Monday, January 30, 2012

त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

अपनी इक पुरानी ग़ज़ल को झाड़-पौंछ कर फिर से प्रस्तुत कर रहा हूँ , उम्मीद है पसंद आएगी

खौफ का खंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आज कल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ

चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ

पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ

झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

वो हमारे हो गए 'नीरज' ये क्या कम बात है
खुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ

80 comments:

kshama said...

Harek pankti gazab kee hai!

दीपिका रानी said...

अगर यह ग़ज़ल पुरानी है, तो यही कहूंगी कि ओल्ड इज गोल्ड :) हरएक शेर तो अच्छा है ही, अच्छे संदेश भी देता है। शुक्रिया हमसे बांटने का।

पंकज सुबीर said...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
बहुत उम्‍दा बात को एक मुकम्‍मल शे'र के माध्‍यम से कह दिया है । रंग-ए-नीरज से भरा पूरा शे'र ।

vandana gupta said...

हर शेर दाद के काबिल्……………पूरी गज़ल दिल मे उतरती चली गयी……………शानदार्।

सौरभ शेखर said...

आ. नीरज जी,

आपकी अन्य दूसरी ग़ज़लों की तरह इस ग़ज़ल में भी एक बेहतर इंसानियत की ख्वाहिशें पिन्हा हैं. सचमुच आनंद आ गया....

vidya said...

बहुत बढ़िया सर...
आपको कविता कोष में भी पढ़ती हूँ.
सादर.

"अर्श" said...

झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ !

हर दिल की बात है यह... बहुत अच्छी ग़ज़ल नीरज जी .. ! बहुत बधाई !

अर्श्

Amrita Tanmay said...

सभी शेर बहुत अच्छे है ...खूबसूरत गज़ल.

सदा said...

चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ

वाह ...बहुत खूब कहा है आपने इन पंक्तियों में ..

अशोक सलूजा said...

सार्थक सन्देश देते शे'र ...
बधाई स्वीकारें !नीरज जी |

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ

झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ

खूबसूरत गज़ल ... सच्चाई को कहता हुआ हर शेर .

डॉ टी एस दराल said...

आप की ग़ज़लों में हमेशा जिंदगी की सच्चाई झलकती है .
बेहतरीन ग़ज़ल .

रश्मि प्रभा... said...

पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ... रोटी ही फिर पाप और पुण्य बनकर रह जाता है . सोच की हदों से उभरी पंक्तियाँ

Gyan Dutt Pandey said...

आपने तो जीने का यह सूत्र दे दिया -

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ


बस, अपने को मोगरा मानने लगें हम!

रविकर said...

ओल्ड इज गोल्ड ||
बधाई ||

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर सार्थक रचना। धन्यवाद।

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर सार्थक रचना। धन्यवाद।

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है.
मतला लाजवाब कर दे रहा है.
"खौफ का खंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आज कल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ"

"पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी....................", वाह वा
"फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,..................", अद्भुत
"अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये......................", बहुत खूब कहा है.
".........खुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ" वाह वा

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई.

अनुपमा पाठक said...

चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
बहुत सुन्दर!

अनुपमा पाठक said...

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
वाह!!!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

हम तो रूह तक मुअत्तर हो गए इस मोगरे की खुशबू में!!

PRAN SHARMA said...

LAAJAWAAB GAZAL KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .

Anonymous said...

पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ

वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही धुल कर नयी हो गयी है चमचमा रही अहि :-)

पर इस शेर के लिए खास तौर से दाद कबूल करें....वाह.....वाह

रेखा said...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

सुन्दर सीख देती हुई पंक्तियाँ ..

दिगम्बर नासवा said...

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ...

वाह सुभान अल्ला ... क्या गज़ब का शेर है नीरज जी ... बहुत देर से इसी पे अटका हुवा हूँ ... कमाल का लिखते हैं आप ... इतने गज़ब के भाव, नयी सि सोच कहाँ से लाते हैं ... जबरदस्त ....

इस्मत ज़ैदी said...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

आप के कलाम को पढ़कर बहुत देर ये सोचने में लग जाती है कि कौन सा शेर "न" कोट किया जाए
बहुत ख़ूब !!
आप की इस ग़ज़ल ने मशहूर शायर "वामिक़ जौनपुरी" मरहूम की ये नज़्म याद दिला दी ----

"तुम ने सूखे हुए बेले भी कभी सूंघे हैं
उन को मसला न करो
कितनी आज़ुरदा मगर भीनी महक देते हैं
उन को फेंका न करो
ग़म से कुम्हलाए हुए चेहरों को समझा भी करो
सिर्फ़ देखा न करो
दिल में रिस्ते हुए ज़ख़्मों का मदावा भी करो
सिर्फ़ छेड़ा न करो
तुम ने सूखे हुए बेले भी कभी सूंघे हैं "

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर और सार्थक गजल..बहुत खूब कहा........अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

Manish Kumar said...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

wah behhad umda sher..

Anju (Anu) Chaudhary said...

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ




वाह गज़ब ......बहुत खूब ...हर शे की किम्मत पता चल गई ...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

खूब झाड पोछ कर बढिया गज़ल संवार दी नीरज भाई ।

प्रवीण पाण्डेय said...

काश, यह खुशबू कभी न जाये..

Vandana Ramasingh said...

पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

बेहतरीन गज़ल ....

shikha varshney said...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
बेहद खूबसूरत. हर पंक्ति अपनी खुशबू, मन पर छोड़ जाती है.

ऋता शेखर 'मधु' said...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

अद्भुत अभिव्यक्ति...सभी शेर बहुत अच्छे लगे|

वाणी गीत said...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
सच दुबक कर चलता है , झूठ है अकड़ा हुआ फिर भी नज़्म की सकारात्मकता प्रभावित करती है !

सदा said...

कल 01/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, कैसे कह दूं उसी शख्‍़स से नफ़रत है मुझे !

dr.mahendrag said...

PHOOL KI KHUSHBOO HI TYA KARTI HAI USKI KEEMTE
KYA KABHI TUMNE SUNA KHAR KA SAUDA HUA
Bahut hi sundar gazal, Ek sarthak,sachhaie ko batati gazal
BADHAIE

Yogesh Sharma said...

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ...laajawaab kar diya:))

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

बेहद ख़ूबसूरत मतला . “ ख़ौफ़ का ख़ंजर " में बहुत सुन्दर अनुप्रास भी है.

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

यह तो बदहाली के लिये दवा जैसा है । वाह वाह ! भाई जान.


वो हमारे हो गए 'नीरज' ये क्या कम बात है
खुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ

बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल ! ये दो शे’र बहुत बहुत ख़ूब.

Onkar said...

bahut sundar panktiyan

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी ग़ज़ल!

तिलक राज कपूर said...

इतने परिपक्‍व शेर, और कभी कहे थे। माशाअल्‍लाह। बहुत खूबसूरत ग़ज़ल।

Urmi said...

आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत अभूत शुक्रिया!
बहुत सुन्दर एवं शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! सच्चाई को आपने बहुत सुन्दरता से हर एक शेर द्वारा प्रस्तुत किया है !

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन गजल!


सादर

induravisinghj said...

झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ
गहन विचारों का सम्मिलन,ह्रदय स्पर्शी रचना।

निर्मला कपिला said...

चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
बस आजकल कमेन्ट देने का काम ही छूटा हुया है आपकी सलाह पर आ गये।
ये शेर---
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ। आप समझ लीजिये कि मै खडी हो कर तालियाँ बजा रही हूँ। हर एक शेर दाद के काबिल है। बधाई।

***Punam*** said...

झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ


अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ


वो हमारे हो गए 'नीरज' ये क्या कम बात है
खुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ


मैंने तो पहली बार ही पढ़ी है....
क्यूँ कि ब्लॉग जगत में काफी देर से आना हुआ है.....!!
मेरी खुशनसीबी कि इतनी बेहतरीन गज़ल से वाकया हुआ मेरा....शुक्रिया...!!

S.N SHUKLA said...

बहुत खूबसूरत, बधाई.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

वाह आदरणीय नीरज सर...
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल...
सादर बधाई...

Aditya said...

ek ek sher kayaamat hai sir.. lajawaab.. :)


kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. ummeed karta hun niraash nahi karunga..

http://palchhin-aditya.blogspot.in

संध्या शर्मा said...

पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ

हर शेर बेमिसाल... शानदार... जानदार...आभार...

Kunwar Kusumesh said...

वो हमारे हो गए 'नीरज' ये क्या कम बात है
खुद ग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ.

वाह,बहुत सच्ची और अच्छी बात कही है आपने इस शेर में.
ग़ज़ल बहुत बढ़िया है.

विभूति" said...

बेजोड़ भावाभियक्ति....

रविकर said...

क्या आपकी उत्कृष्ट-प्रस्तुति

शुक्रवारीय चर्चामंच

की कुंडली में लिपटी पड़ी है ??

charchamanch.blogspot.com

शारदा अरोरा said...

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ
behad sundar sher hai ...dil khush hua padh kar ...

Monika Jain said...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
wah bahut khoob..bahut sundar

डॉ. जेन्नी शबनम said...

har sher bahut kamaal. bahut prerak ye sher...
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
daad sweekaaren.

Ratan said...

You are SUPERB Neeraj uncle...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ...
-- www.ngoswami.blogspot.com

Loved it...

Sorry, but without your permission I have added this line to my gtalk status message(ofcourse with link to your blog). Hope I am not violating the copyright.. :-)

dinesh aggarwal said...

लाजवाब रचना....
सराहनीय.....
कृपया इसे भी पढ़े
नेता,कुत्ता और वेश्या

रविकर said...

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज charchamanch.blogspot.com par है |

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

पुरानी है तो क्या हुआ भाव तो ताजे है,..
बहुत सुंदर गजल लाजबाब प्रस्तुती .

MY NEW POST ...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...

लोकेन्द्र सिंह said...

bahut badiya...

Anonymous said...

खूबसूरत गज़ल..

Smart Indian said...

@चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
सुन्दर रचना, उपयोगी सलाह!

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन...आनन्द आ गया!!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ

झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ

नीरज जी, बस लूट ही लिया, वाह !!!!!!

Naveen Mani Tripathi said...

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ

झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ

bahut hi sundar chiran badhai ke sath amantran bhi Neraj ji.

नीरज गोस्वामी said...

comment received on mail:-


आदरणीय नीरज जी,

बहुत खूब... क्या कहने..निहायत खूबसूरत ग़ज़ल
और इस शे'र का तो जवाब नहीं

"अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ"

दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं.

सादर,

सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

नीरज गोस्वामी said...

Msg received on e-mail:-

Neeraj Uncle sadar namaste..

Shayari meree tumhare jikra se,
Mogare ki sabj dali ho gayee
Aapake Is sher aur blog header ko punah aapane bahut behtar dhang se yaad dilaya usake liye shukriya. Mogare ka photo aur sher wah kya kahana. (Tyagta khushbu kahan hai mogra sukha huva)

Apanatva ka bhav aur aatmeeyata liye sher bejod hai.
wo hamare ho gaye neeraj ye kya kam baat hai
is khud garaj dunia men varna kaun kab kiska huva hai.
Jitanee taliya peeti jayen kam hain.

Rgds
Vishal

Fani Raj Mani CHANDAN said...

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ

खूबसूरत ग़ज़ल के खूबसूरत शेर...

नीरज गोस्वामी said...

Msg recd. on mail:-

shri neeraj ji
thanx for such gud gazal,

thanx
om sapra delhi-9

हरकीरत ' हीर' said...

क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ

कहाँ से लाते हैं ऐसे मिसरे .....?

और .....
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये

तो माशाल्लाह ज़िन्दगी जीना सिखला गया ....

सभी अशआर बेहतरीन ....

Rohitas Ghorela said...

हर एक शेर पर आपकी छाप लगी है... बहुत ही लाजवाब हैं सारे के सारे शेर...

अगर आपका मेरे ब्लॉग पर आगमन होता हैं तो ये मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी की बात होगी... आभार

Rohitas Ghorela said...

आप मेरे ब्लॉग पर पधारे और कमेन्ट किया; आपका अनत अनत शुक्रिया...

और आपने मुझे follow किया इससे बढकर मेरे लिए और कोई ख़ुशी की बात हो ही नही सकती...

एक बार फिर बहुत बहुत शुक्रिया ।

सूत्रधार said...

बेहतरीन प्रस्‍तुति।
सुमन सिन्‍हा जी का परिचय देखें यहां ...

Shiv said...

खूबसूरत ग़ज़ल. और ये शेर तो गज़ब है;

पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ

Asha Joglekar said...

पुरानी चीजों में जो बात है.. बस कमाल है ।

Bharat Bhushan said...

ग़ज़ल बहुत सुदंर बन पड़ी है.

Anonymous said...

पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ


क्या बात है भाई सा. भूक इंसान को गद्दार बना देती है

Girija Gogi said...

फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा


बहुत खूब -यतार्थ से ओतप्रोत.