Monday, July 27, 2015

किताबों की दुनिया -106

मैं समंदर हूँ मुझको नदी चाहिए 
ज़िन्दगी में मुझे भी ख़ुशी चाहिए 

तेरी खुशबू, तेरे जिस्म का नूर हो 
बंद कमरे में बस तीरगी चाहिए 

आशना थे जो उनका करम यूँ हुआ 
दिल कहे अब तो बस अजनबी चाहिए 

मेरे होंटों की नैया मचलने लगे 
तेरे गालों की ऐसी नदी चाहिए 

बहुत कम किताबें ऐसी होती हैं जो रुमानियत की खुशबू से लबरेज़ हों और जिन्हें बार बार पढ़ने को जी करे। आज "किताबों की दुनिया" श्रृंखला की इस कड़ी में हम एक ऐसी ही किताब का जिक्र करेंगे जिसमें रवायती और ज़दीद ग़ज़ल के बीच का फासला बहुत हद तक कम करने की कामयाब कोशिश की गयी है। ये किताब है "शोहरत की धूप" और जिसके हुनरमंद शायर हैं जनाब " रमेश कँवल " .


इक नशा सा जहन पर छाने लगा 
आपका चेहरा मुझे भाने लगा 

चांदनी बिस्तर पे इतराने लगी 
चाँद बाँहों में नज़र आने लगा 

रूह पर मदहोशियाँ छाने लगीं 
जिस्म ग़ज़लें वस्ल की गाने लगा 

रफ़्ता रफ़्ता यासमीं खिलने लगी 
मौसमे-गुल इश्क़ फ़रमाने लगा 

25 अगस्त 1953 को जीतौरा ,पीरो ,आरा ,बिहार में जन्मे जनाब रमेश कँवल को ग़ज़ल कहने का शौक बचपन से है ,फ़िल्मी गानों से प्रभावित हो कर उनमें गीत लिखने की इच्छा हुई जो ग़ज़ल लिख कर पूरी हुई। बेरोजगारी के दिनों में, लोक सेवा आयोग के इंटरव्यू के दौरान एक मेंबर ने जब उनसे उनका शगल पूछा तो जवाब में उन्होंने अपना ये शेर पढ़ दिया :-

अब तक न मिली नौकरी कोई भी कँवल को 
हाथों की लकीरों के अजब ठाट रहे हैं 

इस शेर की बदौलत मेम्बर्स ने वाह वाही के साथ साथ उनकी हाथों की वो लकीरें भी बदल दीं जिनमें नौकरी मिलना नहीं लिखा था। शायरी की बदौलत नौकरी पाने वाले विरले लोगों में से एक हैं रमेश कँवल साहब। प्रखंड विकास पदाधिकारी से शुरू डिप्टी कलक्टर का उनका सफ़र अपर जिला दंडाधिकारी की बुलंदियों तक जा पहुंचा। समस्त प्रशाशनिक जिम्मेवारियां निभाते हुए भी उनका शायरी प्रेम यथावत रहा।

रूठ जाने का कोई वक़्त नहीं 
पर मनाने में वक़्त लगता है 

ज़िद का बिस्तर समेटिये दिलबर 
घर बसाने में वक्त लगता है 

आज़मा मत भरोसा कर मुझ पर 
आज़माने में वक्त लगता है 

जनाब ‘अनवारे इस्लाम’ साहब ने किताब की भूमिका में कँवल साहब की शायरी के बारे में बहुत सटीक बात की है वो कहते हैं कि " कँवल के यहाँ ऐसा कतई नहीं लगता कि उन्होंने शौकिया ग़ज़लें कही हैं बल्कि उनके यहाँ एक फ़िक्र है और उसे व्यक्त करने का उनका अपना तरीका है जिसे वे शेर के ढांचे में सलीके से ढाल देते हैं जो इस बात की अलामत है कि वे ग़ज़ल की न केवल समझ बल्कि अच्छी पकड़ भी रखते हैं

गर तेरी बंदगी नहीं होती
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती 

बात क्या है कि आजकल मुझको 
तुझसे मिल कर ख़ुशी नहीं होती 

हाय बेचारगी-ओ-मज़बूरी 
जो करूँ बंदगी नहीं होती 

कितना दुश्वार है ये फ़न यारों
शायरी दिल्लगी नहीं होती     

"शोहरत की धूप " में रिवायती लबो लहजा से परहेज तो नहीं किया गया है , लेकिन जदीद अंदाज़ में नई उपमाओं और बिम्बों पेश करने की कोशिश की गयी है , ऐसी उपमाएं और बिम्ब जो आसानी से हमें कहीं और पढ़ने को नहीं मिलते मसलन " रिश्वत की अप्सरा ", "कहकहों के ट्यूब" , " खुशबुओं की मंडी "', "ज़िद का बिस्तर " "शोहरत की शहजादी ", होटों की नैया ", " जिस्म के अशआर ", "बेबसी की धुंध", "बेरोजगारी की सुलगती रेत", "यादों का टेप", अहसास की तितलियाँ ", "लम्हों की दीवार ", आदि आदि।

हर पल संवरने सजने की फुर्सत नहीं रही 
अब मुझको आईने की जरुरत नहीं रही 

अब मुन्तज़िर नहीं हूँ मैं खिड़की से धूप का 
अच्छा है मेरे सर पे कोई छत नहीं रही 

उसके बदन की गंध मुझे भा गयी 'कँवल' 
अब खुशबुओं की मंडी की चाहत नहीं रही 

रमेश कँवल साहब हिंदी के ऐसे शायर हैं जिनकी पहली ग़ज़लों की किताब उर्दू लिपि में 'लम्स का सूरज " शीर्षक से सन 1977 में शाया हो कर बहुत मकबूल हुई। उसके एक साल बाद हिंदी में उनकी दूसरी किताब "सावन का कँवल "प्रकाशित हुई। उर्दू और हिंदी जबान पर उनकी पकड़ काबिले दाद है. उनकी शायरी को संवारने में उनके उस्ताद जनाब 'वफ़ा' सिकन्दरपुरी ,जनाब प्रोफ़ेसर हफ़ीज़ बनारसी साहब मरहूम और प्रोफ़ेसर तल्हा रिज़वी बर्क दानापुरी साहब का बहुत बड़ा हाथ रहा। जनाब डाक्टर मनाज़िर आशिक हरगान्वी साहब की कोशिशों से ही उनकी दोनों किताबें मंज़रे -आम पर आ सकीं।

गौहरे-नायाब है और कुछ नहीं 
ज़िन्दगी इक ख़्वाब है और कुछ नहीं 
गौहरे नायाब = दुर्लभ मोती 

मछलियों पर खिलखिलाती चाँदनी 
हमनवां तालाब है और कुछ नहीं 
हमनवां =सहमत 

ज़िस्म की हर शाख पर अठखेलियां 
जुर्रते -महताब है और कुछ नहीं 
जुर्रते-महताब = चाँद की धृष्टता 

तेरे मिलने का हंसी, मंज़र 'कँवल ' 
सुब्ह का इक ख्वाब है और कुछ नहीं 

बिहार हिंदी साहित्य सम्मलेन, पटना से 'साहित्य भूषण' साहित्यकार संसद समस्तीपुर से 'फ़िराक गोरखपुरी राष्ट्रिय शिखर सम्मान , भागलपुर से दुष्यंत कुमार स्मृति पुरूस्कार सहित अनेक संस्थानों से सम्मानित रमेश कँवल साहब की ग़ज़लें प्रकाश पंडित और मंसूर उस्मानी साहब द्वारा संपादित किताबों में भी प्रकाशित हुई हैं। । उनकी ग़ज़लें अनेक हिंदी उर्दू अख़बारों और रिसालों में भी शामिल होती रही हैं। आकशवाणी एवं दूरदर्शन पटना तथा भागलपुर से भी उनकी ग़ज़लें प्रसारित हुई हैं।

तुम्हारे जिस्म के अशआर मुझको भाते हैं 
मेरी वफ़ा की ग़ज़ल तुम भी गुनगुनाया करो 

बहुत अँधेरा है बिजली भी फेल है दिल की 
मुहब्बतों का दिया ले के छत पे आया करो 

शरीफजादों की बेजा खताओं से मिलने 
यतीमखानों के बच्चों बीच जाया करो 

अपनी दूसरी किताब "सावन का कँवल" के लगभग सोलह साल बाद अपनी शरीके हयात को मंसूब की गयी "शोहरत की धूप" रमेश कँवल साहब तीसरी किताब है जिसमें उन्होंने अपनी कुछ पुरानी ग़ज़लों के साथ साथ जो सावन का कँवल में शाया हुई थीं, नयी ग़ज़लों को भी शामिल किया है। इस संकलन में रमेश जी की 101 ग़ज़लों के अलावा उनके कुछ लाजवाब माहिए और गीत भी शामिल हैं जिन्हें पढ़ कर हमें उनकी बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा का पता चलता है । पोस्ट की लम्बाई की सीमा आड़े आ रही है वरना इस किताब की लगभग सभी ग़ज़लें आप तक पहुँचाने का मन हो रहा है।

ज्वालामुखी कहर ढाते रहे 
नदी पर्वतों से निकलती रही 

वरक़ दर वरक़ मैं ही रोशन रहा 
वो अलबम पे अलबम बदलती रही 

किसी दस्तखत की करामात थी 
मेरी ज़िन्दगी हाथ मलती रही 

हवस की निगाहें ख़रीदार थीं 
पकौड़ी वो मासूम तलती रही 

'शोहरत की धूप ' को 'पहले पहल प्रकाशन' 25 ऐ ,प्रेस काम्प्लेक्स , भोपाल ने प्रकाशित किया है। किताब की प्राप्ति के लिए आप पहले पहल प्रकाशन से उनके फोन न 0755 -2555789 पर संपर्क कर सकते हैं। श्रेष्ठ तो ये रहेगा कि आप रमेश जी को उनके मोबाईल 09334111547 पर संपर्क कर इन लाजवाब ग़ज़लों के लिए बधाई दें और फिर किताब प्राप्ति का आसान रास्ता पूछें। किसी भी शायरी प्रेमी की लाइब्रेरी में रखी ये किताब अलग से जगमगाती हुई नज़र आएगी।
अगली किताब की तलाश में निकलने से पहले हम आईये आपको उनकी ग़ज़ल के चंद अशआर पढ़वाते हैं :-

मैं सियासत की बेईमान गली 
और रिश्वत की अप्सरा तुम हो 

गालियों में तलाशता हूँ शहद 
राजनीति का ज़ायका तुम हो 

चौक पर की बहस चौके में 
सेक्युलर मैं हूँ, भाजपा तुम हो 

फ़स्ले-बेरोजगारी हैं दोनों , 
मैं हूँ स्कूल, शिक्षिका तुम हो 

तुम से शौकत, तुम्हीं से है शोहरत 
मैं ग़ज़ल हूँ, मुशायरा तुम हो

13 comments:

रचना दीक्षित said...

रमेश कंवर जी की गज़लें आपके के ब्लॉग पर पढ़ कर अच्छा लगा आपको और कंवर जी को हार्दिक धन्यवाद
आभार

Devendra Gehlod said...

जब समीक्षा मे इतना आनंद है तो किताब पढ़ने का लुत्फ कुछ और होगा

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र said...

आप यूँ ही चलते रहें और हम नित नए शायरों की किताबों से परिचित होते रहें। रमेश जी को पढ़वाने के लिए आभार

Parul Singh said...

किताबें तो लाजवाब होती ही हैं आपकी लाई हुई पर शायरी के प्रेमियों पर क़र्ज़ रहेगी आपकी ये सत्तत और निर्बाध साहित्य सेवा जो की आप नई नई प्रतिभाओं से रूबरू करा कर कर रहें हैं

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 29 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

नीरज गोस्वामी said...

Received on mail :-

बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी।
आपने बहुत ही सुंदर लिखा है शायरी की दुनिया में खाकसार की अदना कोशिशों के बारे में। आपकी ज़र्रा नवाजी के सदके। बेहुनर लोगों में भी खूबियाँ तलाशने के हुनर में आपका कोई सानी नहीं। मश्कूर ओ ममनून हूँ आपका।
थोड़ी सी तरमीम ज़रूरी है:
प्रकाश पंडित और मंसूर उस्मानी के साथ मैंने कोई संपादन कार्य नहीं किया है बल्कि उनके द्वारा संपादित किताबों में मेरी ग़ज़लें प्रकाशित हुई हैं।
और सब लाजवाब है और जादू है आपकी लेखनी का।
बहुत बहुत शुक्रिया
रमेश 'कंवल'

नीरज गोस्वामी said...

Received on Mail :-

Dearest Neeraj,

You will be remembered for yor compassion and love for poets,

With best wishes for your continued happiness!

Prove your mettle.

Chaand Shula haidiabadi
DENMARK

डॉ.त्रिमोहन तरल said...

शानदार ग़ज़लकार मोहतरम जनाब रमेश कँवल साहब की बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़लों से रूबरू कराने के लिए आपको जितनी बार शुक्रिया कहा जाए कम है। नीरज जी! आप वाकई हुनरमंद को तलाशने का नायाब हुनर रखते हैं। ----डॅा० त्रिमोहन तरल, आगरा।

प्रदीप कांत said...

मज़ा आ गया बस

PRAN SHARMA said...

Achchhee Ghazalon ke liye Ramesh Ji ko Badhaaee . Apkee Smeeksha
hamesha Kee Tarah Laajawaab Hai .

नीरज गोस्वामी said...

BHAI NEERJ GOSWAMI JI
NAMSATEY
VERY NICE INFORMATION ABOUT JANAB SHRI RAMESH KANWAL SAAAB --
HIS POETRY IS REALLY IMPRESSIVE AND U HAVE ATTEMPTED TO ALL HIS 3-4 BOOKS IN ONE WRITE UP--
THANX AND CONGRATS TO U AS WELL POET JANAB SHRI RAMESH KANWAL JI-
-- OM SAPRA
SAHITYA SACHIV, MITRA SANGAM PATRIKA
N-22, DR. MUKHERJI NAGAR,
DELHI-0
M- 9818180932

Ashok Singh said...

नीरज जी,
आपकी लेखनी का जादू और आपका चयन, दोनों लाजवाब हैं। ये नायाब पुस्तकें किस प्रकाशन में उपलब्द्ध हैं, एक link उसका भी दें तो बहुत मेहरबानी होगी।
- अशोक सिंह, न्यू यॉर्क
https://www.facebook.com/ekavya

Ramesh Kanwal said...

लगभग दो साल हो गए
आज बहुत दिनों के बाद श्री नीरज गोस्वामी जी के ब्लॉग पर गया |

मित्रों की प्रतिक्रियाएं पढ़ कर ख़ुशी हुई |

श्रीमती रचना दीक्षित , श्री देवेन्द्र गहलोत ,श्री सज्जन धर्मेन्द्र ,श्रीमती पारुल सिंह ,डा.त्रिमोहन तरल,श्री प्रमोद कान्त,श्री प्राण शर्मा,श्री ओम सपरा ,श्री अशोक सिंह जी को देर से ही सही तहेदिल से धन्यवाद देता हूँ |

श्री अशोक सिंह जी www.rameshkanwal.com पर शोहरत की धूप डाउनलोड किया जा सकता है |
रमेश ‘कँवल’