Monday, May 23, 2011

सो चकनाचूर होता जा रहा हूँ

मेरे खोपोली से बार बार जयपुर आने का राज़ किसी से छुपा नहीं है , छुपाने का कोई कारण भी नहीं है , इंसान अपने घर नहीं आएगा तो कहाँ जाएगा? पिछली बार जब घर आया तो हमारे पारिवारिक मित्र और शुभचिंतक श्री नन्द लाल सचदेव जी ने अपनी पिछली सवा सात सालों से निर्बाध चल रही काव्य संध्या "काव्य लोक" में शिरकत का निमंत्रण दिया. "काव्य लोक" जयपुर के अनूठे कवियों और शायरों की महफ़िल है जो हर माह के तीसरे रविवार को शाम पांच बजे से एक निश्चित जगह पर जमती है. पिछले 86 महीनों से बिना एक भी व्यवधान के इसे लगातार चलाय रखना इसके सदस्यों का काव्य के प्रति प्रेम दर्शाता है. मुझे इसकी पिछली दो महफ़िलों में शिरकत का फ़ख्र हासिल हो चुका है. "काव्य लोक" अब मेरे लिए जयपुर आने का एक अतिरिक्त आकर्षण भी हो गया है.

("काव्य लोक" के संस्थापक आदरणीय श्री नन्द लाल सचदेव जी कविता पाठ करते हुए)

इसी महफ़िल में मैंने दो शायरों को पहली बार सुना जिनके बारे में मुझे इस से पहले कुछ इल्म नहीं था. इन दोनों शायरों ने मुझे अपनी शायरी से दीवाना बना दिया. पहले शायर है युवा आकर्षक "अखिलेश तिवारी " और दूसरे धीर गंभीर जनाब "लोकेश साहिल". अखिलेश अधिकतर छोटी बहर में बहुत मारक शेर कहते हैं. साहिल साहब की शायरी में बहुत गहराई है और सुनाने का लहजा...उफ़ यू माँ...है. इन दोनों को सुनना एक ऐसा अनुभव है जिस से बार बार गुजरने को दिल करता है.


(अपनी शायरी से श्रोताओं को भाव विभोर करते हुए श्री अखिलेश तिवारी जी)

"साहिल साहब" ने पिछली बार कमाल के माहिये सुनाये थे और इस बार एक लाजवाब ग़ज़ल. मैंने ग़ज़ल को सुनते वक्त ही तय कर लिया था के ऐसे खूबसूरत कलाम और उसके शायर को अपने पाठकों तक जरूर पहुंचाउंगा. मैं साहिल साहब का तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ क्यूँ की उन्होंने मुझे अपनी इस ग़ज़ल को मेरे ब्लॉग पर पोस्ट करने की अनुमति सहर्ष देदी.

(जनाब लोकेश 'साहिल' जी अपनी बे -मिसाल अदायगी के साथ खूबसूरत शायरी सुनाते हुए)

सुधि पाठक इस ग़ज़ल को पढ़ें और दिली दाद इस ब्लॉग के माध्यम से या फिर सीधे उनके मोबाइल न.09414077820 पर बात कर के उन्हें जरूर दें.



ज़मीं से दूर होता जा रहा हूँ
मैं अब मशहूर होता जा रहा हूँ

ज़रा सी बात था दिल में किसी के
मगर नासूर होता जा रहा हूँ

बहुत हैं दोस्त इस महफ़िल में मेरे
बहुत मजबूर होता जा रहा हूँ

उजालों में ही बस दिखता हूँ सब को
तो क्या बेनूर होता जा रहा हूँ ?

निभाते ही नहीं अपने भी जिसको
मैं वो दस्तूर होता जा रहा हूँ

मुझे कुछ तालियाँ क्या मिल गयी हैं
बड़ा मगरूर होता जा रहा हूँ

दिखाता फिर रहा था ऐब सबको
सो चकनाचूर होता जा रहा हूँ

लुटेरे बन रहे मालिक हैं मेरे
मैं कोहीनूर होता जा रहा हूँ

मुसलसल तीरगी झेली है मैंने
सरापा नूर होता जा रहा हूँ

दिलों में इस कदर सबके हूँ 'साहिल'
कि सबसे दूर होता जा रहा हूँ

दोस्तों इस ग़ज़ल का एक शेर "दिखाता फिर रहा था..." में कहीं आईने लफ्ज़ का इस्तेमाल नहीं किया है जबकि पूरा शेर उसकी और बड़ी ख़ूबसूरती से इशारा कर रहा है...ऐसा कमाल करने के लिए उस्तादी चाहिए और उनका शेर " मुसलसल तीरगी झेली है...." तो हासिले महफ़िल शेर था. इस शेर को कम से कम उन्हें आठ से दस बार सुनाना पड़ा...लोग थे के मुकरर्र मुकरर्र कहते नहीं थक रहे थे...यक़ीनन ऐसे शेर रोज रोज नहीं होते और जब तक ऊपरवाला न लिखवाये कलम पर उतरते भी नहीं हैं.

38 comments:

Smart Indian said...

अपने नगर के शायरों का तार्रुफ कराने का शुक्रिया!

Anupama Tripathi said...

मुझे कुछ तालियाँ क्या मिल गयी हैं

बड़ा मगरूर होता जा रहा हूँ


दिलों में इस कदर सबके हूँ 'साहिल'

कि सबसे दूर होता जा रहा हूँ
sahil ji ko badhai aur aapko bhi -
itni sunder shayri prastut karne ke liye

Anonymous said...

वाह ..बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

Satish Saxena said...

साहिल जी को बेहतरीन रचना पर मुबारकबाद !

मैंने ऐसे बहुत कम रचनाकार देखे हैं जो दूसरों को भी अपने से अधिक सम्मान देते हैं सो आप आदरणीय हैं ! आपको लोग भुला नहीं पायेंगे नीरज भाई !
शुभकामनायें !!

सदा said...

निभाते ही नहीं अपने भी जिसको
मैं वो दस्तूर होता जा रहा हूँ

मुझे कुछ तालियाँ क्या मिल गयी हैं
बड़ा मगरूर होता जा रहा हूँ

वाह ... आपका बहुत-बहुत आभार इस प्रस्‍तुति के लिये ।

vandana gupta said...

वाह्……………बेहद शानदार्…………हर बार की तरह्।

आकर्षण गिरि said...

Bahut Khoosurat.... neeraj sir ka is ghazal se ham sabko rubaru karaane ke liye bahut bahut shukriya....

aakarshan

दर्शन कौर धनोय said...

बेहद संजीदगी है उनके कलाम में

मुझे कुछ तालियाँ क्या मिल गयी हैं
बड़ा मगरूर होता जा रहा हूँ ...
बहुत ही नेक विचार है जनाब साहिल साहेब के ...बधाई !

अशोक सलूजा said...

दिखाता फिर रहा था ऐब सबको
सो चकनाचूर होता जा रहा हूँ


एहसास से भरपूर :
बहुत-बहुत मुबारक "साहिल" साहिब को !
आप का एहसान ...
खुश रहें!
अशोक सलूजा!

Anonymous said...

बहुत ही खुबसूरत शेर हैं....सुभानाल्लाह |

मनोज कुमार said...

मुझे कुछ तालियाँ क्या मिल गयी हैं
बड़ा मगरूर होता जा रहा हूँ
लाजवाब!

डॉ टी एस दराल said...

साहिल जी की शायरी और आपकी पैनी नज़र --दोनों बेमिसाल हैं भाई जान ।
बहुत सुन्दर परिचय कराया ।

तिलक राज कपूर said...

ज़मीं से दूर होता जा रहा हूँ
मैं अब मशहूर होता जा रहा हूँ
की पैनी धार एक उदाहरण है। और इसमें कोई शक नहीं कि
दिखाता फिर रहा था ऐब सबको
सो चकनाचूर होता जा रहा हूँ
एक ऐसा शेर है जो अंदर उतरने को आमंत्रित करता है।
पूरी ग़ज़ल शानदार है।

प्रवीण पाण्डेय said...

आभार परिचय का और बहुत ही सुन्दर शायरी।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

नीरज भाई साहब!
एक बेहतरीन और सुलझे हुए शायर से मुलाक़ात करवाने का शुक्रिया. इतने ख़ूबसूरत और सादा अशार हैं कि हर शेर पर "वाह" बेसाख्ता निकल जाती है.. गज़ल का मतला तो डायरी के पहले सफे पर लिखकर रखने लायक है ताकि हर रोज इसको दिल में उतारा जा सके!! शुक्रिया आपका!

संजय @ मो सम कौन... said...

नीरज साहब,
लोकेश साहिल जी की गज़ल पढ़कर सच में आनंद आ गया। ’मुसलसल तीरगी......’ वाकई गहरे तक उतर गया। हमारा आभार आप भी स्वीकारें और साहिल साहब तक भी धन्यवाद, शुभकामनायें पहुंचायें।
काव्य लोक जैसी पहल और जगह भी हो, नन्द लाल सचदेव जी प्रेरक कार्य कर रहे हैं।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

गोष्ठी और शायरी...दोनों बहुत खूब...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

नीरज जी, बहुत अच्छा कलाम है साहिल साहब का...
हर शेर बेहतरीन...चकनाचूर वाला शेर तो कमाल है.
ऐसी नशिस्त में वाक़ई कलाम बहुत अच्छा मिल जाता है...मुबारकबाद.

Ankit said...

लोकेश 'साहिल' साहिब को सलाम,
बहुत खूब मतला कहा है,

ज़मीं से दूर होता जा रहा हूँ
मैं अब मशहूर होता जा रहा हूँ
"मुझे कुछ तालियाँ क्या मिल गयी हैं.................", अच्छा शेर है.

"बहुत हैं दोस्त इस महफ़िल में मेरे..........". वाह वा

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

वाकई काफी उम्दा गजल है लोकेश साहिल भाई की| छोटी बहर पर शेर निकालना, वैसे भी कठिन होता है और आप इस काम को बखूबी अंजाम दिया है आपने|

नीरज भाई एक और नयी दुनिया की सैर कराने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया|

Udan Tashtari said...

बहुत आभार मुलाकात करवाने का...गज़ब की गज़ल सुनवाई आपने. ऐसे मौकों पर रिकार्डिंग का प्रबंध भी साथ रखें तो पॉड कास्ट का आनन्द लिया जाये.

नीरज गोस्वामी said...

Comment received through e-mail:-
namaskaar

kisi takneeki kaaranvash
blog par tippnee nahi kar paa rahaa hoon....
so yahaan aa kar dastak deni padee...


लोकेश 'साहिल' जी की नायाब शाईरी से
रु-ब-रु करवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
कम लफ़्ज़ों में बहुत ही
असरदार और क़ीमती अश`आर कहे हैं साहिल जी ने
हर शेर एक ख़ास दाद का हक़दार है ...
मुझे कुछ तालियाँ क्या मिल गयी हैं
बड़ा मगरूर होता जा रहा हूँ ... वाह !!


saadar ,

"daanish"

Urmi said...

बहुत ही सुन्दर, लाजवाब और शानदार ग़ज़ल ! उम्दा प्रस्तुती!

दिगम्बर नासवा said...

नीरज जी ... नई नई किताबें ... नये नये शायर ... एक से एक लाजवाब ग़ज़लें .... आपका ब्लॉग किसी तपस्वी के ब्लॉग जैसा होता जा रहा है ...
इस लाजवाब ग़ज़ल की लिए बहुत बहुत शुक्रिया ...

मीनाक्षी said...

दिगम्बरजी की बात से सहमत...किताबों और शायरों की साथ साथ अपनी खूबसूरत गज़लें...आपका ब्लॉग सही मायने में मोगरे की खुशबूदार डाल सा है ...

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

उजालों में ही बस दिखता हूँ सब को
तो क्या बेनूर होता जा रहा हूँ ?
आद. नीरज जी,
हर शेर काबिले तारीफ़ है !
साहिल जी से मिलवाने के लिए शुक्रिया !

रचना दीक्षित said...

साहिल जी से मुलाकात करवाने का बहुत आभार
ग़ज़ल बहुत ही सुन्दर, लाजवाब और शानदार है

Rajeev Bharol said...

लोकेश साहिल जी ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत है.. इतनी पसंद आई कि जी चाह की उन्हें फोन कर के दाद दूं. फोन किया तो वे व्यस्त थे. दाद देने का मौका ही नहीं मिला.

Kunwar Kusumesh said...

लोकेश साहिल जी से परिचय अच्छा लगा.अच्छे शेर कहे हैं उन्होंने.उन्हें बधाई.अखिलेश तिवारी जी RBI में हैं.मैं उनसे पहले से ही अच्छी तरह परिचित हूँ.वो कानपुर और लखनऊ में भी पोस्टेड रह चुके हैं और बढ़िया ग़ज़लें कहते हैं.

राजेश उत्‍साही said...

यह जानकर सुखद आश्‍चर्य हुआ कि जयपुर में कोई ऐसी जगह भी है जहां हर महीने तय समय पर काव्‍य गोष्‍ठी होती है। और पिछले सात सालों से जारी है। नंदलाल जी को बधाई और शुभकामनाएं।

BrijmohanShrivastava said...

शाहिल जी के शेर पढवाने के लिये धन्यवाद

Ashish said...

Bhaut achche behtareen sher

i am bored :) said...

मुसलसल तीरगी झेली है मैंने
सरापा नूर होता जा रहा हूँ
इसका मतलब?

रंजन (Ranjan) said...

बेहतरीन... मजा आ गया..

Pratik Maheshwari said...

क्या बात है नीरज जी... कहते हैं कि ज्ञान और अच्छी चीज़ें बांटनी चाहिए और वही आपने किया है..
क्या लोकेश 'साहिल' जी ब्लॉगिंग नहीं करते हैं? अगर नहीं करते हों तो कहियेगा कि शुरू करें... ऐसे सुन्दर पेशकश पढने का आनंद ही कुछ और है...
और रही बात मुसलसल तीरगी वाली पंक्तियों की तो मुझे तो उर्दू शब्दकोष में झांकना पड़ा और फिर पंक्तियाँ पढ़कर मज़ा ही आ गया :)

सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

नीरज जी,
हर शेर काबिले तारीफ़ है !
साहिल जी से मिलवाने के लिए शुक्रिया !
शानदार ग़ज़ल ! उम्दा प्रस्तुती!

Amrita Tanmay said...

सही कहा है..उपरवाला ही ऐसा लिखवाता है..

Kritika Singh said...

लुटेरे बन रहे मालिक हैं मेरे
मैं कोहीनूर होता जा रहा हूँ
waaah