(गुरुदेव पंकज सुबीर द्वारा आशीर्वाद प्राप्त ग़ज़ल)
अजल से है ये बशर की आदत, जिसे न अब तक बदल सका है
ख़ुदा ने जितना अता किया वो, उमीद से कम उसे लगा है
अजल: अनंतकाल
किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख़्त जब तक हरा भरा है
शजर : पेड़
जला रहा हूँ हुलस हुलस कर, चराग घर के खुले दरों पर
न आएंगे वो मुझे पता है, मगर ये दिल तो बहल रहा है
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है
चलो हवाओं का रुख बदल दें, बदल दें नदियों के बहते धारे
जुनून जिनमें है जीतने का, ये उनके जीवन का फलसफा है
रहा चरागों का काम जलना, मगर हमीं ने कभी तो उनसे
किया है घर को किसी के रौशन, किसी के घर को जला दिया है
जरा सी बदलोगे सोच अपनी तो फिर सभी से यही कहोगे
इसे समझते रहे बुरा हम, जहां ये लेकिन बहुत भला है
किसे दिखाए वो दाग दिल के, किसे दुखों की कथा सुनाये
अज़ाब ऐसा है ये कि जिससे अदीब तनहा तड़प रहा है
अज़ाब= पीड़ा, सन्ताप, दंड : अदीब= विद्वान :
जो सुब्ह निकले कमाने घर से, थके हुए दिन ढला तो लौटे
तुम्हारा मेरा, सभी का नीरज, यही तो बस रोज़नामचा है
46 comments:
बहुत सुंदर
वाह....
लाजवाब..
रहा चरागों का काम जलना, मगर हमीं ने कभी तो उनसे
किया है घर को किसी के रौशन, किसी के घर को जला दिया है
बेहद खूबसूरत गज़ल.....
सादर
अनु
बहुत ही खूबसूरत नीरज जी। फ़लसफा ज़िंदगी का समझा दिया आपने.. भाव भी लाजवाब और पेश करने का अंदाज़ भी।
चलो हवाओं का रुख बदल दें, बदल दें नदियों के बहते धारे
जुनून जिनमें है जीतने का, ये उनके जीवन का फलसफा है
रहा चरागों का काम जलना, मगर हमीं ने कभी तो उनसे
किया है घर को किसी के रौशन, किसी के घर को जला दिया है
हर शेर उम्दा ... बहुत खूबसूरत गजल
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है
चलो हवाओं का रुख बदल दें, बदल दें नदियों के बहते धारे
जुनून जिनमें है जीतने का, ये उनके जीवन का फलसफा है
वाह ...बहुत खूब ।
जला रहा हूँ हुलस हुलस कर, चराग घर के खुले दरों पर
न आएंगे वो मुझे पता है, मगर ये दिल तो बहल रहा है
उजाले ख़ुशी देते हैं
किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख़्त जब तक हरा भरा है
aapki gazal jeewan ke katu satya ko ujagar kar rahi hai.
sadhuwad.
रहा चरागों का काम जलना, मगर हमीं ने कभी तो उनसे
किया है घर को किसी के रौशन, किसी के घर को जला दिया है
बहुत खूब. एक से बढ़कर एक बढ़िया शेर. आपके गुरुदेव का आशीर्वाद आपकी गजलों को मिलता रहे, यही कामना है.
नीरज साहब अच्छी ग़ज़ल हुई है.मक्ता ख़ास तौर पर पसंद आया. दिली दाद क़ुबूल हो.
चलो हवाओं का रुख बदल दें, बदल दें नदियों के बहते धारे
जुनून जिनमें है जीतने का, ये उनके जीवन का फलसफा है
वाह!
लाजवाब ग़ज़ल......
वाह....वाह.....सुभानाल्लाह.....कुछ शेर तो दिल को छू लेने वाले हैं बहुत ही उम्दा ।
KIS SHER KAA ULLEKH KARUN , SABHEE
SHER EK SE BADH KAR EK HAI . AAPKO
AUR SHREE PANKAJ SUBEER KO BADHAAEE .
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है
जरा सी बदलोगे सोच अपनी तो फिर सभी से यही कहोगे
इसे समझते रहे बुरा हम, जहां ये लेकिन बहुत भला है
जो सुब्ह निकले कमाने घर से, थके हुए दिन ढला तो लौटे
तुम्हारा मेरा, सभी का नीरज, यही तो बस रोज़नामचा है
यह तो अनमोल मोती हैं जिन्हें आप हमेशा पिरोकर हमें पेश करते हैं ...बहुत खूब ..
रहा चरागों का काम जलना, मगर हमीं ने कभी तो उनसे
किया है घर को किसी के रौशन, किसी के घर को जला दिया है
बहुत खूब!
अजीब सी इक कसक तुम्हारे कलाम में है, ए दोस्त 'नीरज',
मिरे ही दिल की तो बात है सब, जो हाल तेरा, वही मिरा है.
http://aatm-manthan.com
कठिन उर्दू ने प्रवाह रोका अवश्य पर मन का ताल अन्ततः भर ही गया।
हर शेर उम्दा और ग़ज़ल दिल लूटने को बेताब। और ये फ़कीरी का आलम कि:
जला रहा हूँ हुलस हुलस कर, चराग घर के खुले दरों पर
न आएंगे वो मुझे पता है, मगर ये दिल तो बहल रहा है
किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख़्त जब तक हरा भरा है
सच कहा आपने
बहुत बढ़िया गज़ल
नीरज जी ,मुबारक कबूल करें!
शायद हो सबका जवाब
मगर ये है लाजवाब ....
किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख़्त जब तक हरा भरा है
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको,कफन वही ढाई गज मिला है !
बहुत खूब.....!!
वाह... एक अरसे के बाद बेहतरीन ग़ज़ल पढने के मिली! हर एक शे`अर दा`द के काबिल है.... दा`द क़ुबूल फरमाएं!
Msg received on e-mail:-
अच्छी ग़ज़ल भाई !
ये शेर सब से ज़ियादा पसंद आया ...
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है
वाह !
आलम खुरशीद
Msg received on e-mail:-
bahut sunder gazal hai bhai.
aapko aur manniya pankaj subeer ji ko badhai,
regds,
-om sapra, delhi-9
एक-एक शेर लाज़वाब...बहुत ही उम्दा ग़ज़ल...इस विधा पर आपकी पकड़ का कायल बना गयी ये ग़ज़ल...
चलो हवाओं का रुख बदल दें, बदल दें नदियों के बहते धारे
जुनून जिनमें है जीतने का, ये उनके जीवन का फलसफा है
वाह!!! हर शेर लाज़वाब!
भाई नीरज!
ग़ज़ल पढ़कर तबीयत ख़ुश हो गई। बड़ी प्यारी बहर है और बड़े ख़ूबसूरत अंदाज़ में आपने इसे निभाया है। लफ़्जों को मोती की तरह सजाया है और उनमें एहसास का समंदर समाया है। इसमें झरने की रवानी भी है और ज़िंदगी की कहानी भी है। बस इसी तरह आगे बढ़ते जाएं, ग़ज़ल के आसमान पर कामयाबी का परचम लहराएं। हमारी शुभकामनाएं!!!
देवमणि पाण्डेय (मुम्बईअ)
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है
खूबसूरत लाजवाब ग़ज़ल हर शेर दाद के काबिल है .
ख़ूबसूरत और दिलकश बहर में
ख़ूबसूरत और दिलकश कलाम
बेहतरीन:
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है
किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख़्त जब तक हरा भरा है
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है ...
वाह ... नीरज जी सुभान अल्ला ... आपका हाथ चूमने कों दिल चाहता है इस लाजवाब और कमाल के शेर पे ... पूरी गज़ल का जवाब नहीं पर इस शेर सा लाजवाब नहीं ...
किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख़्त जब तक हरा भरा है
behad khoobsoorat sher...shajar jaise ye kaya ka pinjra ...parinde chahchahaate hue ..jaise armaan ..udne ke ....
bahut achhi ghazal likhi hai sabhi sher sundar hain neeraj ji.
जरा सी बदलोगे सोच अपनी तो फिर सभी से यही कहोगे
इसे समझते रहे बुरा हम, जहां ये लेकिन बहुत भला है
बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख़्त जब तक हरा भरा है
अंतस को छूती हुई लाजवाब शायरी ....
जीवन के मर्म से भरी हुई ....
हर शख्स के मन का अज़ाब ..!!
शुभकामनायें .
जो सुब्ह निकले कमाने घर से, थके हुए दिन ढला तो लौटे
तुम्हारा मेरा, सभी का नीरज, यही तो बस रोज़नामचा है
...sach yahi har roj chlta hai...
bahut sundar ...
जो सुबह निकले कमाने घर से, थके हुए दिन ढला तो लौटे
तुम्हारा मेरा, सभी का नीरज, यही तो बस रोज़नामचा है!
...बहुत खूब, सुन्दर अभिव्यक्ति!
रहा चरागों का काम जलना, मगर हमीं ने कभी तो उनसे
किया है घर को किसी के रौशन, किसी के घर को जला दिया है
......बेहतरीन !
किसे दिखाए वो दाग दिल के, किसे दुखों की कथा सुनाये
अज़ाब ऐसा है ये कि जिससे अदीब तनहा तड़प रहा है
वाह!!!!बहुत बेहतरीन लाजबाब गजल,.
नीरज जी,आपका फालोवर बन गया हूँ आप भी बने तो मुझे खुशी होगी,....
बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // बेहतरीन रचना //
MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
wastavikta se rubaru karati kavita
आदरणीय नीरज जी,
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है वाह...वाह..
जला रहा हूँ हुलस हुलस कर, चराग घर के खुले दरों पर
न आएंगे वो मुझे पता है, मगर ये दिल तो बहल रहा है
क्या कहने...
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है
हक़ीक़त बयानी... जवाब नहीं.....
चलो हवाओं का रुख बदल दें, बदल दें नदियों के बहते धारे
जुनून जिनमें है जीतने का, ये उनके जीवन का फलसफा है
वाह वाह...
खूबसूरत अशआर पढ़वाने के लिए सादर आभार.
दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं.
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
जुहू, मुंबई-49.
आज पहली बार आपको मुशायरे में सुना , बहुत बढ़िया नीरज भाई आपको हार्दिक शुभकामनायें !
चलो हवाओं का रुख बदल दें, बदल दें नदियों के बहते धारे
जुनून जिनमें है जीतने का, ये उनके जीवन का फलसफा है
वाह वाह ।
हर शेर खूबसूरत जिंदगी के फलसफे से भरपूर ।
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
.
वाह वाह वाह !
बेहतरीन !
भाईजी , कमाल करते रहते हैं आप लगातार …
समस्या यह हो जाती है मेरे साथ कि किस शे'र की अधिक ता'रीफ़ करूं …
वाकई बेहतरीन ग़ज़ल ! क्या कहने है !
बस, आनंद ले रहा हूं गुनगुनाते हुए … … …
शुक्रिया !
शुक्रिया !!
शुक्रिया !!!
नीरज जी को सप्रेम समर्पित <3
बेहिसाब ज़ुनून ओ बुलंद हौसला था,
निभाया हमने इमानदारी से पुरज़ोर!
दीवाने थे हम,
परवाने बने,
सोहबत का तोहफ़ा,
हँसीन मिला,
पहुँचे आखिरी ठौर
उल्फ़त की मौज़ों में खोये,
कुछ भी न मिला बेहिसाब
मच गई आशिकों के जहाँ में अफ़रा-तफ़री
हर गली-नुक्कड़-राह पर हमारी हीं सोहबत अखरी
हम तो थे मशगुल एक-दुज़े की आँखों के पैमाने से
बस रहा हमें, मुस्कराहट ओ खुशियों का हीं ख़्याल
झेला हर तोहमत-बदनामी का बेसुरा बवाल
घर-मोहल्ला, ज़ागीर छोड़ी
फटी हुई एक मैली चादर ओड़ी
रात की तन्हाई में हुए गायब
न जाने कितने पाँओं में चुभे सख्त काँटे
कई मील के पत्थर गुज़रे लगातार
आख़िरकार हम ने एक महफूज़ वीरान-किनारा ख़ोजा
उन वादियों में खो गए हम मुकम्मल,
क्या ख़ूब, ज़मी-आसमॅा का सहारा खोजा
दरख़्त के निचे पत्तों के गद्दे का बिछावन सहेज़ा
फल-फूल-पत्तों से भूख सिंची
हुश्न के हर लम्हों की तासीर झेली
फ़कत तेरे लबरेज़ लहज़े से,
ज़िंदगी, क्या ख़ूब! आर-पार कर ली
ज़न्नत को देखी नहीं, ज़िंदगी लबरेज़ कर ली
~कवि
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