Monday, April 4, 2011

किताबों की दुनिया - 49

बेज़रूरत सही, पहचान तो कर लें अपनी
या'नी ख़ुद को कभी आईना दिखाया जाए

नोच लें चाँद को, सूरज को बहा कर रख दें
ये तमाशा भी ज़माने को दिखाया जाए

शे'र गोई की है ता'रीफ़ बस इतनी 'पाशी'
अपने एहसास को लफ़्ज़ों में सजाया जाए

एहसास को लफ़्ज़ों में सजाने की कला, ख़ुद को आईना दिखाने की हिम्मत,चाँद को नोचने और सूरज को बहाने का ज़ज्बा बहुत कम किस्मत वालों को नसीब होता है,उन्हीं चंद किस्मत वालों में से एक हैं हमारी आज की "किताबों की दुनिया" श्रृंखला के शायर मरहूम जनाब "कुमार पाशी” साहब जिनकी किताब "तुम्हारे नाम लिखता हूँ" का हम जिक्र करेंगे।


हर शख्स यहाँ दर्द के रिश्ते में बंधा है
सब दूर सही फिर भी जुदा कोई नहीं है

अब काट दिए पाँव हर इक शख्स के उसने
इस शहर में अब उस से बड़ा कोई नहीं है

"पाशी" जी अजब बज़्म है ये नक्दो-नज़र* की
आलिम** तो हैं सब लिख्खा-पढ़ा कोई नहीं है

नक्दो-नज़र*=आलोचना वाली आँखों **आलिम=विद्वान

कुमार पाशी साहब ४ जुलाई १९३५ को पाकिस्तान के बग़दाद उल ज़दीद में पैदा हुए थे , विभाजन के बाद भारत आये ,पहले जयपुर और बाद में दिल्ली में बस गए जहाँ १७ सितम्बर १९९२ को उनका देहावसान हुआ. आधुनिक उर्दू शायरी का जिक्र उनके बिना अधूरा है. उन्होंने मुशायरों में ही नहीं उर्दू शायरी के गंभीर पाठकों और आलोचकों के बीच अपनी अलग पहचान बना ली. आप उनकी शायरी की शैली में नया पन और प्रतीकों में अनूठा पन पायेंगे।

उसके बदन की धूप का आलम न पूछिए
जलता हो जिस तरह कोई जंगल कपास का

है आँधियों का ज़ोर चमकती है बर्क भी
और हम बनाये बैठे हैं इक घर कपास का

गर्मी है जैसे धूप में उसके ही जिस्म की
और चांदनी में नूर है उसके लिबास का

शायरी में सबसे मुश्किल काम नई नई बहरों, काफियों और रदीफ़ों का चुनाव करना है क्यूँ की बरसों से लिखी जा रही इस विधा में अपनी बात को अलग ढंग से कहना आसान काम नहीं है. ये बात सिर्फ शायरी पर ही लागू नहीं होती बल्कि ज़िन्दगी के हर मोड़ पर नवीनता की तलाश करना भी बहुत मुश्किल काम है, इस बात को अपनी एक ग़ज़ल में पाशी साहब ने मौलिक अंदाज़ में समझाया है:

जो कुछ नज़र पड़ा, मेरा देखा हुआ लगा
ये जिस्म का लिबास भी पहना हुआ लगा

जो शे'र भी कहा वो पुराना लगा मुझे
जिस लफ्ज़ को छुआ वही बरता हुआ लगा

दिल का नगर तो देर से वीरान था मगर
सूरज का शहर भी मुझे उजड़ा हुआ लगा

वाग्देवी प्रकाशन –बीकानेर से प्रकाशित इस किताब में पाशी साहब की लगभग अस्सी ग़ज़लें और लगभग साठ नज्में हैं जिनका चयन श्री नन्द किशोर आचार्य जी ने शीन काफ निजाम साहब के साथ मिल कर किया है. इस पुस्तक की प्राप्ति के लिए आप वाग्देवी प्रकाशन को vagdevibooks@gmail.com पर मेल लिख सकते हैं।

तू अपने चारों तरफ़ मौत का अँधेरा लिख
पर उसके गिर्द शिगूफे खिला,उजाला लिख
शिगूफे: कलियाँ

बला की प्यास है दम तोड़ते हैं बेबस लोग
जो हो सके तो मुकद्दर में उनके दरिया लिख

क्यों अपनी ज़ात के जंगल में खो गया 'पाशी'
कभी तो ख़ुद से निकल, दूसरों का किस्सा लिख

जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ छोटी बहर में अपनी बात मुकम्मल तौर पर कहना मुश्किल होता है , सतसई के दोहों की तरह जो "देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर" लेकिन शायर की असली पहचान भी इसी से बनती है. इस किताब में पाशी साहब की छोटी बहर में बहुत अधिक ग़ज़लें तो नहीं हैं लेकिन जो हैं वो कमाल की हैं:

लोग जुरअत कभी दिखाते नहीं
आइनों से नज़र मिलाते नहीं

जानते हैं खरे न उतरेंगे
इसलिए ख़ुद को आजमाते नहीं

खौफ तारी है इस कदर ग़म का
अब ख़ुशी में भी मुस्कुराते नहीं

याद रखते हैं अपने हर ग़म को
हम किसी दोस्त को भुलाते नहीं

यूँ तो पाशी साहब ज्यादातर अपनी कहानियों, कविताओं ,नज्मों के लेखन के लिए जाने जाते हैं लेकिन उन्होंने ग़ज़ल के फन को भी अपने हुनर से खूब निखारा है. इंसान की त्रासदियों को उन्होंने जानदार लफ्ज़ दिए हैं, कहन की सरलता और सहजता उनके अशआरों को पढने सुनने वालों से सीधा राबता बिठा लेती है, उन्हें तब उनके ये अशआर अपनी ही आप बीती से लगने लगता हैं :

वो हुक्मे-ज़बाँबंदी* लगाने भी न देगा
पर दिल की कोई बात सुनाने भी न देगा

देगा वो दुआएं भी कि साया रहे मुझ पर
राहों में मगर पेड़ उगाने भी न देगा

कह देगा न अब याद करूँ मैं उसे 'पाशी'
जब भूलना चाहूँ तो भुलाने भी न देगा
हुक्मे-ज़बाँबंदी = अभियक्ति पर पाबन्दी की आज्ञा

इस छोटी सी प्यारी सी किताब में इतनी अच्छी ग़ज़लें हैं....इतनी अच्छी ग़ज़लें हैं...के क्या कहूँ ? जी करता है इस पोस्ट को बढ़ाता जाऊं और आपको सुनाता...अररर माफ़ कीजियेगा पढवाता जाऊं...क्यूँ कि मुझे ये संदेह है के इस पोस्ट को पढने वाले सभी सुधि पाठक इस पुस्तक को खरीदने की योजना बनायेंगे...अगर मेरा संदेह गलत है तो यकीन मानिए मेरे लिए इस से अधिक ख़ुशी की कोई बात हो ही नहीं सकती. पोस्ट की लम्बाई और आपके कीमती समय को ध्यान में रखते हुए आपसे अगली किताब की चर्चा तक विदा लेता हूँ...

भूलेंगे न हम उनका करम, उन की इनायत
हम ज़ख्म को रख्खेंगे हरा, सोच लिया है

अब उस से किसी तौर हमारी न निभेगी
ढूढेंगे कोई और खुदा, सोच लिया है

चुपचाप से हम देखेंगे जाते हुए उन को
लेकिन न उन्हें देंगे सदा, सोच लिया है

33 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन गज़ल, पढ़वाने का आभार।

सदा said...

हर शख्स यहाँ दर्द के रिश्ते में बंधा है
सब दूर सही फिर भी जुदा कोई नहीं है

अब काट दिए पाँव हर इक शख्स के उसने
इस शहर में अब उस से बड़ा कोई नहीं है

हर एक शब्‍द ...लाजवाब, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

सौरभ शेखर said...

Neeraj jee,
Ek aur badhiya kitab se hamara parichay karane ke liye aapka dhanyavad.Aap sachmuch sahitya ki anmol sewa kar rahe hain.

vandana gupta said...

सच कहा …………एक बेहतरीन शायर ढूंढ कर लाये है आप एक बार फिर्……………हर शेर खुद बोल रहा है …………दास्ताँ बयाँ कर रहा है……………हर शेर दिल को छू गया…………पढवाने का आभार्।

दिगम्बर नासवा said...

शे'र गोई की है ता'रीफ़ बस इतनी 'पाशी'
अपने एहसास को लफ़्ज़ों में सजाया जाए ...

आपने इस शेर में पाशी जी की और अपने लाजवाब अंदाज़ की चर्चा कर दी है ... लफ़्ज़ों में एहसास को उतारना आसान नही ... जिस अंदाज़ ने पाशी जी ने किया है इतने खूबसूरत शेर लिख कर .. उसी अंदाज़ से आपने किया है लाजवाब संमीक्षा कर के ...

Khushdeep Sehgal said...

अब उस से किसी तौर हमारी न निभेगी
ढूढेंगे कोई और खुदा, सोच लिया है...

पाशी साहब गज़ब,
नीरज जी इतना बेहतरीन पढ़वाने के लिए आभार...

जय हिंद...

Kailash Sharma said...

एक बेहतरीन शायर से परिचय कराने के लिये आभार.

संध्या शर्मा said...

लाजवाब संमीक्षा.....

सागर said...

इक आर्काईव बनता जा रहा है आपका ब्लॉग... कुमार पाशी का लिखा मुझे बहुत पसंद है :) अब अर्धशतक का इंतज़ार है.

दीपक बाबा said...

आभार..........

बेज़रूरत सही, पहचान तो कर लें अपनी
या'नी ख़ुद को कभी आईना दिखाया जाए

इस शेर के लिए

Kunwar Kusumesh said...

लाजवाब, बेहतरीन प्रस्‍तुति.

नव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .

Anonymous said...

नीरज जी,

शानदार शक्सियत है 'पाशी' साहब कि.....हर शेर बढ़िया लगा पर ये ग़ज़ल तो सबसे अच्छी लगी.....आपका आभार..

लोग जुरअत कभी दिखाते नहीं
आइनों से नज़र मिलाते नहीं

जानते हैं खरे न उतरेंगे
इसलिए ख़ुद को आजमाते नहीं

खौफ तारी है इस कदर ग़म का
अब ख़ुशी में भी मुस्कुराते नहीं

याद रखते हैं अपने हर ग़म को
हम किसी दोस्त को भुलाते नहीं

रश्मि प्रभा... said...

अब उस से किसी तौर हमारी न निभेगी
ढूढेंगे कोई और खुदा, सोच लिया है
is charcha me jane kitna kuch mil jata hai

संजय भास्‍कर said...

नीरज जी,
.........लाजवाब, बेहतरीन प्रस्‍तुति.

देवेन्द्र पाण्डेय said...
This comment has been removed by the author.
देवेन्द्र पाण्डेय said...

किताबें पढ़ना, उस पर लिखना, दूसरों के ब्लॉग भी पढना और फिर अपना लिखना...

हमें लगता है आप कमाल करते हैं
हुनर से सबको मालामाल करते हैं।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

देगा वो दुआएं भी कि साया रहे मुझ पर
राहों में मगर पेड़ उगाने भी न देगा...

नीरज जी, आपकी परख का कोई सानी नहीं है. जितना अच्छा कहते हैं, ऐसे ही कलाम को पसंद भी करते हैं आप.

pran sharma said...

PASHEE JI KI GAZALEN PADH KAR BAHUT
ACHCHHAA LAGAA HAI . MUN SANTOSH
SE BHAR GAYAA HAI . ACHCHHEE
GAZALON KE CHUNAAV MEIN AAP
NUMBER ONE HAIN . MEREE BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNAA SWEEKAR KIJIYE .

ACHARYA RAMESH SACHDEVA said...

लोग जुरअत कभी दिखाते नहीं
आइनों से नज़र मिलाते नहीं

जानते हैं खरे न उतरेंगे
इसलिए ख़ुद को आजमाते नहीं

खौफ तारी है इस कदर ग़म का
अब ख़ुशी में भी मुस्कुराते नहीं

याद रखते हैं अपने हर ग़म को
हम किसी दोस्त को भुलाते नहीं
EXCELLENT.
SAMAJHDAR KO ISHARA KAAFI.

karishhma paal said...

behad khubsurat...

रचना दीक्षित said...

शे'र गोई की है ता'रीफ़ बस इतनी 'पाशी'
अपने एहसास को लफ़्ज़ों में सजाया जाए

पाशी जी से परिचय एक सुखद अनुभव रहा. आप वाकई इतना बढ़िया साहित्य खोज कर हम लोगों के सामने लातें है कि बस निशब्द कर देते है. बहुत धन्यबाद.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

अब काट दिए पाँव हर इक शख्स के उसने
इस शहर में अब उस से बड़ा कोई नहीं है

"पाशी" जी अजब बज़्म है ये नक्दो-नज़र* की
आलिम** तो हैं सब लिख्खा-पढ़ा कोई नहीं है

बेहतरीन शायरी और सुन्दर व्यक्तित्व ...
हम क्या तारीफ़ करें इनकी कला की ...
आपको धन्यवाद कि आपने इनसे मिलवाया ..

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan said...

हर शख्स यहाँ दर्द के रिश्ते में बंधा है
सब दूर सही फिर भी जुदा कोई नहीं है
बहुत खूब. आप सराहनीय साहित्यिक कर्म कर रहे हैं. मेरी बधाई स्वीकारें.

Asha Joglekar said...

Pashi sahab se parichay karwane ka abhar. Ek se ek khoobsurat she kaunsa chune kaunsa choden. aapke blog par aane ka yahee fayada hai ek se ek behatareen shayaron se parichay hota hai.

Anupama Tripathi said...

हर शख्स यहाँ दर्द के रिश्ते में बंधा है
सब दूर सही फिर भी जुदा कोई नहीं है

बेहतरीन शायरी पढवाने के लिए आभार.यहाँ तो ज्ञान का भण्डार है |ताज्जुब है अभी तक आपका ब्लॉग कैसे छूटा रहा |पर अब आपकी फोल्लोवर हूँ |

KESHVENDRA IAS said...

नीरज जी, आपके इस ब्लॉग के माध्यम से मैं पाशी जी के साथ-साथ वाग्देवी प्रकाशन को भी अपनी ढेर सारी शुभकामनाएँ देना चाहूँगा. इस प्रकाशन ने इतने कम मूल्य में इतनी बेहतरीन किताबें प्रकाशित की है कि विश्वास नही होता. गज़लों की किताबों के मामले में तो वाग्देवी प्रकाशन का योगदान सराहनीय है. मैं इस प्रकाशन के करता-धर्ताओं को ढेर सारी बधाई देता हूँ.

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया यह समीक्षा पढ़कर...

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इस शानदार पुस्‍तक से मिलवाने का शुक्रिया।

---------
प्रेम रस की तलाश में...।
….कौन ज्‍यादा खतरनाक है ?

बवाल said...

प्यारे नीरज दा,
इस आपकी इस बेहतरीन समीक्षा में ये दो शेर बहुत विशेष लगे:-

दिल का नगर तो देर से वीरान था मगर
सूरज का शहर भी मुझे उजड़ा हुआ लगा

वो हुक्मे-ज़बाँबंदी* लगाने भी न देगा
पर दिल की कोई बात सुनाने भी न देगा

आज बहुत दिनों बाद मुलाक़ात हो रही है। माफ़ कीजिएगा। अपने आप में नहीं हैं हम पिछले कई दिनों से। क्या बतलाएँ। शब्बख़ैर।

Shiv said...

कुमार जी की शायरी बहुत बढ़िया है. कुछ शेर मुझे इतने अच्छे लगे कि उन्हें कुमार जी के नाम से ही मैंने तवीत किया. और आपकी इस पोस्ट के बारे में भी.

किताबों की दुनियाँ गज़ब का संकलन होता जा रहा है.

Amrita Tanmay said...

सशक्त प्रस्तुति, पुस्‍तक से मिलवाने का शुक्रिया

akash lalwani said...

majaa aa gaya

aap sab se 1 sahyog chahiye
1 kitaab hai 'sudhiyon ki naagfani'
kripya yadi aap ko is kitab aur iske author ke baare me koi jaan kari hai to mere saath share kijiye
pls. maine ye kavya sangrah 6-7 saal pahele padha tha aur wo bemisaal tha
sorry tha nahi hai so plz

sumant said...

Atyant Prabhavshali