनके कहन की ईमानदारी पर तालियां बजाई जाएँ।
कैनेडा से प्रकाशित होने वाली हिंदी पत्रिका "हिंदी चेतना" के पन्ने पलटते हुए मेरी नज़र जया जी की लिखी एक कविता पर पड़ी। परिचय में उनका फोटो ,पता ,टेलीफोन न. और ग़ज़ल संग्रहों की संक्षिप्त जानकारी दी गयी थी। ये पता लगने पर कि वो भी जयपुर निवासी हैं मैंने ग़ज़ल संग्रहों की प्राप्ति का रास्ता पूछने को उन्हें तुरंत फोन किया, औपचारिक बातचीत के दौरान ही मैं उनके अपनत्व से बाग़ बाग़ हो गया, लगा जैसे मुद्दतों बाद बड़ी बहन मिल गयी हो।उन्होंने बड़े स्नेह से आशीर्वचनों के साथ अपनी दोनों किताबें मुझे भेट में देदीं।
आज के इस दौर में आत्म प्रशंशा और आत्म प्रचार से खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में लगी होड़ से कोसों दूर जया जी एक सच्चे साधक की तरह एकांत में बैठी साहित्य साधना में लगीं हैं। इस पुस्तक की प्राप्ति का रास्ता पूछने के लिए आप उन्हें 09829539330 अथवा उनके 206 ,पद्द्मावती कालोनी किंग रोड जयपुर स्तिथ घर के नंबर 01413224860 पर फोन करें और ऐसे श्रेष्ठ लेखन बधाई दें।
अंत में नयी किताब की तलाश में निकलने से पहले आईये उम्र के 76 वसंत देख चुकी दिल से युवा जया जी के उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घ सुखमय जीवन की कामना के साथ दुआ करें कि उनकी लेखनी सतत यूँ ही जवाँ रहे।
आखरी में उनका ये शेर अपने साथ लेते जाइए :-
मज़े बात ये है कि इन्हीं लफ़्ज़ों के सहारे तमाम शायर पिछली तीन सदियों से अब तक और आने वाले कल को भी ऐसा तिलिस्म रचते रहे थे रचते रहे हैं और रचते रहेंगे जिसके हुस्न में गिरफ्तार लोग इसकी तरफ खिचते रहे थे , खिचते रहे हैं और खिचते रहेंगे।
हमारी आज " किताबों की दुनिया " श्रृंखला की शायरा "जया गोस्वामी" ने उर्दू के इन तमाम खूबसूरत लफ़्ज़ों के जुड़वाँ भाई जैसे हिन्दी शब्दों को लेकर अपनी ग़ज़लों की किताब "पास तक फासले " में वैसा ही तिलिस्म रचा है जैसा कि शायर उर्दू लफ़्ज़ों से रचते आये हैं।
कब अचानक शुष्क कांटे पुष्प डाली हो गये
लौ लगी जब से अँधेरे दिन, दिवाली हो गये
दिग्भ्रमित मन ने समर्पित प्रेम की जब राह पायी
कामना बंजारने और तन मवाली हो गये
सच समझ कर ज़िन्दगी भर तक जिन्हें संचित किया
उस प्रवंचक मोह के अभिलेख जाली हो गये
युग-युगों के मोह तम में प्रेम चन्द्रोदय हुआ
ज्योति के वे क्षण युगों से शक्तिशाली हो गये
भाषा सिर्फ अभिव्यक्ति का एक माध्यम है इसलिए अगर बात खूबसूरत होगी तो वो हर भाषा में खूबसूरत लगेगी। उर्दू हिंदी के झगडे में ग़ज़ल को घसीटने वालों को समझना चाहिए कि कोई शेर अगर बुरा है तो वो उर्दू में भी उतना ही बुरा लगेगा जितना हिंदी में और ये ही बात अच्छे शेर पर भी लागू होती है अच्छा शेर अच्छा ही लगेगा वो चाहे जिस भाषा में कहा गया हो।
जब से मन पर कंकरीट के बाँध रचे दुनियादारी ने
आँखों से बहते पानी की बाढ़ रुक गयी, धीरे धीरे
उधर कलुष रिश्तों के बरगद इधर अकेलेपन का आतप
स्वाभिमान की आहत शाखा इधर झुक गयी ,धीरे धीरे
उर्दू के शायरों जैसे ज़फर इकबाल , एहतराम इस्लाम आदि ने हिंदी भाषा में कमाल की ग़ज़लें कही हैं लेकिन चूँकि वो हिंदी में कही गयी हैं इसलिए उर्दू पसंद लोगों को हलकी लगती हैं।मुस्लिम शायरों की बात छोड़ें, अफसोस इस बात का है कि ग़ज़लों पर जान छिड़कने वाले हिंदी भाषी पाठक भी जो कि उर्दू भाषा न पढ़ सकते हैं न लिख सकते हैं, हिंदी या उर्दू में ग़ज़लें कहने वाले गैर मुस्लिम शायरों को शायर मानने तक को तैयार नहीं होते। ऐसे माहौल में एक ऐसी शायरी की किताब की चर्चा करना जिसमें शायरा ने शुद्ध हिंदी में कमाल की ग़ज़लें कही हैं ,एक जोखिम भरा काम है और मुझे इस जोखिम को उठाने में मज़ा आ रहा है।
आप क्या आये कि सम्मोहन नदी में बह गए हम
यह न जाना डूब कर 'स्व' से रहित हो जायेंगे
शब्द जो अभिव्यक्ति के संचित किये थे उम्र भर
क्या पता था देखते ही अनकहित हो जाएंगे
स्वप्न पागलपन हताशा कामनाएं और मन
ये सभी अब आप में अंतर्निहित हो जायेंगे
स्नेह के दो बोल या फिर बोलती सी चितवनें
आप फेंको तो सही हम अनुग्रहित हो जायेंगे
पांच फ़रवरी 1939 को जयपुर में जन्मी जया जी ने प्रारम्भ में हिंदी साहित्य का अध्यन 'साहित्य सदावर्त' में पंजाब विश्व विद्ध्यालय से 'प्रभाकर' परीक्षा पास की तदुपरांत 1962 में जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स मुंबई से ड्राइंग और पेंटिंग में इंटर आर्ट किया। उसके बाद आपने राजस्थान विश्व विद्द्यालय से संस्कृत और समाजशास्त्र विषयों में एम ऐ किया। इतना ही नहीं आपने 'वैदिक सौर देवता ' विषय पर शोध कार्य भी किया है। उनकी ग़ज़लों में प्रस्तुत बिम्ब कैनवास पर बनी पेंटिंग का आभास कराते हैं।
बादलों की बीच उगते सूर्य का चित्रण किया तो
तूलिका ने सूर्य में मुख केश में बादल उतारे
नयन-खंजन गिरिशिखिर उत्तुंग वक्षों से बनाये
इंद्रधनुषी ओढ़नी में टँक गए सब चाँद तारे
नेह की चित्रित नदी पर अश्रु रंगों में बहे जो
सेतु बन मिलवा दिए उसने नदी के दो किनारे
राजस्थान आवासन मंडल में वरिष्ठ कार्मिक प्रबंधक पद से सेवानिवृत जया जी का काव्य लेखन खास तौर पर ग़ज़ल, उम्र के पचास बसंत पार करने के बाद जागा। उन्हीं के शब्दों में " आयु के पचासवें दशक में अचानक न जाने क्यों और कैसे कुछ छंद बद्ध रचने की ललक जागी, मैं स्वयं नहीं जान पायी। चुनौतियाँ स्वीकार करना अपनी फितरत में होने के कारण ही शायद मैं इस कठिन साध्य विद्द्या में प्रवेश करने की हिम्मत कर सकी। " उनकी इसी हिम्मत के फलस्वरूप उनके दो ग़ज़ल संग्रह "अभी कुछ दिन लगेंगे" और "पास तक फासले " क्रमश: 1995 और 2010 में प्रकाशित हो कर लोकप्रिय हो चुके हैं।
हों न हों वे पास उनकी याद अपने पास तो है
वो नहीं अपने हमें अपनत्व का आभास तो है
क्या हुआ जो हम तरसते ही रहे अपनी हंसी को
आज अपनी ज़िन्दगी जग के लिए परिहास तो है
भूल कर भी याद उनको हम कभी आएँ न आएँ
याद हम करते उन्हें इस बात का विश्वास तो है
बहुआयामी प्रतिभा की धनी जया जी की वार्ताओं का सतत प्रसारण आकाशवाणी से होता रहा है इसके अतिरिक्त ललित कला अकादमी एवं सूचना केंद्र की कला दीर्घाओं में उनकी एकल चित्र प्रदर्शनियां लगती रही हैं। उन्होंने चित्रकला में 'शिल्पायन' नामक नयी शैली का विकास भी किया है। राष्ट्रीय स्तर की सभी प्रमुख पत्र -पत्रिकाओं में उनकी ग़ज़लों ,गीतों ,कविता और लेखों का प्रकाशन होता रहा है।
देह की मैं थिरकने हूँ नृत्य में तो भाव हो तुम
पायलों के बोल मैं हूँ और तुम रुनझुन रहे हो
कामना की तकलियों पर नेह के धागे गुंथे जो
मैं नयन से कातती तुम चितवनो से बुन रहे हो
धड़कनों के स्वर तुम्हारे नाम के सम्बोधन बने हैं
सांस की अनुगूंज से यूँ लग रहा तुम सुन रहे हो
जया जी के इस ग़ज़ल संग्रह के पहले खंड में 32 ग़ज़लें शुद्ध हिंदी में है और दूसरे खंड में आम हिंदुस्तानी जबान में कही गयी 50 ग़ज़लें हैं। हिंदी ग़ज़लों की बानगी ऊपर प्रस्तुत की चुकी है आईये अब नज़र डालते हैं उन ग़ज़लों पर जो आम जबान में खास बातें कहती हैं। ये ग़ज़लें जया जी की व्यापक सोच को दर्शाती हैं मानव मन की वेदनाएं संवेदनाएं व्यथाएं तो इनमें हैं ही लेकिन इन सब के साथ प्रेम की अतल गहराईयों की झलक भी दिखाई देती है।
बिना विधिवत रूप से किसी गुरु की शरण में गए, उनकी लिखी कुछ ग़ज़लों में कहीं व्याकरण दोष मिल सकता है और शायद ये बात ग़ज़ल प्रेमियों को नागवार भी गुज़रे लेकिन मेरी गुज़ारिश है कि उसे नज़र अंदाज़ करते हुए उनके कहन की ईमानदारी पर तालियां बजाई जाएँ।
तुम न थे दिल पास था तुम आ गए तो दिल गया
है ग़ज़ब फिर भी रहे हम इस ठगी से बेखबर
क्या अंधेरों की घुटन को जान पायेगी शमां
जो सदा रोशन रही है तीरगी से बेखबर
इस तरह भी याद में खोया हुआ कोई न हो
सामने तुम और हम मौजूदगी से बेखबर
कैनेडा से प्रकाशित होने वाली हिंदी पत्रिका "हिंदी चेतना" के पन्ने पलटते हुए मेरी नज़र जया जी की लिखी एक कविता पर पड़ी। परिचय में उनका फोटो ,पता ,टेलीफोन न. और ग़ज़ल संग्रहों की संक्षिप्त जानकारी दी गयी थी। ये पता लगने पर कि वो भी जयपुर निवासी हैं मैंने ग़ज़ल संग्रहों की प्राप्ति का रास्ता पूछने को उन्हें तुरंत फोन किया, औपचारिक बातचीत के दौरान ही मैं उनके अपनत्व से बाग़ बाग़ हो गया, लगा जैसे मुद्दतों बाद बड़ी बहन मिल गयी हो।उन्होंने बड़े स्नेह से आशीर्वचनों के साथ अपनी दोनों किताबें मुझे भेट में देदीं।
तू न था पर हाथ में खत देख कर
फिर कबूतर पास आये आदतन
जब किसी ने नाम तेरा ले लिया
ज़ख्म सारे सनसनाये आदतन
दे गया क़ासिद फटे खत हाथ में
ले लिए , सर से लगाए आदतन
आज के इस दौर में आत्म प्रशंशा और आत्म प्रचार से खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में लगी होड़ से कोसों दूर जया जी एक सच्चे साधक की तरह एकांत में बैठी साहित्य साधना में लगीं हैं। इस पुस्तक की प्राप्ति का रास्ता पूछने के लिए आप उन्हें 09829539330 अथवा उनके 206 ,पद्द्मावती कालोनी किंग रोड जयपुर स्तिथ घर के नंबर 01413224860 पर फोन करें और ऐसे श्रेष्ठ लेखन बधाई दें।
अंत में नयी किताब की तलाश में निकलने से पहले आईये उम्र के 76 वसंत देख चुकी दिल से युवा जया जी के उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घ सुखमय जीवन की कामना के साथ दुआ करें कि उनकी लेखनी सतत यूँ ही जवाँ रहे।
आखरी में उनका ये शेर अपने साथ लेते जाइए :-
जल चुकी दे कर महक वो धूप बत्ती हूँ
फर्क क्या अटकी रहूँ या फिर बिखर जाऊँ
20 comments:
नीरज जी! जया जी की लिखीं खूबसूरत ग़ज़लों से रूबरू करवाने के लिए शुक्रिया! रदीफ़ काफ़िया अनूठे है - "रुनझुन, बुन , सुन ", "उतारे, तारे, किनारे". ये जया जी के अनुभवों और अलग-अलग क्षेत्रों में उनकी हुनरमंदी को दर्शाता है. आपने इस पोस्ट में कुछ और ज़रूरी बातें उठाई हैं. शायद ये ग़ज़ल का ढांचा ही है के इसे कोई भी ज़बान छुए, तो वो ज़बान निखर जाती है.
आपका विनय
dilsaaz.wordpress.com
" युग-युगों के मोह तम में प्रेम चन्द्रोदय हुआ
ज्योति के वे क्षण युगों से शक्तिशाली हो गये "
वाह...!!
आदरणीय नीरज भाई साहब
जया गोस्वामी जी की ग़ज़लों की बानगी को " किताबों की दुनिया" में
लाने के लिए आभार। शुद्ध हिंदी सुभाव की ग़ज़लों को लेकर आपने वाजिब सवाल उठाए हैं।
जया जी की हिंदी सुभाव की ग़ज़लों की भाषा उनकी ग़ज़लों का कथ्य और शिल्प आकर्षक हैं। उनके पास एक व्यापक अनुभव क्षेत्र है जो उनके कोमल एहसास के साथ उनकी शायरी में बहुत खूबसूरती से परिलक्षित हो रहा है।
आपने जितने भी शेर उद्धृत किए हैं उनकी सतत साधना की अक्कासी कर रहे हैं। बहुत सलीक़े से जया जी अपनी बात कहती हैं
शे'रों में पेंटिंग का जादू भी सम्मोहित करने वाला है। जया जी को हार्दिक बधाई, आपका हार्दिक धन्यवाद एक बार फिर किताबों की दुनिया के ख़ज़ाने में एक और हीरा शामिल करने के लिए।
bahut badhiya ...!
भाषा के विवाद में पड़े बिना एक बात जो मुझे सहज स्वीकार्य लगती है वह है मनुष्य की आदतें। हमें आदत सी हो गयी है हर चीज पारंपरिक रूप में देखने की और शायद यही वह कारण है जिसके कारण हिन्दी में अच्छी भली बात करने वाला शायर उर्दू शब्दों की ओर आकर्षित हो उठता है। ऐसा अक्सर होता है जब किसी मंच पर ग़ज़ल कहने की बात आती है और शायर के अास-पास से उर्दू-बहुत अशआर की बरसात होती है और उन पर तालियॉं पिटती हैं। एकाएक लगता है कि हिन्दी ग़ज़ल लोकप्रिय नहीं है। फिर यही लोकप्रियता का मोह शायर के मन में वह भाव उँडेलता है जो उसे उर्दू शब्दों के मोह की ओर ले जाता है।
मुझे आश्चर्य है कि जया जी इस मोह से मुक्त रह सकीं और सिद्ध करने में कामयाब हो सकीं कि काव्य में भाषा नहीं भाव का महत्व होता है।
इस खूबसूरत प्रस्तुति पर भी आपका आभार (अभी थका नहीं हूँ)।
नीरज जी
प्रणाम
तिलक जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ। आपकी इस कोशिश को सलाम जिसके कारण हिंदी की अप्रतिम खूबसूरती लिए जया जी की रचनाओं से रूबरू होने का मौका मिला।
उनसे बात भी हुई। जल्द ही उनकी कृति पढ़ पाउंगी।
आपका शुक्रिया की आपने ये मौका उपलब्ध करवाया।
सादर
पूजा
Received on fb :-
Narayan Singh Adhikari
wah wah wah..!
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Raghav Tiwari :
Lajawab lekhan sir ji
Subh Sandhya jai shri Krishna
Received on fb :-
Kamal Tandon
wonderfullllllllll lines sir
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Satish Tewari
बहुत बढ़िया
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Anil Kumar Bansal
नीरज जी, जो भी लिखते हो बहुत बढ़िया लिखते हो। बारबरा पढ़ने को दिल करता है।
प्रिय श्री नीरज सप्रेम अभिवादन ! आज आपने सुश्री जया गोस्वामी से परिचय कराया । यह काम आप वर्षों से और बहुत खूबसूरती से काफी ज़िम्मेदारी के साथ कराते आ रहे हैं ।जिसे मैं साहित्य की ज़रूरी सेवा मानता हूँ । दरअस्ल आप एक ऐसे जोहरी हैं जो न केवल हीरे की अच्छी परख रखता है अपितु हीरे को खदान से उठाकर ( मैं तराशने की बात नहीं कर रहा )
इस खूबसूरती से शो केस में रखता है कि देखने वाले की आँखों में रौशनी फैलने लगती है । इसके लिए आप यक़ीनन मुबारकबाद के हक़दार हैं । जया जी से मैं अभी तक अनभिज्ञ था , इसे मेरी अपढ़ता भी कह सकते हैं जो मैं उन्हें अभी तक नहीं पढ़ पाया । जया जी ने हिंदी शब्दों का मुनासिब उपयोग करते हुए शेर के अनुशासन का पूरी तरह पालन किया है ।विशेषता यह है कि अपनी ग़ज़लों में काफियों का रदीफ़ के साथ समायोजन ( जो कि अपेक्षाकृत कुछ दुष्कर काम है ) बड़ी चाबुक दस्ती से किया है जिसकी मैं तारीफ़ करता हूँ । जहां तक उनके शिल्प और शैली का प्रश्न है तो भी मश्शाकी ( परिपक्वता ) का भरपूर सुबूत दे रही हैं । कथ्य के स्तर पर भी कह सकता हूँ कि वे अत्यंत खुशफिक्र शाइरा हैं , फ़िक्र के साथ शेर कहती हैं ।फ़िक्र उनकी रचनात्मक और सरोकार सकारात्मक हैं । उनके जज़्बातो - एहसासात जीवन की अनुभूतियों से उभरते हैं जिन्हें हुस्ने - खूबसूरती से शेर के साँचे में ढाल देती हैं । ऐसी रचनाएँ ही हमारे साथ लम्बा सफ़र तय करती हैं । उनकी इस कामयाब शाइरी पर मैं दिल से मुबारकबाद कहता हूँ । कृपया जया जी तक मेरा सलाम पहुंचा दीजिये । अनवारे इस्लाम , भोपाल । 1 सितम्बर 2015
बहुत ख़ूबसूरती से ग़ज़ल की, भाषा की, जया जी की ग़ज़लों की बात की गई है। मनमोहक पोस्ट, अनुभव ही ये लिख सकता है। पोस्ट के आरम्भ में गिनाए गए शब्द अद्भुत । कम शब्दज्ञान और लेखन की शुरूआत करने वालों के लिए तो ये तो एक छोटा सा शब्दकोश। आपको पढ़ना सदैव सुखद होता है। आपके निरन्तर लेखन के लिए शुभकामनाएँ ।
जाया जी की गज़लों से रूबरू करवाने का शुक्रिया ... नए अंदाज़ की नए शबोब के साथ गूंथी हुयी माला बहुत लाजवाब है ....
जाया जी की बधाई इस सुन्दर काव्य रचनाओं की ...
Received on Whatsapp:-
नीरज जी
देर से लिखने के लिए माफ़ी चाहूंगा। जया जी ने प्रयोगधर्मी शायरी की है। कई शेर चौंकाते हैं। उन्हें बधाई।
प्रताप सोमवंशी
ग़ज़लकार
नीरज जी,
सर्वप्रथम तो इतना विलम्ब से पढ़ पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। परंतु इस विलम्ब का दण्ड विलम्ब में ही प्राप्त जानकारी व आनंद के माध्यम से पा भी चुका हूँ।
बहुत उम्दा जानकारी, शानदार ग़ज़लों से रूबरू कराने के लिए आपको अनेक धन्यवाद व आपके इस अनुपम कार्य के लिए अनेक साधुवाद।
सादर,
हितेश शर्मा "पथिक"
Received on e-mail :-
प्रिय नीरज जी,
क्षमा| आप का ब्लॉग देर से देखा | पढ़ कर आनंद हुआ| लगा कि बरसों से बंद दरीचे अब खुले हैं| इस समीक्षा में जैसे एक अनजाने अँधेरे में जो खिड़कियाँ खुली हैं वे लहराती ठंडी हवा, मोगरे की महक और हिमखण्डों के आसपास छलछलाते पानी की याद जगाती हैं|
इस चर्चा में आपकी अभ्युक्ति सटीक है कि जहाँ सरल हिन्दी या उर्दूनिष्ठ गज़लें हैं उनमें में उर्दू के स्थापित या सर्वमान्य बहर पर ध्यान नहीं दे पाई हूँ और न अब तक उसे समझा है| उर्दू शायरी लिखने का मेरा मंतव्य कभी भी था ही नहीं | मैं बस शुद्ध हिन्दी छंद परंपरा में गज़लें कहना चाहती आ रही हूँ| मेरी ग़ज़लें जैसा आपको पता ही होगा – हिन्दी के छंदों - वीर, गीतिका, हरिगीतिका, भुजंगप्रयात, चौपाई, मालिनी, आदि की लय पर निबद्ध हैं और उसी तर्ज़ पर अन्य गज़लें भी कह दी गयी हैं| वस्तुतः में खुद इन्हें गज़ल नहीं कहती| इन्हें सामान्य कविता कहा जाए तो बेहतर| फिर भी इस पर भी कथित उर्दूदां ग़ज़लकर्मियों को ऐतराज़ क्यों हो? आपकी काव्य-पारखी दृष्टि से मेरी रचनाओं का यह आकलन प्रेरक है| अलग से आपको अपना नया गीत-संग्रह समीक्षार्थ भेजती हूँ | देखें, भाव रखें|
सस्नेह,
(जया गोस्वामी)
द्वारा
HEMANT SHESH / हेमंत शेष
IAS (Retd.)
Res: 40/158, Swarna Path, Mansarovar,
Jaipur-302020 INDIA
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Phone 0141-2391933 (Res.)
M:09314508026
जाया जी की गज़लों के सुन्दर प्रस्तुतीकरण के लिए आपका आभार! जाया जी को हार्दिक शुभकामनायें!
उत्कृष्ट प्रस्तुति
तू न था पर हाथ में खत देख कर
फिर कबूतर पास आये आदतन
Badhiya gazalen hain
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