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मात्र साठ सत्तर शायरी की किताबें पढ़ लेने के बाद मुझे ये गलत फ़हमी हो चली थी कि मैंने उर्दू हिंदी के बेहतरीन समकालीन शायरों को पढ़ लिया है और अब अधिक कुछ पढने को बचा नहीं है. मुझे ही क्या हम सभी ऐसी गलत फ़हमी के शिकार होते हैं. किसी एक विषय पर सतही जानकारी इकठ्ठा कर अपने आपको प्रकांड पंडित समझने लगते हैं. हजारों वर्षों से इंसान न जाने कितने विषयों पर खोज करता आया है और ये खोज आज तक पूरी नहीं हुई है. हम दरअसल वो अंधे हैं जो हाथी के किसी एक हिस्से को पकड़ कर उसे ही हाथी समझने का भ्रम पाल लेते हैं.
खैर मेरी ये ग़लतफहमी बनी रहती अगर मैंने जनाब "अकील नोमानी" साहब की किताब "रहगुज़र" नहीं पढ़ी होती. सच कहूँ तो मैंने अकील साहब के बारे में अधिक नहीं सुना था, ये तो युवा शायर "गौतम राजरिश" जी ने एक बार कहीं फेस बुक पर उनके नाम का जिक्र किया तो मैंने उन्हें खोजने की प्रक्रिया शुरू की. खोज करने से नोमानी साहब तो मिले ही साथ में उनकी बेहतरीन शायरी की किताब भी मिल गयी.
शायर तो 'अकील' बस वही है
लफ़्ज़ों में जो दिल पिरो गया है
लफ़्ज़ों में दिल पिरोने वाले इस शायर के बारे में क्या कहूँ? जब से "रहगुज़र" पढनी शुरू की है इसमें से बाहर आने को दिल ही नहीं करता.डा. मंजूर हाश्मी साहब की उनके बारे में कही ये बात कि "अकील की शायरी एक दर्दमंद और पुरखुलूस दिल की आवाज़ है" इस किताब को पढने के बाद शतप्रतिशत सही लगती है.
मेरी ग़ज़ल में हैं सहरा भी और समंदर भी
ये ऐब है कि हुनर है मुझे ख़बर ही नहीं
सहरा और समंदर का एक साथ लुत्फ़ देने वाली इस किताब की चर्चा आज हम अपनी इस श्रृंखला में करेंगे और जानेंगे कि क्यूँ राहत इन्दौरी साहब को गुज़िश्ता तीस पैंतीस बरस में किसी नए शायर ने इतना मुतास्सिर नहीं किया, जितना अकील नोमानी ने.
आंसुओं पर ही मेरे इतनी इनायत क्यूँ है
तेरा दामन तो सितारों से भी भर जाएगा
तुम जो हुशियार हो, खुशबू से मुहब्बत रखना
फूल तो फूल है, छूते ही बिखर जाएगा
हर कोई भीड़ में गुम होने को बैचैन -सा है
उडती देखेगा जिधर धूल, उधर जाएगा
भीड़ में गुम होने से हमें सुरक्षा का एहसास होता है. लेकिन में भीड़ में गुम लोगों के चेहरे नहीं होते पहचान नहीं होती और जिन्हें अपनी पहचान करवानी होती है ऐसे बिरले साहसी लोग भीड़ में शामिल नहीं होते भीड़ से अलग रहते हैं, जो जोखिम भरा काम होता है. अकील साहब सबमें शामिल हैं मगर सबसे जुदा लगते हैं. सब में शामिल हो कर सबसे जुदा लगने का हुनर बिरलों में ही होता है, और बिरले ही ऐसे शेर कह सकते हैं:
ज़िन्दगी यूँ भी है, ज़िन्दगी यूँ भी है
या मरो एकदम या मरो उम्र भर
या ज़माने को तुम लूटना सीख लो
या ज़माने के हाथों लुटो उम्र भर
उनको रस्ता बताने से क्या फायदा
नींद में चलते रहते हैं जो उम्र भर
अकील साहब इतने बेहतरीन शेर कहने के बावजूद भी निहायत सादगी से अपने आपको उर्दू शायरी का तालिबे इल्म ही मानते हैं. उनका ये शेर देखें जिसमें उन्होंने किस ख़ूबसूरती इस बात का इज़हार किया है:
मंजिले-शेरो-सुख़न, सबके मुकद्दर में कहाँ
यूँ तो हमने भी बहुत काफ़िया-पैमाई की
उन्हें इस बात का जरा सा भी गुरूर नहीं है कि वो उर्दू के बेहतरीन शायर हैं जबकि मैंने देखा है अक्सर लोग मुशायरों में महज़ तालियाँ बजवाने के लिए निहायत सतही शेर कहते हैं लेकिन अकील साहब के संजीदा कलाम लोग पिछले तीस सालों से मुशायरों में बड़े अदब के साथ सुनते आ रहे हैं.
ख़ुशी गम से अलग रहकर मुकम्मल हो नहीं सकती
मुसलसल हंसने वालों को भी आखिर रोना पड़ता है
अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा
अभी आँखों को कुछ ख्वाबों की खातिर सोना पड़ता है
मैं जिन लोगों से ख़ुद को मुखतलिफ़ महसूस करता हूँ
मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है
अकील साहब के बारे में उस्ताद शायर "सर्वत ज़माल" साहब की टिप्पणी काबिले गौर है वो कहते हैं "अकील नोमानी ऐसा एक शायर है जो सिर्फ दिखने में पत्थर नज़र आता है लेकिन करीब आओ तो उसकी मोम जैसी नरमी और शहद जैसी मिठास का अंदाज़ा होता है, मुझे ख़ुशी है कि मैं उनके करीब बहुत करीब हूँ." अकील साहब के ये शेर सर्वत साहब की बात की ताकीद करते हैं:
कैसी रस्में, कैसी शर्तें
चाहत तो चाहत होती है
वस्ल के लम्हों ने समझाया
दुनिया भी जन्नत होती है
उन आँखों को याद करो तो
दर्द में कुछ बरकत होती है
हुनर को पनपने के लिए कभी सुविधाओं या किसी बड़े शहर की जरूरत नहीं होती. अकील साहब ने अपनी शायरी का सफ़र बरेली के एक छोटे से कस्बे "मीरगंज " शुरू किया और पिछले सत्ताईस सालों से वो वहीँ रह कर उर्दू अदब की सेवा कर रहे हैं. एक साधारण से काश्तकार लेकिन अदब के असाधारण प्रेमी पिता के बेटे अकील साहब को शेरो शायरी का फ़न घुट्टी में नसीब हुआ. मात्र बीस साल की उम्र में अपने उस्ताद ज़लील नोमानी की रहनुमाई में वो शेर कहने लगे और पत्र-पत्रिकाओं में छपने भी लगे. सन 1978 से शुरू हुआ ये सिलसिला आज तक बदस्तूर ज़ारी है.
मैं ही तो नहीं सर्द मुलाक़ात का मुजरिम
पहले की तरह तू भी तो हंस कर नहीं मिलता
जिस दिन से सब आईने खुले छोड़ दिए हैं
उस दिन से किसी हाथ में पत्थर नहीं मिलता
मिल जाऊं तो दुनिया मुझे खोने नहीं देती
खो जाऊं तो ख़ुद को भी मैं अक्सर नहीं मिलता
"रहगुज़र" किताब हम जैसे अलीबाबाओं के लिए जो अच्छी शायरी की खोज में दर बदर ख़ाक छानते रहते हैं किसी ख़जाने से कम नहीं.एक ऐसा खज़ाना जो कभी खाली नहीं होता. इस किताब को गुंजन प्रकाशन , सी-130 , हिमगिरी कालोनी, कांठ रोड, मुरादाबाद ने प्रकाशित किया है. इसकी प्राप्ति की सूचना के लिए आप 0591-2454422 पर फोन करें अथवा मोबाईल नंबर 099273-76877 पर संपर्क करें. सबसे श्रेष्ठ बात तो ये रहेगी कि आप नोमानी साहब को इस किताब के लिए उन्हें उनके मोबाइल 094121-43718 अथवा 093593-42600 पर बधाई दें और साथ ही इसे प्राप्त करने का सरल रास्ता भी पूछ लें .
ख़ुद को सूरज का तरफ़दार बनाने के लिए
लोग निकले हैं चराग़ों को बुझाने के लिए
सब हैं संगीनी-ऐ-हालात से वाकिफ लेकिन
कोई तैयार नहीं सामने आने के लिए
कितने लोगों को यहाँ चीखना पड़ता है 'अकील'
एक कमज़ोर की आवाज़ को दबाने के लिए
"रहगुज़र" का खुमार तो आसानी से उतरने से रहा...दिल करता है इस किताब पर अविराम लिखता चला जाऊं...लेकिन पोस्ट की अपनी मजबूरी है, इस किताब में से कुछ अशआर मैंने बतौर नमूना आपके सामने पेश किये हैं, इस खजाने में इन मोतियों के अलावा जो हीरे जवाहरात हैं उन्हें खोजने के लिए आपको स्वयं कोशिश करनी होगी. जल्द ही मिलते हैं एक और शायरी की किताब के साथ. चलते चलते आखिर में पढ़िए उनकी छोटी बहर की एक ग़ज़ल के चंद शेर...
उन ख्यालों का क्या करें आखिर
जो सुपुर्दे - कलम नहीं होते
बारिशों ही से काम चलता है
खेत शबनम से नम नहीं होते
उसका ग़म भी अजीब होता है
जिसको औरों के ग़म नहीं होते
42 comments:
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
नीरज जी ... बस ...वाह..वाह..वाह..और आह ..इसके सिवा अपने पास कुछ नही रहा |
ज़िन्दगी यूँ भी है, ज़िन्दगी यूँ भी है
या मरो एकदम या मरो उम्र भर||
किस-किस की तारीफ करूँ ?
दिवाली मुबारक !
खुश रहें और स्वस्थ रहें !
नोमानी साहब को सादर नमस्कार....
आपका आभार इस मुलाक़ात के लिए...
रहगुजर पढने की तीव्र इच्छा हो रही है... साम्पर्क कर मंगाने की कोशिश करता हूँ...
आप को दीप पर्व की सादर शुभकामनाएं....
वाह ...आपकी कलम से यह परिचय बहुत ही अच्छा लगा ...दीपोत्सव की शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
नोमानी साहब से मिलवाने के लिए हार्दिक आभार.
दीपावली की हार्दिक-हार्दिक शुभकामनायें.
आभार इस मुलाक़ात के लिए ||
सुन्दर प्रस्तुति |
शुभ-दीपावली ||
हमें तो हर बार आपका ब्लॉग पढ़कर विश्वास हो जाता है कि मुझे थोड़ी और गज़ल आ गयी।
Waah saahab bahut khoob.
Aapko dipawali ki dhero shubhkaamnayen.
उन ख्यालों का क्या करें आखिर
जो सुपुर्दे - कलम नहीं होते
बारिशों ही से काम चलता है
खेत शबनम से नम नहीं होते
उसका ग़म भी अजीब होता है
जिसको औरों के ग़म नहीं होते
vaah , bahut sundar shayri hai ...
हर कोई भीड़ में गुम होने को बैचैन -सा है
उडती देखेगा जिधर धूल, उधर जाएगा
या ज़माने को तुम लूटना सीख लो
या ज़माने के हाथों लुटो उम्र भर
ख़ुशी गम से अलग रहकर मुकम्मल हो नहीं सकती
मुसलसल हंसने वालों को भी आखिर रोना पड़ता है
मैं जिन लोगों से ख़ुद को मुखतलिफ़ महसूस करता हूँ
मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है
कितने लोगों को यहाँ चीखना पड़ता है 'अकील'
एक कमज़ोर की आवाज़ को दबाने के लिए
सलाम है मेरा अकील साहब और उनकी शायरी को..........बेहतरीन शेर......एक सच्चे दिल से निकले शेर हैं ये......बहुत पसंद आये.......आभार आपका परिचय के लिए|
आपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें|
फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आईएगा |
आपकी चुनी हुई शायरियाँ मोगरे की डाली सी ही लगती हैं ....
ख़ुशी गम से अलग रहकर मुकम्मल हो नहीं सकती
मुसलसल हंसने वालों को भी आखिर रोना पड़ता है
वाह!
बेहद सुन्दर प्रस्तुति!
दीपावली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
यह परिचय बहुत ही अच्छा लगा .
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.
एक बेहतरीन शायर के ग़ज़ल संग्रह की लाजवाब समीक्षा।
आंसुओं पर ही मेरे इतनी इनायत क्यूँ है
तेरा दामन तो सितारों से भी भर जाएगा
तुम जो हुशियार हो, खुशबू से मुहब्बत रखना
फूल तो फूल है, छूते ही बिखर जाएगा
हर कोई भीड़ में गुम होने को बैचैन -सा है
उडती देखेगा जिधर धूल, उधर जाएगा"
अकिल साहेब की शायरी पढ़कर इस दिवाली की तरह मेरे दिनरात रौशन हो गए नीरजजी ..आपका बहुत -बहुत शुक्रिया जो आपने इतने मुक्कमल शायर से हमारा परिचय करवाया ..
रश्मिजी ने कहा हैं की --"आपकी चुनी हुई शायरी मोगरे की डाली सी ही लगाती हैं ..!"
पर मेरा मत हैं की इस मोगरे की डाली में खुशबु का झोका भी शामिल हैं .....क्या बात हैं ?आपका ब्लॉग अनोखा ही नहीं हमेशा मुझे विस्मय भी करता हैं नीरज साहेब ...शुक्रिया !
happy diwali ...
मुलाकात अच्छी लगी .. आपको दीवाली की शुभकामनाएं !!
शुभ-दीपावली,नीरज जी...
पञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
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"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
वाह! अच्छे शेर पढ़वाये आपने।
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
परिचय के लिए हार्दिक आभार.
दीपावली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें ...
नोमानी साहब जैसे शायर से मिल कर अच्छा लगा।
दीपावली की हार्दिक बधाइयां एवं शुभकामनाएं।
आपका शायरी और ग़ज़लों के प्रति लगाव ग़ज़ब का और काबिले तारीफ है .
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें नीरज जी .
दीपावली केशुभअवसर पर मेरी ओर से भी , कृपया , शुभकामनायें स्वीकार करें
उन ख्यालों का क्या करें आखिर
जो सुपुर्दे - कलम नहीं होते
बारिशों ही से काम चलता है
खेत शबनम से नम नहीं होते
उसका ग़म भी अजीब होता है
जिसको औरों के ग़म नहीं होते
अकील नोमानी साहब को उनकी शायरी के लिए सलाम और आपको इस ब्लॉग के लिए, बेहतरीन शायरी की तलाशके लिए...
आकर्षण
दीप हम ऐसे जलायें
दिल में हम एक अलख जगायें..
आतंकवाद जड़ से मिटायें
भ्रष्टाचार को दूर भगायें
जन जन की खुशियाँ लौटायें
हम एक नव हिन्दुस्तान बनायें
आओ, अब की ऐसी दीवाली मनायें
पर्व पर यही हैं मेरी मंगलकामनायें....
-समीर लाल 'समीर'
http://udantashtari.blogspot.com
दीपावली के पावन पर्व पर आपको मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!
way4host
RajputsParinay
आद. नीरज जी, अक़ील नोमानी साहब से कई बार मुलाक़ात हो चुकी है...उनकी शायरी और पेश करने का अंदाज़ सामाईन के दिलों को छू जाता है...
आज उनकी किताब की समीक्षा पढ़कर बहुत अच्छा लगा, और कई ऐसी ग़ज़लों से भी रूबरू होने का मौक़ा मिला, जिन्हें मुशायरों में नहीं सुना है...
आपको मुबारकबाद
और सपरिवार...
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
आ.नीरज जी नमस्कार,
इस पोस्ट को तो तीन दिनों पहले ही पढ़ लिया था,लेकिन टिपण्णी देने का मौका अभी मिल पाया है.मेरी अकिंचन सलाह है कि अब तो आप "जौहरी" तखल्लुस रख ही लीजिये. समकालीन शायरी पर आपके इस बेमिसाल तब्सरे को दरअसल अब एक किताब की शक्ल में बाहर आना चाहिए.नोमानी साहिब की शायरी पर क्या कहा जाए....सिवा इसके कि-" मंजिले-शेरो-सुख़न, सबके मुकद्दर में कहाँ/यूँ तो हमने भी बहुत काफ़िया-पैमाई की".
उधर दीपावली का तरही मुशायरा तो आपने लूट ही लिया...बधाई..बधाई..
नीरज जी
एक अच्छे शायर पर लिखी एक बहुत ही अच्छी पोस्ट.... रहगुज़र और अकील साहब दोनों ही शानदार चीज़ें हैं, जिन्होंने बरता है वही जानते हैं ....!
अकील साहब को गुज़रे सात आठ बरस से जानता हूँ.... खुद को खुशनसीब मानता हूँ कि उन्होंने रहगुज़र में जिन लोगों का नाम लिया है उनमे मैं भी कहीं शामिल हूँ....
कमाल के शायर हैं अकील साहब...!
मैंने भी इस मजमुए पर पोस्ट लिखी थी....!
अच्छी पोस्ट लिखने का आभार !!
गज-भ्रम वाली बात बहुत सही कही है सर जी|
एक और अद्भुत व्यक्तित्व से साक्षात्कार कराने के लिए आभार
सरवत भाई के अलावा यह बात अकील नोमानी भाई के बारे मैं मयंक भाई साब भी कहते हैं
दिवाली-भाई दूज और नववर्ष की शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर और संग्रहनीय पुस्तक से परिचय हुआ... दिवाली की हार्दिक शुभकामना !
इतनी सुन्दर शायरी से रूबरू करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद्
शुक्रिया एक बेहतरीन शायर से परिचय करवाने का
चुने हुए शे'रों ने समीक्षा में जान डाल दी!
har baar apko padhne ke baad lagta hai kuch naya aur seekh liya...bahut bahut aabhar aapka.
अकील साहिब को सुनने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ है .......बहुत उल्लेखनीय पोस्ट है आपके द्वारा !
आपने मेरी रचना को सराहा आप का आभार !
आपके माध्यम से नोमानी साहब को और उनकी रचनाओं को जाना, धन्यवाद. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया.
खो जाऊं तो ख़ुद को भी मैं अक्सर नहीं मिलता
kya sunder likha hai.......
मैं तो बहुत देर से आ सका. टिप्पणी देना धर्म है, इस लिए धर्म निभा रहा हूँ. अकील नोमानी के बारे में जितना भी कहा जाए, जितना भी लिखा जाए, कम होगा.
बन्धु, आप जौहरी हैं. हीरो-रत्नों की परख आपको है. आप आज के दौर में दूसरों को हाइलाईट करते हैं, बहुत कलेजे का काम है. यहाँ तो लोग अपने अलावा किसी को गुनते ही नहीं.
मेरी ग़ज़ल में हैं सहरा भी और समंदर भी
ये ऐब है कि हुनर है मुझे ख़बर ही नहीं
या ज़माने को तुम लूटना सीख लो
या ज़माने के हाथों लुटो उम्र भर
अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा
अभी आँखों को कुछ ख्वाबों की खातिर सोना पड़ता है
मैं जिन लोगों से ख़ुद को मुखतलिफ़ महसूस करता हूँ
मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है
उफ्फ्फ, हर शेर पहले से बढ़कर मिलता है.
इतने खूबसूरत अशआर कहने जनाब अकील साब को बधाइयाँ. इन्हें थोडा बहुत पढ़ा है लेकिन अब लगता है इन्हें और अच्छे से पढने की ज़रुरत है.
अक़ील नोमानी साहब की बुक्स नहीं मिल रही है । प्लीज़ मदद करें
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