हो खफा हमसे वो रोते जा रहे हैं
और हम रुमाल होते जा रहे हैं
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं
पत्थरों से दोस्ती कर ली है जब से
आईने पहचान खोते जा रहे हैं
कब तलक दें फूल उनको ये बताओ
जो हमें कांटे चुभोते जा रहे हैं
रहनुमा मक्खन का वादा करके देखो
कब से पानी ही बिलोते जा रहे हैं
है यकीं इक दिन यहीं गुलशन बनेगा
बीज हम बंज़र में बोते जा रहे हैं
पास मत आना हमारे, कह रहे जो
आँख से "नीरज" वो न्योते जा रहे हैं
45 comments:
रहनुमा मक्खन का वादा करके देखो
कब से पानी ही बिलोते जा रहे हैं
वाह बड़ी ही सहज और आम बोलचाल की भाषा में कही गई ग़ज़ल
बहुत ख़ूब !!!
एक शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई.
'नीम के ये पेड़ ....' तो हासिले ग़ज़ल
शेर है.
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
बेहतरीन ...
मेरा उत्तर >>>
हम नहीं सुधरे हमे मालूम कब था
नीम मीठे आम होते जा रहे हैं..।
साभार
विजय
bahut sundar abhivyakti .
पत्थरों से दोस्ती कर ली है जब से
आईने पहचान खोते जा रहे हैं
क्या बात है वाह वाह बहोत अच्छा शेर है वाह
बेहतरीन गजल...
अति उत्तम...
:-)
hamesha rumal hona hausle ka kam hai.....Khubsurat gajal.....
Via Facebook:-
Tejendra Sharma: नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं... (Rishton kee defination)
Via Face book:-
Prakash Khatri: नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं..waah.
Via Facebook:-
Pramod Kumar: achchi gajal......
Via Facebook:-
Anand Kumar Mishra:: Lajabaab....
Jabab...wakayee Nahin
Saral Bhasha......Saumay Andaaz
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं ........... बहुत ख़ूब भाई जी और बिलोते वाला भी ज़बरदस्त शेर है।
शानदार, एक से बढके एक.
रामराम.
बहुत खूबसूरत गज़ल
बहुत खूब नीरज जी... बड़े दिन बाद आपकी कोई ग़ज़ल पढ़ने को मिली।
आमंत्रण खुला था सो आया और मुग्ध हो गया.
सबने नीम और आम वाले शेर पर कुछ न कुछ कहा है. मुझे भी अच्छा लगा.
पानी बिलोने वाला शेर अपनी अलग तासीर रखता है.
आपकी लेखिनी का अपना अंदाज़ है जो गठा हुआ है.
सादर
बहुत खूब
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं
wah!
नीरज जी!आपकी निष्ठा असंदिग्ध है फल जरूर देगी विश्वास रखिये!
हर शेर लाजवाब
आपने प्रश्न उइाया है तो हुजूर खार सारे खत्म न हो जायें तब तक, फूल देते जाईये और परिणाम देखें।
रुमाल और नीम के पेड़ - सबसे अच्छे :)
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं.... gazab
...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ४ /६/१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का वहां हार्दिक स्वागत है ।
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं
आदरणीय नीरज गोस्वामी जी ,
नमस्कार ,
बहुत सुंदर लिखा है , ह्रदय को छूने वाली बाते है,, और सच भी है, आभार
आपकी यह रचना कल मंगलवार (04 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं
वाह !!! बहुत सुंदर गजल के लिए बधाई नीरज जी ,,
recent post : ऐसी गजल गाता नही,
Recd on e-mail:-
bhai neeraj ji
ati sunder rachan hai
badhai ho,
prof kuldip salil ji ki kitab "dhoop ke saye mein"" ki samiksha kab kar rahen hain
kabhi delhi ayen to milen
saadar-
om sapra, delhi-
98181809032
बड़ी सहजता के साथ बेहतरीन ग़ज़लें लिखने में महारत हासिल है आपको। सारे शेर एक से बढ़कर एक।
हमारे समय की बेहतरीन रिपोर्टिंग हैं आपकी गज़लें।
पास मत आना हमारे, कह रहे जो
आँख से "नीरज" वो न्योते जा रहे हैं
क्या बात है ! खूबसूरत !
सुन्दर ग़ज़ल
Via Facebook:-
Akash Lalwani Jain:: lajawaab
हो खफा हमसे वो रोते जा रहे हैं
और हम रुमाल होते जा रहे हैं
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं
रहनुमा मक्खन का वादा करके देखो
कब से पानी ही बिलोते जा रहे हैं
_______________________________
baDhiyaa
_______________________________
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं ।
क्या कमाल का शेर है वैसे तो पूरी गज़ल शानदार है ।
बचपन भी याद आ गया जब निबौरियों को आम बना कर ढक्कनों की तराजू में तोल कर बेचा करते थे और इमली के बीजों के पैसे पाकर खुश होते थे ।
From Facebook:-
Pravin Naik:: nice awesoom.............
Via Facebook::
Amitabh Meet :: बहुत ख़ूब सर जी ! लाजवाब ग़ज़ल !
आपने लिखा....हमने पढ़ा
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 08/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर गहरे भाव
Via mail:-
आपको रूमाल क्या चादर मिलेगी
क्यूँ बेचारे को भिगोते जा रहे हैं
Sarv Jeet "Sarv"
Via e-mail:-
जब कभी इतिहास लिखा जायेगा
नीरज कवि को याद रखा जायेगा
दिल से
चाँद शुक्ला हदियाबादी
हमेशा की तरह ग़जल तो शानदार है ही। इसी काफ़िए में एक मौजूँ शेर सटाता हूँ :
आडवाणी जी हुए इतिहास फिर भी
जिद में किश्ती को डुबोते जा रहे हैं
है यकीं इक दिन यहीं गुलशन बनेगा
बीज हम बंज़र में बोते जा रहे हैं
उम्मीद जगी रहनी चाहिये.
बेहतरीन भाव लिये सुंदर गज़ल.
vehad sunder surili rachna ... LAZBAB
हर शेर शानदार। कितनी सरलता है.
क्या बात है
Post a Comment